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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह मोहीजन को लगे असम्भव, रागादि का मिट जाना। आज सहज सम्भव भासे प्रभु, वीतराग पद पा जाना ।। प्रभु प्रसाद मिट जावे पूजक-पूज्य भेद दुखकार रे।।पूजन।।
(छन्द बसंततिलका) इन्द्रादि शीश नावें, आनन्द बढ़ावें,
__ अति भक्ति भाव लावें, पूजा रचावें। मैं अर्चना करूँ क्या? है शक्ति थोरी,
___ पूजन निमित्त परिणति, निज माँहिं जोरी॥ ॐ ह्रीं श्री सम्भवनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य नि. स्वाहा।
(सोरठा) जो पूजें मन लाय, सम्भवनाथ जिनेश को। पावें इष्ट अघाय, अविनाशी शिवपद लहें।।
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ श्री अभिनन्दननाथ जिनपूजन
चन्द्र कान्ति की सूर्य तेज की, इन्द्र विभव की चाह करें। ऐसी कान्ति तेज अरु वैभव, अभिनन्दन प्रभु सहज धरें। गुण अनुपम अक्षय हैं जिनवर, क्या महिमा का गान करूँ।
हृदय विराजो अभिनन्दन प्रभु, निजानन्द रस पान करूँ॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं । ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सनिहितो भव भव वषट् सनिधिकरणं।
(गीतिका) आया शरण जिननाथ की जब, सहज ही अतिशय हुआ। दिखा शाश्वत आत्मा, मरणादि से निर्भय हुआ। नाथ अभिनन्दन प्रभू की, करूँ पूजा भक्ति से।
पाऊँ विशुद्धि परम जिनवर सम, स्वयं की शक्ति से॥ ॐ ह्रीं श्री अभिनन्दननाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा।
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