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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
निज - स्वभाव उद्योत कराय, सम्यग्ज्ञान प्रकाश लहाय । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय || जय जय अनन्तनाथ.. .11 ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । आत्मध्यान की अग्नि जलाय, सर्व विभाव सहज नशि जाय । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥ जय जय अनन्तनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । साधन शुद्ध उपयोग बनाय, साध्य रूप शिवफल प्रगटाय । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ।।जय जय अनन्तनाथ.. ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । प्रभु को पाकर हुए सनाथ, पावें निज अनर्घ्यपद नाथ । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥ जय जय अनन्तनाथ....॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । पंचकल्याणक अर्घ्य (चौपाई)
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कार्तिक कृष्णा एकम् के दिन, गरभ माँहिं आये तुम हे जिन । पन्द्रह मास रत्न थे बरसे, मात-पिता नर-नारी हरषे ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णप्रतिपदायां गर्भमंगलमण्डिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं सकल सृष्टि अति ही हरषाई, सिंहसेन गृह बजी बधाई | ज्येष्ठ कृष्ण द्वादश दिन जन्में, मेरु नह्वन कीनो सुरपति ने ॥
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । उल्कापात देखकर स्वामी, धरि वैराग्य हुए शिवगामी । ज्येष्ठ कृष्ण द्वादशि सुखकार, वन में गूँजा जय-जयकार |
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । एक मास धरि प्रतिमा योग, जये कर्म धरि ध्यान मनोज्ञ । चैत अमावस केवल पाय, भाव सहित हम अर्घ्य चढ़ाय ॥
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । चैत अमावस लह्यो निर्वाण, जय-जय अनन्तनाथ भगवान । अचल सिद्धपद वन्दें सार, ध्यावें समयसार अविकार ॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि.
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