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मुंदर के. खराब शब्द कानमा आवतां साधुए खुश अथवा नाखुश हमेशां, (कोइपण वखते) न थq. एज प्रमाणे रूपगंध विगेआचा०
रेमां पण जाणवू, तेथी, शब्द विगेरेमां पण मध्यस्थता राखनारा शुं करे? ते कहे छे:आ गुरुती उपासना करनार शिष्य जे विनय छे, तेने अथवा, मोक्षाभिलाषी बीजाने पण आ उपदेश छे. के, तुं सारी रीते ४
सूत्रम् ॥४०५॥ जाण के, औश्वर्य, वैभव विगेरेथी मननी जे प्रसन्नता छे, तेने दुर कर. आ मनुष्य लोकमां जे संयम विनानुं जीवित छे तेने त्यजी X॥४०५॥
। दे, अथवा वैभव विगेरेथी कुदरती जे आनंद थाय छे, के मने आ आवी उत्तम समृद्धि मली छे, मळे छे. अने मळशे. एवो जे विकल्प थाय छे, ते आनंदना विकल्पने पण तुं निंद, विचार के आ पापना कारण रूप अस्थिर समृद्धिवडे भुं लाभ छे ! का छे केःविभव इति किं मदस्ते? च्युतविभवः किं विषादमुपयासि ? । करनिहितकन्दुकसमाःपातोत्पाता मनुष्याणाम्।
अमारो वैभव छे, एवो तने मद शुं काम थाय छे ! अने वैभव जतां खेद केम करे छे ? तुं जाणतो नथी के माणसोने मळेली रिद्धि हाथमा रमवाना दडा माफक पडे छे, ने उछ ! आ प्रमाणे रूप विगेरेमां पण जाणवू. ते संबंधी सनतकुमारनुं दृष्टांत जाणवू. 8 अथवा पांच अतिचारने पण तुं जे पूर्वे कर्या होय, तेने निंद अने थताने रोक अने आवताने अटकाव, केवी रीते? ते कहे ट्र, त्रग काळ ने जाणनार ते मुनि छे, अने मुनिन मौन ते संयम छे, अथवा मुनिनो भाव ते मौन अने वचननुं संयम छे, अने ते # प्रमाणे काया अने मननु पण जाणवू ते मन वचन अने कायाना संयमने आदरीने कर्म शरीर, अथवा औदारिक विगेरे शरीरने आ* माथी जुदुं कर, अर्थात् तेनो ममत्व मूक, ते ममत्व केवी रीते मूकाय ? ते कहे छे. प्रान्त एटले रस रहित तथा घी विगेरेथी रहित
लुख्खं भोजन कर, अथवा द्रव्यथी अने भावथी प्रान्त एटले विगत धुम ते गोचरी करतां द्वेष न करवो. तथा रुक्षभाव एटले सारी
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