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सूत्रम्
॥२५६॥
विगेरे भावनी परिणतिरूप छे, तेमां प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, अने प्रदेश एम चार प्रकारना कर्मना बंधना प्रदेश विपाकनु भोगवई 2 आचा० 18 छे. आ प्रमाणे द्रव्यथी लइ भाव सुधी पांच प्रकारनो संसार छे अथवा द्रव्यादिक चार प्रकारनो संसार छे ते आ प्रमाणे अश्वथी
हाथी. गामथी नगर. अने वसंतथी ग्रीष्म. तथा औदयिकथी औपशमिक एम चार प्रकारे थाय छे, एम बने प्रकारे संसार बताव्यो ॥२५६॥
छे, आसंसारमा कर्मने वश थएला जीवो आम तेम भमे छे. तेथी कर्मनु स्वरूप बतावे छे.
णामंठवणाकम्म, दव्वकम्मं पओगकम्मं च । समुदाणिरियावहियं आहाकम्मं तवोकम्मं ॥ १३ ॥ ४/किइकम्म भावकम्म, दलविह कम्भ समासओ होइ । दू नाम कर्म-ते कर्म विषयथी शून्य. एबुं नाम मात्र छे. स्थापना कर्म पुस्तक अथवा पात्र विगेरेमां कर्म वर्गणानुं सद्भाव. अ-18 सद्भाव एम चे रुपे जे लखेल के चितरेलुं होय कर्म छे ते स्थापना कर्म छे.
द्रव्य कर्ममां-ज्ञशरीर. भव्यशरीर सीवाय व्यतिरिक्त वे प्रकारे छे-द्रव्य कर्म अने नो द्रव्य कर्म, तेमां द्रव्यकर्म ते कर्म वर्गणाना अंदर रहेला पुद्गलो जे बंधने योग्य, अने बंधाता अने बांधेला जे उदीर्णामां न आवेला होय ते लेवानो द्रव्यकर्ममां कृषीबळ (खे-13 डुत.) विगेरेनां कर्म जाणवां (जेनाथी बीजा जीवोने दुःख थाय तेवां संसारी कृत्य अहीं लेवां)
प्रश्न-कर्मवर्गणानी अंदर रहेला पुद्गळो द्रव्यकर्म छे एवं कडं ते वर्गणा कइ छे ? .. उत्तर-सामान्य रीते वर्गणा चार प्रकारनी छे, द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव, एम चारभेदे छे. तेमां द्रव्यथी एक वे विगेरेथी। 2
RRBHA२-०१-२
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