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सूत्रम
॥३२१॥
पोतानी इच्छा मुजब शास्त्र बनायनारा, अने दीक्षामा वेष धारण करनारा क्षुद्र मनुष्योए जुदा जुदा उपायोथी अनाथने जेम ४ आचाट लुटारो लुटे; नेम आ भोळा लोकोने आ साधुठगो लुटे छे, तेथी आ प्रमाणे वेषधारी साधुओ मेळवेला भोगोने भोगवे छे, अनेट
IP तेवा बीजा भोगो मेळववा, तेवा तेवा उपायोमां वर्ते छे. ते कहे छे के:॥३२॥
वीतरागनी आज्ञा विरुद्ध पोतानी बुद्धिए मुनिना वेषने लजावनारा संसार सुखना उपायना आरंभमां वारंवार लागे छे. (मचेछे) A आ विषयसुखना अज्ञानरूप भावमोहमां वारंवार कादवमां खुंचेला हाथी माफक बहार पोते पोताने काढवाने समर्थ नथी. जेम कोइ
महा नदीना पूरमां वचमां जइने डुब्यो होय तो ते जल्दीथी तरवा के सामे किनारे आववा समर्थ नथी एज प्रमाणे कोइपण निमित्तथी प्रथमयी घर स्त्री पुत्र धन धान्य सोनु रत्न तांबु दास दासी विगेरे वैभव छोडी त्यागवृत्ति स्वीकारीने आरातीयतीर (पाछो आववा के किनारे जवा ते समर्थ नथी ते) समान घरवासना सुखथी नीकळेलो साधु थयो अने फरी ते वमेला भोगने पाछो ग्रहण
करवा इच्छा करे तो संयम पण जाय तो मोक्षमा जइशके नहि तेम घरवालां पण संघरे नही एटले बने बाजुथी जुदी पडेली मुक-& 12 तोली माफक साधुपण जो संसार वांच्छना करे तो न ग्रहस्थ रहे तेम न साधु रहे तेथी ते बंने प्रकारे भ्रष्ट छे. का छे के.
"इन्द्रियाणि न गुप्तानि, लालितानि न चेच्छया। मानुष्यं दुर्लभ प्राप्य, न भुक्तं नापि शोषितम् ॥१॥" जेणे इंद्रियोने कबजे लीधो नथी अथवा इच्छानुसार ते इंद्रियोने विषय मुखमा जोडी नथी तेणे मनुष्य पणुं पामीने न भोग भोगव्या न त्याग वृत्ति स्वीकारी (आ बधानो केहेवानोसार ए छेके साधुए साधु वेष धार्या पछी गमे तेटलां कष्ट आवे; तोपण धीरज राखी संयम पाळq.)
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