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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह दीक्षा ले भायी सुखकार, भावना सोलह कारण सार । किया प्रकृति तीर्थंकर बंध, कर समाधि हुए अहमिन्द्र। मिथिला नगरी राजा कुम्भ, प्रजावती रानी अतिरम्य। अपराजित विमान तें सार, आये ताके गर्भ मंझार ।। नाना उत्सव देव सु किये, धन्य घड़ी प्रभु जन्मत भये। हुआ सुमेरू पर अभिषेक, दर्शन से प्रभु जगे विवेक॥ अद्भुत क्रीड़ाएं सुखकार, करते बढ़ते भये कुमार। शादी को जब चली बरात, लख शोभा प्रभु हुए उदास ॥ हुआ जाति स्मरण सु ज्ञान, दीक्षा हेतु किया प्रस्थान। धिक्-धिक् कह त्यागे जड़भोग, आराधा निजरूप मनोग॥ छह दिन में लहि केवलज्ञान, धर्मतीर्थ प्रगटा अम्लान । समवशरण में शोभे आप, भविजन के नाशें संताप ॥ एक मास पहले जिनराज, सम्बल कूट सु आय विराज। करके योग निरोध महान, पायो अविचल पद निर्वाण ।। भाव सहित पूजत जिनदेव, तत्त्वज्ञान जागे स्वयमेव । विचरूँ मैं भी प्रभु के पंथ, पाऊँ दशा परम निग्रंथ ।।
(छन्द-घत्ता) जय मल्लि जिनेन्द्रं, आनन्द कन्दं, चिदानन्दमय चित्त धरूँ।
तज जग जंजालं, सुगुण विशालं, प्रभु समान ही प्रगट करूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्य निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) प्रभु पूजा सुखकार, हर्षित हो नित प्रति करूँ। पाऊँ निज पद सार, अन्य न कोई कामना ।।
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ।।
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