________________
आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
जयमाला
दोहा - सहज शांत शीतल रहें, शीतल चरण प्रसाद । गावें जयमाला सुखद, नाशें सर्व विषाद ॥ (छन्द- त्रोटक )
श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र नमूँ, जिनतत्त्व समझ दुर्मोह वमूँ । ज्ञायक हूँ सहज प्रतीति हो, आनन्दमय निज अनुभूति हो । पर में एकत्व ममत्व न हो, सपने में भी कर्तृत्व न हो । परिणमन सहज होता भासे, ज्ञातृत्व सहज ही प्रतिभासे ॥ कुछ इष्ट-अनिष्ट विकल्प न हो, दुखमय मिथ्या संकल्प न हो । दुख कारण आस्रव बंध नशें, संवर निर्जर सुखमय विलसें ॥ यों तत्त्व प्रतीति नाथ धरें, प्रभु साक्षी हों भव सिन्धु तरें । निर्ग्रथ भावना भावत हैं, अविनाशी निजपद चाहत हैं ।। बिनशत मुक्ता सम ओस बिन्दु, निरखी प्रात: तुमने जिनेन्द्र | तत्क्षण संसार असार तजा, आनन्दमय आतम रूप सजा ॥ वस्त्राभूषण सब फेंक दिये, निर्मम होकर कचलौंच किये। जिनयोग अपूर्व लगाया था, दुष्कर्म समूह नशाया था ॥
अद्भुत जिनवैभव प्रगटाया, सुर समवशरण था रचवाया । हुई दिव्य देशना सारभूत, भविजन को शुभ कल्याणभूत ॥ लाखों प्राणी प्रतिबुद्ध हुए, तद्भव से भी बहु मुक्त हुए । यों दशवें तीर्थंकर सु होय, सब कर्म नाशि गये सिद्ध लोय ॥ ज्यों सिद्धालय में आप बसे, त्यों देहालय शुद्धात्म लसे । हम ध्यावें मंगलकार प्रभो, वर्तें नित जाननहार विभो ॥
-
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्यं नि. स्वाहा । सोरठा पूजा श्री जिनराज, भक्ति-युक्ति युत जो करें। पावें सिद्ध समाज, सब संक्लेश निवारिकें ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
Jain Education International
132
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org