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सूत्रम्
॥३५॥
भोगा मे व अणुसोयन्ति इहमेगेसिं माणवाणं (सू० ८२) आचा० त्रीजो उद्देशो कह्या पछी चोथो उद्देशो कहे छे
भोगोमां प्रेम न करवो. ए आ उद्देशामां छे. जेथी भोगीओने शुं दुःखो थाय छे, ते बतावे छे. पूर्वे पण तेज का छे के भो-18 ॥३५४॥
गीओने कोइ वखते रोग उत्पन्न थाय छे. पूर्वे बताव्यु के संसारमा विषयी जीव परिभ्रमण करे छे. ते जीव आ दुःखोने पण भो
गवे छे, आ प्रमाणे त्रीजा उद्देशानो संबंध छे. तथा एना पहेलांना मूत्रनो आ संबंध ठे के बालक जेबो जीव प्रेममा पडीने काम 15 भोग करे छे. ते काम दुःखरुपज छे. तेमां आसक्त थएला जीवने वीर्यनो क्षय भगंदर विगेरे रोगो थाय छे. तेथी कहे छे के का
| मना अभिलाषथी अशुभ कर्म बंधाय अने तेथीज मरण थाय छे, पछी नरकमां उत्पन्न थाय छे, अने नरकमांथी नीकळीने माना पे| टमां वीर्यना बींदुमा उत्पन्न थइ कलल अर्बुद पेशी व्युह गर्भ प्रसव विगेरेनां दुःख भोगवां पडे छे. त्यार पछी मोटो थतां रोगोथाय छे. आ बधुं अशुभ कर्मनुं फळ उदय आवतां थाय छे, ते रोगो बतावे छे, माथार्नु दुखवू पेटमां शूळ उठवी विगेरे रोगो थाय छे. आ रोग उत्पन्न थतां जेनी साथे ते बसे छे. ते सगां तेने निदे छे. अथवा चाकरी न यतां सगांने ते निदे छे, वली गुरु कहे छे, के हे शिष्य ! जे सगां उपर मोह राखे छे, ते सगां तेना प्राण रक्षणना माटे थतां नथी, तेम तुं पण तेना प्राण शरणना माटे थवानो नथी. एबुं जाणीने तथा जे कंइ दुःख सुख आवे छे; ते पोताना कार्योनुंज पाणीओ फळ भोगवे छे, तेथी रोगोनी उत्पत्तिमां दिनता न लाववी; तथा सुंदर भोगोने याद करवा नहि, तेथी" सूत्रमा कयु छे के" शब्द रूप रस गंध अने स्पर्श ए पांच विषयनो
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