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केवळी भगवंतने समुद्घातनी अवस्थामां बीजा छहा अने सातमा समयमां छे. वैक्रियकाय योग देव नारक अने बादर वायुकायने , आचा० छे, अथवा बीजा कोइ वैक्रिय लब्धिवालाने होय छे. तेनो मिश्र योग देवता नारकिने उत्पत्ति समये छे अथवा नवं वैक्रिय शरीर
सूत्रम् बनावनार वीजाने पण होय छे, आहारक योग चौद पूर्वी साधु ज्यारे आहारक शरीरमां स्थित होय छे त्यारे छे अने तेनो मिश्र-21 ॥२६३॥ 18 योग निर्वर्तना (बनाववा ) ना काळमां होय छे.
४॥२६३॥ कार्मण योग-विग्रह गतिमां अथवा केवलि समुद्घातमां त्रीजा चोथा पांचमा समयमां छे.
आ प्रमाणे पंदर प्रकारना योगवडे आत्मा आठ प्रदेशने छोडीने तपेला वासगमां उछळता पाणीनी माफक उद्वर्तमान सर्व ४ आत्भाना प्रदेशोवडे आत्मा प्रदेशनी अवष्टब्ध आकाश भागमा रहेल कार्मणशरीरने योग्य कर्मदळने जे बांधे छे तेने प्रयोगकर्म + कहे छे. का छे के
“जाव णं एस जीवे एयइ, वेयइ, चलइ, फंदईत्यादि ताव णं अट्टविहबंधण वा सत्तविहबंधए वा छबिहबंधए वा एगविहबंधए वा नो णं अबंधए”।
ज्यां सुधी आ जीव हाले छे. वधारे हाले छे. चाले छे. फरके छे. त्यां सुधी आठ प्रकारना कर्मनो बंधक सात प्रकारना छ | प्रकारना अथवा एक प्रकारना पण कर्मनो बंधक छे, पण ते अबंधक होतोज नथी. समुदान कर्म-(समुदान शब्दनी उत्पत्ति सं. तथा आ उपसर्ग साथे दा. धातु जे देवाना अर्थमां छे, तेनुं ल्युट अंतथी पृषोदर विगेरे
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