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________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह भेदज्ञान का हुआ उजाला, मिथ्या तिमिर नशाय । अविरल ज्ञान भावना भाऊँ, केवलि पद प्रगटाय ॥ प्रभु पूजों भाव सों, श्री विमलनाथ जिनरायजी पूजों भाव सों। ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । सहज तत्त्व का सहज ध्यान हो, कर्म समूह नशाय । 141 जगत पूज्य निष्कर्म निरंजन, सिद्ध स्वपद प्रगटाय ॥ प्रभु... ॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । पाप-पुण्य के फल में प्राणी, भव-भव में भरमाय । शुद्ध भाव से अहो जिनेश्वर, सहज मोक्ष फल पाय ॥ प्रभु... ॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । विमल अर्घ्य ले प्रभु चरणन में, आऊँ अति हर्षाय । ज्ञानानन्दमय निज अनर्घ्यपद, पाऊँ हे शिवराय ॥ प्रभु... ॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । पंचकल्याणक अर्घ्य (छन्द-सखी) गर्भागम मंगल गाये, नभ से सु-रतन वर्षाये । कलि जेठ सु-दशमी जानो, प्रभु पूजत चित हुलसानो ॥ ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णदशम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । सुदि माघ चतुर्थी आई, जन्मे जिन आनन्ददायी । भयो मेरु न्हवन सुखकारी, पूजत प्रभु पद अविकारी ॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । सुदि माघ चतुर्थी प्यारी, मुनिपद की दीक्षा धारी । इन्द्रादिक उत्सव कीनो, सुनि आनन्द होय नवीनो ॥ ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां तपोमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । सुदि माघ छटी दिन आयो, अरहंत परमपद पायो । कैवल्यलक्ष्मी पाई, हमको शिव राह दिखाई || ॐ ह्रीं माघशुक्लषष्ठ्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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