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आचा०
॥२७२॥
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उत्तर—–उत्कृष्टथी संख्येय, गुणहीन जघन्य छे. यश, कीर्ति तथा उंच गोत्र ए बनेनी स्थिति आठ मुहूर्त्त छे अने अन्तर्मुहु|र्त्तनी अबाधा छे. देव अने नारकिनुं आयुष्य. दशहजार वर्षनुं छे. अने अंतमुहुर्त्तनी अबाधा छे. तिर्येच मनुष्यना आयुष्यनी स्थिति, क्षुल्लक भव अने अंतर्मुहुर्त्तनी अबाधा छे. बन्धन, संघात, ए बनेनी औदारिक विगेरे शरीरनी साथ रहेवाथी तेनी अंदरज उत्कृष्ट जघन्य भेद जाणवो स्थितिबन्ध कयो
हवे अनुभव बन्ध कहे छे- तेमां शुभ, अशुभ, प्रयोग कर्मथी उत्पन्न थएल प्रकृति, स्थिति, अने प्रदेशरूप, कर्म प्रकृतिनुं तीत्र मंद अनुभवपणे जे अनुभवाय (भोगवाय) ते अनुभव (रस) छे, ते रस एक वे त्रण चार स्थान भेद वडे जाणवो.
मां अशुभ प्रकृतिनुं कोषातकी ना उकाळेला रस जेवो तेमां अडधो रहे बीजो भाग रहे. चोथो भाग रहे ते अनुक्रमे तीव्र अनुभव जाणवो. [ कडवा पदार्थना रसने उकाळतां पाणी जेम ओछु रहे तेम कडवास वधारे थाय छे, तेम अशुभ कर्मनुं दळ जेम वधारे चीकणुं याय तेम वधारे दुःख भोगववुं पड़े छे. ]
हवे मंद अनुभव कहे छेमंद रसनो अनुभव ते जाइ [ फुल ] रसमां एक वे ऋण चारगणुं पाणी वधारे नाखवाथी रसनी मुगंधी ओछी थड़ जाय छे, ते प्रमाणे कर्मनी पण चीकणास ओछी होय तो ओलुं दुःख भोगववुं पडे छे.
शुभ प्रकृतिनो रस दुध तथा शेरडीना रस जेवो मीठो जाणवो. तेमां पण पूर्व माफक योजना करवी, एटले कोपातकी तथा शेरडीना रसमां पाणी एक बिंदु विगेरे नाखवाथी अथवा रस वधारे नाखवायी तेना भेदोनुं अनंतपणुं जाणं. अहीं आयुष्यमा
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सूत्रम्
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