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15 गोचरीमां राग न करतो, ते अंगार दोष रहित, वीर साधुओ गोचरी करे छे, ते साधुओ, सम्यक्त्वदर्शी छे. ते रागद्वेप रहित छे./31 आचा० अथवा सम्यक्त्वदर्शी छे, एटले परमार्थ दृष्टिवाला छे. तेओ जाणे छे. के आ शरीर कृतघ्न छे; निरूपकारी छे. एना माटे पाणीओ 21
सूत्रम् आलोक परलोकमां क्लेश करी दुःख भोगवनारा छे. (अने अनेक आदेशमा एक आ देश छे) तेथी रस रहीत लुरु खानारो है ॥४०६॥ तथा समदर्शी कर्मादि शरीर छोडीने भावथी भवओघने तरे छे. ते उत्तम क्रिया करतां भव ओघने तरे छे. अने जे बाह्य अभ्यंतर
॥४०६॥ परिग्रहथी रहित छे. ने युक्त छे. एटले जे निर्मळ भावथी शब्दादि विषयनो राग त्यजे ते विरत छे, अने मुक्तपणे तथा विरतपणे जे विख्यात छे, तेज मुनिभव ओघने तरे छे, अथवा ते क्यों छे, एम जाणवू जे मुनि आ प्रमाणे मुक्त अने विरतपणाथी विख्यात न थयो, ते केवो दुःखी थशे ते बतावे छे. दुबसुमुणी अणाणाए, तुच्छए गिलाइ वत्तए, एसवोरे पसंसिए, अच्चेइ लोयसंजोगं एस नाए पवुच्चइ(सू१००
वसु द्रव्य छे. अने भव्य अर्थमां उत्पन्न कर्यु छे. ते मोक्षरूपी भव्य द्रव्य छे. एटले मुक्ति गमन योग्य जे द्रव्य ते वसु छे, P अने खराब मार्गे वपराय ते दुर्बसु छे. एटले दुरुपयोग करनार जे मुनि छे. ते मोक्षगमनने अयोग्य छे. (अर्थात् ते संयमरूप वसुने ४ खोटे मार्गे ले छे, तेथी तेनो मोक्ष न थाय.) आम शाथी धाय ? ते कहे छे. तीर्थकरना उपदेशथी शून्य बनी स्वेच्छाचारी बने छे.
प्रश्न-शाथी ते स्वछंदी बने छे. ? उत्तर-प्रथम कहेला उद्देशामां बताव्युं छे. ते सघळ अहीं जाणवू, ते आ प्रमाणे छे. मिथ्यात्वथी मोहीत लोक छे. तेमां तत्व समजबुं दुर्लभ छे भने व्रतोमा आत्माने रोकवो ते कठण छे. अने रति अरतिने दाववी तथा पांच इन्द्रियना विषयमा इष्ट अनिष्टमा समभाव भाववो तथा प्रान्त (निरस) तथालुरूखो आहार करवो आवी तीर्थकरनी आज्ञा तलवारनी
ARRIERSIC
CARSA
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