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यो स्थान छे, ते अहीं लेबु कारणके तेओनेज जीतवापणानो अधिकार छे. आचा०18/ पश्नः-ओर्नु कयुं स्थान छे के जेने आश्रयीने ते थाय छे.
सूत्रम् उत्तर-शब्दादि विषयोने आश्रयीने ते थाय छे ते बतावे छे. ॥२४८.।
पंचसु कामगुणेसु य सदप्फरिसरसरूवगंधेसुं । जस्स कासाया वहृति मूलहाणं तु संसारे ।। १७६ ॥ ॥२४८॥
अहीं इच्छा अनंगरूप जे काम छे. तेना गुणोने-आश्रयी चित्तनो विकार छे; ते बतावे छे. ते विकारो शब्द, स्पर्श, रस, रूप, हू गंध एम पांच छे. ते पांचे व्यस्त अथवा समस्त-विषय संबंधी जे जीवनुं विषय सुखनी इच्छाथी अपरमार्थने देखनार संसार प्रेमी 3 है जीवने राग द्वेषरूप अंधकारथी आंखनुं तेज हठी जवाथी साग़-माठा पदार्थ प्राप्त थतां कषायो थाय छे ते मूलनु संसार झाड थाय
छे तेथी शब्दादि विषयथी उत्पन्न थए कमायो संसार संबंधी मूळ स्थानज छे-एनो भावार्थ आ छे के राग विगेरेथी डामाडोळ थएल चित्तवालो जीव परमार्थने न जाणवाथी आत्माने तेनी साथे कई संबंध नथी छतां विषयने आत्मारूपे मानीने आंधळाथी पण वधारे & आंधळो बनी कामी जीव रमणीय विषयो जोइने आनंद पामे छे तेथी कडा खे
दृश्यं वस्तु परं न पश्यति जगत्यन्धः पुरोऽवस्थित, रागान्धस्तु यदस्ति तत्परिहरन् यन्नास्ति तत् पश्यति ॥ 1 कुन्देन्दीवरपूर्णचंद्रकलशश्रीमल्लतापल्लवा, नारोप्याशुचिराशिषु प्रियतमा गात्रेषु यन्मोदते ॥ द आंधळो छे ते जगतमां जोवा जेवी वस्तु जोइ शक्तो नथी पण रागथी आंधळो थएलो पोते आत्मा छे ते आत्म भावने छोडीने
अनात्म भावने जुए छे जेमके छती वस्तु कुंद (फुल) इन्दीवर (कमळ) पूर्णचंद्र कळस श्रीमत् लतापल्लवो जेवानी गंदकीना ढगला |
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