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आचा०
सुत्रम्
॥३५७॥
॥३५७॥
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भोगोनुं मुख्य कारण धन छे, तेथी तेनुं स्वरूपज सूत्रकार कहे छे.
तिविहेण जाऽवि से तत्थ मत्ता भवइ अप्पा वा बहुगा वा, से तत्थ गड़िए चिट्टइ, भोयणाए, तओ से एगया विपरिसिहं संभूयं महोवगरणं भवइ, तंपि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से हरति, रायाणो वा से विलंपंति, नस्सह वा से विणस्सइ वा ते, अगारडाहेण वा से डज्झइ इय, से परस्स अट्ठाए कुराणि कम्मा
णि बाले पकुचमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासमुवेइ (सू० ८३) प्रण प्रकारे एटले मन, वचन, अने कायाथी तेनी पासे जे कंइ मील्कत थोडी अथवा घणी छे. तेमां भोगी गृद्ध थइने रहे छे.15 ते माने छे के-आ मील्कत मारे भविष्यमा भोग भोगवा काम लागशे. तेथी तेनुं रक्षण करवा महान उपकरणो राखे छे. पण जो तेनुं एकळु करेलुं धन कोइपण रीते नाश मामे छे एटले पीतराइयो भाग पडावे, चोरो चोरी करे, राजाओलुंटे, नाश पामे, बळीजाय विगेरेथी पोताने भोगमां न आववाथी इच्छा पुरी न थतां ते घेलो बने छे. अने धनने माटे क्रुर कर्म करतो अज्ञानी जीव तेना दुःख वडे मूढ बने छे. आ वधुं पूर्वे कहेलुं छे, तेथी समजी लेबु. अहीं नथी कहेता आ प्रमाणे दुःखना विपाकवाला भोगोने जाणीने डाया मुनिए शृं करवू ते कहे छे.
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