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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
जयमाला
(सोरठा)
जयमाला सुखकार, गाऊँ अति आनन्द सों।
भाव रहे अविकार, भव-भव के बन्धन नशें ॥ (तर्ज - अहो जगत गुरु देव...) धर्मनाथ जिनराज परम धरम दर्शाया, रत्नत्रय अविकार, शिवपुर पंथ दिखाया। प्रभो ! प्रयोजनभूत सप्त तत्त्व प्रगटाये, उपादेय निज भाव हेय अन्य सब गाये ॥ निज दृष्टि निज- ज्ञान अहो लीनता निज में, निज-आश्रय से नाथ सहज बढ़े शिवमग में | निज अनुभव सर कूप शिवपुर मूल जिनेश्वर, तुमरे चरण प्रसाद जाना हे परमेश्वर ॥ त्रिभुवन मंगलकार प्रभुवर धर्म तुम्हारा, मिले हमें अविकार जागा भाग्य हमारा । पंचकल्याणक देव सुरगण आय मनावें, तीन लोक के जीव सहजहिं साता पावें ॥ निकट भव्य तो नाथ लख सम्यक् प्रगटावें, निर्मोही हो नाथ शिवमारग में धावें । दर्शन कर मुनिनाथ मुक्त स्वरूप दिखावे, पूजत तुम्हें जिनेश मुक्ति समीप सु आवे ॥ स्व-पर विवेक जगाय देव ! गुणों का चिन्तन, चाह - दाह विनशाय होय धर्म आकिंचन । धूल समान दिखाँय, जग के वैभव सारे, पर पद आपद रूप, भोग भुजंग से कारे ॥
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