Book Title: Tapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Author(s): Jayantilal Chottalal Shah
Publisher: Jayantilal Chottalal Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ बैश-वृक्ष PATTLE श्रमण Personal Use Only वह जयंतीलाल छोटालाल O jainelibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री चारित्र स्मारक ग्रंथमाला. ग्रंथांक-२४ श्री तपगच्छ श्रमण वंश-वृक्ष (पुस्तकाकार-बीजी आवृत्ति ) जयंतीलाल छोटालाल शाह Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: जयंतीलाल छोटालाल शाह झवेरीवाड, सातभाईनी हवेली अमदावाद. किंमत रु. १-... प्राप्तिस्थान जयंतीलाल छोटालाल शाह, अमदावाद. ज्योति कार्यालय, पाडापोळ सामे, गांधीरोड, अमदावाद. नागरदास प्रागजीभाई, दोशीवाडानी पोळ, अमदावाद श्री जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर. श्री मोहनलाल रुगनाथभाई. पालीताणा. मुद्रक : बालुभाई मगनलाल देशाई. मणि मुद्रणालय, कालुपुर, खजुरीनी पोळ, अमदावाद. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HYSROIN WADrearee-emy SEE जगतवंद्य प्रभु महावीर आनंद प्रेस-भावनगर. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Purangaon0000000000000 000000000000000000 Tamimaam 00000000000000000000000000000000 ana Cinnintaintak-misarta चीत्र नं. २ aausticianarmer .१०.११११.०१४ 00000000000000000000% - và vest ... . .. ... ROHI पंचम गणधर श्री सुधर्मास्वामी. sensatta 000000000000000000000000001 amounsomniano 0000000000000000 आनंद प्रेम-भावनगर. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण जैन श्रमण समुदायना आद्य गुरु पंचम गणधर श्रीसुधर्मा स्वामी महाराजने Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्कथन नवसर्जननी उन्नत भावनाथी रंगायेला आ युगमां, लोकरुचिए इतिहासना क्षेत्र तरफ टीकठीक पगलां मांड्यां छे. भूतकालीन इतिहासमुं दर्शन करीने तेमांथी वर्तमान उन्नतिनु दिशासूचन मेळववा माटे आजे लगभग दरेक समाज प्रयत्न करी रहेल छे, कोई अल्प अंशे तो कोई अधिक अंशे . आवा प्रसंगे, जैन श्रमण संस्कृतिना एक महत्त्वना अंगभूत तपगच्छना श्रमणोनी पट्ट परंपरा आळेखतुं आ–'श्री तपगच्छ श्रमण वंशवृक्ष'-पुस्तक समाज समक्ष भेट धरतां हुं अत्यंत हर्ष अनुभवू छं. वि. सं. १९९० मां श्री राजनगर (अमदावाद ) मां भरायेल अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक मुनि सम्मेलननो शुभ प्रसंग हजु गई काल जेटलो ज ताजो छे. आ प्रसंगे मारे अमदावादमां आववान थयुं अने बधुमां नगरशेठ श्रीमान् कस्तुरभाई मणिभाईना वंडामा ए सम्मेलनना कार्यालयमा ज कामकाज करवानो प्रसंग सांपड्यो. परम पूज्य मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजी (दिल्हीवाळा ) आदि त्रणे मुनिराजो आ गसंगे अमदाशदमां पधारेला अने तेमनी स्थिरता पण नगरशेठना वंडामा ज थई. जैन इतिहासना पट्टावली-पट्टपरंपराना क्षेत्रमां आ पूज्य मुनिराजो निष्णात मनाय छे. वर्तमान श्रमण समुदायनी गुरुपरंपराथी समाजना सामान्य वर्ग पण परिचित थई शके ए, एकाद पुस्तक तैयार करवानी भावना भने धणा समयथी थई आवती. आ पूज्य मुनिराजोना सहवासथी मारी ए भावनाने वधु बळ मळ्यु. अने ज्यारे में ए जाण्यु के “ श्री तपगच्छ श्रमण वंक्षवृक्ष" नामर्नु एक मोटुं रंगीन चित्र तेओश्रीए संवत् १९७९ मां तैयार कर्यु हतुं, त्यारे ए चित्रनी सुधारा वधारा साथे बोजी आवृत्ति ज प्रकाशित करवानो मने विचार आन्यो. परन्तु वॉलपोस्टर जेवू एवढें मोटुं चित्र बराबर महावीने दरेक जण पोताना घरमा बसावी शके प बात वधु शक्य न लागी. वळी प्रामानुग्राम विहार करता पूज्य मुनिराजो पण ए चित्रने हमेशां पोतानी साथे न ज राखी शके. अने आम थाय तो एने तैयार करवानो मुळ आशय सफळ थयो न गाय. एटले दरेक जण सहेलाईथी आने वसावी शके, एनो बराबर उपयोग करी शके अने पूज्य मुनिराजोने पण हमेशां एने साथे राखवामां अडचण न आवे एवी रीते ए वस्तु तैयार करवानो में विचार कर्यो. Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिणामे पहेलां प्रकाशित थयेल प्रतनी ज बीजी आवृत्ति आ पुस्तक रूपे तैयार करवानो निश्चय थयो. पूज्य श्री दर्शनविजयजी आदि त्रणे मुनिराजोए पोताथी बनती दरेक सहायता आपवानी उदारता करी, एना फळ रुपे आजे हुं आ पुस्तक आपनी समक्ष रजु करी शकुं लुं. जैन श्रमण संस्कृतिना इतिहासना एक क्षेत्रने स्पर्शतुं आ पुस्तक एक प्रकारना आधार ग्रंथ (Refurence book ) रुप अथवा तो डीरेक्टरी जेवुं छे. एटले आ संग्रहमां सीधे सीधी ते जेने हुं मारा पोताना सर्जन तरीके ओळखावी शकुं एवं कशुं ज नथी. जुदा जुदा सयुदायना वडिल मुनिराजो अने भिन्न भिन्न विद्वानो पासेथी आ ग्रंथने यथाशक्य समृद्ध बनाववानी सामग्री मेळववानो प्रयास मात्र ज म्हारुं आ ग्रंथ प्रत्येनुं ऋण छे. एटले ए पूज्य मुनिराजो, ए विद्वानो अने अन्य सहायकोनो आभार मानीने तेओनुं ऋण अदा करवामां हुं एक प्रकारनो आत्म-संतोष अनुभवं कुं. आ पुस्तक संबंधी आखीय योजना तैयार करवामां, ते माटे समये समये योग्य सूचना करीने मार्गदर्शन करवामां तथा बीजी दरेक प्रकारनी आवश्यकीय सहायता करवामां परम पूज्य मुनि महाराजश्री दर्शनविजयजी तथा ज्ञानविजयजी महाराजश्रीए आपेल सहकार मांटे हुं ओश्रीनो अत्यन्त आभारी छु. मूलभूत रीते तपगच्छना वर्तमान दरेक साबुओना समुदायवार नकशाओ आपवाथी आ ग्रन्थ तैयार करवानो मुख्य उद्देश सफळ थतो होवा छतां आ ग्रन्थ विशेष उपयोगी श्रई पडे ए आशयधी (१) वंशवृक्ष विभाग, (२) चित्र परिचय विभाग अने (३) विवेचन विभाग - एम ऋण विभाग पाडीने तेमां जैन श्रमण संस्कृतिना इतिहास उपर प्रकाश पांडे एवा लेखो आप्या छे वंशवृक्ष विभागमा दरेक समुदायना साधुओनी यादी आपवामां आवेल छे. आ यादी तैयार करवा माटे जे जे मुनिराजोए पोताना समुदायनी यादी मोकलवानी कृपा करी छे ते सौनो हुं आभारी छु. चित्र परिचय विभागमां आ पुस्तकमां आपवामां आवेल आचार्यो अने मुनिराजोनां २० चित्रोनो ड्रंक परिचय आगेल छे. आ माटे माराश्री शक्य लबी चित्र मुख्य मुख्य मुनिराजोना चित्रो मेववानो में प्रयत्न कर्यो छे. मारा ए प्रयत्नमां सहकार आपनाराओने पण हुं न भूली शकुं. आ पुस्तकमा आपेल पूज्य आचार्य महाराजो तथा मुनिराजोनां चित्रो क्रमसर नथी गोठवायां, छापवानी सगवडता माटे अनिवार्य हतुं. ए केवल विवेचन विभाग -- आ पुस्तकमां इतिहासनी दृष्टिए विशेष उपयोगी वस्तु आ विभागमां आपेल छे. आमां चार लेखोनो समावेश कर्यो छे; (१) “ तपगच्छना आचार्यो तेमनुं साहित्य, " . लेखक : श्रीयुत भाई धीरजलाल धनजीभाई, (२) “जैनोना इतिहास पर एक दृष्टिपात " स्व. आ. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुद्धिसागरसूरिजी कृत " विजापुर वृतांत "मांथी उद्धृत, (३) “ तपगच्छनी उत्पत्ति, " लेखकपूज्यपाद मुनिमहाराज श्री दर्शनविजयजो दिल्हीवाला अने (४) “ जैनाचार्योनो औपदेशिक प्रभाव " लेखकःमुनिराज श्री न्यायविजयजी दिल्हीवाला. आ ग्रंथना अतिमहत्त्वना अंगभूत आ लेखो आपवा माटे ए मूळ लेखकोनुं हुं जेटलं ऋण स्वीकारुं तेटलं ओछं छे. नगरशेठ श्रीमान् कस्तुरमाई मणिभाई, मुनिराज श्री मंगलविजयजी, मुनिराज श्री चरणविजयजी, श्रीयुत् भाईश्री धीरजलाल टोकरशी शाह, श्री जैन आत्मानंद सभा-भावनगर, श्री जैनधर्म प्रसारक सभा-भावनगर, श्रीयशोविजयजी जैनग्रंथमाला भावनगर, तथा अन्य जे जे व्यक्तिओए प्रत्यक्ष के परोक्ष रीते मने आ कार्यमा सहकार आप्यो छे तेओनो हुं आभार मानु छं. आ पुस्तकने मुद्रणकळानी दृष्टिए बनी शके तेटली आकर्षक रीते छापवा माटे तथा वंशवृक्ष विभागमा वारंवार करवा पडेल सुधारा वधाराना कारणे उपस्थित थती दरेक प्रकारनी मुश्केलीने नभावी लेवा माटे मणिमुद्रणालय-अमदावादना मेनेजर श्रीयुत सोमाभाई देसाई तथा प्रेसना कम्पोझिटर भाईओए आपेल सहकारनी मारे नांध लेवी जोइए. पुस्तक शुद्ध तेमज आकर्षक बनाववा माटे श्रीयुत भाई रतिलाल दीपचंद देसाई तथा श्रीयुत भाई बालाभाई वीरचंद देसाईए लीधेल जहेमत माटे मारे आभार मानवो जोइए. प्रारम्भमां आ पुस्तकनी जाहेरात करतो वखते आनुं छूटक मूल्य ०-१२-० राखेखें परन्तु पाछळथी पुरतकनु कद धार्या करतां लगभग देढुं थई जवाथी तेमज १२ जेटला आट'लेटस उपर चित्रो आपेलां होवाथी तेनुं मूल्य १-०-० करवू पड्यु छे. वळी पुस्तक तैयार करीने बहार पाडवामां पण असाधारण विलंब थयो छे. छतां आ बधानी पाछळ पुस्तक जेम बने तेम अधिक उपयोगी थाय ते उद्देश होवाथी समाज तेने क्षतव्य गणशे एवी आशा छे. जेओए आ पुस्तकना प्रथमथी ग्राहक बनीने मारा कार्यमा मने उत्साहित कयों छे, तेओनी भली लागणीओने हुं न भूली शकुं. अस्तु. भारतीय इतिहासमां जैन इतिहासमुं तेमज जैन श्रमण संस्कृतिना इतिहासवें स्थान अति महत्वनुं छे. ए इतिहासना अभ्यासीने थोडे अंशे पण आ पुस्तक उपयोगी थई पडशे तो मारो नम्र प्रयास हुं सफळ थयो लेखीश.. आ पुस्तकमां जणाती भूलो के खामीओ तरफ विद्वाना मित्रभावे माझं ध्यान दोरवानी कृपा करे एवी नम्र भावना साथे हुं विर{ छं. वीर संवत २४६२ श्रावण सुद १५ झवेरीवाड, सातभाईनी हवेली, अमदावाद. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका २३थी ३२ प्राक्कथन (१) वंश वृक्ष विभाग २४ तीर्थंकरोना गणधर, श्रमण अने श्रमणी सस्थानी यादी श्री. निर्ग्रन्थ गन्छ आदि गच्छो श्री. तपगच्छनी शाखाओ श्री. मोहनलालजी महाराजनो समुदाय (२) चित्र-विभाग जुदा जुदा मुनिवरोनां चित्रो (३) चित्रपरिचय-विभाग दरेक लिोना टंक परिचय ___ (४) विवेचन-विभाग तपगच्छना आचार्योः तेमनुं साहित्य जैनोना इतिहास पर एक दृष्टिपात तपगच्छनी उत्पत्ति जैनाचार्योनो औपदेशिक प्रभाव परिशिष्ट ग्राहकोनी यादी शुद्धिपत्रक १ श्री २४ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीत्र नं.३ == = === - %EO BESE :: संपादक:: ज यं ती लाल छोटा लाल शाह. ELE = आनंद प्रेस-भावनगर. === =EA Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ पुस्तकना आर्थिक सहायक शेठ श्री शकराभाई लल्लुभाई जेओ श्री अमदावादनी रु, कापड, सुतर, शराफी तथा कमीशन एजन्टनुं काम करनारी 'शेट लल्लुभाई मनोरदास' नी सुप्रतिष्ठित पेढीना मालिक तथा अमदावाद म्युनीसीपालिटीना काउन्सीलर छे. तेओश्रीए नार, चंडोल, सेवालिया आदिना स्थळोनी प्रतिष्ठा तथा जीर्णोद्धारमा तेमज श्वे. मू. जैन कोन्फरन्स, केळवणी अने साहित्यना प्रचार अंगे अनेक गुप्त अने जाहेर सखावतो करेली छे, आ पुस्तकमां आर्थिक सहाय आपी साहित्यना प्रचारमा जे वेग आप्यो छे, ते बदल हुं तेओश्रीनो आभार मानु छु. -प्रकाशक Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE5555 श्री तपगच्छ श्रमण वंशवृक्ष (द्वितीय आवृत्ति) वंशवृक्ष विभाग सांकेतिक नीशानीओ + स्वर्गस्थ स्थ. स्थविर (पद) म. प्रवर्तक पं. पन्यास उ. उपाध्याय आ. आचार्य नोंध- आ वृक्षमां, जे जे तपगच्छना विद्यमान साधुओ छे तेमनां तथा तपगच्छनी क्रिया करवावाला साधुओ छे तेमनां अने तेओनी गुरुपरंपरानां ज नामो आपेलां छे. जे साधुओ काळधर्म पाम्या छे अने जेमनो शिष्य वर्ग हयात नथी तेमनां नामो आपेलां नथी. मळेलां पत्रो अने साधनो परथी आ पुस्तक तैयार करवामां आव्युं छे. कदाच कोई नामो बाकी रह्यां होय तो ते प्रकाशकने लखी जणाववा महेरबानी करवी, जेथी भविष्यमां लक्षमा रहे. तपगच्छना हाल (वि. सं. १९९२ना कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा सुधी) कुल विद्यमान साधु ६६४ छे. वि. सं. १९९२ : वीर सं. २४६ कार्तिक पूर्णिमा, अमदावाद --- संपादक 5555555555555555555555555555 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ तिर्थकर भगवानना समयना कुल गणधर, श्रमण अने श्रमणीओनी यादी में प्रथम गणधरनुं नाम श्रमणी संख्या कुल गणधरनी संख्या श्रमण संख्या (१) श्री ऋषभदेव भगवान ऋषभसेन (पुंडरीक स्वामी) ८४ ३,००,००० (२) श्री अजितनाथ भगवान सिंहसेन १,००,००० ३,३०,००० (३) श्री संभवनाथ भगवान चारु १०२ २,००,००० ३,३६,००० (४) श्री अभिनंदन स्वामी वज्रनाभ ११६ ३,००,००० (५) श्री सुमतिनाथ भगवान चमर १०० ३,२०,००० ५,३०,००० (६) श्री पद्मप्रभ स्वागी १०७ ३,३०,००० प्रद्योत १०७ ४,२०,००० (७) श्री सुपार्श्वनाथ भगवान विदर्भ ४,३०,००० (८) श्री चंद्रप्रभ स्वामी दत्तप्रभु २,५०,००० ३,८०,००० Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 45555555555555555555555555555555555555555 [२] प्रथम गणधरनुं नाम कुल गणधरनी संख्या श्रमण संख्या श्रमणी संख्या (९) श्री सुविधिनाथ भगवान वराह २,००,००० १,२०,००० (११) श्री शीतलनाथ भगवान प्रभुनंद ___ ८१ १,००,००० १,००,००६ (११) श्री श्रेयांसनाथ भगवान कौस्तुभ ८४,००० १,०३,००० (१२) श्री वासुपूज्य स्वामी सुभौम (१३) श्री विमलनाथ भगवान ५७ ६ ८,००० १,००,८०० (१४) श्री अनंतनाथ भगवान (१५) श्री धर्मनाथ भगवान अरिए ४३ ६४,००० ६२,४०० (१६) श्री शांतिनाथ भगवान ६२,००० चक्रायुध फ5555555555555555555555 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55555555555555555555555555555555555555 [३] प्रथम गणधरनु नाम कुल गणधरनी संख्या श्रमण संख्या श्रमणी संख्या (१७) श्री कुंथुनाथ भगवान ६०,६०० (१८) श्री अरनाथ भगवान (१९) श्री मल्लिनाथ भगवान भिषज ( २० ) श्री मुनिसुव्रत स्वामी १८ ३ ०,००० (२१) श्री नमिनाथ भगवान 3599995959595959FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF99999999999 (२२) श्री अरिष्टनेमि भगवान वरदत्त (२३) श्री पार्श्वनाथ भगवान आर्यदिन्न ( आर्यदत) ३८,००० (२४) श्री वर्धमान स्वामी (महावीर स्वामी) इन्द्रभूति (गौतम स्वामी ) ११ । १४,००० गौतमस्वामी अमिभूति वायुभूति व्यक्त सुधर्मास्वामी मंडित मौर्यपुत्र अति अचलभ्राता मेतार्य प्रभास (जुओ पार्नु ४) FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐555555555555555555555555555555555555 [४] (अनुसंधान पार्नु ३) विश्ववंद्य प्रभु श्री महावीरस्वामीथी शरु थती पट्टावली ॥ श्री निर्ग्रन्थ गच्छ ॥ पंचम गणधर १ श्री सुधर्मा स्वामीजी महाराज, २ श्री जंबू स्वामीजी महाराज, ३ श्री प्रभव स्वामी, ४ श्री सय्यंभवसूरि, ५ श्री यशोभद्रसूरि ६ संभूतिविजय भद्रबाहु स्वामी स्थ. स्थ. स्थ. स्थ. नं उ ति य - द प ष्य शो न नं भ भ स्थ. सु म न स्थ. स्थ. म पू णि ण भ भ स्थ. स्थूल भद्र स्थ. स्थ. स्थ. ऋ जं दी जु बू घ म भ FFER स्थ. | पां । डु भ । स्थ. गो दा स्थ. अ नि स्थ. स्थ. य सो । म A rube ( यक्षा आदि सात आर्याओ) ८ आर्य सुहस्तिसूरि आर्य महागिरि स्थ. स्थ. स्थ. स्थ. स्थ. स्थ. स्थ, स्थ. स्थ. स्थ स्थ. स्थ रो य मे का सुस्थित सुप्रति र रो ऋ श्री ब्र सो ह शो घ म बद्र क्षि ह षि गु ह्म म ण भ ग धि ९ । त गु गु प्त ग ग द्र णी प्त प्त णी णी ॥ कोटिक | गच्छ ॥ । । । । । । । । स्थ. स्थ. स्थ. स्थ. स्थ, स्थ. स्थ, स्थ. उ ब ध थ्रि को ना ना रो त लि ना या डि ग ग ह र स ढय ढय न्य मि १० स्थ. इन्द्रदिन्नसूरि स्थ. प्रियग्य स्थ. विद्याधर स्थ. ऋषिदत्त ११ स्थ. दिनसूरि १२ आ. सिंहगिरि आर्यशांति स्थ. धनगिरि आ. श्री वज्र स्वामी स्थ. तापस स्थ. कुबेर स्थ. आ. समित स्थ. अहे स्थ.श्रेणिक दिन्न स्थ. ऋषि पालित १४ स्थ. आ. वज्रसेनसूरि स्थ. आ. पद्म स्थ. आ. रथ (जुओ पार्नु ५) स्थ, आर्य पुष्यगिरि (श्री देवधि गणि क्षमाश्रमणनी पटावली) फ9555555555555555555555555 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555555555555555555555555 स्थ. आ. वज्रसेनसूरि ( अनुसंधान पानुं ४ ) स्थ. नागिल स्थ. पद्म | १५ स्थ. जयन्त स्थ. तापस स्थ. नागेन्द्र ॥ श्रीचंद्रगच्छ ॥ स्थ. निवृत्ति स्थ. विद्याधर स्थ. चंद्रसूरि ॥ श्री वनवासीगच्छ ॥ १६ श्री सामन्तभद्रसूरि १७ वृद्धदेवसूरि १८ प्रद्योतनसूरि १९ मानदेव २० मानतुंगसूरि २१ वीरसूरि २२ जयदेवसूरि २३ देवानन्दसूरि २४ विक्रमसूरि २५ नृसिंहसूर २६ समुद्रसूरि २७ मानदेवसूरि २८ विबुधप्रभसूरि २९ जयानन्दसू ३० रविप्रभसूर ३१ यशोदेवसूरि ३२ प्रद्युम्नसूर ३३ मानदेवसूरि ३४ विमलचंद्रसूरि ॥ श्री वडगच्छ ॥ ३५ उद्योतनसूरि ३६ सर्वदेवसूर ३७ देवसूरि ३८ सर्वदेवसूर ३९ यशोभद्रसूरि ४० मुनिचंद्रसूरि ४१ अजित देवसूरि ४२ विजयसिंहसूर ४३ सोमप्रभसूर ॥ श्री तपगच्छ ॥ ४४ तपस्वीहीरला श्री जगचंद्रसूरि ( जुओ पानुं ६ ) [ ५ ] 555555555555555555555555555555555555555555555 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ श्री जगच्चंद्रसूरि (अनुसंधान पार्नु ५) । ४५ देवेन्द्रसूरि ( लघु पोषाळ) विजयचंद्रसरि (वडा पोषाळ) विद्यानंदसरि ४६ धर्मघोषसूरि ४७ सोमप्रभसूरि विमलप्रभसूरि परमानंदसूरि पद्मतिलकसूरि ४८ सोमतिलकसूरि पद्मतिलकसूरि चंद्रशेखरसूरि जयानंदसूरि ४९ देव सुंदरसूरि ज्ञानसागरसूरि कुलमंडनसूरि गुणरत्नसूरि ५. सोमसुंदरसूरि साधुरत्नसूरि | सहस्रावधानी ५१ मुनिसुंदरसूरि अस्संबरपरि जयसुंदरसूरि अनवर 5555555555555555555555555555555 भुवनसुंदरसूरि जिनावरसुति जिनसुंदरसूरि ५२ रत्नशेखरसूरि ५३ लक्ष्मीसागरसूरि ५४ सुमतिसाधुसूरि ५५ हेमविमलसूरि ५६ आनंदविमलसूरि (जुओ पार्नु ७) नोट:- अहिं सुधीना दरेक नामनी आगळ साथीआनी (4) सांकेतिक नीशानी जाणवी. 555555555555555555555555555555555फ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ आनंदविमलरिक ५७ विजयदानसरिक ऋद्धिविमल (जुओ पानु २१) ५८ सम्राट अकबर प्रतिबोधक जगद् गुरु श्रीहीरविजयसूरिक राजविजयसूरिक (रत्न शास्त्रा) ५९ विजयसेन सरिक उ. कीर्तिविजय गणी उ. कल्याण उ. कनक विजयगणी विजयणी उ. सहज सागर तिलक विजय ऋदि विजय उ. विनयविजय पं. लाभविजय शीलविजय उ. जयसागर ६. विजयदेव विजय गणी गणीक सूरि तिलकसरिक । देसूरव) (आनंदसूर) पं.नयविजय पं. नयविजय सिद्धिविजय उ. न्याय संघ। संघ सागर चारित्र विजय गणी जितक 4. उत्तम विजय (यतिशाखा) उ. यशो विजयजी महाराज कृपाक विजय ६१ विजय विनयप्रभ सिह सक सूरे (यति शाखा) ६२ सत्यविजय गणीक सागर विजय उ. मेघ मान पं. गुण विजय तिज विजय विजय सागर ६३ कपुरविजय कुशलविजय गणी गणीक मयगल सागरक यशवंत विजय ६४ क्षमाविजय गणी पद्मसागर कुशलविजय ६५ जिनविजय गणी स्वरूपसागर पं.जित विजय नाणसागर श्रीविजय जयविजय ६८ मयासागर (जुओ पानु २०) पं. हर्षविजय चंद्रविजय पं. हेतविजय गुमानविजय (जुओ पार्नु ८) पं विनयविजय पं. हिंमतविजय कमलविजय 3555555555555555 55555 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [-]] ६५ श्री जिनविजय गणीक (अनुसंधान पार्नु ७) उत्तमविजयगणी पद्मविजयगणी ६८ रूपविजयगणी अमृतविजय गुमानविजयक धनविजय विनयविजय ७. पं. उमेदविजयक कीर्तिविजय गणी १९ अमीविजय गणी सौभाग्यविजध ७० कस्तुरविजय गणी पं. खान्तिविजय जयविजय लब्धिविजय ७१ पं. रत्नविजय चमरेन्द्र विजय पं. मोहनविजय । धर्मविजय शांतिविजय । पं. पुष्पविजय पं. भावविजयक ७३ प्रकाशविजय ३ प्रकाशविजय आ. विजयनीतिसूरीश्वरजी उ. दयाविजय - रविविजय नरेन्द्रविजय सुभद्रविजय चमनविजय चारित्रविजय पं. सुरेन्द्रविजय अशोकविजय मुक्ति नेम मनोहर पं. रवि राम हेमेन्द्र राज विजय विजय विजय विजय विजय विजय विजय । । as are ७६ विशालविजय भुवनविजय । । | पं. दान आ.विजय पं. मुक्ति उदय संपत विद्या शु दे विजय हर्षसरि विजय विजय विजयगणी विजय भ वि न्द्र सुंदरविजय प्रकाश ज वि पं.तिलक केसर विजय य ज विजय विजय जयंतविजय चरणविजय मनोहर विजय हेम भानु विजय विजय क म वि वि ज ज य वि ज भय विजय विजय मेहविजय ... 4. मानविजय पं. कल्याणविजय सुमतिविजय मंगलविजय जसविजय रामविजय + क (जुओ पार्नु ९) ७६ दर्शनविजय विनयविजय तीर्थविजय )555555555555555555फ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555 5 55555555 ७. कस्तुरविजयजी गणी (अनुसंधान पार्नु ८) ७१ मणिविजय (दादा) उद्योतविजय : अमरविजयक गुमानविजय पं. प्रतापविजय देवविजय जसविजय मुक्तिविजय बुद्धिविजय ७६ मोहनविजय भक्तिविजय दानविजय अमृतविजय पद्मविजय पं. गुलाबविजय शुभविजय आ.विजयसिद्धि सूरीश्वरजी ८२ महायोगीराज श्री बुद्धिविजयजी (बुटेरायजी) महाराज नेमविजय रामविजय लक्ष्मीविजय पं. मोतिविजय असविजय मंगलधिजय (जओ पान १९) केसरविजय नरेन्दविजय । ७३ आ. विजयकनकसूरि पं. तिलकविजय बुद्धिविजय | चंद्रविजय रामविजय भुवनविजय केसरविजय इंसविजय मंगलविजय शांप्तिविजय ७५ सोहनविजय सुज्ञानविजय कंचनविजय मुक्तिविजय खीमाविजय कान्तिविजय दीपविजय शुभविजय ७५ प्रेमविजय रत्नाकरविजय तत्त्वज्ञविजय ७६ विज्ञानविजय (शुओ पार्नु १०) _55555555555555555555555555 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55555555555555555555555555555555 5 5555555555555 ७२ महायोगीराज श्री बुद्रिविजयजी (बुटेरायजी ) महाराज (अनुसंधान पार्नु ९) श्री नीति विजयजी पं. आणंद विजयजी श्री मोतिविजयजी ७३ तपगच्छाधिपति श्रीवृद्धिजयजी श्रीमुक्तिविजयजी (वृद्धचंद्रजी) गणी महाराज (मूलवंदजी) महाराज (जुओ पार्नु १२) आ श्रीविजयानंद सूरोवरजी (आत्माराम जी) महाराज तपस्वी श्री खान्ति विजयजी (दादा) चंद्रविजयजी हरखविजयजी मोहनविजय लन्धिविजय विजय (जुओ पार्नु १५) रामविजय विनयविजय भक्तिविजय सिद्धिविजयक देवविजय | कनकविजय । कल्याण विजय पं. पुष्पविजय कपुरविजय उत्तमविजय पं.दुर्लभविजय चंद्र चंदन विजय विजय शान्ति विजय पार्श्वविजय पं. अमृतविजय उद्योतविजय पुण्यविजय ७५ आ. विजयवीरसूरिक पं. मणिविजय तिलकविजय मोहनविजय । चंदनविजय ७७ प्रभावविजय राजेन्द्रविजय ७८ अगरेन्द्रविजय पं. लाभविजय चंद्रविजय उ. कुमुद विजय ७६ कमलविजय उत्तमविजय ७७ मनोहरविजय मेहविजय मानविजय निपुणविजय कनकविजय प्रेमविजय ७८ ७४ आ. श्री विजयकमल श्री गुलाब श्री हंसविजयजी श्री दानविजयजी श्री थोभणविजयजी सूरीश्वरजी महाराज विजयजी लब्धिविजय दीपकांग्जय गुणविजय । ... मणिविजय मंगलविजय प्रधान विजय नरेन्द्रविजय ७६ रंगविजय धरणेन्द्रविजय सुमतिविजय (जुओ पार्नु ११) पद्मविजय ७७ धनविजय 5555555555555555555555555EEEEEEEEE Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555 95 95 95 95 95 9555555555555555555555 ७४ आचार्यदेव श्री विजयकमलसूरीश्वरजी महाराज ( अनुसंधान पानुं १० ) I ७५ आ. श्री विजय सरसूरि पं. श्री प्रेमविजय ७६ प्र.पं. श्री पं. न्याय दर्शन लाभविजय विजय विजय मनहरविजय तपस्वी तरुणविजय शांतिविजय हरखविजय चंद्र ध्यान विजय विजय 1 मृगेन्द्र विजय ७६ गुरुकुल स्थापक श्री चारित्रविजयजी ( कच्छी) 5 | ७७ धर्म प्रचारक श्री दर्शनविजयजी | उ. श्री देव विजयजी ७८ न्यायविजय स्थ. श्री विनय विजयजी प्रभाव विजय 1 नयविजय फ़ मानविजय सुमतिविजय मतिविजय पद्मविजय उ. प्रतापविजय पं. प्रीति 1 उ पं. धर्म - phd द | आ. श्री विजय मोहनसूर य शांति विजय निपुण विजय विजय श्री ज्ञानविजयजी I वल्लभविजय भ https र त मा णे क वि वि ज ज य थ 1 ७८ यशो विजय जयानंद विजय – विक्रम विजय - क च हर्ष विजय विजय ल वि ज य [११] पं. श्री मोति विजयजी I दान विजय प्र. तीर्थविजय क्षमाविजय । सुभद्र पु विजय उप वि रंजन ज विजय य ७८ ७८ महेन्द्र विजय श्री मित्रविजयजी 5555555555555555555555555 95 95 95 95 94 94 95 95 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w फ्र ७४ श्री केवलविजय पं. गंभीरविजय ७५ श्री अमरविजय I ७६ कान्तिविजय कल्याण पं. अवदात विजय विजय ७७ प्रीतिविजय केसर शान्ति विजय विजय विमलविजय ७३ शान्तमूर्ति श्री वृद्धिविजयजी ( वृद्धिचंद्रजी ) महाराज ( अनुसंधान पानुं १० ) 1 हेमविजय आ. श्रीविजय आ. श्रीविजय धर्मसूरीश्वरजी नेमिसूरीश्वरजी (जुओ पानुं १३) (जुओ पानुं १४) धर्मविजय उत्तम विजयक प्रमाद विजय हीरविजय कांतिविजय पं. शान्तिविजय कल्याणविजय 1 कांतिविजय पं. चतुर विजय विनोद तिलक पं. पद्मविजय भगवान विजय विजय विजय वीरविजय 1 क्षमाविजय जित भानु विवेक विजय विजय विजय सौभाग्यविजय - पं. नयावजय ७७ मंगलविजय चंपक विजय 1 चरणविजय दयाविजय T प्रेमविजय विजय 1 रवि निधानविजय T विज्ञानविजय पुण्यविजय ऋद्धि शिव विजय विजय फफफफफ दर्शनविजय शांत कपूरविजय यत्नविजय प्रमाद मोहन विजय विजय 5555555555555555555555555555555555555555555 [१२] Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐55555555555555555555555555555555555 ७४ शास्त्रविशारद आचार्य श्रीविजयधर्मसरीश्वरजी महाराज (अनुसंधान पान १०-१२) ७५ आ. श्रीविजयेउ. श्री मंगल विजयजी पं. भक्ति विजयजी विद्या न्याय जयंत धरणेन्द्र विजयजी विजयजी विजयजी विजयजी न्द्रसूरिजी ७६ भावविजय प्रभाकरविजय हिमांशुविजय विशालविजय ७७ केशवविजय ...