Book Title: Acharanga Stram Part 02
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विदर्शी ते काम मेळेववा पैसो पेदा करवा एक ध्यान राखनारा पुन्य पापने भूली गएला अन्य लोकोने पोते जुए छे. ते बतावे छे. 181 आचा० जे काम विगेरेमा अथवा तेने प्राप्त करवाना उपायमा लागेला छे. तेने वारंवार आचरवाथी बन्धाता तथा अशुभ कर्म बढे संसार & सत्रम चक्रमा भमता जोइने पोते विशाळ चक्षुवाळा कामना अभिलाषयी दूर थवा केम समर्थ न थाय ? ( अर्थात् डाह्यो माणस दुःख वि-| ॥३८९॥ चारी पापथी दूर भागे.) ॥३८९॥ गुरु शिष्यने कहे छे-दे शिष्य ! संसारना भोगोमां राचता अने तेथी दुःखी थता जीवोने तुं जो, वळी आ मनुष्य लोकमां | जे ज्ञानादिक भाव संधि छे. ते मनुष्य लोकमांज संपूर्ण प्राप्त थाय छे, (केवळ ज्ञान यथाख्यात चारित्र जे मोक्षना हेतुओ छे, ते 8 मणष्यनेज छे. माटे मय लोकने लीधो छे,) अने जे डाह्यो छे ते पोते उपर बनावेल तत्वने समजीने विषय कपाय विगेरेने छोडे छे, तेज वीर पुरुष छे. ते मूत्रकार बतावे छे एटले जे आयत चक्षुवालो छे. तथा लोकना विभागना स्वभावने यथावस्थित पणे जाणे छे. P ते भाव संधिनो जाण छे, अने विषय तृष्णाने छोडनारो छे. ते वीर पुरुष कर्मने विदारण करवाथी वखणायो छे. अर्थात् तत्व जा४णनारा पुरुषोए तेनी प्रशंसा करी छे. ते आप्रमाणे तखज्ञानी बनीने बीजुं शुं करे छे ते कहे छे___जे बद्धे" एटले द्रव्य भाव बंधन वडे बंधाएला छे. तेमने पोते मुक्त बनी बीजाने मुकावनार छे. तेज द्रव्य भावबंधनो विमोक्षक (मुक्ति अपावनार) छे. ते वाचानी युक्ति वडे बतावे छे. जेवीरीते पोते अभ्यंतरथी मुकाएलो छे, तेवीरीते बहारथी पण मुक्त छे, एटले अंदर आठ प्रकारनी कर्मनी बेडी छे, ते छोडावे छे. तथा पुत्र, स्त्री, विगेरेने पण छोडावे छे. एटले जेम आठ प्र CHES For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204