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18 सूत्रम्
॥३१०॥
अथवा पूर्वे कहेला प्रण दोपथी रहित छे, त्यांसुधी हे पंडित शिष्य द्रव्य क्षेत्र काळ भावना भेदथी मिन्न अवसरने आ प्रमाणे तुं
जाण बोध पाम, ते बतावे छे. आचा०४
द्रव्य क्षण ते तुं जंगमपणुं पाम्यो छे. पांच इंद्रियो छे. उत्तम कुळमां जन्म्यो छे. रुप बळ आरोग्य अने आयुष्य सारं पाम्यो छे | ॥३१॥
आ प्रमाणे उत्तम मनुष्य भव पामीने संसार समुद्रथी पार उतारवा समर्थ चारित्रनी प्राप्तिने योग्य तने अवसर मल्यो छे अने अनादि संसारमा भमता जीवने आ अवसर मलबो दुर्लभ छे. कारणके चारित्र मनुष्य जन्ममां छे. देव नारकीना भवमां सम्यक्त्व तथा ज्ञा-4 नना बोध रुप सामायिक छे. अने तिर्यंचमां कोकनेज देशविरति (श्रावकनां व्रत.) होय छे.
क्षेत्र क्षण ते जे क्षेत्रमा चारित्र मले ते सर्व विरति अधोलोकनागाममा अथवा तिर्यंच क्षेत्रमाज छे तेमां पण अढीद्वीप अने बे समुद्रमा छे. तेमापण "१५" कर्म भूमिमां छे. तेमां पण भरतक्षेत्रनी अपेक्षाए "२५॥" देशमा चारित्रधर्म प्राप्त थाय छे. आ प्रमाणे क्षेत्ररुप अवसर दुर्लभ जाणवो बीजा क्षेत्रोमा पहेलां बेज सामायिक छे. बीजा घणा द्वीपो अने समुद्रो छे. तेषां सम्यकत्व अने श्रुत सामायिक छे. तथा कोइकने देशविरतिनो संभव थाय छे.) काळक्षण
काळरुप अवसर आ अवसर्पिणीमांत्रण आरा जे सुखम, दुखम, दुखम मुखम. तथा दुखम नामना त्रण आरामां धर्म प्राप्ति छे. द तथा उत्सर्पिणीमां त्रीजा चोथा आरामां सर्व विरति सामायिकनी प्राप्ति छे. आ नवो धर्म पामता जीवाश्रयी का पण पूर्वे धर्मल पामेला तो तिर्यक् अथवा उर्द्ध तथा अधोलोकमां तथा बधा आरामां जाणवा. भावक्षण
ते वे प्रकारे छे. कर्म भावक्षणनो कर्म भावक्षण कर्म भावक्षण ते कर्मन उपशम थर्बु. क्षय उपशम थर्बु अथवा सर्वथा क्षय थर्बु
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