विजय ...विजय पं. श्री उ के धो च त न वि वि ज ज य पं. श्री सु ल प्र चं उ भु म लि ता द द व ति त प न य न वि वि वि वि वि वि ज ज ज ज ज ज य य य य य य प्रे म वि ज य म क म रं सं प्र यो न हि ज प भा ध क मा न त व वि वि वि वि वि वि ज ज ज ज ज ज य य य य य य चंपकविजय जगत ७७ विजय प्रबोध विजय दीपविजय दर्शनविजय Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 555555555555555555555555555555555555 ७४ सूरिसम्राट आचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराज (अनुसंधान पार्नु १०-१२) ] [2 आ.श्री उ.श्री पं.श्री उ.श्री उ.श्री विजय पद्म सि अमृत लावण्य विज्ञान विजय द्धि विजय विजय सूरिजी गणी वि गणी गणी ७५ आ.श्रीविजय आ.श्रीविजय दर्शनसूरिजी उदयसूरी | श्वरजी । । । । । ज नि म ण या यं म वि न क द ज न्द र य रूप प्र. गीर्वाण मा धन जित वा सं प्रे प्र विजय विजय न विजय विजय च प म भा वि । । स्प त वि व ज विमला विद्या ति वि ज य नन्द नन्द विजय विजय विजय ज य य 444 可即可 य गणी | न आनन्द जयन्त दक्ष विशुद्धानंद नरेन्द्र कमल विजय विजय विजय विजय विजय भरत विजय वि विवि विजय यह ज ज ज । य य य तिलकविजय । सुशीलविजय य रामविजय देवविजय खान्तिविजय पुण्यविजय प्र. कस्तुरविजय वल्लभविजय निरंजनविजय धुरंधरविजय यशोभद्रविजय गुणचंद्रविजय हिमांशुविजय शुभंकरविजय सुमित्रविजय मोतिविजय मेहविजय कुमुदविजय ७६ आ. श्रीविजय नन्दनसूरिजी चिदानन्दविजय ७७ सोमविजय ७८ कनकविजय फफफफफफ शिवानन्दविजय अमरविजय वीरविजय उद्योतविजय मोक्षानन्दविजय ॥॥॥॥5555555555555555555555फ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55555555555555555555555555555555555555555555555555 ७३ न्यायाम्भोनिधि आ. श्री विजयानंदसूरीश्वरजी (आत्मारामजी ) महाराज (अनुसंधान पार्नु १०) ७४ लक्ष्मी विजयजी चारित्रविजय जयविजयजी अमरविजय उद्योतविजय उ. श्री वीर विजयजी पं. कस्तुरविजय . प्र.श्री कान्ति विजयजी भमीविनय ज्ञानविजय गुणविजय चतुरविजय देवविजय कुन्दनविजय कर्परविजय चतुरविजयजी भचि.विजय पं. क्षमा विजय गुण भक्ति विजय विजय भाव विजय जसविंजय । लाभविजय ...विजय जसर्विजय पुण्यविजव दुर्लभविजय मेघविजय दर्शनविजय मणिविजय मा. श्रीविजय .५ दानसूरीश्वरजी हेतविजय ... विजय नयविजय मुगुणविजय " चंपकविनय पद्मविजय (जुओ पान १८) ( जुष्यो पार्नु १६) . मध55555555555555555555555555 फ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ #5555555 55555555555555555555 ७४ श्री लक्ष्मीविजयजी महाराज (अनुसंधान पार्नु १५) कुमुदविजयजी ७५ श्रीहंसविजयजी आ. श्रीविजय श्रीहर्षविजयजी कमलसूरीश्वरजी हीरविजय (जुओ पार्नु १५) 4. सुंदरविजय दोलतविजय ७६ पं. श्रीसंपत विजयजी सौभाग्यविजय धर्मविजय ७. कुसुम वसंत शंभु रमणिक विजय विजय विजय विजय । गौतम कीर्ति सुमति विवेक कुमुद हरख विजय विजय विजय विजय विजय विजय सुमित्रविजय विनयविजय 55555555555555555555555555555555555555555555555555 मोहनविजय आ. श्रीविजय प्रेमविजय शुभविजय ७६ बालभसूरिजी 7 जितविजय मानविजय माणिश्य विजय कनकविजय संतोषविजय नरेन्द्रविजय - केसरविजय विमल विजय विवेकविजय उ. श्रीललित उ. सोहन विजयजी विजय पं. श्रीउमंग । विजयजी प्रभावविजय पं. श्रीविद्या वि वि शि वि वि दा वि विजयजी __ चा च व शु का न र क्ष वि द्र श उपेन्द्र ण ज विवि विजय ज वि य ज ज य ज य ज य य । 日本n每日 विबुध विजय चरणविजय उदयविजय वीरविजय 4. बालविजय मित्रविजम समद्रविजय रविविजम ७९ शीलविजय 595555555555555555555555फ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FELESEFFEREF555555555555EFFEEEEEEEEE555 [१७] ७५ निस्पृहचूडामणि आ. श्रीविजयकमलमूरिजी महाराज (पंजाबी) (अनुसंधान पार्नु १६) ७६ आ. श्रीविजयलब्धिसूरिजी हिंमतविजय नेमविजय लावण्यविजय उनमविजय चन्द्रविजय ७७ पं.श्री पं. श्री शुभ भुवन ज न प्र यो प नं प्र वि र र ज के ल ने गंभीर लक्षण विजय विजय __ यं वी वि गी न द भा क त्ला सि स ला लि म विजयजी विजय त न ण न्द्र विन व म क क वि स तां वि वि वि वि ज वि वि वि र वि ज वि ग ज ज ज ज य ज ज ज वि ज य ज वि य य य य य य य अ य य । । । म क भ । । महिमाविजय हो ल्याई ।। भास्करविजय द ण क । जितेन्द्रविजय य वि र रंजनविजय वि ज वि अ य ज अजितविजय य य मऊ555555555555555555555555555555555555555555555555 शांतिविजय मेरुविजय | हेमेन्द्रविजय सत्यविजय कंचनविजय कीर्तिविजय हर्षविजय ७८ सुरेन्द्रविजय अमरेन्द्रविजय महेन्द्रविजय Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 555555 555555555555555555555 ७५ सकलागमरहस्यवेदी आचार्य श्रीविजयदानसूरीश्वरजी महाराज (अनुसंधान पार्नु १५) [१८] ७६ आ. श्रीविजयप्रेमसूरिजी नायकविजयजी मंगलविजय मेधविजय मनोहरविजय केवलविजय पं. श्री जंबुविजयजी हेमंतविजय जिनविजय राजविजय भानुविजय प्रभाविजय ७७ उ. श्रीराम विजयजी पद्मविजय ७८ नीतिविजय रूपविजय रक्षितविजय चिदानंदविजय जयंतविजय रेवतविजय बाहुविजय । । । ८ भुवन जस चारित्र विजय विजय विजय 42 End ७९ सुदर्शन विजय 习行可可 ७९ गौतमविजय वर्धमानविजय । ।।।। ।।।।।।।।। ।।।। ।।। ।।।।।।। र ल अ ध ति मा म क का नं सु भ म व मृ र कु सु रो मु न क पु ज हि म र क्षे ल लि मृ म ल न न न न्ति द बो दं ल ल गां ला मु हं हि क्ति र ल्या प य मां हो वि में वि त त वि क वि क क वि न ध क य भ क क द क त वि र ण वि वि शु द वि क ज वि वि ज वि ज वि वि ज वि वि र वि वि वि र वि र वि ज ल वि ज ज वि य ज र य ज ज य ज य ज ज य ज ज वि ज ज ज वि ज वि ज य वि ज य य ज वि य वि __ य य य य य य य ज य य य ज य ज य ज य य ज रमणिकविजय | ७९ महिमाविजय विवेकविजय ७९ सुबुद्धि हंस सोम पुण्य जयानन्द विजय विजय विजय विजय विजय ७९ हर्षविजय । सौभाग्यविजय चरणविजय ८० करविजय ७९ हेमविजय नरोत्तमविजय त्रिलोचनविजय लावण्यविजय FFFFFFFFFFFFFFF555555555555555555555555555555 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555555555555555555555555555555 ७२ शांततपोमूर्ति आचार्य श्रीविजयसिद्भिसूरीश्वरजी महाराज ( अनुसंधान पार्नु ९) [१९] ७३ ऋद्धिविजय विनयविजय प्रमोदविजय | ७४ संपत मुकि विजय विजय आ. श्रीविजय भद्रसूरिजी पं. श्रीमेह विजयजी पं. श्रीरंगविजयजी आ. श्रीविजय केसरविजय ७३ मेघसूरिजी राजविजयजी कल्याण सौभाग्य रामविजय विजय विजय कुशलविजय s लावण्यविजय चारित्रविजय । । । । । । । ७५ पं. श्रीसुन्दर पं. श्रीभानु अ र सं मि ला आ ज विजयजी विजयजी शो । क ण म वि वि द क अरुण वि क वि ज ज वि वि विजय ज वि ज य य ज ज य ज य य य य । महेन्द्रविजय दोलतविजय जंबुविजय 而时间可可 ७५ चरण नवल विजय विजय करणा विजय ७७ हर्षविजय रंजनविजय प्रीतिविजय भूषणविजय । । । ७४ उ.श्रीमनोहर सुमित्र विचक्षण सुबोध सुभद्र देवेन्द्र सुजस जस अक्ष्ण भुवन विजयजीगणी विजय विजय विजय विजय विजय विजय विजय विजय विजय सुमतिविजय सुशीलविजय विमलविजय मनकविजय विद्याविजय ७५ महोदयविजय कुमुद विजय ... भद्रंकर मलय विबुध हेमेन्द्र विजय विजय विजय विजय विजय ७६ मृगांकविजय נותנתתתתתתתתתתה #555559NEHAFFIEFFEE9555599359599FFEEHEN Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5555555555555555555ऊऊऊऊऊऊ5555555555555555) ६७ श्रीमयासागरजी (अनुसंधान पार्नु .) गौतमसागर नेमसागर शवेरसागर रविसागर ७. शैलाना नरेश प्रतिबोधक आगमोद्धारक आ. श्रीसागरानंदसूरिजी सुखसागर भा. श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी (जुओ पार्नु २१) गणी 2 3 4 4-- aap~ उ.माणिक्य पं.विजय पं. मति मोतीसागर पं. क्षमा क मा ज में चं हे झा गु च चं चि प सू म सू वि का चे अश्रु सामर सागर सागर सागर ल्या न य य म न ण तु दो दा म यो हे न्ति प 6 त रतन गणी ण सा सा ल सा सा सा सा र द नं सा द न्द्र न्द्र म सा क णो सा सागर सा ग ग सा ग ग ग ग सा य द ग य सा सा सा ग सा द ग ग र र म र र र र ग सा सा र सा ग ग ग र ग य र केसर जयंत मनहर र ग ग ग र र र र सा सागर सागर सागर अमरेन्द्र र र र । सामर सौभाग्यसागर ललित लोक्य संजम रमणिकसागर सागर सागर सामर देवेन्द्रसागर हीरसागर धर्मसागर सुबोध हंससामर सागर । चंदन बुद्धिसागर लब्धि प्रबोध जनक प्रवीणसागर सागर सागर सागर सागर महोदयसागर अभयसागर नरेन्द्रसामर मुनीन्द्रसागर क्षेकरसागर । । । । । । । । अमृतसागर, जितसागर मलय लक्ष्मी विनय चारित्र मृगांक गौतम कीर्ति धीर न्यायसागर दर्शनसागर | सागर सागर सागर सागर सागर सागर सागर सागर मुक्तिसागर देवसागर ७५ शान्तिसागर 555555555555555555555555555555555555 ७४ महिमासागर Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ ७३ तपस्वी ७१ योगनिष्ठ आ. श्रीबुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज ( अनुसंधान पानुं २० ) ७२ आ. श्रीअजितसागरसूरि आ. श्रीऋद्धिसागरसूरि पं. श्रीकीर्तिसागर नरेन्द्रसागर I ७४ राजेन्द्र सागर हेमेन्द्र सागर I भानु सागर I समता सागर ५७ श्री ऋद्धिविमल ५८ कीर्ति विमल वीरविमल महोदयविमल प्रमोदविमल मणिविमल उद्योतविमल दानविमल ६५ पं. श्रीदयाविमल सौभाग्यविमल 1 4. श्रीमुक्ति विमल 1 पं. श्रीमहेन्द्रविमल पं. रंगविमल पं. रविविमल बन कविमल पुण्यविमल मुनींद्रविमल हर्षविमल 1 ७० प्रेमविमल 1 लक्ष्मी हरख सागर सागर अनुसंधान पार्नु ७ ) अमृतविमल 1 पं. श्रीहिंमतविमल हंसविमल न्यायविमळ 1 मनहरविमल पद्मविमल कस्तुरविमल करुणा सागर जितेन्द्र सागर शांतिविमल 1 [२१] जयसागर T महिमा सागर प्रेमविमल कल्याणविमल रस्नविमल 5 5 5 5 5 555555555555555555555555 95 95 95 95 95 95 ! 94 95 96 95 95 95 95 955555555555 S S S S S S S S S S S S S S S S S 95555555555555 15 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4 5E5555555555555555555555) [२२] पूज्य मुनिराज श्रीमोहनलालजी महाराज । पं. हर्षमुनि प्र. श्रीकान्तिमुनि श्रीदेवमुनि श्रीउद्योतमुनि नवनि मयमुनि कल्याणमुनिक कल्याणमुनि पं. श्रीहीरमुनि ___ __ पं. श्रीहोरमुनि आ. श्रीजयसूरिजी पद्ममुनि चतुरमुनि सौभाग्यमुनि पं. श्रीक्षान्ति सिद्धिमुनि मुनिजी प्रतापमुनि तमुनि पं. श्रीकनकमुनिजी प्रधानमुनि दान मुनि पुष्पमुनि निपुणमुनि भक्ति मुनि कीर्तिमुनि चेतनमुनि गजेन्द्रमुनि ललितमुनि परणेन्दमुनि नोट:---आ पेज उपर आपेला नकशा माहेंनां नामोनो समुदाय प्रथम खरतरगच्छनी क्रिया करवावाको हतो, पण पाछळथी ते तपगच्छनी क्रिया करवा लाग्यो अने हाल पग तपगच्छनी क्रिया करे छे, अने तपगच्छनो समुदाय कहेडावे छे. अमुक मुनिराजोना गुरुओ खरतरगच्छमा रहेला होवाथा तेओनां नागो तेओना दादागुरुना शीघ्य तरीके लख्यां छे. -- संपादक Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MINIDI HI MAITR |[] चीत्र (२३) विभाग MIDC MINORMATI IN AMUNICIAT In चीत्र नं. ६ चीत्र नं. ५] आ. श्री विजयकेसरसूरिजी आ. श्री विजयकमलसूरीश्वरजी MEDIA आनंद प्रेस-भावनगर AIRTILI-TAIT JI-TI IRANIPRIMAIL IMAITARATI MARATI MAHITI MAMI IR-MIR IMATILI-man- m e -minHe-mmen Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीत्र नं. ७ मुनि श्री. मोहनलालजी. चीत्र नं. ८ मुनि श्री. हर्षमुनिजी. चीत्र नं. १० आ. श्री. विजयानंदसूरीश्वरजी. चीत्र नं ९] आ. श्री. बुद्धिसागरसूरिजी (वीरभक्त विरेश ना सौजन्यथी) आनंद प्रेस-भावनगर. Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीत्र नं. ११ चीत्र नं. १२ 5 आचार्य महाराजश्री १००० श्रीमद् विजयदान सूरीश्वर जी. पूज्य मुनिमहाराजश्री विनयविजयजी आनंद प्रेस-भ.. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 验二三三三三三()==變=一變二二營。 