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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
कलि षाढ़ अष्टमी पावन, कर आवागमन निवारण।
निर्वाण महाफल पाया, हम पूजत शीश नवाया। ॐ ह्रीं श्री आषाढकृष्णअष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अयं ।
जयमाला
(सोरठा) तेरहवें तीर्थेश, विमल विमल पद देत हैं। परमपूज्य सर्वेश, अनन्त चतुष्टय रूप जिन ।।
(छन्द-कामिनी मोहन, तर्ज: मैं हूँ पूर्ण ज्ञायक...) गाऊँ जयमाल जिनराज आनन्द सौं,
छूटि हौं दुःखमय कर्म के फन्द सौं। मोहवश मैं अनादि से भ्रमता रहा,
नाथ कैसे कहूँ जो महादुःख सहा॥ परम सौभाग्य से नाथ दर्शन हुआ,
जैनवाणी सुनी तत्त्व निर्णय हुआ। है त्रिविध कर्ममल शून्य शुद्धात्मा,
ज्ञान-आनन्दमय सहज परमात्मा ।। नित्य निरपेक्ष निर्द्वन्द निर्मल अहो,
सहज स्वाधीन निर्लेप ज्ञायक प्रभो। जानकर नाथ आदेय आनन्द हुआ,
मोहतम मिट गया आत्म-अनुभव हुआ। जागा बहुमान उर में अहो आपका,
भेद जाना धर्म-कर्म पुण्य-पाप का। आपकी स्तुति देव कैसे करूँ,
___गुण अनन्ते विभो! चित्त माँहीं धरूँ॥ आप ही लोक में सत्य परमेश्वरं,
वीतरागी सु सर्वज्ञ तीर्थंकरं।
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