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सूत्रम्
॥२९६॥
निधानथी आत्मा द्रव्य इंद्रिय निर्वृत्ति तरफ जाय छे, अने तेना निमित्तथी आत्मानो मनना जोडाणथी पदार्थ- ग्रहण करवानो व्यापार थाय ते उपयोग छे, ते आ छती लब्धिए निर्वृत्ति उपकरण, अने उपयोग छे, अने छती निवृत्तिमां उपकरण अने उपयोग
छे, अने उपकरण होय; त्यारे उपयोग थाय छे. आ कान विगेरे वधी इंद्रियोना आकार अनुक्रमे नीचे मुजब जाणवा. ॥२९६॥15 काननो आकार कदंबना फुल जेबो छे. आंखनो मशुर जेबो, अने नाकनो कलंबुका ना फुल जेवो छे, जीभनो चरम (खरपो,
तावेता)ना आकार जेवो, तथा शरीरनो स्पर्श, इंद्रियोनो आकार जुदी जुदी जातनो छे एम जाणवू.
काननो विषय. बार योजनथी आवेला शब्दने ग्रहण करे छे, अने आंखनो विषय. एकवीस लाख योजनथी कंइक अधिक दर है होय; अने ते प्रकाश करनार होय; ते देखाय छे.
पण प्रकाश करवा योग्य होय; ते एकलाख योजनथी कंइक थधिक होय; तेबा रुपने ग्रहण करे छे, पण बाकीनी इंद्रियोनो । विषय नव योजनथी आवेलो होय; तेने ग्रहण करे छे, अने जघन्यथी तो, बधी इंद्रियोनो विषय आंगळना असंख्येय भाग मात्र छे.
(नीचेनाटीपणमां खुलासो को छे के बधोइंद्रियोथी आंखनुं जुडुं छे,कारण के,आंखनो विषय जयन्यथी आंगळनासंख्येय भागमाथी जाणवो 18 अहीं मूळमूत्रमा श्रोत्रना परिज्ञानथी हणातां, अथवा ओर्छ थतां इंद्रियोनी केवी दशा थाय छे ते बताव्यु. तेनो परमार्थ आ छे.
अहींयां संज्ञो पचेंद्रिय जीवने उपदेश आपवानो अधिकार होवाथी उपदेश छे ते काननो विषय छे. (काननी शक्ति सारी होय; ताज || उपदेश संभळाय.) एटला माटे तेनी पर्याप्तिमां बधी इंद्रियोनी पर्याप्ति पण साथे सुचवी.
(काने सांभळीने जीवरक्षा माटे आंखथी जोइने चाले; विचारीने बोले विगेरे छे, तेथी बीजी इंद्रियोर्नु पण स्वरूप बताव्युं छे.)
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