有了, चीत्र नं. १३ 替中小学中中中中中中从 經中中中中韓中中中中 जगद्गुरु श्री. हीरविजयसूरिजी. . HIG可可(III) 節= 印了列一列. 三節三三警三二警二二三二验。 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -(२७) PE चीत्र न. १५ चीत्र नं. १६ मुनि म. श्री वृद्धिविजयजो आ. श्री विजयधर्म सूरीश्वरजी आनंद प्रेस-भावनगर Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीत्र नं. १७ मुनि म. श्री हंसविजयजी आनंद प्रेस- भावनगर. ( २८ ) * 5 चीत्र नं. १८ श्रीम બજાજ 155 स्वर्ग-॥ २६४ श्रीमद् चारित्रविजयजी ( कच्छी ) ****************** Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ******* ****** •***** अनंद प्रेस-भावनगर. ( २९ ) चीत्र नं. १९ महायोगीराज श्री बुद्धिविजयजी. **AK KR Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ in Education International 16561466 चीत्र नं. २० आ. श्री विजयकमलसूरीश्वरजी ( पंजावो ) आनंद प्रेस-भावनगर, ३०) १४ चीत्र नं. २१ 15 जबकी पं. श्री धर्मविजयजी Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्र नं. २२ तपगच्छाधिपति श्री मुक्तिविजयजी गणि. 卐 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10000 चित्र नं. २४ चित्र नं. २३ ICIC Lic " ન્યાતિ મુદ્રણાલય, ગાંધીઢ પાડાપાછા સામે અમદાવાદ OCC 000 ३२ मुनि महाराजश्री झवेरसागरजो. आ. श्री आनंदविमलसुरिजी. 57 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्रपरिचय विभाग श्री विजयकमलमूरीश्वरजी (गुजराती) (जुभो चित्र नं. ५) संवेगी साधुताना पालक, वडोदरा मुनिसंमेलनना आद्य प्रेरक अने प्रमुख श्री विजयकमलसूरीश्वरजी जैनसमाजमां अनेक रीते विख्यात छे. एमनो शास्त्राभ्यास, साधुओ परनो अद्वितीय प्रभाव अने शासन-हितैषिता आजे चिरंजीव छे. आवा साधुवर्यनो जन्म मूळ राधनपुरना पग वर्षोथी पाली ताणामां वसता कोरडीया कुटुंबमा थयो हतो. तेमना पितानु नाम श्री देलचंद नेमचंद हतुं ने मातानुं नाम मेघबाई हतुं. आवां आबरुदार, राजमान्य ने गर्भश्रीमंत मातापिताने घेर सं. १९१३ ना चैत्र सुद बीज ने सोमवारे चोथा पुत्र तरीके कल्याणचंदनो जन्म थयो. ___कल्याणचंदनो अभ्यास भावनगरमां थयो. वि. सं. १९२७ना जेठ वद पांचमना दिवसे पितानो स्वर्गवास थयो. पोताना भाईना प्रेर्या कल्याणचंदनो प्रेम धर्मपर दृढ थवा लाग्यो. तेटलामां पोताना भाई भाभीओना दुःखद स्वर्गवासे तेमां वधारो को अने तेमनो आत्मा वैराग्य तरफ ढल्यो. एवामां शा-तमूर्ति श्री वृद्धि चंदजी महराजनो समागम थयो ने वैराग्य दृढ थयो. आखरे अमदावाद पासेना गामडामां वि. सं. १९३६ना वैशाख वद ८ ना दिवसे तेओए दीक्षा ग्रहण करी. तेमनुं नाम कमलविजयजी राखबामां आव्युं अने तपगच्छाधिपति मूलचंदजी महाराजना शिष्य तरीके जाहेर थया. वडी दीक्षा अमदावादमा सं. १९३७ना कार्तिक वदी १२ना दिवसे थई. ___ मुनिजीए पोताना समर्थ गुरुवर्य पासे रही शास्त्रोनो अभ्यास शरु को. आ पछी तेओए एक या बीजा साधुओ पासे व्याकरण, न्याय, काव्य, कोषादिनो अभ्यास करवा मांड्यो. सूत्रसिद्धान्तना जाणकार श्री झवेरसागरजी पासे आगमो पण भणी लीधां. वि. सं. १९४५मां श्री मूलचंदजी , Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ महाराजनुं अवसान थतां समुदायनी सगवड साचववा योगोद्रहन करी तेओ सं. १९४७ना जेठ सुदी १३ ने दिवसे पंन्यास बन्या. पण तेमनी क्रियाशीलता ने विद्वत्ताथी जैनसंघ मुग्ध थयो हतो. तेओने अमदावादमां १० थी १२ हजारनी मानवमेदनी बच्चे सं. १९७३ ना महा सुद् ६ ने रविवारना रोज आचार्य पदवी आपवामां आवी. २ आ पछी ठेर ठेर विहार करता तेओ उपदेश आपना लाग्या. केटलाक ठेकाणेथी कुसंप दूर कराव्या. तेओ विद्याव्यासंग अने क्रियानी अभिरुचिवाळा हता. समाजनी शान्ति माटे तेमने पूरी लागणी हती. तेओश्रीए पांच चतुर्मास अमदावादमां, ६ पालीताणामां, ५ सुरतमां, ३ वडोदरामां, २ पाटणम, २ कपडवंजमां, तेमज धोराजी, महेसाणा, चाणस्मा, ऊंचा, लीमडी, वढवाणकेम्प, पादरा, मुंबई, पुना, एवला, बुरानपुरे, डभोई, बीजापुर, खेडा वगेरे शहेरोमा एक एक चतुर्मास कर्यु हतुं. वडोदरामां भरायेल मुनिसंमेलनना प्रमुखपदे बीराजी साधुसमाजनी अपूर्व शुद्धि जळवाय तेवा ठरावो कर्या हता. सं. १९७४ना वैशाख सुद १०ना तेओए स्वहस्ते सुरतमां पं. आनंदसागरजीने आचार्यपद आप्युं. अहींथी तेओश्री विहार करता बारडोली पधार्या. पण आसो सुद ४ ना इन्फ्ल्युएन्झा नामना तावे तेमना देह पर कबजो जमान्यो, अने आसो सुद १० ना रोज प्रतिकमण करतां कायोत्सर्ग करतां ओ स्वर्गे सीधाव्या. सूरिजीने पोताना भावीनो ख्याल प्रथमथी ज आवेलो होवाथी तेओ पोतानी नांधमां बधी सूचना करता गया हता. एवा दीर्घदर्शी महात्माओनां नाम आजे पण समाजमा अनेक रीते झळहळी रह्यां छे. श्रीमद् विजयकेशरसूरीश्वरजा (जुओ चित्र नं. ६ ) जैन समाजना श्रमणोद्यानमा अनेक, परम सौरभ भय फूलडां खोल्यां छे, अने ए फुलोना विश्व सुरभित बन्युं छे. आवां अनेक फूलडाओमानुं अनेरी फोरम फोरतुं एक पुष्प ते श्रीमद विजयकेशरसूरिजी ! ॐकारजापना पूरेपूरा रसिया, योगविद्याना अभ्यासी, तेमज गई कालना अने आजना युगने मार्गदर्शक थई पडे तेवी साहित्य श्रेणीना सर्जक ए सूरिजी गई काले जीवन्त हना, आजे अक्षर देहे जाग्रत छे ने आवती काले तेओ चिरंजीव छे. आवा चिरंजीव साधुपुरुषनो जन्म सं. १९३३ना पोष सुदी १५ ना दिवसे तीर्थाधिराजनी छत्रछायामां पालीताणा खाते थयो हतो. तेओनुं वतन काठियावाडमां बोटाद पासेनुं पाळीयाद गाम हतुं. तेमना पितानुं नाम माववजीभाई नागजीभाई हतुं ने मातानुं नाम पान हतुं, जेमनां पगलाथी Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष भाग्योदय थवाथी, ते लक्ष्मीरूपमा पलटाई गयुं हतुं. तेओ ज्ञातिए वीशाश्रीमाळो अने धंधे वेपारी हता. मातापिता धर्मना पूरा प्रेमी हता. एवा मातापिताने त्यां बाळक केशवजीनो जन्म थयो. केशवजीनुं मोसाळ पालीताणा हतुं. तेणे त्रण चोपडी सुधी अहीं अभ्यास कर्यो. सं. १९४०मां बधुं कुटुंब वढवाणकेम्पमा रहेवा आव्यु ने अहीं केशवजीनो छ चापडी सुधीनो अभ्यास थयो. पण तेटलामां काळनुं चक्र आयुं अने मातापितानो त्रण त्रण दिवसना आंतरे स्वर्गवास थयो. केशवजीन हृदय संसारथी धवायु ने वैराग्य भावना प्रबळ बनी. आ वखते तेमने वडोदरा खाते श्री विजयकमलसूरीश्वरजीनो मेळाप थयो अने सं. १९५०ना मागशर सुद १० ना दिवसे तेमनी पासे ज दीक्षा लीधी. गुरुजीए तेमनुं नाम श्री केशरविजय राख्यु. श्री केशरविजयजीए एक समर्थ गुरुनुं शरण स्वीकार्यु हतुं. तेमनी पासे वडोदरा अने सुरतमा रहीने तेमणे खूब अभ्यास कर्यो. ज्ञान विशाळ थतुं गयु. तेवामां तेमनुं मन योग तरफ दोरायु, अने जीवनभर योगप्राप्ति माटे गमे तेवां संकटो सहेवामां तेमणे मजा मागी छे. अनेक चमत्कारो तेमने ते द्वारा प्राप्त थयेला कहेवाय छे. ॐकारनो जाप तो पोते करोडोबार करेलो ने जे मळे तेने ते करवा उपदेश आपेलो. सं. १९६३मा सुरतमा तेमने गणीपदवी अपाई अने सं. १९७४गां मुंबईमां पंन्यासपदवीनो उत्सव थयो. आ पछी अचानक गुरुदेवनो स्वर्गवास थतां, तेमज स्वर्गस्थ गुरुदेवनी इच्छा मुजब पाछळनो बधो भार तेगने सेांपाता कार्यभार वध्यो. राजयोग जाणवानी इच्छा अहीं ज दबाई गई. पोताना समुदायतुं बंधारण करवा तेमणे वढवागकेम्पमा साधुसंमेलन भयु. आ पछी घणी दीक्षाओ तेमना हस्ते थई. तेमनी विद्वत्ता अने योगीपणानी ख्याति बधे प्रसरी वळी हती. धरमपुर स्टेट तथा बीजा राजाओ तेमना भक्तो बन्या हता. पारसी, मुसलमान, घांची, मोची तो तेमने पोताना ज हितैषी गणता. तेमना गुणोथी आकर्षाई तथा स्वर्गस्थ सूरिजीनी इच्छाने मान आपी सं. १९८३ना कारतक वदी ६ ना रोज तेमने आचार्य पदवो अपाई. आ प्रसंगे खूब महोत्सव, मानपत्रो तेमज लखाणो थयां हता. आ वखते पण तेमनी साहित्यलेखन-प्रवृत्ति चालू हती ने तेमना ग्रन्थो जैनजैनेतर समाजमां सारो आदर पा-या हता. तेमणे लगभग २० उपरांत पुस्तको नीति, धर्म, कथानक ने योगने अंगे लख्यां छे. वि. सं. १९८५ नुं वडाली- चतुर्मास पूर्ण करी तेओ तारंगाजी गया. अहीं गुफामां ध्यान अवस्थामां बेसतां शरदीए भयंकर हुमलो कर्यो, हृदयमां दर्द पेदा थयु ने आ दर्दे छेवटे प्राण लीधो. उपचार करवा अमदावाद उजमफईनी धर्मशाळामां लावतां केन्सरे देखा दीधो ने श्रावण वदी पांचमे Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ तो सूरिजीए तमाम त्याग करी ॐकारनो जाप शरु को अने जीवननी छेल्ली क्षणे पण ॐकार जपतां तेमणे कायाने विसर्जन करी. जैनसमाजमां क्षणवारने माटे शोकनी अमावास्या छवाई गई. छतां तेमनी पवित्रतानी पूर्णिमा तो आजे पण सदोदित छे. श्री मोहनलालजी महाराज (जुओ चित्र नं. ७) अलबेली मुंबई नगरीमा धर्मना अंकुर वाववानी पहेल करनार अने तेमांथी विशाळ धर्मवृक्ष बनावनार श्री मोहनलालजी महाराज जैन समाजमां जाणीता छे. __ तेओश्रीनो जन्म मथुराथी २० माइल दूर चांदपुर नामना गाममां ब्राह्मण कुलमा वि. सं. १८८७ना वैशाख सुद ६ ना रोज थयो हतो. तेमना संसारी पितानुं नाम बादरमल्ल अने मातानाम सुन्दरी बाई हतुं. मातापिताए पोताना आ लाडका पुत्रनुं नाम मोहनजी राख्यु. मोहनजी नानपणथी ज यतिवर्गना संसर्गमां आववा लाग्या. धर्मनी असर आ वखतथी ज थई. पिताए पुत्रनी इच्छा परखी यतिवर्य श्री रूपचन्दजी पासे रहेवा दीधो. नव वर्षनी नानी वयमां पंचप्रतिक्रमण, जीवविचार, प्रकरण आदिनो अभ्यास करी लीधो. वि. सं. १९०३मां तेओ यतिवर्थ साथे फरता फरता 'मगशीजी पार्श्वनाथ 'नी यात्राए गया. अीं तेओने दीक्षा आपी पोताना शिष्य जाहेर कर्या. अहीथी तेओए यतिवर्य साथे पूर्व देश तरफ विहार कर्यो ने यतिपणामां मुख्यत्वे ते देशमा ज विचरता रह्या. वि. स. १९१०मा यतिवर्य श्री रूपचन्दजी कालधर्म पाग्या. मोहनलालजीए खरतरगच्छीय श्री महेन्द्रसागरजी पासे रहीने शास्त्राभ्यास कर्यो. एकदा तेओ कलकत्तामा पधार्या त्यारे एक श्रावके प्रथम दर्शने वंदनने बदले प्रणाम कर्या. यतिजीना दिलमा आथी बहु मनोमंथन पेदा थयु. तेओने लाग्युं के साचा धर्मनी प्ररूपणा करवी जोइए. कलकत्ताथी विहार करी काशी वगेरे स्थळेानी मुलाकात लेता तेओ अजमेर आल्या. अहीं तेमणे स्वतः श्री संभवनाथ भगवाननी सामे सं. १९३१मा संवेगीपणुं स्वीकारी यतिपणानो त्याग को. तेओश्रीए प्रथम चतुर्मास पाली (मारवाड)मां कयु. आ पछी बीजां छ चतुर्मास मारवाडमां ज करी सातमुं चोमासुं जोधपुरमा कयु. अहीं तेमणे आलमचन्दजी, जशमुनि, कांतिमुनि, हर्षमुनि आदि साधु बनाव्या. ते पछी गूजरात तरफ प्रयाण कयें. ___ सं. १९४४नुं चतुर्मास तेओए अमदावादमां कयु. आ रखते तेमणे मुंबईना धर्मविहीन क्षेत्रनी दुर्दशा सांभळी. आवा महान शहेरमां जैनधर्मनी प्रभावना करवानी उत्कंठा जागी, ने वि. सं. १९४६मा सुरतमां चतुर्मास करी मुंबई तरफ बिहार को. वि. सं. १९४७ना चैत्र सुद ६ना Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष रोज तेओ भायखला आव्या अने त्यांथी लालबाग पधार्या. अहीं साधुओने उतरवावें स्थान नहातुं. उपदेश आपी तेमणे तेनी व्यवस्था करावी. आ चतुर्मास अत्रे ज कर्यु. आ पछी तेओ सुरत पधार्या. तेओ आ बधा क्षेत्रोमां धर्मबीज वावता गया, ने ज्यां जैनधर्मनो पूरो प्रचार नहोतो त्यां जैनधर्मने जाणीतो को. तेओए समस्त जीवन धर्मप्रभावना माटे वीताव्युं, पण तेमां मुंबई अने सुरत माटे जे अथाग श्रम सेव्यो ते चिरस्मरणीय छे. __आवा एक महान मुनिवर ७६ वर्षनी उंमरे सुरत मुकामे सं. १९६३ना चैत्र वदी १२ना रोज कालधर्म पाम्या. पं. श्री हर्षमुनिजी (जुओ चीत्र नं. ८) केटलाकोनुं जीवन सागरसम गंभीर होय छे. केटलाको नायगराना धोध जेवं क्रांतिकार जीवन जीवी जाय छे. ज्यारे केटलाकोना जीवनने सरितानी शांतिनी उपमा आपी शकाय छे. पंन्यास श्री हर्षमुनिजीना जीवनने आवा शान्त सरितानी उपमा आपी शकाय! ___मुनिजीनो जन्म प्रसिद्ध कच्छदेशमा मांडवी शहेरमा ओसवाल ज्ञातिमा सं. १९२४ना फागण मासमां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम वीरपालभाई अने मातानुं नाम लक्ष्मीबाई हतुं. मुख-कान्ति अने देहनी शोभाने लीधे मातापिताए तेमनुं नाम हीराचन्द राख्यु. लाडकोडमां उछरता हीराचन्द पांच वर्षनी