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सूत्रम
ट्र भावथी एम चे प्रकारे छे, ते चन्ने प्रकारनी परिग्रहनी बुद्धि छोडवाथी अंतरनो भावपरिग्रह पण निषेध कर्यो, अने परिग्रहनी बुद्धि | आचार्य विषयनो प्रतिषेध करवायी बहारनो द्रव्यपरिग्रह पण तजवानो कहो अथवा काकुन्याये लइए तो एम अर्थ थाय के, जे परिग्रहना
विचारनुं मलिन ज्ञान छोडे, तेज परमार्थयी बहार अने अंदरनो परिग्रह छोडे छे, तेनो अर्थ आ छे. ॥४०॥ संबंध मात्रथी चित्तना परिग्रहनी काळाशनो अभाव छे. जेम नगरमां साधु रहे, अथवा पृथ्वी उपर से छतां जेम जिनकल्पी8/॥४०३॥ * मुनिने निष्परिगृहताजळे, तेम स्थविर कल्पीने पण जाणवू, तेथी | समजवं ते कहे छे..
जे मुनि जाणे छे के मोक्षमा मुख्य विघ्ननो हेतु तथा संसार भ्रमणनं कारण छे, ते परिग्रह ममखथी छुटवाना विचारवाळो छे, तेज देखतो छे, तेणेज मोक्षनो मार्ग ज्ञानादिक जोयुं छे, ते द्रष्टपथ छे. ___अथवा दृष्ट भय लइए तो साते प्रकारनो भय जे शरीर विगेरेना ममत्वथी साक्षात देखाय छे, अथवा विचारतां परंपराए जणाय छे, ते साते प्रकारना भयने जाणनारो निश्चयथी थाय छे, तेनो वधारे खुलासो करे छे.
जेम ममत्व न करे, परिग्रह न राखे, ते दृष्ट भय छे, एम समजीने पूर्वे बतावेला परिग्रहने तेज-परिज्ञावडे जाणीने प्रत्याख्यान परिज्ञावडे गीतार्थमुनि परिग्रहना आग्रहवाळा एकेन्द्रियादि संसारी-जीवलोकने दुःखी जाणीने पोते पाणीगणनी दश प्रकारनी ममत्वसंज्ञा (परिग्रहने) त्यागे छे, तेज मुनि सत्यासत्यना विवेकने जाणनारो छे तेने गुरु कहे छे. तु संयम अनुष्ठानमा योग्य रीते उद्यम कर! अथवा, आठ प्रकारनां कर्म ने अथवा कर्मनुं मूळ रागद्वेषादि छ रिपुवर्ग छे, तेने अथवा, विषयकषायने जीतवा पराक्रम कर एबुं कहुं छु.
ते मुनि संयम अनुष्ठानमा पराक्रम करनारो परिग्रहना आग्रहने छेडनारो मुनि केवो थाय छे ते कहे छे:
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