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सूत्रम्
॥२९५॥
२
तेमां उत्सेध (लोकमां वपरातुं माप आंगळी,) अंगुलना असंख्येय भाग जेटला शुद्ध आत्म प्रदेशना प्रतिनियत चक्षु विगेरे ४ आचा०ाट इंद्रियोना संस्थान बडे जे वृत्ति अंदर रहेली छे ते निवृत्ति जाणवी.
ते आत्मा प्रदेशोमान (द्रियना व्यपदेशने भजनार जे प्रतिनियत संस्थानवालो निर्माण नामना पुद्गल विपाकवाली (कर्म॥२९५॥ प्रकृतिवडे) वर्द्धकि (सुतार माफक) विगेरे विशेष रुपवालो (इंद्रिय विभाग) अने अंगोपांग नामना कर्मवडे बनावेल जे छे ते बहारनी द निवृत्ति जाणवी.
(आ उपर जे वर्णन कर्यु ते शरीरनी अंदर अने वहार ज्यां जे इंद्रिय रहेली छे तेनुं बने प्रकारचें वर्णन बताव्यु छे, बहारनी 8| इंद्रियो दरेकनी देखाय छे पण अंदरनी तो आत्मज्ञानी जाणी शके छे) उपरनी बतावेली निवृत्ति के प्रकारनी कही तेने जेना वडे
उपकार कराय छे ते उपकरण छे अने ते इंद्रियोना कार्यमां समर्थ छे. वली निर्वृत्ति होय अने हणाइ नहोय तो पण मथुर (जेनीट Hदाळ थाय छे) तेना आकार वाली निर्वृत्तिमां तेने जो उपघात थाय तो आंख जोइ शकती नथी (आंखनो बहारनो आकार मशुरनी दाळ जेवो छे, जोते नाश पामे तो अंदर आत्मानी शक्ति छे छतां ते जोइ शकतो नथी माटे बहारना आकारने उपकरण कयु छे.
ते पण निवृत्ति माफक वे प्रकारे छे तेमां आंखनी अंदरनुं काळं धोळु मंडळ छे अने बहारनुं पण पांदडांना आकारे चे पांपण विगेरे छे, (ते सोने जाणीतुं छे.)
आ प्रमाणे बीजी इंद्रियोमां पण जाणी लेवु. भावइंद्रिय पण लब्धि अने उपयोग एम वे भेदे छे. तेमां लब्धि छे, ते ज्ञानदर्शन आवरणीय कर्मना क्षय उपशमरुप जेना सं
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