________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
RE
___ अथवा शांतिवडे मरण एटले मरणसुधी जे फळ थाय छे ते विचारीने प्रमाद न करवो. एटले जीवतां सुधी उत्तम पुरुषे | आचा०
कोइपण साथे क्लेश न करवो. अने ते क्लेश प्रमादधी थाय छे माटे प्रमाद न करवो.
वळी विषय कषाय अने स्वीना विलासरूप जे प्रमाद छे ते शरीरना अंदर रहेलो छे. अने ते शरीर पोतानी मेळे नाश पामनारुं | ॥३६१॥18 छे. तो तेवा नाशवंत शरीरने विचारीने साधुए प्रमाद न करवो. (जे शरीरना माटे प्रयास थाय ते शरीर नाशवंत छे. धन अहीज X॥३६॥
में रहेवानुं छे.) एटले भोगो भोगववा छतां पण तृप्ति थती नथी. तेम भोगो अभिलाषने संतोष पमाडी शकता नथी. माटे हे शिष्य! तारी || * बुद्धिवडे जो के दुःखना कारणवाला प्रमादरूप विषयोनुं भोगवq छे ते तृप्तिने अथवा शांतिने आपता नथी. को छे के
“यल्लोके ब्राहियवं, हिरण्यं पशवः स्त्रीयः । नालमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शमं कुरु ॥१॥
आ लोकना विषे व्रीहि, जव, सोनु, पशुओ, स्वीओ, विगेरे बधुं पण एक माणसनी तृप्तिना माटे समर्थ नथी ए, समजीने तेनो मोह छोड, आत्माने शान्त कर. उपभोगो पायपरो वांछति यः शमयितुं विषयतृष्णाम् । धावत्याक्रमि तुमसौ, पुरोऽपराह्ने निजच्छायाम् ॥२॥
उपभोगना उपायमा तत्पर थएलो जे विषय तृष्णाने शान्त करवा इच्छे छे तो फरीथी आंतरे पोतानी छायामां आक्रमण क-12 ४ रवाने ते तृष्णा तैयार रहे छे (एक इच्छा पूरी करीके बीजी तैयारज छे. तृष्णानो अंत कोइ वखत नथी) तेथी भोगना लालचुओने दि तेनी प्राप्तिमां के अप्राप्तिमां दुःखज छे ते बतावे छे.
A COCRACTECISISCIENCE
For Private and Personal Use Only