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________________ 143 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह आपको जग से वैराग्य जब था हुआ, देव लोकान्तिकों ने सुमोदन किया || परम उल्लास से नाथ संयम धरा, घातिया घात कर ज्ञान केवल वरा । जग को दर्शाय ध्रुव शुद्ध परमात्मा, हो गये आप निष्कर्म सिद्धात्मा ॥ भाव पंचम परम पारिणामिक महा, करके आराधना आप शिवपद लहा । धन्य हो ! धन्य हो !! परम उपकारी हो, भावमय वंदना देव ! अविकारी हो ।। ध्याऊँ निज देव को पाऊँ जिनदेव पद, इन्द्र चक्री के पद जिसके सन्मुख अपद । कामना वासना अन्य कुछ ना रही, सहज कृत-कृत्य ज्ञायक रहूँगा सही ॥ (छन्द-घत्ता) जय विमल जिनेशं, हरत कलेशं नमत सुरेशं सुखकारी । जो पूजें ध्यावें, मोह नशावें, पावें पद मंगलकारी ॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालाऽर्घ्यं निर्व. स्वाहा । (छन्द - अडिल्ल) जयवन्तो जिनराज, जगत में नित्य ही । तुम प्रसाद भवि पावें, बोधि समाधि ही ॥ वीतराग जिनधर्म सु, मंगलकार है। भाव सहित जे धरे, लहे भव पार है । ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ राग के समय भी ज्ञान राग से भिन्न रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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