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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पौष कृष्ण एकादशी, जन्मे श्री जगदीश।
इन्द्रादिक उत्सव कियो, नह्वन कियो गिरिशीश॥ ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा।
भव-तन-भोगविरक्त हो, जिनदीक्षा अविकार।
धरी पौष वदि ग्यारसी, पूजों करि जयकार। ॐ ह्रीं पौषकृष्णैकादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा ।
फाल्गुन श्यामा सप्तमी, प्रगट्यो केवलज्ञान ।
आतम महिमा मुक्तिपथ, दर्शायो भगवान ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यांज्ञानमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा ।
सित फाल्गुन सप्तमि गये, मुक्तिमाँहिं परमेश।
पूजत पाप विनष्ट हों, धन्य-धन्य सर्वेश ।। ॐ ह्रींफाल्गुनशुक्लासप्तम्यांमोक्षमंगलमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा।
जयमाला
(सोरठा) जयवन्तो शिवभूप, अचिन्त्य महिमा के धनी। परमानन्द स्वरूप, गाऊँ जयमाला प्रभो।।
(तर्ज- हे दीनबन्धु...) हे चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र ! सत्य शरण हो तुम्हीं।
हे वीतराग देव ! तारण-तरण हो तुम्हीं॥ कर दर्श नाथ सहज ही कृतकृत्य हो गया।
प्रभु ! स्वयं स्वयं में ही सहज तृप्त हो गया। विभु ! तेजपुंज आत्मा को आप जानके।
होकर उदास लोक से दीक्षा सु-धार के॥ ध्यानाग्नि में चहुँ घाति कर्म सहज जलाए।
अनन्त दर्श-ज्ञान-सुख-वीर्य तब पाए ।। अष्टम हुए तीर्थेश धर्मतीर्थ बताया।
ध्रुव तीर्थरूप आत्मा प्रत्यक्ष दिखाया।
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