Book Title: Acharanga Stram Part 02
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 143
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३६०॥ www.kobatirth.org छे. एटले सर्व भोगोमां मुख्य भोगनुं स्थान आ स्त्री छे. अने तेथीज बधां दुःख छे एम बधी जग्याए संबंध लेबो. आ प्रमाणे खीना हावभावथी तेना अंग जोवामां रसीओ बनेलो उपर कहेली योनी ओमां भमतो छतां आत्माना हितने जाणतो नथी. तथा निरंतर दुःखथी हारीने मूढ बनेलो क्षमा विगेरे दश प्रकारमा लक्षणवाला साधु धर्मने जाणतो नथी. अने ते धर्म दुर्गतिना भ्रमणने रोकनार छे. ते जाणतो नथी. आ तीर्थकरे कहेलुं छे कोणे कछु ? ते कहे छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जेणे संसारनो भय विसाय ते वीर प्रभुए कयुं छे. हे शिष्यो, तमारे महा मोहमां एटले स्त्रीओना हावभावमां रक्त यनुं नहीं पण सावचेत रहेबुं. तेज महा मोहनुं कारण छे. एटले ते स्त्रीमां जराए पण रागी न थवुं प्रमाद न करवो. आ निपुण बुद्धिवाला शिष्यने माटे आटलं वचन वस छे, वली मद्य, विषय, कषाय, निद्रा, विकथा, ए पांच प्रकारना प्रमादथी तमारे सावचेत रहेनुं का| रणके ते प्रमाद उपर कहेलां दुःखो आपवाने माटेज छे. प्रश्न - शुं आधार लइने प्रमादने छोड़वो ? उत्तर - शांति एटले शमन ते वधा कर्मनो नाश जाणवो ते मोक्ष तेज शांति छे. प्राणीओ वारंवार चार गतिना संसारमां मरण जेना वडे पामे छे, ते संसार छे. ते शांति अने मरण ए बन्नेने विचारीने प्रमाद छोडो. गुरु कहे छे के हे शिष्य, एक बाजु ममादीने वारंवार जन्म मरणनुं दुख छे. अने बीजी बाजु अप्रमादीने जन्म मरणना त्यागरूप अनंतुं सुख छे ए बन्नेने कुशळ बुद्धिवाला शिष्ये विचारीने विषय कषायरूप प्रमादने न करवो. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३६०॥

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