उमरे निशाळे गया. व्यावहारिक ने नामामाना ज्ञान उपरांत धार्मिक ज्ञान तेमणे लीधु. पण आमां धर्मश्रद्वाए तेमना पर अजब असर करी. संसारथी तेओ उदासीन बन्या. एवामां बरकाणा तीर्थमा यात्रा करता प्रसिद्ध मुनिपुंगव मोहनलालजी महाराजनो समागम थयो. परिणामे सं. १९४४ना चैत्र सुदी ८ ने दिवसे खराडीमां तेओए दीक्षा लीधी. दीक्षा लीधी त्यारथी हर्षमुनिजी गुरु-सेवामां तल्लीन बनी गया. एने ज आत्मसाधना- परम साधन मान्यु. आ कारणे तेमने ज्ञान--प्राप्ति अने व्याख्यान-शक्ति पण सरस सांपडी. तेमनं व्याख्यान सूत्रानुसार ने मितभाषी होवाथी सुरत अने मुंबईना श्रावको ते माटे वधु उत्साही रहेता. सं. १९५७ना मागसर वदी २ ना दिवसे सुरतमां तेमने शुभ मुहूर्ते गणी पद आप्यु ने अषाड सुद ६ ने दिवसे मुंबईमां पंन्यास पद आप्यु, हर्षमुनिजी तो हजी पण गुरुभक्तिमा तल्लीन रहेता. एटलामां सं. १९६३मा गुरुदेवनो स्वर्गवास थतां आखा संघाडानो भार मुनिजीने हस्तक आव्यो, सुरतना संघे तेमने ते ज पाटे बेसाडी चतुर्मास त्यां ज कराव्यु. ____ आ पछी पं. श्री हर्षमुनिजीए धर्मसाधनामां पोतानुं वधु चित्त परोव्यु. पंचतीर्थी, समेतशिखर, वगेरेना संघो कढाव्या, तेमज पोणा लाख रुपियानुं फंड एकटुं करावी मुंबईमां गुरुस्मारक तरीके Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ श्री मोहनलालजी जैन सेन्ट्रल लायब्रेरी तथा संस्कृत पाठशाळानी सं. १९६६ना महा वदी १० ना दिवसे स्थापना करावी. ___ आम धर्मप्रभावना वधतां जनताए तेमने सूरिपद स्वीकारवा विनति करी, पण तेमणे पोतानी लघुता जाहेर करी तेनो अस्वीकार को. जीवनभर साधुओ वधारवामां, ज्ञानाध्ययनमां, धर्मप्रभावनामां एमणे काळक्षेप को. सं. १९७४ ना वैशाख वद ६ ना सवारना नववागे तेओ कालधर्म पाग्या. तपगच्छनी ज समाचारी पाळता पंन्यासजीए पोताना गुरुना समुदायने जीवननी छेल्ली पळ सुधी साचाव्यो, ने धर्ममय जीवन गूजारी शासनने शान्त सरिताना दृष्टान्तरूप बन्या. योगनिष्ठ श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजा ( जुओ चित्र नं. ९) योगनिष्ठ विशेषणथी एके एक जैनसंतानमां जाणीता, प्रखर अध्यात्मप्रेमी, समर्थ साहित्य रचयिता श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी जैनसमाजमां अक्षरदेहे आजे पण अभर छे. जैनो अने जैनेतरोमां आजे तेओ पूजाय छे. तेमनुं साहित्य गूजरातनी नानी मोटी दरक कोममां वंचाय छे. एवा समर्थ योगी पुरुषनो जन्म घडोदरा राज्यना वीजापुर गाममां कणबी पाटीदारने त्यां वि. सं. १९३० ना महा वदी १४ ना रोज थयो हतो. तेभर्नु संसारी नाम बहे चरदास हतुं. तेमना पितानुं नाम शिवजी भाई अने मातानुं नाम अंबाबाई हतुं. पितानो घंधो खेतीनो हतो. पण माता ज्यारे वैष्णव धर्मनां पूजारी हता, त्यारे पिता शिवभक्त हता. पुत्रने बंने धर्मनो परिचय अवारनवार थतो. मातापिताना धर्मीपणानी छाप एटली प्रबळ हती के तेमना घरनो पाळेलो कुतरो पण अगीयारश करतो. बहेचरदासने, कुतरानो आटलो धर्म प्रेमी देखी, धर्म पर श्रदा जामी. तेओ बागा, यति, पुराणी के फकीरना पूजारी बन्या. एक साईए. तो केवळ ललाट तरफ ताकी का: 'तेरे दिलमें खुदाका प्रकाश होवेगा, तुं खुदाका बंदा होगा.' स्वास्थ्य नानपणथी ज सारं. भलगला बळिया साथे टक्कर ले ! स्मरणशक्ति अने ग्रहणशक्ति पण तेटली अजब. गुजराती छ चोपडी, इंग्लीश बे चोपडी, कंइक उर्दु ने मराठी अक्षरोनो अभ्यास को. आ वखत सुधी तेओ खास जैनतत्त्वज्ञानथी अजाण्या हता. तेटलामां श्री रविसागरजी महाराजनो तेमने परिचय थयो. आ परिचय गाढ थयो ने जैनधर्म तरफ तेमनी श्रद्धा वधी. उपाश्रममा जq शरु कयु. धार्मिक शिक्षक रविशंकर शास्त्री हता. तेमणे बहेचरदासने रात्रीभोजन अने डूंगळी त्याग कर्या पछी अभ्यास कराववानुं कडं. घेर रसोइ राते ज थाय, पण धर्मनो प्रेम एटलो गाढ थयेलो के सांजे रोटलो ते मरचुं ज खाई चलावी ले, पण अभ्यास न छोडे ! ध्रुव अने प्रहलाद थवानां स्वप्नां तेमणे नानपणथी ज आवतां. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ श्रमण वंशवृक्ष जैनधर्म प्रत्ये तेमनो प्रेम गाढ थतो जतो हतो. तेओसामायिक, पोषह ने पडिकमणां करता थया हता. हवे कमावानो समय आवतां तेमणे वकीलात करवानो विचार को पण ते जीवन तरफ तरतमा ज अरुचि पेदा थई. आखरे आजोल गाममा धार्मिक शिक्षकनी नोकरी स्वीकारी. आ नोकरीमा तेओ जैन तत्त्वज्ञान अने शास्त्राध्ययनमां ऊंडा उतरी शक्या. परिणामे वि. सं. १९५७ना मागसर सुद ६ना रोज पालणपुर मुकामे तेमणे श्री सुखसागरजी महाराज पासे दीक्षा स्वीकारी, तेमनी साधुता अजब हती. रसेन्द्रिय उपरे खूब काबू हतो. चाहनो तो जीवनभर स्वाद को नहोतो. विहार पण उग्र करता. पत्रद्वारा पण स्त्रीना परिचयमां न आवता. वांचनना तो एटला रसिया के लगभग २५००० पुस्तको तेमणे यांच्या हता, ने दीक्षा लेता सुधीमां लगभग सो वार श्रीमद देवचंद्र कृत 'अध्यात्मसार' वांच्यो हतो. जैनेतर साहित्य सामे मुकी शकाय तेवु चालू भाषानु साहित्य जैनो पासे नहोतुं. तेओए ते खोट पूरी करवा पण लीधुं हतुं. ज्ञानमंदिर अने गुरुकुलोना ते पाका हिमायती हता. कोई ते कार्य करतुं तो तेमां मदद करता. पोते पण उपदेश करीने बोर्डीगो ने पाठशाळाओ स्थापन करावता. जोतजोतामा समाजमां तेमनी कीर्ति प्रसरी रहो. परिणामे वि. सं. १९७० ना मागसर सुद्र १५ना दिवसे तेमने आचार्य पदवी आपवामां आवी. हितोपदेश द्वारा जन समुदायतुं भलं करवा साथे तेओ गूर्जरी गीरामां पुस्तको लखवानी सतत महेनत कर्या करता, अने आनुं ज कारण छे के तेमणे लगभग सवासो जेटला अपूर्व ग्रंथो जैनसमाजने चरणे धर्या, आमां पण लाला लजपतराये जैनधर्म माटे लखेल आक्षेपक ग्रंथनो जवाब आपता 'लाला लजपतराय अने जैनधर्म' नामक ग्रंथ बहार पाडी तेमणे केटलाय बहेमोनु निरसन करी सत्य तत्व- दर्शन कराव्यु हतुं. तेमज जैनतत्त्वज्ञानने लगतां जैनसूत्रमा मूर्तिपूजा, शिष्योपनिषद् , जैनदृष्टिए इशावास्योपनिषद् भावार्थ विवेचन, कर्मयोग, परमात्मज्योति, कर्मप्रकृति, धार्मिक गद्यसंग्रह वगेरे बहार पाडी जैनसाहित्य-समृद्धिनो डंको बगाड्यो हतो. सूरिजीए वीजापुरमा एक ज्ञानमंदिर पण स्थपाव्यु हतुं. साधुओ माटेना गुरुकुळनी तेओनी बहु भावना हती. तेओश्रीनो देह पहाडी हतो. तेमना हाथ ढींचण सुधी पहोचता ने ज्योतिषिओ कहे छे के, तेमना हाथपगनां आंगळामां १८ चक्र हता. ज्योतिष कहे के न कहे, तेओ महाभाग्यशाली ने प्रतापी हता. तेमनां कार्यो आजे तेमनी चिरंजीव कीर्तिने बहार पाडी रह्यां छे. जैनना साधु बन्या छतां तेओ मुसलमान, ठाकरडा के हरिजनोना गुरु नहोता मट्या. पशुपंखीओ पर तेओ तेटलं ज वहाल राखता. एमनी योगीनी दृष्टिमा सहु समान हतां. Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ आवा, जैनसाधुसमाजरूपी नभोमंडळभां अपूर्व तेजे झळहळी रहेला सूर्यनो वि. सं. १९८१ना जेठ वदी ३ ने दिवसे ५१ वर्षनी वये वीजापुरमा स्वर्गवास थयो. मानवीनी काया जाय छे, पण कीर्ति जती नथी. पंडितवर्य श्री लालचंद्रना शब्दोमां कहीए तो.... ___“जैनसमाजे पोतानो एक अद्वितीय प्रतिनिधि, असाधारण सुभट, उच्चकोटीनो महापुरुष, एक उत्तम योगी, शुभेच्छक संत, अविरत उद्योगी, श्रेष्ठ कवि, शासननो अप्रतीम भक्त, जैनशासननो भानु, साहित्यनो एक विशिष्ठ विलासो, अध्यात्मज्ञाननो अपूर्व निधि, निस्पृही छतां शासन-दाझ धरावनार, सद्गुण मंडित, विचक्षण बुद्धिनो सागर गुमायो." श्री विजयानंदमूरिजी (आत्मारामजी)। (जुओ चित्र नं. १०) 'महानुभावो ! शान्त थाओ ! धैय धरो, पंजाबना पुण्य जागशे त्यारे मारा करताय वधु प्रतापी ने पंडित पुरुष तमने मळी रहेशे !' तमोमूर्ति बुट्टेरायजी महाराजना आ समर्थ शब्दानो साक्षात्कार ते श्री विजयानंदसूरिजी---प्रसिद्ध नाम आत्मारामजी. बहुश्रुततानी बृहद्गंगा जैनसमाजमां बहेवडावनार ए समर्थ मुनिपुंगानो जन्म पंजाबमा जेलम नदीना किनारे कलश नामना गोममां गूजराती वि. सं. १८९२ना चैत्र शुद एकमने गुरुवारने रोज थयो हतो. पिता गणेशचंद्र सिपाहगीरी माटे पंकाता कलशजातिना सरदारोमां दीवानकुळना अढीघरा कर्पूर ब्रह्मक्षत्रिय हता. मातानु नाम रूपादेवी हतुं. शोग्वधर्ममां माननारां पतिपत्नीए पुत्रजन्मोत्सब पण ए रीते उजवेलो. पिता गणेशचंदनी राजसी महत्वाकांक्षाओ बहु विशाळ हती. पण नसीबे यारी न आपी. सरकारी नोकरीमाथी ए बहारवटे चढ्या, त्यांथी आग्राना किल्लामां केद थया ने एक दहाडो .एक गोळीनुं तेओ निशान बन्या. माता रूपादेवी पोताना नाना-बीजना चंद्रजेवा रूपाळा पुत्रने लई पतिना मित्र जोधमल ओसवालने त्यां जीरागामे गई. जोधमले आश्रय आपी दित्ताने भणाववा मांड्यो. जोधमल जैन हतो ने तेने त्यां स्थानकमार्गी साधुओनो आवरो जावरो रहेतो. दित्तो आ साधुओना परिचयमां आव्यो, धार्मिक संस्कारोए प्रबळ प्रभाव पाड्यो ने जोधमलनी घणीय वैभवी लालचोने अळगी करी वि. सं. १९१०मां पंजाबना मालेरकोटडामा तेणे स्था. दीक्षा ग्रहण करी. अहीं तेमनुं नाम आत्मारामजी रखायु. आत्मारामजीनी अभ्यासशक्ति अपूर्व हती. रोजना ३०० श्लोक कंठस्थ करवा तो रमतवात. स्थानकमार्गी समाजनी तमाम शास्त्रसंपत्ति तेमणे मेळवी लीधी. पण तेमनो ज्ञानभूख्यो आत्मा वधु Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष मागतो हतो. एमणे संप्रदायजी दुहाईनी परवा न करतां आगळ अभ्यास चलाव्यो. पण एनु परिणाम विलक्षण ओव्यु. स्था० संप्रदाय परथी तेमनी श्रद्धा हटी गई. अनेक आपत्तिओ सामे थई तेओ वि. सं. १९३१मा २० साधुओ साथे संप्रदायथी जूदा पड्या ने पंजाबमां सद्धर्मनी प्ररूणता करवा लाग्या. ___जिनमूर्ति, जिनमंदिर ने शास्त्रनी साची प्ररूपणा करता सहु साधुओनी इच्छा शत्रुजय-गिरनार वगेरे तीर्थोनी यात्रा करवानी थई. अने इ. स. १९३२मां गूजरात माटे प्रयाण आदर्यु. अमदावादमा ते वखते परम प्रतापी बुटेरायजी महाराजनी हाक वागती. आत्मारामजी महाराजनुं अमदावादे अभूतपूर्व स्वागत कयु. यतिवर्ग अने बीजा उत्सूत्र प्ररूपको सामे आत्मारामजीए जबरी जेहाद जगवी. वि. सं. १९३२मां तेओए श्री बुटेरायजी महाराज पासे संवेगी दीक्षा स्वीकारी. साथेना १५ साधुओ तेमना शिष्य थया. वि. सं. १९३३नु चतुर्मास भावनगरमां करी तेओ पुनः पंजाब तरफ गया. सं. १९३७र्नु चतुर्मास गुजगनवालामां कयु. अहीं तेमणे 'जनतत्वादश' नामक सुन्दर गन्थनी रचना करी. हेर ठेर नवा जैनो बनाव्या, नवां जिनमंदिरो स्थाप्यां. अनेक शास्त्रार्थो करी परमतवादिओने परास्त कर्या. आम पांच वर्ष सुधी पंजाबने खेडी तेओ पुनः सं. १९४०मां गूजगत तरफ पाला वळ्या, अने ते चोमासु बीकानेरमा कयु. गूजगतमां आवीने नगरशेठ प्रेमाभाई अने शेठ दलपतभाईना पूर्ण सहकारथी १५० जेटलां सुन्दर जिनबिम्बो पंजाबमां मोकल्यां. पालीताणानी यात्रा करीने पाछा फरतां खंभातना प्राचीन भंडारोए एमना विद्याव्यासंगी दिलने खूब आकष्यु. अहीं एक मासनी स्थिरता करी. 'अज्ञानतिमिरभास्कर' नामनो महत्त्वनो ग्रंथ आ वखते रचायो. अहींथी तेओ सुरत गया ने चतुर्मास पण त्यां कयु. सुरतमा लाडुआ श्रीमाळीने संघमां लेवानी तेमणे हिलचाल उपाडी तेमज बीजां अनेक सुंदर कार्यो कयां. चतुर्मास पूर्ण थतां तेओ भरुच, वडोदरा, उमेटा, बोरसदना रस्ते थई अमदावाद आव्या. मुंबई पधारवानो खूब आग्रह हतो, पण क्षेत्रस्पर्शना ज नहोती. आ वेळा पालीताणाना झगडान समाधान थवाथी तेओश्री पालीताणा पधार्या अने त्यां ज चतुर्मास कयु. जैनसमाजमां तेमनो शासनप्रेम अने विद्वत्ता जाहेर थई गयां हता. जेना परिणामे पालीताणामां ज तेमने खूब मोटा ठाठमाठथी आचार्यनी पदवी अपाणी. संवेगी दीक्षानुं नाम आनंदविजयजी हतुं एटले विजयानंदसूरि तरीके ओळखाया. सं. १९४४नु चतुर्मास २२ साधुओ साथे राधनपुरमा कयु ने अत्रे पंजाबकेसरी श्री विजयवल्लभसूरिजीने दीक्षा आपी. