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________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह पंचकल्याणक अर्घ्य (छंद द्रुतविलम्बित) होय च्युत महाशुक्र विमान से, आये विजया माता गर्भ में । षाढ़ कृष्णा षष्टिमी थी सही, धनि हुई चम्पापुर की मही ॥ ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णषष्ठ्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्य - जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । चतुर्दशि फागुन की श्याम है, जन्म अन्तिम प्रभु अभिराम है। किया था अभिषेक सुमेरु पर, पुण्यशाली इन्द्रों ने आनंद कर ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्य - जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि . । ब्याह अवसर पर प्रभु वैराग्य धरि, भव शरीर कुभोग असार लखि । चतुर्दशि फागुन कलि शुभघड़ी, अहो मुनिपद की सहज दीक्षा धरी ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्य - जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । शुक्ल ध्यान महान लगाइया, ज्ञान केवल जिनवर पाईया | दिव्यध्वनि भई मंगलकार है, दूज भादव कृष्ण की सुखकार है ॥ ॐ ह्रीं भाद्रपदकृष्णद्वितीयायां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्य - जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । चतुर्दशी सित भादौं की सही, लही प्रभुवर ने अहो अष्टम् मही । तीर्थ चम्पापुर महासुखदाय है, अर्घ ले जजिहौं सहज शिवदाय है ।। ॐ ह्रीं भाद्रपदशुक्लचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीवासुपूज्य - जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । जयमाला (दोहा) इन्द्रादिक पूजैं चरण, महाभक्ति उर धार । गावें जयमाला प्रभो ! आतमनिधि दातार ॥ (चौपाई) जय-जय वासुपूज्य भगवान, गुण अनन्त मंगलमय जान । भरि यौवन में सहज विराग, भोगों प्रति उपज्या नहिं राग ॥ निज में प्रमुदित बाह्य उदास, आत्मसाधना का उल्लास । जगत विभव किंचित् न सुहाय, तत्त्व विचार करें सुखदाय ॥ शुद्धातम ही जग में सार, अविनाशी सुख का आधार । इन्द्रिय सुख तो दुख के मूल, फल में उपजें भव-भव शूल ॥ Jain Education International 138 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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