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आचा०
सूत्रम्
॥३२९॥
॥३२९॥
अंदर रहेला बधा भावोने जाणनारा सर्वज्ञ तथैकर प्रभुए देव मनुष्यनी सभामां वधाए समजी शके तेवी तथा बधाना मनना संशय ४ छेदनारी वाणीवडे आ मार्ग कह्यो छे. पोते ते प्रमाणे वर्तेला छे एवो आ मार्ग जाणीने उत्तम पुरुषे उपर बतावेलां पाप कृत्योने छोडीने वधां तत्व जाणीने पोतानो आत्मा पापोमां न लेपाय तेम सर्व प्रकारे करवू. आ प्रमाणे हुं कहुं छबीजो उद्देशो समाप्त थयो.
हवे त्रीजो उद्देशो कहे छे.
बीजा उद्देशानी साथे त्रीजानो आ प्रमाणे संबन्ध छे. गया उद्देशामां कडं के संयममा दृढता करवी अने असंयममां उपेक्षा करवी अने ते बन्ने पण कपाय दूर करवाथी थाय तेमां पण मान उत्पत्तिना आरंभथी उंच गोत्रमा जन्मे छे ते उत्थापेलो (अहंकारी) 8. थाय तेथी ते दूर करवा कहेवाय छे तेथी बीजा अने त्रीजानो आ संबन्ध छे के बुद्धिमान साधु राग द्वेषमां न लेपाय तेज प्रमाणे
बुद्धिमान साधु उंच गोत्रना अभिमानमां पण न लेपाय शुं मानीने अहंकार न करवो ते सिद्धांतकार बतावे छे. __ से असई उच्चागोए असई नीआगोए, नो हीणे नो अइरिते नोऽपीहए, इय सखाय को गोयावाइ को ___माणावाई? कंसि वा एगे गिज्झा, तम्हा नो हरिसे नो कुप्पे, भूएहिं जाण पडिलेह सायं सू. ७७ 2 संसारी जीव अनेक वार मान सत्कारने योग्य एका उंच गोत्रमा आव्यो छे तथा अनेकवार नीच गोत्रमा ज्यां लोको निंदे ।
तेवामां पण पोते जनम्यो छे ते कहे छे. नीच गोत्रना उदयथी अनन्तकाळ तिर्यंचगतिमा संसारी जीव रहेल छे त्यारपछी भटकनो जीव नाम कर्मनी ९२ उत्तर प्रक्रत्तिना कर्मवाळो बनी तेवा तेवा अध्यवसाये उत्पन्न थयेलो आहारक शरीर तेनुं संघात बन्धन
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