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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
संसारी निज ज्ञान विहीन, इन्द्रिय मद मेटन बलहीन । विषय चाह उपजावे दाह, भोगन में भूले शिवराह ॥ आत्मज्ञान बिन शरण न कोय, व्यर्थ मोह में क्लेशित होय । अब विलम्ब करना नहीं जोग, धरूँ शीघ्र शिवदाता योग || सब विधि अवसर मिलो महान, जीतूं कर्म लहूँ निर्वान । दृढ़ विराग उपज्या सुखदाय, तत्क्षण लौकान्तिक सुर आय ॥ अनुमोदन कर शीश नवाय, धन्य विचार कियो जिनराय । दीक्षा धरो प्रभो ! अविकार, भायें भावना हम हू सार ॥ इन्द्रादिक आये हर्षाय, प्रभु को तपकल्याण मनाय । उत्सव सों प्रभु वन में गये, वस्त्राभूषण सब तजि दये ॥ पंच मुष्ठि कचलौंच कराय, निर्ग्रथ रूप धर्यो सुखदाय । आत्म ध्यान की धुनी लगाय, एक वर्ष छद्मस्थ रहाय ॥ चढ़े क्षपक श्रेणी सुखकार, प्रगट्यो अर्हत् पद अविकार । भविजन को शिवराह दिखाय, सिद्धालय में तिष्ठे जाय ॥ ज्ञान माँहिं हे देव निहार, करें अर्चना मंगलकार । प्रभु चरणों में शीश नवाय, अद्भुत परमानन्द विलसाय ॥
(छन्द-घत्ता)
प्रभु अमल अनूपं शुद्ध चिद्रूपं, सहजानंदमय राजत हो । निष्काम जिनेश्वर, जजूँ महेश्वर, शिव मारग विस्तारत हो । ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय जयमालाऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (दोहा)
बाल ब्रह्मचारी प्रभो ! वासुपूज्य जिनराज । करि सम्यक् आराधना, पाऊँ निजपद राज | ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
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