________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लसूत्रम्
तेणे भोगो न स्वीकार्या. आचा०
उपर प्रमाणे सुंदर भोगो जेणे त्याग्या; ते त्यागवाथी बीजुं पण त्यागेलं जाणवू ते आ प्रमाणे-क्रोधने क्षमाथी, तथा मानने है
कोमळताथी, मायाने सरळताथी, ए प्रमाणे बधा दुर्गुणोने निंदी उत्तम साधु छोडे छे. ॥३२३॥ सूत्रमा लोभ लेवानुं कारण ए छे के, ते बधा कषायमां मुख्य छे ते बतावे छे. ते लोभमां पडेलो साध्य असाध्यना विवेकथी ४ ॥३२३॥
शून्य छे तथा कार्य अकार्यना विचारथी रहित बनी ने एक धनमांज दृष्टि राखनारोज पापना मूळमां उभो रहीने सर्व क्रियाओ करे छे कडं छे के. F"धावेइ रोहणं तरइ सायरं, भमइ गिरिणिगुंजेसुं । मारेइ बंधवंपिह पुरिसो तो होइ धणलद्धो ॥१॥
जे धननो लोभीओ होय ते पहाड चढे छे समुद्र तरे छे पहाडनी झाडीमां भमे छे बंधुओने पण मारे छे. अडइ बहुं वहइ भरं, सहइ छुहं पावमायरइ धिटो। कुल सील जाइपच्चय, विइं च लोभहुओ चयइ॥२॥" __ घणु भटके छे घणोभार वहन करेछे भूखने सहे छे. पाप आचरे छे कुळ शील जाति विश्वास धीरज ए बधाने लोभथी पीडाएलो धृष्ट पुरुष त्यजे छे.
तेथी आ प्रमाणे उत्तम साधुए प्रथमथी लोभ विगेरेथी दीक्षा लीधी होय अने तेवा भोग मळतां लालच थायतो पण मन दृढ करीने लोभ विगेरेनो त्याग करवो केटलाक लोभ विना पण दीक्षाले छे ते बतावे छे.
446
For Private and Personal Use Only