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आचा०
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लेवो, अने भावगुण ते जीव अने अजीवनो जाणवो, आ प्रमाणे थोडामां बतावी तेनी विशेष व्याख्या करे छे. क्षेत्र गुण.
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देवकुरु, उत्तरकुरु, हरी वर्ष, रम्यक, हेमवत, हैरण्यवत आ छ युगलिकनां क्षेत्र छे. ते सीवाय छपन्न अंतर द्वीप छे. तेमां प युगलिक छे, तेओने खेती विगेरे कृत्य करवा वीना जे जोइए ते कल्प वृक्षमांथी मली शके छे, तेथी ते अकर्म भूमि कहेवाय छे. आ क्षेत्रने आश्रयी गुण जाणवो, वली त्यां जन्मेला मनुष्यो देव कुमार जेत्रा सुंदर रूपवाला सदा जुवानी भोगवनारा पुरे आयुष्ये | मरनारा अनुकूल सुंदर पांचे इन्द्रिय विषय सुख भोगवनारा स्वभावथीज सरळ कोमळ स्वभाववाळा अने भद्रक भावना गुणथी देव | लोकमां जनारा होय छे ( साथै स्त्री पुरुषनुं जोडुं जन्मे अने ते नरमादा तरीके रहे तेथी ते युगलिक कद्देवाय )
काळ गुण.
भरत भैरवत आ वे क्षेत्रमां प्रथमना त्रण आरामां एकान्त सुखवाला बखतमां युगलिकोनी स्थिति सदा सुंदर रूपवाली अने यौवनवाली रहे ले.
फळ गुण.
फळ तेज गुण, ते फळ गुण कहेवाय; अने ते फळक्रियाने आश्रयी छे, ते क्रिया सम्यक्दर्शन ज्ञानचारित्र विना आ लोक अथवा परलोकने आश्रयी जे करवामां आवे; ते एकांत अनंत सुखने आपनारी नहोवाथी तेनो फळगुण मळ्या छतां अगुण जेवो छे, पण
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सूत्रम्
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