Book Title: Acharanga Stram Part 02
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 156
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie छांटा पाडती आपे ते. उपरना दश दोषो लेनार तथा आपनार, बन्नेना-मेगा थाय छे. आचा०ला । पर समयज्ञ होवाथी ऊनाळाना बपोरे खरा तडकाना तापमां तपेला सूरजथी परसेवाना 'बिंदु टपकता साधुना मेला शरीरने ट। जोइ कोइ अन्य गृहस्थे पूछ्यु के, भाइ तमारामां बधा माणसोए उचित्त मानेलं स्नान शामाटे नथी करता ? त्यारे साधुए जवाब में ॥३७३॥ आप्यो के, हे बंधु ! सर्व साधुओने जळनुं स्नान छे. ते काम 'स्त्रीनो अभिलाष' तेनुं एक अंग छे. तेथी निषेध कयों छे ते सांभळोः-४ ॥३७३॥ “स्नानं मददर्पकरं, कामा प्रथमं स्मृतम् । तस्मात्कामं परित्यज्य, नैव स्नान्ति दमे रताः ॥१॥ ___ स्नान मदनो दर्प करावनार छे, तथा कामनुं पहेलं अंग छे. माटे कामने छोडनारा ब्रह्मचारी, अने दमनमां रक्त थयेला छे तेओ स्नान करता नथी. आ प्रमाणे स्व अने परसिद्धांतने जाणनारो परने उत्तर आपवामां कुशळ होय छे, तथा भावज्ञ एटले,चितना अभिप्रायने जाणनारो छे के आ 'दान' आपनार के, व्याख्यान सांभळनारनो आवो अभिप्राय छे. वळी परिग्रह ते, संयममा जोइतां ऊपकरणर्थी वधारे छे, ते न ले, अने लेवानी पण मनमा इच्छा न राखे; तेवा साधु काळज्ञ, बळज्ञ, मात्रज्ञ, क्षेत्रज्ञ, खेदज्ञ, क्षणज्ञ, विनयज्ञ, समयज्ञ, भावज्ञ; होय ते परिग्रहने ग्रहण न करतो योग्यसमये योग्यक्रियानो करनारो बने छे. शंका-पूर्वे 'कालज्ञ' शब्दमां ते वात आवी छे, अने अहीं फरीथी केम कहो छो ? उत्तरः-त्यां ज्ञपरिज्ञावडे जाणवानुं छे, अने अहींयां कर्तव्य करवानुं छे.. वळी कोइपण जातनुं नियाj न करे; ते अप्रतिज्ञ छे. जेमके, क्रोधना कारणे स्कंदक आचार्ये पोताना शिष्योने घाणीमां पीलेला -24 8560 For Private and Personal Use Only

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