________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥३३२॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
निंदनीय स्थानमां उत्पन्न थाय छे. तथा कलंकवालो जीवपण बेइन्द्रिय विगेरेमां उत्पन्न थयेलो पहेला समयमां पर्याप्तिना उत्तर का मां उंच गोत्र बांधीने मनुष्यमां अनेक बार उंच गोत्र मेळवे छे. त्यां त्रीजा भांगामां रहेलो अथवा पांचमा भांगामां उत्पन्न - एलो छे ते आ प्रमाणे छे.
नीचगोत्र बांधे छे. अने उंचगोत्रनो उदय होय छे। अने कर्मपणुं (सत्ता) बन्नेनुं छे ते त्रीजो भांगो अने पांचमा भांगामां उंचगोत्र बांधे छे तथा तेनोज उदय छे। अने सत्कर्मपणं (सत्ता) बन्नेनुं छे छट्टो अने सातमो भांगो तो जे बंधथी उपरत (दूर) थयोहोय तेने थाय छे अने तेनो विषय न होवाथी ते बनेनो अधिकार नथी. ते वने बंधना उपरमां उंचगोत्रनो उदय थाय छे अने सकर्म पशुं बनेमा कायम छे ते छट्टो भांगो थयो भने सातमो भांगो शैलेशी अवस्थामां द्विचरम (छल्ला समयना अगाडीना समयमां) नीचगोत्र खपावे छते ऊंचगोत्रनो उदय होय तेनेज छे। अने सत्ता पण ऊंचगोत्रनी छे. आममाणे ऊंच नीच गोत्रमां रहेला जीवे अहंकार न करवो जोइए तेम दीनता पण न करवी जोइए.
ऊंच अने नीच ते बने गोत्रनो बंध अध्यवसाय स्थानना कंडको समान छे. सूत्रमां बतावे छे के.
णो हीणे, णो अइरिते जेटलां उंच गोत्रमां अनुभाव बन्धना अध्यवसायना स्थान कंडक छे तेटलांज नीचगोत्रमां पण छे अने ते सर्वे अनादि संसारमां आ जीवे वारंवार अनुभवेलां छे. तेथी उंचगोत्रना कंडकना अर्थपणे जीव होणो पण नथी तेम वधारे पण नथी एज प्रमाणे नीचगोत्र कंडकमां पण समज ते संबन्धमा “ नागार्जुनीया " आ प्रमाणे कहे छे.
For Private and Personal Use Only
सूत्रम् ||३३२॥