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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
भक्तिवश ही गुणगान किया, पूजन करते हरषाय हिया।
तुम शासन पा परमार्थ ध्याय, पाऊँ पद अक्षय सौख्यदाय ।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अयं नि. स्वाहा।
(दोहा) कुमति विनाशक सुमति जिन, पायो सुखद सहाय। निश्चय निज प्रभुता लहँ, आवागमन नशाय ।।
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि॥
श्री पद्मप्रभ जिनपूजन
(छन्द-अडिल्ल) जय जय पद्म जिनेश, परम सुख रूप हो,
स्वानुभूति के निमित्त शुद्ध चिद्रूप हो। दर्शन पाकर हुआ सहज आनन्दमय,
करूँ अर्चना रागादिक पर हो विजय ॥ ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं।
(गीतिका) इन्द्रादि से पूजित दरश कर, परम ज्ञान प्रकाशिया। पानकर समता सुधा, जन्मादि का भय नाशिया॥ भव भोग तन वैराग्य धार, सु शुद्ध परिणति विस्तरूँ।
श्री पद्मप्रभ जिनराज की पूजा करूँ भव से तिरूँ।। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं नि. स्वाहा। जिनवचन सुन निजभाव लखि, परिणाम अति शीतल भया।
चन्दन नहीं भवताप नाशक, जान तुम आगे तज्या ।।भव.।। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनं नि. स्वाहा।
अक्षय अखण्ड सुगुण करण्ड, चिदात्म देव महान है।
सो प्रभु प्रसादहिं पाइयो, जागा सहज बहुमान है ।भव.।। ॐ ह्रीं श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा।
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