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आचा०
॥३१९॥
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ए त्रणमानुं कंपण प्राप्त थाय ते अवसर जाणवो तेमां उपशम श्रेणीमां चारित्रमोहनीयउपशम थतां अंतर्मुहूर्त्त काळ औपशमीक | नामनो चारित्र क्षण थाय छे ते चारित्र मोहनीयनो क्षय थतां अंतर्मुहूर्त्तनोज छद्मस्थ यथाख्यातचारित्र नामनो क्षण थाय छे. अने क्षय उपशमवडे क्षायोपशमिक चारित्रनो अवसर छे ते उत्कृष्टथी थोड ओ एवो पूर्व कोडी वर्षनो चारित्र काळ जाणवो. सम्यकत्व क्षण ते अजघन्य उत्कृष्ट (मध्यम) स्थितिमां वर्तता आयुष्यवाळा जीवने छे.
अने बीजा कर्मोनुं पल्योपमना असंख्येय भाग ओद्धं एवा सागरोपम कोडाकोडी स्थितिवाला जीवने छे. तेनो अनुक्रम आ प्रमाणे छे. सम्यक्त्वनुं वर्णन.
ग्रंथी- (मिथ्यात्वनी चीकणा कर्मनी बंधाएली गांठ) वाळा अभव्य जीवोथी अनंत गुणवाळी शुद्धिथी शुद्ध थएल मति, श्रुत, विभंग ए ऋण ज्ञानमांथी कोइपण साकार उपयोग जे जीवने होय ते शुद्ध लेश्या (तेजु, पदम, शुकल) मांनी कोइपण लेश्यावालो जीव अशुभकर्मप्रकृतिनो चार ठाणीओ रस तेने वे ठाणीओ करीने अने शुभ प्रकृतिना वे ठाणीआ (चासणीमां जेम वधारे रसना तार पडे ते प्रमाणे कर्मना भाव होय. अने आत्मा वेदे ते ठाण कहेवाय छे.) ने चार ठाणीआवाळो करी बांधतो तथा ध्रुव प्रकृतिने परिवर्त्तमान करतो भव प्रायोग्य बांधतो जीव जाणवो. हवे व प्रकृति बतावे छे.
ज्ञानआवरणीय पांच; तथा दर्शनावरणीय नव - मिथ्यात्वनी एक-तथा सोळ कषाय, भय, जुगुप्सा, तेजस कार्मण शरीर, वर्ण, गंध, रस स्पर्श अगुरुलघु उपघात-निर्माण अने पांच अंतराय ए बघी मलीने ४७ ध्रुव प्रकृति छे. ध्रुवनो अर्थ एवो छे के, ते हंमेशां बंधाय छे. मनुष्य अथवा तिथेच आ बेमांथी कोइपण जीव ज्यारे प्रथम सम्यक्त्व मेळवे छे, त्यारे आ २१ प्रकृति परिवर्तनवाळी बांधे छे ते नीचे सुजब. छे.,
देवगति तथा अनुपूर्वी मली बे. तथा पंचेंद्रिय जाति वैक्रिय शरीर, अंगोपांग मली बे, तथा समचतुरस्रसंस्थान, पराघात, उ
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सूत्रम् ॥३१९॥