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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
पंचकल्याणक अर्घ्य
(तर्ज : भावना रथ पर चढ़ जाऊँ...) पंच कल्याणक मनहारी-२ भव्यों के कल्याण निमित्त यह उत्सव सुखकारी ।।टेक॥ पन्द्रह मास रतन शुभ वर्षे, आनन्द भयो भारी। फाल्गुन शुक्ला तीज हुआ, गर्भागम सुखकारी पंचकल्याणक..॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लातृतीयां गर्भमंगलमण्डिताय श्री अरनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। मगसिर सुदी चर्तुदशि गजपुर, जन्मे जगतारी। मेरु शिखर पर इन्द्रादिक, अभिषेक कियो भारी पंचकल्याणक॥ ॐ ह्रीं मगसिरशुक्लचतुर्दश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री अरनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। मगसिर शुक्ला दशमी को निर्ग्रन्थ दशा धारी। समता रस की धार बहाई, नित्यानन्दकारी पंचकल्याणक ।। ॐ ह्रीं मगसिरशुक्लचतुर्दश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री अरनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
कार्तिक शुक्ला द्वादशि को लहि, केवल अविकारी। धर्मतीर्थ का किया प्रवर्तन, सबको हितकारी पंचकाल्याकणक॥ ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्लद्वादश्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री अरनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
कृष्णा चैत अमावस्या को, बन्ध दशा टारी। नित्य निरंजन शिवपद पायो, अक्षय अविकारी पंचकल्याकणक।। ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री अरनाथजिनेन्द्राय अयं नि.।
जयमाला
(दोहा) धर्म शस्य हित मेघ सम, श्री अरनाथ महान । गाऊँ जयमाला प्रभो, परमानन्द की खान ।।
(तर्ज-प्रभो! आपने एक ज्ञायक दिखाया..) प्रभु आपको पूजते हर्ष भारी,
स्वयं की विभूति स्वयं में निहारी। अहो नाथ ! तुमसे तुम्ही हो दिखाते
महानन्दमय पद तुम्हीं तो बताते॥
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