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आचा०
॥३३७॥
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पांच समितिथी बनेलो हवे पछी कहेवात। शुभ अशुभ कर्मनुं स्वरूप जाणे एटले अंधपणुं बहेरापणुं मुंगापणुं काणापणुं अने कुंटपणुं विगेरे कर्मनांज फळ छे. ते जीवोमां साक्षात् जोड्ने पोते समजे, के हुं दुःख बीजाने आपीश, तो ते मने पण भोगववुं पडशे ते खुलासावार कहे छे.
हवे समितिनुं वर्णन कहे छे.
सम् उपसर्ग इ. धातु अने ति. प्रत्यय लागवाथी समिति शब्द बन्यो छे. अर्थात् सम्यक् वर्तन ते समिति छे. तेना पांच भेद छे. (१) इर्या समिति ते जोइ विचारी पगलं भरवानुं छे, जेथी बोजा जीवोनी तथा पोतानी रक्षा थाय, (जोइने चालेतो, पग नीचे कीडी विगेरे मरे नही, तेम ठोकर पण न लागे) आ अहिंसा नामना पहेला महाव्रतने टेको आपनार छे. तेथी अहिंसा बरोबर पळे छे. (२) भाषा समिति ते असत्य अहितकारक वचन रोकवा माटे छे, अर्थात् साधुए बीजुं महाव्रत पाळवु जोइ विचारीने बोलबुं. तथा (३) एषणा समिति ते साधुने कोइनुं पण चोरीने के पूछया विना कांइ पण न लेबुं ते श्रीजुं महाव्रत पाळवा माटे छे, एटले निर्दोष भोजन विगेरे दिवसना प्रकाशमां मालीकनी रजा लइ वापरवानुं छे. वाकीनी वे समितिओ. (४) आदान - पटले वस्तु लेवीमुकवी ते समिति तथा [५) उत्सर्ग-एटले शरीरमांथी के मकान विगेरेमांथी नीकळतो मळ विगेरे योग्य स्थाने नांखवो के जेथी बीजाने पीडा न थाय, ते बघा महाव्रतमां सर्वोत्तम अहिंसा नामना पहेला महाव्रतनी सिद्धि माटे छे, आ प्रमाणे पंच महाव्रतो मेळवीने पांच समिति पाळता साधुने बीजा जीवोनुं सुख विगेरे देखाय छे, अथवा जे रीते पोते बीजानुं भलुं चाहनारो थाय छे ते सूत्र वडेज बतावे छे अंधपणुं विगेरे जे जे विरूप रूपोमां संसारी जीवो संसारमां भ्रमणा करता घणी अवस्थाओ भोगवे छे. ते बतावे छे.
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सूत्रम् ॥३३७॥