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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
जातिस्मरण निमित्त हुआ प्रभु लख संसार असार । कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी को दीक्षा ली अविकार ।।
श्री पद्मप्रभ जिनराजजी, जयवन्तो सुखकार । ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णत्रयोदश्यां तपोमंगलमंडिताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अयं नि.।
कौशाम्बीवन शुक्लध्यान धर, केवललक्ष्मी सार।
पाई चैत सुदी पूनम को, त्रेसठ प्रकृति निवार ॥श्री.॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लपूर्णिमायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अयं नि. ।
मोहन कूट शिखर से प्रभुवर, सर्व कर्म मल टार। ___फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी के दिन पायो शिवपद सार ॥श्री.॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णचर्तुथ्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्री पद्मप्रभजिनेन्द्राय अयं नि.।
जयमाला
(दोहा) जयमाला जिनराज की, गाऊँ भवि सुखदाय। पाऊँ ज्ञान-विरागता, सकल उपाधि नशाय ।।
(छन्द-नाराच, तर्ज : वन्दे जिनवर.....) पद्म के समान कान्तिमान पद्मप्रभ जिनेन्द्र,
वन्दते सु भक्ति से तीन लोक के शतेन्द्र। दिखावते असार पुण्य का विभव मनो प्रभो,
सारभूत आत्मीक ज्ञान सुख अहो अहो॥१॥ द्रव्यदृष्टि धारिके, मिथ्यात्व भाव नाशिके,
विषय कषाय त्यागि के निर्ग्रन्थ पद सु धारिके। सार्थक किया प्रभो ! सुनाम अपराजितं,
भावना हृदय जगी सहज सोलहकारणं ॥२॥ तीर्थंकर प्रकृति बंधी आप ग्रैवेयिक गये,
गर्भ समय मात को सोल स्वपने भये। जन्म समय इन्द्र ने सुमेरु पर नह्वन किया ,
पद्म चिन्ह पद्मप्रभ नाम को प्रसिद्ध किया।॥३॥
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