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आचा०
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तेटला माटेज आ जिनेश्वरना कहेला मार्गमांज उत्तम साधुए उद्यमबाला थनुं, तेज सूत्रमां कहे छे के आ कर्मभूमी छे. जेमां मोक्षना झाडना बीज समान सोधी ( सम्यक्त्व) तथा सर्व संवर रूप चारित्र पामीने कर्ममां जेम लेप न थाय, नवां कर्म न बंधाय तेम आ उत्तम मार्गमां वर्त्तनुं, ते विदित वेद्य (पंडित) जाणवो, जो ते मार्ग उलंघीने बतावेलां धर्म अनुष्ठान न करे तो कर्मनो बंध थाय. तेथी आ सत्पुरुषोनो मार्ग छे तेथी पोते चारित्र लेतां प्रथम सर्व जीवने समाधि आपवारूप प्रतिज्ञा करी हे, ते छेवटनो उच्छवास लेता सुधी पाळवी जोइए. कल छे के:
“लक्षां गुणौघजननीं जननोमिवार्यामत्यन्तशुद्धहृदयामनु वर्त्तमानाः । तेजस्विनः सुखमसूनपि सन्त्यजन्ति; सत्यस्थितिव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम् ॥ १॥ *
गुणना समूहनी माता तथा अत्यंत शुद्ध हृदय बनावनारी जे लज्जा छे, तेने श्रेष्ठ माता माफक मानीने तेनी पाछळ चालनारा | तेजस्वी पुरुषो (साधुओ) सुखे करीने पोताना प्राण पण त्यजे छे, परंतु सत्य स्थितिने चाहनारा तेओ पोतानी प्रतिज्ञानो भंग करता नथा. आप्रमाणे स्वामी जंत्रस्वामीने कहे छे के: में उपर प्रमाणे जे कधुं ते महावीरप्रभुनां चरणसेवन करतां सांभळ् छे, ते तने कहां छे, माटे परिग्रहथी आत्माने दुर कर; एवं जे कधुं छे, ते संसारी-वासनाना उच्छेद विना न थाय; अने ते संसारी-वासना पांच प्रकारना इन्द्रियोना विषयरसने अनुसरनारा अभिलाषो छे, अने ते तजवा मुश्केल छे. तेथी कहे छे के:-- कामा दुरतिकमा, जीवियं दुष्पडिवूहगं, । कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयड़ जूरइ तिप्पड़ परितप्पड़
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सूत्रम ॥३८३॥