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सूत्रम्
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॥२७३॥
चार प्रकृतिओ भवविपाकिनी छे. ( ते भवर्मा गया पछी भोगवाय छे. तथा चार अनुपूर्वीओ क्षेत्रविपाकीनी छे.) ते क्षेत्रोमां हूँ आचा० जतां उदयमां आवे छे.
शरीर, संस्थान, अंगोपांग, संघात, संहनन, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, पराघात, उद्योत, आतप, निर्माण, प्र१२७३॥ ४त्येक, साधारग, स्थिर, अस्थिर, शुभ तथा अशुभ रुपवाळी छे, ते वधीए पुद्गलविपाकीनी छे, अने चाकीनी ज्ञान आवरण विगेरे
है जीवविपाकीनी छे, एम अनुभाव बंध करो... A हवे प्रदेशबंध कहे छे-ते एक प्रकार विगेरे बंधकनी अक्षेपाए थाय छे, तेमां कोइ एक प्रकारे कर्म बांधे, ते वखते प्रयोग |
कर्म बडे एक समयमा ग्रहण करेला पुद्गलो सातावेदनीयना भाववडे विशेषे करीने परिणमे छे, पण छ मकारनुं कर्म बांधनारने 5 आयुष्य तथा मोहनीयकर्म छोडीने छ कर्मनो बंध जाणवो; तथा सात प्रकारे बांधनारने आयुष्य छोडीने सात प्रकारे जाणवो; तथा ४
आठ प्रकारनां कर्म बांधनारो ते आठ प्रकारे जाणवो तेमां पहेला समयमा ग्रहण करेलां पुद्गलो समुदानवडे, बीजा विगेरे समयमां अल्प बहुपदेशपणे आ कर्मवडे स्थापे छे.
तेमां आयुष्यनां थोडां पुदगलो छे, तेथी विशेष अधिकनाम गोत्रना प्रत्येकना छे, ते बने ( बराबर ) तुल्य के, तेथी विशेष & अधिक ज्ञानदर्शन-आवरणना तथा अंतरायना देरेकना छे, तेथी विशेष अधिक मोहनीयकर्मना छे.
प्रश्न:-तेथी विशेष अधिक एम निर्धारणमां पांचमी विभक्ति छे, ते पा. २-३ ४२ सूत्र प्रमाणे कराय छे, एटले एनो अर्थ
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