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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
प्रभु ज्ञानमय ब्रह्मचर्य ही है परम औषधि काम की । तातैं जिनेश्वर शरण आया, कामना तजि वाम की ॥ भव ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा । निज हेतु निज में ही निरन्तर झरे अमृत ज्ञानमय । ताके आस्वादत तृप्ति हो, नाशें क्षुधादिक दुःखमय ॥ भव. ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा ।
अज्ञानतम में भटकते जो, दुख सहे कैसे कहूँ?
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प्रभु भेदज्ञान प्रकाश करि, निर्मोह निज आतम लहूँ ॥ भव ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा ।
ध्यानाग्नि में नाशे करम मल, आत्म शुद्ध कहाय है ।
निष्कर्म अविनाशी स्वपद हो, भव भ्रमण नशि जाय है ॥ भव ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्म विनाशनाय धूपं नि. स्वाहा ।
सम्यक्त्व जिसका मूल है, चारित्र धर्म धरूँ सही । ताके प्रभाव लहूँ सहज, ध्रुव अचल अनुपम शिव मही ॥ भव ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । धरि आत्मधर्म अनर्घ्य स्वामी, अर्घ्य से पूजूँ अहो । इन्द्रादि पद के विभव भी, निस्सार भिन्न लगें प्रभो ॥ भव ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा । पंचकल्याणक अर्घ्य (छन्द-होली)
श्री पद्मप्रभ जिनराजजी, जयवन्तो सुखकार । माघ कृष्ण षष्ठी दिन आये, स्वामी गर्भ मंझार ।
करें देवियाँ सेवा माँ की, वर्षे रत्न अपार ॥ श्री ॥
ॐ ह्रीं माघकृष्णषष्ठ्यां गर्भमंगलमंडिताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को, जन्मे जग दुखहार ।
जन्म महोत्सव सुरगण कीनो, घर-घर मंगलाचार ॥ श्री ॥ ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णत्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. ।
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