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सूत्रम्
॥३५०॥
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15 तेथी सर्वज्ञ वचन रूप दीवाने बधा पदार्थनुं स्वरूप खरेखलं बतावनार जाणीने गुरु कहे छे. हे मुनिओ तेनो आश्रय तमे ल्यो.2 आचा० में आ मारी बुद्धिथी नथी का. एबुं सुधर्मास्वामी जंबूस्वामीने कहे छे, त्यारे कोणे कबुं ? ते कहे छे.
___त्रणे काळमां जगत विद्यमान छे. एवं जे माने ते मुनि जाणवा अने ते त्रणे काळनुं ज्ञान जेने होय ते सर्वज्ञ तीर्थकर छे. ते॥३५०॥ मणे का छे. तेओए अनेकवार पोताना पुन्य बळथी उंच गोत्र विगेरे मेळव्युं छे. अथवा प्रकर्षथी अथवा प्रथमथी ज्ञान माप्त थतांज
8/ बधा जीवो पोतानी भाषामां समजे तेवां वचनवडे तेमने उपदेश कर्यो छे. ते कहे छे. ____ अनोघ-ओघ चे प्रकारे छे. द्रव्यओघ ते नदीनु पूर विगेरे छे. अने भावओघ ते आठ प्रकारनुं कर्म अथवा संसार छे. ते आठ कर्मथी संसारी जीव अनंत काळ भमे छे. ते ओघने ज्ञान दर्शन अने चारित्ररूपी वहाणमां बेठेला मुनिओ तरे छे. अने जेओ । नथी तरता ते अनोपंतरा छे, अर्थात् जेओ मुनि धर्म पाळे छे तेओ तरे छे, अने जेओ ते धर्मने छोडी विषयना लालचु बने छे, ४ ते जैनेतर अथवा जैनमां पतित साधु छे. तेओ ज्ञान विगेरे उत्तम वहाणथी भ्रष्ट थवाथी तरवानो उद्यम करे तो पण संसार तरवा | समर्थ थता नथी. तेज मूत्रमा का छे
नोय ओहं तरित्तए, जे संसार तरता नथी ते अतीरंगमा छे, एटले तीर ते संसारनो पार तेनी पासे जq. ते तीरंगमा छे अने जेओ विषय रसमां 18. पडे तेओ किनारे न जवाथी अतीरंगम छे. ते कोण ? ते कहे छे. जैनेतर अथवा प्रथम कहेला धर्म भ्रष्ठ जैन साधु-ते बतावे छे.
KAROSARO UGCROCTOCTO
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