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________________ 140 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री विमलनाथ जिनपूजन (चौपाई) जय-जय विमलनाथ भगवान, भक्ति सहित करता आह्वान् । मेरे हृदय विराजो देव, आराधूं निजपद स्वयमेव ॥ (दोहा) कम्पिल नगरी जन्म से, हुई जगत विख्यात । कृतवर्मा प्रभु के पिता, जय-जय श्यामा मात ।। ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भववषट्। (छन्द-चाल होली) प्रभु पूजों भाव सों, श्री विमलनाथ जिनरायजी पूजों भाव सों। प्रासुक समतामय जल लीनों, अन्तर्दृष्टि लाय। यही भावना प्रभु प्रसाद से, जन्म-मरण मिट जाय ॥प्रभु..॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। उत्तम क्षमा भाव मय चन्दन, भव आताप मिटाय। प्रभु चरणों में मैंने पाया, आनन्द उर न समाय ।।प्रभु... || ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। जग में भोग संयोग विभव सब विनाशीक दुखदाय। अक्षय पद का आराधन कर, अक्षय प्रभुता पाय ।।प्रभु..॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। कामदाह अति ही दुखदायक, महा अनर्थ कराय। ताको नाशि लहूँ तुम सम ही, ब्रह्मचर्य सुखदाय ॥प्रभु..॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । तृष्णा भाव मिटे हे स्वामी, भव-भव में दुखदाय। सन्तोषामृत पियूँ निरन्तर, तुम समान जिनराय ॥प्रभु..॥ ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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