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________________ 144 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री अनन्तनाथ जिनपूजन (वीरछन्द) जय अनन्त भगवन्त संत प्रभु, तारण-तरण जिहाज हो, विषय-कषाय इन्द्रियाँ जीतीं, भावरूप जिनराज हो। निज प्रभुता अनन्त दरशाई, मोह अंधेरा दूर भगा, अनन्त चतुष्टय रूप महेश्वर, पूजन का उल्लास जगा। (दोहा) प्रभुवर की पूजा करें, रोम-रोम हुलसाय। निज प्रभुता पावें प्रभो, यही भाव उमगाय॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय! अत्र मम सनिहितो भव भव वषट्। समता भाव सहज सुखकार, जन्म मरण दु:ख नाशनहार। महासुख होय, प्रभु पद पूजे शिवसुख होय ।। जय जय अनन्तनाथ भगवन्त, गुण-अनन्त अनुपम शोभन्त ।।महासुख..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । समकित शीतलता का मूल, सहज नशे भव-भव की शूल। महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ.. | ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा । जग के पद क्षत् रूप लखाय, अक्षय पद निज में विलसाय। महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ.. ॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। जीते काम सुभट जिनराय, धारें ब्रह्मचर्य हुलसाय। महासुख होय, प्रभु पद पूजे शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । अनुभव रस में तृप्त रहाय, क्षुधा तृषा सहजहिं विनशाय । महासुख होय, प्रभु पद पूजें शिवसुख होय ॥जय जय अनन्तनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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