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० श्री तपगच्छ सं. १९४५ना महेसाणाना चतुर्मासमां तेमणे घणां सुंदर कार्यो कयां. अत्र 'जैनप्रश्नोत्तर' नामक सुंदर ग्रंथनी रचना करी. तेमज युरोपीयन विद्वान डॉ. होर्नल साथे पत्रव्यवहार शरु को. अहीथी जोधपुरमा एक चतुर्मास करी तेओ पुन: पंजाब पधार्या. हवे तेमणे पंजाबमां जिनमदिरो स्थापन करवानु कार्य जोसभेर उपाडयु. प्रथम प्रतिष्ठा मालेरकोटडामां थई. बीजी अमृतसरमां थई. आ वेळा तेमणे केटलाय खर्चाळ रिवाजो ओछा कराव्या. धीमे धीमे तेमनी कीर्ति बधे प्रसरतो जती हतो. आ वखते चिकागो शहेरमां भराती 'विश्वधर्म परिषद ' मां तेमने पधारवान निमंत्रण मळ्यु. साधुआना कडक आचार-विचार मुजब तेमनुं जq अशक्य होवाथी जैन ग्रेज्युएट श्रीयुत् वीरचंद राधवजीने त्यां मोकलवा माटे तैयार कर्या अने पोतानी पासे राखी जैनतत्वोनो पूरो अभ्यास करावराव्यो, तेसज 'चिकागोप्रश्नोत्तर' नामक पुस्तक तैयार कयु. श्री वीरचंद राघवजी गांधीए परिषदमां जई सूरिजीनी भावनाने सफळ करी. पूरिजी अमृतसरथी जीरा पधार्या. अहीं केटलीय प्रतिमाओने अंजनशलाका करी. अहींथी तेओ हाशियारपुर गया अने सुवर्ण जिनमंदिरना स्थापना करी. घगी प्रतिष्ठाओमां सौथी छेल्ली प्रतिष्ठा तेमणे सनखतरानी करी. सूरिजीना जीवनमा डगले ने पगले भनभीरता जोवाती. पोतानी कोई भूल थाय तो तरत खमानी लेता. क्रोषनी पळ आवे त्यारे शान्ति धारण करता. जेयो तेमनो सशक्त देह हतो, आत्मा पण तेवो सशक्त हतो. वादशक्ति प्रचंड हती अने युक्ति अने दलीलोना तो तेओ भंडार हता. आर्यसमाज स्थापक स्वामी दयानन्द साथे पण तेमणे शास्त्रार्थ करवानुं नक्की कयु हतुं पण स्वामी दयानन्दनुं मृत्यु थतां शास्त्रार्थ न बनी शक्यो. तेओ अप्रतिबद्ध बिहारी हता एकी साथे बे चतुर्मास क्यांय न करता, तेमज विहारमा पोतोना वाचन-मनन साथे शिष्योने पण भणावता. पाश्चात्य विद्वानो पर तेमनी अजब छाप पडी हती. डॉ. ए. एफ. रुडोल्फ होनले सम्पादित करेल — उपासक दशांग 'नी प्रस्तावनामां सूरिजी माटे जे शब्दो लख्यो छे, ए ते वातनी पूरी प्रतीति करावे छे. तेमनी साहित्य सेवा पण खूब विशाळ छे. जैनसमाजमां बहुश्रुततानी गंगा बहेवडाववानुं प्रथम मान तेमने ज घटे छे. तेमणे तत्वनिर्णयप्रासाद, जैनतत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर, चिकागो प्रश्नोत्तर, सम्यक्त्वशयोद्वार, जैन प्रश्नोत्तर, नवतत्त्व संग्रह, आत्मविलास, आत्मबाबनी, जैनगतवृक्ष, चतुर्थस्तुति आदि ग्रन्थोनी रचना करी छे. मूरिजीन संपूर्ण जीवन क्रान्तिकार ने धर्म-प्रेमथी भरपूर छे. आ ने आ लगनीगां सनखतगनी प्रतिष्ठा पछी तेमनी तबियत लथडी. तेमां पण एक बखत पाणी न मळतां छाशथी चलाब, पडयु. आ कुपश्य थयु ने रोग वधी गयो, Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ श्रमण वंशवृक्ष सं. १९५३ ना जेठ सुदी आठमनी सांजनुं तेमनुं प्रतिक्रमण छेल्लुं प्रतिक्रमण बन्यु. मधराते तेओ जाग्रत थई शौच जई आवी हाथ पग धोई आसन पर बेसी गया. अर्हन् अर्हन् शब्द तेगना मुखमांथी सरी रह्या हता. शिष्य समुदाय वगेरे आसपास वीटळाई वळ्यो हतो. थोडी वारे तेओए कह्यु: भाई, अब हम चलते हैं, सबको खमाते हैं.' आ पछी थोडीवार अर्हन्नी धूनमा रह्या ने ते ज शब्दो बोलतां स्वर्गवाम सीधावी गया. सदेव, सद्गुरु ने सद्धर्मनी प्ररूपणाने जीवन-कर्तव्य समझनार शासननो साचो सितारो अदृश्य थयो. श्री विनयविजयजी महाराज ( स्थवीर) (जुओ चित्र नं. ११) आत्माना उद्धारना रसिया सदा विषयकीचथी अळगा रहेवा मथ्या करे छे. विषयकीचनो जरा जेटलो स्पर्श न थाय तेनी सावधानीमा रहे छे. पण बीरला ज संसारना कीचमां पड़ी तेमांथी बहार नीकळा पोतानो उद्धार साधी ले. छे स्थवीर श्री विनयविजयजी महाराजनी गणतरी एवामां गणी शकाय. तेमनो जन्म काठियावाडना अलबेला शहेर जामनगरमां वीशाश्रीमाळी ज्ञातिमा वि. सं. १९१४ना मागशर सुदी १३ ने दिवसे थयो हतो. तेमना पितानुं नाम शाह देवजी लाधा हतुं ने मातानुं नाम चोथीबाई हतुं. ओधवजीने वे भाई अने चार बहेनो हती. बाल्यावस्थाथी ज औषवजीना संस्कारो बहु धार्मिक हता. योग्य उमर थतां लक्ष्मी रळवा तेओ मुंबई गया. अहीं सत्यनिष्ठाए ठीक कमाया. त्यांथी पुनः जामनगर आवी जमनाबाई नामनी सुकन्या साथे पाणीग्रहण कयु. संसारना बधा रागरंगमां पड्या हता, पण वैराग्य भावनानो दीपक तेटलो ज सतेज झळहळी रह्यो हतो. साधु अने साधर्मिक पूजाना ते पूरा रसीया हता. फरीथी मुंबई जबान थतां तेओ पूज्य मोहनलालजी महाराजना परिचयमां आव्या. धर्म उपरनी प्रीति गाढ बनी. पत्नी जमनाबाईने पण ए धर्मरंग लगाड्यो अने दंपतीए ब्रह्मचर्य व्रत धारण कयु. आ पछी जामनगरमां तेमने श्री उद्योतविजयजी तथा प्र. कान्तिविजयजी महाराजनो संसर्ग थयो. संसारना कोचमांथी संपूर्णपणे नीकळी जबानो विचार को. ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर्य साडा छ वर्ष व्यतीत थवा आव्यां हता. तेमणे सगांवहालां अने पत्नीनी रजा मेळवी वि. सं. १९५५ना वैशाख सुद ६ना रोज मोटी धामधूमपूर्वक मुनिराज श्री उद्योतविजयजीना शुभ हस्ते पं. श्री कमलविजयजी ( आ. श्री विजयकमलसूरिजी )ना शिष्य तरीके दीक्षा लीधी. Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्री तपगच्छ वि. सं. १९५५ नुं चतुर्मास जामनगरमां करी तेओ पालीताणा गया. अहीं बीजं चतुर्मास कर्यु. अहीश्री सं. १९५७मा महेसाणा खाते पं. श्री कमलविजयजी महाराजना हस्ते वडी दीक्षा लीधी, आ पछी गूजरात काठियावाडमां विहार करी सं. १९५९ नुं चोमासु जामनगर कयु. आ वेळा कच्छमांथी स्थानकवासी दीक्षा छोडी आवेला श्री चारित्रविजयजी (कच्छी) तेमने मळ्या. पहेली ज मुलाकाते तेमना पर सुंदर असर करी. तेमणे संवेगी दीक्षा तेमनी पासे लीधी. आ पछी देवचराडीमां तेमने पोताना गुरुमहाराज समक्ष बडी दीक्षा आपी. आ पछी तेमणे अनेक चतुर्मास गूजरात काठियावाडमां कयीं. तेओ ध्यानी अने अध्यात्मप्रिय हता. शांतिनी तो प्रतिमूर्ति हता. उपदेश केवल वैराग्य रंगथी रंगाएलो आपता. सं. १९८३ मां तेमने स्थवीरपद आप्यु. आ पछी तेओ सं. १९८८मां कालधर्म पाम्या. तेमनी ज्ञानप्रियता छेल्ली घडी सुधी एक सरखी रहो हती. 'भावना भूषण' नामनो वैराग्यनो ग्रंथ तेमणे लखेलो छे. श्रीमद् विजयदानसूरिजी (जुओ चित्र नं. १२) अपूर्व ज्ञानप्रियता, असाधारण विद्वत्ता अने कठोर व्रतपालन, आ त्रिवेणी संगमना दृष्टान्तभूत श्रीमद् विजयदानसूरिजी आधुनिक श्रमणताना इतिहासमां अग्रगण्यमांना एक छे. तेओश्रीनो जन्म वि० सं० १९२४ ना कारतक शुक्ला चतुर्दशीए शंखेश्वर तीर्थथी सात कोश पर आवेला झींझुवाडा गाममां थयो हतो. तेओ ज्ञाते दशाश्रीमाळी हता. पितानुं नाम, जुठाभाई अने मातानुं नाम नवलबाई हतुं. तेओश्रीनुं संसारी नाम दीपचंद हतुं. दीपचंदने मातापिताए सात चोपड़ी भणावी. आ पछी दीपचंद धीरे धीर आसोस्टंट मास्तरनी नोकरीमांथी पोलीस पटेल बन्या. अहीं सुंदर कारकीर्दी सांपडी. मातापिता तरफथी दीपचंदने खास धर्मसंस्कारो न मळ्या, पण एक मित्रना उपदेशथी एना हृदयने वैराग्यनो रंग लाग्यो. आ रंग दिवसो जतां गाढो बन्यो. अने ते प्रमाणे नवयुग प्रवर्तक श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वरजीना शिष्यरत्न शासनप्रभावक उपाध्याय श्री वीरविजयजी महाराज पासे गोघा गामे वि० सं० १९४६ ना मागसर शुक्ला पंचमीए भागवती दीक्षा लीधी. दीपचंद दानविजयजी तरीके जाहेर थया. श्री दानविजयजी महाराजे व्याकरण, काव्य, कोष, न्याय आदिना अभ्यास पछी जिनागमोनो अभ्यास कर्यो. तेमनुं ज्ञान खूब उज्ज्वल बन्यु. ज्योतिषशास्त्रमा तो खूब निपुणता प्राप्त करी. आवी तेमनी योग्यता जोई वि० सं० १९६२ मां खंभातमां गणी पदवी आपी अने मागसर पूर्णिमाए पंन्यासपदथी विभूषित कर्या. Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्रमण वंशवृक्ष तेमनी ख्याति वधती ज चाली. वि० सं० १९८१ ना मागशर शुक्ला पंचमीए छाणी मुकामे श्रीमद् विजयकमळसूरिजीए तेमने आचार्य पदथी विभूषित कर्या. घणो समय ज्ञानध्यान अने शासन प्रभावनामां व्यतीत कर्या पछी अति तपश्चर्याने कारणे वि० सं० १९९२ ना माह मासमां तेओश्री कालधर्म पाम्या. जैन श्रमणताना आकाशनो एक तेजस्वी तारक खरी गयो. श्री हीरविजयसूरिजी (जुओ चित्र नं. १३) अहिंसाना इतिहासमां, भारतना इतिहासमां अने जैनश्रमणताना इतिहासमां जेओनुं नाम सोनेरी शाहीथी लखाय छे, जेमना पवित्र स्मरणने हजारो मानवीओ अभिवादन आपे छे अने जेमनो चिरंजीव अक्षरदेह आजे पण तेटली ज उन्नत रीते हैयात छे, ए श्री हीरविजयसूरीश्वरजी जगतनी महामूली व्यक्तिओमांना एक हता. सैकाओ बाद प्रगटता पुण्यश्लोक व्यक्तित्वमांना एक अजोड पुण्यप्रभावक हता. तेओश्रीनो जन्म सं. १५८३ मां पालणपुरमा थयो हतो. पितानुं नाम कुंराशाह ओसवाल अने मातानुं नाम नाथीबाई हतुं. हीरो तेमनु संसारी नाम, तेर वर्षनी वये मातापितानो स्वर्गवास थयो. हीरो पाटण पोतानी बेनने त्यां गयो. अहीं तपागच्छना श्री विजयदानसूरिना उपदेशे तेने सं. १५९६ मां दीक्षा लेबरावी. आ पछी विद्याभ्यास करी प्रचंड विद्वता प्राप्त करी. ओ विद्वत्ताथी आकर्षाई तेमना गुरुश्रीए सं. १६०७ मां पंडितपद आप्यु. सं. १६०८ मां वाचक उपाध्याय पद आप्यु. सं. १६१० मां सीरोहीमा आचार्य पद आपी श्री हीरविजयसूरि नाम आप्यु. सं. १६२२ भां गुरुश्रीनो स्वर्गवास थतां तेओश्री तपगच्छाधिपति थया. निष्पाप मार्गनी प्ररूपणा करनार तरीके सम्राट अकबर तेओश्रीने आमंत्रण आप्युं ने ते तेमनो भक्त बन्यो. बादशाहनी त्रीजी आंख जेवा शेख अबुल फजले पण तेओश्री साथे अपूर्व परिचय साध्यो. सूरिजीए अमारी, जैनतत्व प्रचार अने प्रामाणिक न्याय माटे अपूर्व प्रयास को. सम्राट अकबरे तेमनी साधुताथी अंजाई वि. सं. १६४० मां जगदगुरुनु पद आप्यु. आ पछी संपूर्ण जीवन धर्मप्रचार माटे व्यतीत करी, सम्राट अकबरने प्रतिबोधी, ते द्वारा अनेक पुण्यकार्यो करी सूरिजी वि. सं. १६५२ मां स्वर्गधाम सीधाव्या. श्री मणिविजयजी दादा ( जुओ चित्र नं. १४) दादाना नामथी सुप्रसिद्ध, आजना ६८० जेटला संवेगी साधुओमाथी ३५० जेटला साधुओना आद्य जनक अने जैनसमाजना अनेक प्रखर प्रतापी सूरिवरो तथा मुनिवरोना गुरुवर्य श्री मणिविजयजी दादा संवेगी साधुताना इतिहासना आद्य प्रणेता छे. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - १४ श्री तपगच्छ तेओश्रीनो जन्म भोयणी तीर्थ पासे अघार गाममां वीशाश्रीमाळी ज्ञातिना जीवनदास शेठने धेर गुलाबबाईनी कुंखे वि. सं. १८५२ ना भादरवा महिनाना शुकलपक्षमा थयो हतो. तेमनु संसारी नाम मोतीचंद हतुं. मोतीचंद व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त कर्या पछी पिताना धंधामा जोडाया. आ वेळा पिताश्री कामधंवाना अंगे खेडा जिल्लाना पेटली गाममां आवी रह्या. एक वेळा तेओ संवेगी साधु शिरोमणि श्री कीर्तिविजवजी महाराजना परिचयमां आव्या ने अपूर्व धर्म प्रीति थई. मुनिजीए मोतीचंदने परीक्षा माटे थोडो समय पोतानी पासे राखी पाली गाममां दीक्षा आपी मणिविजयजी नाम राख्यु. गुरुमहाराजनी अपूर्व श्रद्धाथी सेवा करता मणिविजयजी खूब तपश्चर्या करता. मास-बे मासना उपवास, आयंबिल चालू ज होय. लगभग एकाशन तो नियमित ने ठाम चोविहार करे ! जीवनने आंतर अने बाह्य तपश्चर्याथी निर्गळ बनान्यु. आ निर्मळताथी आकर्षाई अनेक प्रतापी जीवो तेमना शिष्य बन्या. _ वि. सं. १९२२ना जेठ शुद १३ ना दिवसे तेमने पंन्यासपद आप्यु ने शासननी अपूर्व सेवा करी तेओश्री राजनगर खाते वि. सं. १९३५ना आसो सुद ८ ना दिवसे स्वर्गवासी थया. जैनसमाजनो श्रमण वर्गनो प्रतापी इतिहास ए. पुण्यपुरुषने आभारी होवाथी प्रत्येक जैन बच्चो तेमने रोज अभिवंदे छे. मुनिराज श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज ( जुओ चित्र नं. १५) आजना तेमज गई कालना केटलाय प्रखर आचार्यो तेमज मुनिवरोनुं गुरुपद हांसल करनार, परम प्रतापी श्री वृद्धिचंद्रजी महाराज तेमनी क्रिया तत्परता, शान्तिप्रियता अने निरभिमानताथी जैनसमाजमा जागीता छे. तेओश्रीनो जन्म पंजाबदेशमां लाहोर जिल्लाना रामनगर शहेरमा वि. सं. १८९० ना पोष मुदी ११ ना दिवसे थयो हतो. पितानु नाम धर्मजश अने मातानुं नाम कृष्णादेवी हतुं. ज्ञाते तेओ ओसवाळ हता. तेओश्रीन संसारी नाम कृपाराम हतुं. गामठी निशाळमां अभ्यास करी चौद वर्षनी उंमरे तेओ दूकाने वेठा. आ वेळा पंजाबमा ढूंढकमतनुं प्राबल्य हतुं. धर्मवृत्तिवाळा कृपाराम पण ते मतनी क्रियाओ करवा लाग्या. कृपारामर्नु वेवीशाळ करवामां आव्युं हतुं, पण कोई कारणसर ते तूट्युं. बीजे ठेकाणे वात चालती हती, पण ते मुलतवी रही. आ वखते सं. १९०३मा बुटेरायजी महाराजे, मुनि मूळचंदजी तथा श्री प्रेमचंदजी साथे ढूंढक मतनो त्याग को. Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष कृपारामजीना हृदयमां वैराग्य भावना जागी हती. सं. १९०५ मा तेमणे दीक्षा लेवानो विचार कर्यो पण तेम न थई शक्यु. पण श्री बुटेरायजी महाराजे सं. १९०८ ना अषाड सुदी १३ ना दिवसे दिल्हीमां दीक्षा आपी, ने तेमनुं नाम वृद्धिचंदजी राख्युं वृद्धिचंद्रजी महाराजे दीक्षा पछी अभ्यास अने भक्तिमां खूब ध्यान आप्युं. आ पछी तेओ गूजरातमां आया. अहीं तेओश्रीनी पुण्यप्रतिभा खूब विस्तरी. १५ सं. १९१२ मां अमदावादमां बुटेरायजी महाराज, मूलचंदजी महाराज तथा वृद्धिचंद्रजीनी वडी दीक्षा पं. मणिविजयजी ( दादा ) पासे थर्ड वृद्धिचंद्रजीनुं नाम मुनिराज श्री वृद्धिविजयजी राख्यु. आ पछी तेओए ग्रामानुग्राम विहार करी धर्मोपदेश आपवा मांड्यो. तेमज शासनहित माटे अनेक कार्य करवा मांड्यां. तेमनी वाणी अतीव मधुर ने प्रतापी हती. अने आ छतां तेओ एटला नम्रता के कोई पण सामे जरा पण कडक वर्तन न दाखवता. श्री बुटेरायजी महाराजना स्वर्गवास पछी तेमणे पोताना गुरुभाई मूलचंदजी महाराजने वडील मान्या ने तेमनी भक्ति - विनयमां पोतानी महत्ता समजी. शत्रुंजयना झगडामां तेमणे बहु काम कयुं तेमज भावनगरमा चलिता झगडाने शान्त कर्यो. ' जनधर्म प्रकाश' मासिक पण तेओनी संमतिनुं फळ छे. महाराजश्री दीक्षा लीक्षा पछी पंजाबमां त्रण वर्ष रह्या. सं. १९९१मां गूजरातमां आत्र्या ते पछी पंजाब गया ज नथी. गुजरातनां ३८ चोमासामां अधोअद भावनगरमा ज कयीं. तेणे जीवनमा छेली घडी सुधी जैनविद्याशाळा तेमज पाटशाळा माटे फीकर कर्या करी. पण सं. १९४९ मां व्याधिए जोर कर्यु ने ' अरिहंत, सिद्ध, साहु ' ना ध्यानमां वैशाख सुदी सातमना रातना साडानव कलाके देहोत्सर्ग कर्यो. तेमना नामना दीक्षित कूल १० साधुओ हता, जेमां केटलाक प्रखर प्रतापी मुनिवरो ने सूरिवरोनो समावेश थाय छे. आजे पण तेमना पवित्र नाम पाछळ १२५-१५० साधुशिष्योनी संख्या छे. श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी ( जुओ चित्र चित्र नं. १६ ) जैनशासननी उज्ज्वल प्रभाने ज्यारे अनेक अंधश्रद्धानां आवरणो वीटी रह्यां हतां, त्यारे नवशक्ति अने नवचेतनथी ए बधां आवरणोने भेदी समस्त हिंदमां अने हिंद बहार तेनो प्रकाश फेलावनार प्रातःस्मरणीय श्री विजयधर्मसूरीश्वरजी एक युगवन्दनीय व्यक्ति हता. महुवाना वीशाश्रीमाळी कुटुंबमां ई. स. १८६७ नी सालमां तेमनो जन्म थयो हतो. पितानुं नाम रामचन्द्र अने मातानुं नाम कमळादेवी हतुं । तेमनुं संसारी नाम मूळचंद हतुं. मूळचंद आठ वर्षे Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ १६ निशाले गयो पण एना गगनविहारी आत्माने ए स्थान अति सांकडुं लाग्यं. मूळचंद काबेल हतो ए काबेलियतथी ए जुगार पर चटचो. एक वखत जुगारमा ए हार्यो. पिताए ठपको आप्यो. एनो स्वाभिमानी आत्मा दुःखायो. नाना निमित्ते मोटुं परिणाम जन्मायुं. मूळचंदने लाग्युं के दुनियामानुं सगपण बहु अछकलुं छे. ए भावनगर गयो ने शान्तमूर्ति वृद्धिचंद्रजी महाराज पासे इ. स. १८८७ना मे मासनी १२ मी तारीखे दीक्षा लीधी, मूलचंद मुनि धर्मविजयजी बन्यो गुरुभक्ति तो एमनी नसेनसमा भरी हती. जोत जोता मां धर्मविजयजी विद्वान बन्या. ज्ञानप्रचारनी तेमनी तमन्ना अजोड हती. मांडळमां १० विद्यार्थीनी संख्याथी श्री यशोविजयजी जैन पाठशाळा स्थापन करी. आ स्थापनाए तेमनुं लक्ष विद्याधाम काशी तरफ खच्युं. त्यां जैन संस्था स्थापी जैन विद्वानो केम न पेढ़ा करवा पण काशीनो विहार संवेगी साधु माटे भयंकर हतो. छतां उग्र विहार करी तेओ त्यां पहेांच्या. हजारो विनोसा मुकाबलो करी जैन पाठशाळा स्थापी अनेक विद्वानो तैयार कर्या. नव वर्ष अहीं ज रही बंगाळ, कलकत्ता, नदीया, पावापुरी आदि अनेक स्थाने विचर्या, ग्रंथमाळा, विद्याशाळा ने पांजरापोळा स्थापी, हजारोने मांसाहार छोडाच्यो अने अनेक सुन्दर जैन ग्रंथो संशोधन करावी बहार पाड्या. आ पुस्तको युरोपियन विद्वानोनुं ध्यान खच्युं ने जोतजोतामां तो आखा युरोपमां तेमना भक्तोनो एक जूथ पेदा थयो. केटलाय तेमने जाते मळी धर्मोपदेश श्रवण करी गया. आ कीर्तिथी आकर्षाई मगध, मिथिला ने बंगाळना पंडितो तथा श्रीसंघे तेमने आचार्य पदवी आपी. तीर्थोनी अशातना, तेना झघडा तेमणे दूर कर्या. केटलांय पुस्तको जाते लख्यां. अनेक राजवीओने पोताना भक्त कर्या. केटलीय संस्थाओ स्थापन करी. जीवनभर शासनहितनां कार्य करी इ. स. १९२२मां तेओ शिवपुरी (ग्वालियर) मां आया. अह तेमनो सुपरिश्रमश्री अति जर्जरितक्षीण थयेलो देह पढ्यो. पोतानी पाळळ एक विद्वान शिष्यमंडळीने मूकी जैन रामाजनो साचो महारथी चाल्यो गयो. श्रीमद् हंस विजयजी महाराज (जुओ चित्र नं. १७ ) परम तपोमूर्ति, शासनप्रभावक श्री हंसविजयजी महाराजनो जन्म वडोदरा खाते वि. सं. १९१४ना अषाडी अमासे (दीवासो) वीशाश्रीमाळी ज्ञातिमां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम जगजीवनदास अने मातनुं नाम माणेकबाई हतुं तेओ छोटालालना नामथी ओळखाता. आठ वर्षे छोटालाल निशाळे गया, अभ्यास जल्दी समाप्त करी पिताने वेपारमां मददकर्ता बन्या, लगभग १६ वर्षनी उंमरे सुरजबाई साथे तेमनां लग्न थयां, पण छोटालाल स्वभावे विरक्त हता. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष १७ एक दिवस संसारनी माया छोडी पंजाबमां अंबाला खाते वि. सं. १९३५ना माह वदी ११ना दिवसे श्री लक्ष्मीविजयजी महाराज पासे दीक्षा लीधी. गुरुजीए तेमनुं नाम हंसविजयजी राख्यु. वि. सं. १९३९ना जेठ सुदी १० ना रोज वडोदरामां मूलचंदजी महाराजना हाये वडी दीक्षा थई. आ पछी तेमणे समस्त हिंदमां विहार करवो शरू कयों. क्यांय राजाओने प्रतिबोध्या, त्यांय हस्तलिखित भंडारोनो उद्धार कर्यो, यात्रार्थे अनेक संघ काढ्या, केटलांय जीर्ण मंदिरोनो उद्धार कर्यो, अनेक प्रतिष्ठाओ करी. वि. सं. १९८९ ना भोदरवामां ताव शरू थयो अने ५५ वर्षना बहु लांबो दीक्षा पर्याय पाळी वि. सं. १९९० ना फागण सुद १० ना दिवसे तेओ कालधर्म पाग्या. श्री चारित्रविजयजी (कच्छी) (जुओ चित्र नं. १८) सत्यनी आणाए जीवन जीवनार, जीवदयाने जीवनमा महत्त्वचें स्थान आपनार, तीर्थरक्षा माटे प्राणनी पण परवा न करनार श्री चारित्रविजयजी (कच्छी ) आजना जैन श्रमणताना इतिहासमां एक बहुज उज्ज्वळ अने विविधरंगी पृष्ठ रोके छे. तेओनो जन्म वि. सं. १९४० ना आसोवदी १४ ना रोज कच्छ खाते पत्री गाममां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम घेलाशाह ने मातानु नाम सुभगाबाई हतुं. तेओश्रीन संसारी नाम धारशी हतुं. धारशीनुं बाल्यजीवन ग्राम्यसंस्कारोथी भरेलुं, नीडर ने शौर्यथी भरपूर हतुं. ए काळे कच्छनो वेपार भांगतो हतो ने सौ वेपार अर्थे मुंबई जता हता. धारशी पण मुंबई आव्यो. कमाणी सारी थई. पण वि. सं. १९५६ मां प्लेग आव्यो. धारशीनां १७ सगां जोत जोतामां यमशरण बन्यां. एने पण त्रण गांठो नीकळा. एक धर्ममित्रनी सलाहथी एणे गांठो फुटी जाय तो विरक्त थवानु स्वोकायु. आश्चर्यनी वात के तेज राते गांठो फूटी गई ने धारसी साजो थयो. थोडा दिवसो बाद एणे स्थानक मार्गी संप्रदायना कानजी स्वामी पासे दीक्षा लीधी. साधु थया पछी तेमणे खूब ज्ञानाध्ययन शरु कयु. आगमो पण वांच्या. आमां तेमने मूर्ति पर श्रद्धा थई. स्थानकमार्गी धर्म परथी श्रद्धा उठी जतां तेओए जामनगर जई श्री विजयकमळसूरिजीना शिष्य श्री विनयविजयजी महाराज पासे वि. सं. १९५९ मागशर सुद १० ने बुधवारने रोज संवेगी दीक्षा धारण करी. आ पछी देवचराडोमां श्री विजयकमलसूरिजी समक्ष तेमनी वडी दीक्षा थई. __आ पछी तेओश्री शत्रुजयनी यात्राए गया. एक वखत बारोटो साथेना झघडामा तेमणे प्राणनी पण परवा न करता तीर्थनी रक्षा करो ने अशातना टाळी. आ पछी तेओश्री काशी तरफ गया ने Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ रही शास्त्राध्ययन कर्यु. समेतशिखर वगेरे तीर्थनी यात्रा करी तेओ गूजरातमां पाछा आव्या. पालीताणाम सं. १९६८ मां आजना श्री यशोविजयजी जैन गुरुकुळनुं प्रथम बीजारोपण कर्यु ने तेने विकसात्र्युं वि. सं. १९६९ मां पालीताणामां जलप्रलय थयो तेमां खूब जीवदया बताची. आ पछी तेओश्री कच्छमां गया ने त्यांना सामाजिक तेमज धार्मिक जीवननी उन्नति माटे घणा प्रयासो कर्या. तेमणे घणा राजाओने तथा अमलदारोने जैनधर्मना प्रेमी बनाव्या ने जीवननी अन्तिम पळ सुधी सेवा ने सत्यनी उपासना करी. सं. १९७४ मां हिंदने इन्फल्युएन्झाए घेरी लीधुं. कच्छमां पण ए रोग फैलायो. मुनिराज श्री ए वेळा अंगीयामां हता. तेमना शिष्योने ए रोगे झडप्या. मुनिराज श्री तेमने बचावत्रा जतां पोते पाया भने समाधिपूर्वक आसो वद ९ नी रात्रिए कालधर्म पाम्या आजे तेमनी पांछळ श्री दर्शनविजयजी, श्री ज्ञानविजयजी, श्री न्यायविजयजी (दिल्हीवाली त्रिपुटी ) आदि विद्वान शिष्य मंडली तेमना नामने उज्ज्वल करो रही छे. ૧૮ श्री बुद्धिविजयजी महाराज ( श्री बुटेरायजी महाराज ) ( जुओ चित्र नं. १९ ) आजनी संवेगी साधुताना आदि प्रचारक, सत्यवीर श्री बुटेरायजी महाराजनो जन्म इ. सं. १८६३मां पंजाबमां लुधियाना नजीक दुलवा गाममां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम टेकसिंह मातानुं नाम कर्मादे हतुं. अडग धर्मवीरता माटे पंकायेल शीख कोममां जन्मेल आ बाळकनुं नाम बटेल सिंह हतुं. भारतमां राजकान्तिनो भडको थइने बुझाई गयो हतो, पण धर्मक्रान्तिनां बी बधे ववाई गयां हां. बटेलसिंहने नानपणथी धर्म तरफ आकर्षण हतुं अने एक दिवस मातानां आंसुओं बच्चे मणे साधु थवा गाटे गृहत्याग कर्यो. बटेलसिंहे गुरु माटे ठेर ठेर भटकी संन्यासी, बावा ने अबधूतोनो परिचय साध्यो. पण तेमां निष्फळता मळी. निराश थई ते घेर पाछा फर्या. पंजाब आ वेळा यतिओनुं अने स्थानकवासी साधुओनुं परिबळ हतुं. पण यतिवर्ग कंचन r कामिनीनो लोभी थतो जतो होवाथी स्था० साधुओ तरफ लोकोनी भक्ति जामती हती. बटेलसिंह ने पण आकर्षण थयुं ने सं. १८८८मां पचीस वर्षनी तरुण वये स्था० दीक्षा लोधी. नाम बुटेरायजी राख्युं. सत्यनी शोध माटे नीकळेला बुटेरायजीए जिनागम अने जिनवाणीनो अभ्यास कर्यो. पण मांथी तेमने नवाज ज्ञाननी प्राप्ति थई. तेमने लाग्युं के अमारुं वर्तन जिनागम मुजब नथी. आ चोवीसे कलाक मुहपत्ति बांधवी ते अने मूर्तिपूजानो विरोध शास्त्रीय नथी. बस, अहींथी तेओनुं मंथन शरु थयुं. स्था० समाजमां ज्यारे आ विचारो प्रसर्या त्यारे धरतीकंप जेवी लागणीओ जन्मी, बुटेरायजीने नष्टभ्रष्ट करवानी धमकी अपाणी. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष १९ सं. १९०२ मां महाप्रतापी मूलचन्दजी महाराजे तेमनी पासे दीक्षा लोधी अने एक वर्ष बाद ज बन्ने गुरु शिष्ये मुहपत्ति तोडी नाखी. अनेक धमकीओ वच्चे पंजाबमां बन्नेए सत्योपदेश करता घूमना मांडचं. सं. १९०८मां श्री वृद्धिचन्द्रजी दीक्षित थया. आ महाप्रतापी त्रिपुटी पंजाब छोडी, मारवाड व गूजरातमा सधर्म प्ररूपणा माटे आवी. सिद्धाचलजीनी यात्रा करी १९११ मां भावनगर चातुर्मास कर्यु. सं. १९१२ मां अमदावादमां श्री मणिविजयजी दादा पासे तेओए संवेगी दीक्षा स्वीकारी श्री मूलचंदजी अने श्री वृद्धिचंद्रजी तेमना शिष्य बन्या. गूजरातमां यतिओनुं साम्राज्य हतुं तेमना शिथिलाचार सामे सौए जेहाद बोलावी. आ पछी पुनः पंजाबमां गया. त्यां छ वर्ष सत्यधर्मनी प्रचार कर्यो. सं. १९२९ मां गूजरात पधार्या. सं. १९३२ मां स्था० समुदायमांथी बहार निकली साचा धर्मनी प्ररूपणा करता आत्मारामजी १८ साधुओ साथे गूजरातमां आल्या. मूलचंदजी महाराजना हाथे संवेगी दीक्षा लई ओ बुटेरायजी महाराजना शिष्य श्रया. आ साधुसमुदाये गूजरात बराबर खेडी नाख्युं. श्री बुटेरायजीने हवे पंजाब याद आवतो हतो. तेमणे मूलचंदजी महाराजने गूजरात भळाव्यं. काठियावाड वृद्धिचन्द्रजी महाराजने सांप्युं. श्री आत्मारामजी महाराजने पंजाब खेडवा आज्ञा करी ने नीतिविजयजी महाराजने सुरत तरफ मोकल्या. शिष्योए गुरुआज्ञाने परिपूर्ण करी सर्वत्र जैनधर्मनो डंको वगाड्यो. अलौकिक धर्मप्रेम, असीम आत्मश्रद्धा अने अजोड निःस्वार्थताथी ओपता आ बालब्रह्मचारी श्री बुटेरायजी महाराज आजनी साधु संस्थाना आदि जनक कहेवाय. एमनी निःस्पृहता अजब हती. समस्त जीवनमा एम जैनसमाजनो डंको वगडाववा बनतुं बधुं कर्तुं अने पोतानी पाछळ उज्ज्वळ शिष्य मंडळीने मुकता गया, जेमना नामे आजे पण समाज जयवंतो छे. तेमना शिष्यो ३५ हता ने आजे मना समुदायमा लगभग ४०० साधुओ छे.. आवा सत्यवीर बुटेरायजी महाराजनो स्वर्गवास सं. १९३८ मां थयो. वंदन हो ए सत्यवीरनी साधुताने ! श्रीमद् विजयकमलमूरीश्वरजी (पंजाबी) ( जुओ चित्र नं. २० ) अनेक मांसाहारीओने निरामीपाहारी बनावनार, प्रसिद्ध तीर्थोना उद्धारक, तटस्थतानी मूर्ति श्रीमद् विजयकमलसूरीश्वरजी महाराज महत्ताना अपूर्व अवतार हता. ओश्रीनो जन्म वि. सं. १९०८ मां पंजाबनी पुण्य धरा पर सरसा गाममां गौडब्राह्मण कुलमा यो हतो. तेमना पितानुं नाम रूपचंद अने मातानुं नाम जीताबाई हतुं. तेओश्रीनुं नाम रामलाल हतुं. Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्री तपगच्छ रामलालने बालपणथी ज वैराग्य तरफ अजब आकर्षण हतुं. तेवामां कीशोरचंद नामना यतिना संसर्गमां आव्या ने तेओ वि. सं. १९२० मा यति बन्या. साधुजीवन तो सर्वत्यागमय होवू जोईए ए भावनामां जीरा गाममा स्थानकमार्गी संप्रदायना साधु श्री विश्नुचंद्रजीना (जेओ स्थानकमार्गी दशामां पण मूर्ति पूजामां श्रद्धावाळा हता ) संसर्गमां आव्या. सं. १९२९ मा यतिजीवन तजी तेओ विश्नुचंद्रजीना शिष्य बन्या. ___श्री विश्नुचंद्रजीए पू. आत्मारामजी महाराजना नेतृत्व नीचे सं. १९३२ मां पूज्य बुटेरायजी महाराज (बुद्धिविजयजी) पासे संवेगी दीक्षा लाधी. श्री विश्नुचंद्रजीनु नाम श्री लक्ष्मीविजयजी राखवामां आव्यु. रामलाल पण तेमना शिष्य तरीके संवेगी दीक्षा लई श्री कमलविजयजी तरीके ओळखाया. श्री कमलविजयजी महाराजनी अपूर्व योग्यताए आखा समाजमां मान पेदा कर्यु. तेवामां श्रीमद् आत्मारामजी महाराजनो स्वर्गवास थयो. आ पछी कमलविजयजी महाराजनी योग्यता निहाळी सं. १९५७ मां पाटण मुकामे तेओश्रीने आचार्य बनाव्या. अने श्री विजयकमलसूरीश्वरजी (पंजाबी) तरीके ओळखाया. तेओश्रीनू शास्त्रीय ज्ञान अपूर्व हतुं. अध्यात्मना केटलाय ग्रंथो कंठस्थ हता. पंजाब, राजपुताना, मारवाड, बंगाळ, माळवा, गूजरात, काठियावाड आदि उग्र देशोमां उग्र विहार करी धर्मप्रभावना करी, तेमज पंजाबी हीरासींग जेवा महान् शिकारीने धर्मबोध पमाड्यो. इडरना, महाराजा कुमारपाळना समयना बावन जिनालयनो उद्धार को. तेमज प्राचीन जैन पुस्तकोद्धार फंड, सीदाता श्रीवकोनुं सहायत फंड तथा अनेक मुद्रित ग्रंथो माटे हजारो रुपिया एकटा करावराव्या. तेमना ज उपदेशना प्रतापे देहवण, दावड, उमेटा, मोगर वगेरेना राजाओए जीवदयानां फरमान फेलाव्यां. बे बे वार श्री वडोदरा नरेश श्रीमंत महाराजा सयाजीरावे तेमनो उपदेश सांभळ्यो. वृद्धावस्थाए पहेांचवा छतां स्व अने परनुं कल्याण करवामां तेमणे कदी पाछी पानी न करी. वि. सं. १९८१ मां छाणा मुकामे तेओश्रीए पोताना सुशिष्य श्री लब्धिविजयजी महाराजने तथा, उपा० श्री वीरविजयजी महाराजना सुशिष्य श्री दानविजयजी महाराजने खूब धामधूम पूर्वक आचार्य पदवी आपी, अने श्री विजयदानसूरिजी अने श्री विजयलब्धिसूरिजी तरीके जाहेर कर्या. आ प्रमाणे शासन प्रभावनानां अनेक कार्य करता तेओश्री नवसारी पासे जलालपोर गामे वि. सं. १९८३ ना माह वद ६ ना रोज स्वर्गवासी थया. आजे तेओश्रीनो विशाळ परिवार तेओश्रीनी अखण्ड कीर्तिने उज्ज्वल करी रह्यो छे. पं. श्री धर्मविजयजी महाराज (जुओ चित्र नं. २१) स्वतंत्रता पूर्वक अने अजब मस्तीथी साधुजीवन जीवनार पंन्यासजी श्री धर्मविजयजी महाराज साधुतानी निर्भय मूर्ति हता. तेओश्रीनो जन्म सं. १९३३ ना पोष वदी १४ना रोज पाटण पासेना Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष थरा गाममा श्वे० मू० दशाश्रीमाळी गोत्रमा थयो हतो. तेमना पितानुं नाम शेठ मयाचंद मंगळजी तथा मातानुं नाम बाई मीरांत हतुं. पिता दरबोरगढना कारभारी हता. तेओनुं नाग धरमचंद हतुं. सं. १९५० मां धरमचंदनुं लग्न उंदरा गाममां बेन मेना साथे थयु. धरमचंदने नाटकचेटकनो जबरो शोख हतो. एक वेळा भर्तृहरीना खेले तेमना पर अजब असर करी ने ते वेळा जन्मेली भावनामां तेमणे अमदावादना डेलाना उपाश्रयवाळा पं. श्री मोहनविजयजी महाराज पासे सं. १९५२ ना असाङ सुद १३ ना रोज दीक्षा अंगीकार करी, अने तेमनुं नाम श्री धर्मविजयजी पड्यु. श्री धर्मविजयजीए दीक्षा बाद १० वर्ष सुधी केवल अध्ययन कयु. तेओश्री नानपणथी संगीतमा कुशळ हता, अने तेथी व्याख्यानमां त्रिशलामाताना विलाप के तेवा प्रसंगे सभाने रोवरावता ने पोते पण रोता. तेओश्रीए मारवाड, मेवाड, काठियावाड, कच्छ, वराड, माळवा, गूजरात आदि देशोमां विहार करी पोतानी सत्कीर्ति प्रसरावी. केटलाय भावी जीवोने दीक्षा आपी. पोताना संसारी पत्नी बाई मेनाने पण प्रतिबोध करी दीक्षा आपी. सं. १९६२ ना मागसर सुद १५ ना रोज राजनगर श्री संघे तेमने पंन्यासपद अर्पण कर्यु. आ पछी तेओश्रीए अनेक सुकृत्यो कयीं, अनेक गामोने धर्म पमाड्यो. एक वेळा तेओश्रीने आचार्य पदवी लेवा कहेवामां आव्युं पण तेओश्रीए. पोतानी लघुता दाखवी ना पाडी. सं. १९९० मा राजनगर मुकामे मळेला मुनिसंमेलन वेळा तेओश्रीने सोरूपा ने श्वासन दर्द उपयु. ने चैत्र वदी सातमना सांजे पांचने पचीस मीनीटे तेओश्री कालधर्म पाग्या. आजे तेओ नथी पण तेमनी कीर्ति झगमगे छे. श्री मुक्तिविजयजी गणि (श्री मूलचंदजी महाराज ) (जुओ चित्र नं. २२) यो जैनसंघे गगने दिनेशो, यः सार्वभौमः खलु जैनराज्ये। मुनीश्वरं तं स्तुतिवमै नेतुं, जिदासहस्रं न हि मे विषादः॥ जेओ जैनसंघरूपी आकाशना सूर्य छे अने जे जैनधर्मरूपी राज्यमा सर्वसत्ताधीश छे, एवा ते मुनीश्वरनी (मूलचंदजी महाराजनी) स्तुति करवा माटे मारी पासे हजार जीभ नथी तेनुं मने दुःख छे. वर्तमानना लगभग त्रण सोथी साडात्रण सो साधुसमुदायना आयजनक तपगच्छाधिपति श्री मुलचंदजी महाराजनुं स्थान आधुनिक श्रमणोना इतिहासमां अनेरी रीते प्रकाशी रह्यु छे. जीवनभर शासनसेवा करनार, अने साधुसमुदायनी वृद्धिने विकास करनार श्री मूलचंदजी महाराज माटे श्रीमद् विजयानंदसूरिजी (आत्मारामजी महाराज) पण पोतानी पूजामां तेओश्रीने 'संप्रतिमुक्तिगणिराजा' कहीने बिरुदावे छे. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ तेओश्रीनो जन्म पंजाब खाते शीयालकोट नगरमां सं. १८८६ मा ओसवाल ज्ञातिमां थयो हतो. तेमना पितानुं नाम सुखशा अने मातानुं नाम बकोरबाई हतुं. तेओश्रीनुं नाम मूलचंद हतुं. मातापितादि ढुंढकमतना अनुयायी होवाथी तेमज नानपणथी स्थानकमार्गी साधुना संसर्गमां आववाथी तेमनी इच्छा वैराग्य धारण करवानी थई. चौद वर्ष सुधी व्यावहारिक ज्ञान मेळव्या पछी तेओए दीक्षा लेबानो पोतानो विचार जाहेर को. श्री बुटेरायजी महाराजनी कीर्ति चोतरफ प्रसरेली हती. वि. सं. १९०२ मा तेमणे तेमनी पासे दीक्षा धारण करी, श्री बुटेरायजी महाराजने स्थानकमार्गी धर्म परथी श्रद्धा उटी गई हती. तेथी तेमणे पोताना शिष्य श्री मूलचंदजी महाराज साथे संवेगी दीक्षा धारण करी. आ पछी आठ वर्ष सुधी पंजाबमां सद्धर्मनो प्रचार करी तेओ गूजरातमां आव्या. सं. १९१२ मां श्री मणिविजयजी दादा पासे बराबर शुद्ध दीक्षा लीथी. बुटेरायजी महाराज श्री मणिविजयजी दादाना शिष्य बन्या, अने मूलचंदजी महाराज मुक्तिविजयजी नाम धारण करी तेमना शिष्य बन्या. सं. १९१२नुं चतुर्मास अमदावादमा कयु. आ वेळा नगरशेठ प्रेमामाईनुं तमाम कुटुम्ब तेमनुं रागी बन्यु. तेमज नगरशेट हेमाभाईनां बहेन उजमव्हेने व्याख्यानवाणी माटे पोताना मकानने विशाळ करी उपाश्रय तरीके आप्यु. श्री बुटेरायजी महाराजनी वृद्धावस्था होवाथी तेओ अमदावादमां ज रहेवा लाग्या. अहीं ज तेमणे गुरुमहाराजना नामथी श्री वृद्धिचंद्रजी, आत्मारामजी तथा बीजा २० साधुओने दीक्षा आपी. जोतजोतामां लगभग पोगो सो साधुनो समुदाय वधी गयो. पण तेमणे जेटली दीक्षाओ आपी ते बीजाना नामथी ज आपी. पोते शिष्यमोहमां कदी न फसाया. तेमनी अपूर्व प्रतिभा अने विद्वता निहाळी श्री दयाविमळजी महाराजे सं. १९२३ मां योगोद्वहन करावी गणी पद आप्यु. अने आथी बधा साधुओने वडा दीक्षा पण तेओज आपता. आ वखते आखा समुदायमां गणी पद पर तेओ एकला ज हता ने तेओनी आज्ञा नीचे श्रीवृद्धिचंद्रजी, श्री आत्मारामजी, श्री झवेरसागरजी वगेरे रहेता. सं. १९२१ मां मुहपत्ति माटेनी चर्चा नीकळी. मूलचंदजी महाराजे शेठ दलपतभाई भगुभाई पासे सभा भरावी ते पक्षने हरायो. आ वेळा शान्तिसागरजीए चर्चा उपाडी ने तेने पण शासन माटे अहितकर्ता समजी नगरशेट प्रेमाभाई द्वारा दबावी दीधी. गुरुमहाराजना स्वर्गवास पछी तेगणे समुदायतुं सुकान अपूर्व बुद्धिमत्ताथी जाळवी राख्यु हतुं. तेमनी आणा लोपवानी कोई स्वप्ने पण कल्पना न करतुं. तेओश्रीए ९० जणाने दीक्षा आपी, पण पोताना शिष्य तो पांच ज बनाव्या. आवी तो निराभिमानता ! यतिवर्गनी अनिष्ट सत्ताने पण तेमणे अपूर्व प्रतिभाथी तोडी नाखो हती, शासनना तेओ अग्रणी मनाता अने बधे तेमनी एक छत्रछाया पथराई रहेती हती. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष गुरुवर्य श्री बुटेरायजी महाराज अतिवृद्ध थवाथी तेमनी साथे तेओ १२ बर्ष अमदावादमा रह्या हता. आखा दीक्षा पर्यायनां ३३ चतुर्मासमाथी २७ चतुर्मास तो तेमणे अमदावादमा ज गाळ्यां. सं. १९४४ मां तेमना पगे व्याधी उपड्यो. ए व्याधि वधता ज गयो. तेमने अमदावादथी मेनामा भावनगर लइजवामां आव्या. पण कई सुधारो न थयो, ने शासननो साचो सीतारो भावनगर खाते सं. १९४५ ना मागसर वद ६ ना दिवसे समाधिपूर्वक आथमी गयो. मानवीनो देह क्षणभंगुर छे, पण जीवननां सुकृत्योनी सौरभ अमर रहेवा सरजायेली छे. संसारमा साधुता ज्यां सुधी प्रकाशती रहेशे त्यां सुधी मूलचंदजी महाराज सदाय अमर अने अक्षय रहेशे. एमनां कीर्तिगान सदा गवाता रहेशे. श्री आनंदविमलसूरीश्वरजी (जुओ चित्र नं. २३) आजथी चारसो वर्ष पूर्वे आ पृथ्वीने पवित्र उपदेशथी पावन करनार, शत्रुजय तीर्थना छेल्ला उद्धारक, साधु समाजनो क्रियोद्धार करनार अने विशीर्ण थता जैनप्रभावने पुनः प्रकाशमय बनावनार प्रातःस्मरणीय श्री आनंदविमलमूरिजी जैन इतिहासनी एक उज्ज्वल कीर्तिरूप हता. तेओश्रीनो जन्म इडर नगरमां वि. सं. १५४७ मां वीशा ओसवाल गोत्रमा थयो हतो. तेओश्रीना पितानुं नाम मेघाजी अने मातानुं नाम माणेक हतुं. तेमनुं नाम वाघजी हतुं. अतिश्रद्धावन्त मातापिताना पुत्र वाघजी कुंवरने नानपणथी ज वैराग्यभावना जन्मी हती. तेवामां तपगच्छाधिपति श्रीमद् हेमविमळसूरीश्वरजी महाराजनो सुयोग प्राप्त थयो. तेमणे बाळक वाघजीमां कोई अजब अदृश्य शक्ति निहाळी अने आ शासन स्तंभ थशे, एम भविष्यवाणी भांखी तेमना मातापिताने समजावी वाघजी कुंवरने वि. सं. १५५२ मां दीक्षा आपी अने अमृतमेरु नाम राख्यु. अमृतमेरुनुं तेज जोतजोतामां झळहळी उठयु. छ दर्शनना ज्ञाता अने सिद्धांत पारगामी थतां गुरुश्रीए तेमने लालपुर नगरमां सं. १५६८ मां उपाध्याय पद आप्यु. अने बे वर्ष बाद महोत्सव पूर्वक तेमने आचार्यपद आपी जैनाचार्य श्री आनंदविमळसूरिजी तरीके जाहेर कर्या. तेओश्री ५६ मी पाटे बिराज्या. वि. सं. १२०० मां तपगच्छना उद्धार पछी आ त्रण सो वर्षमां साधु संस्थामां अति शिथिलाचार प्रवेश करी गयो हतो. पूज्य गुरुदेवनी आज्ञा मेळवी श्री आनंदविमळसूरिजीए ५०० साधुओने लई सं. १५८२ मां चाणस्मा पासे आवेला वडावली गाममां क्रियोद्धार कर्यो. आ पछी गुरुवर्ये तेओश्रीने सं. १५८३ मां गच्छनायक पदे स्थापन कर्या. सं. १५८४ मां आचार्यदेव श्री हेमविमलसूरीश्वरजी कालधर्म पाम्या. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ आ पछी तेओश्री माळवामां गया. अर्ही माणेकचंद्र नामनो श्रावक तेमनो परमभक्त बन्यो. एक वेळा शत्रुंजय महात्म्य सांभळी ते यात्रा करवा चाल्यो अने दर्शन कर्या वगर अन्नपाणी न लेवानी प्रतिज्ञा करी. सातमे दहाडे सिद्धपुर पासे मगरवाडामां भिल्ल लोकोए हुमलो कर्यो अने आमां तेओ शत्रुंजयना ध्यानमां मृत्यु पाम्या. अहींथी मणिभद्रवीरनी उत्पत्ति थई. आ शासनरक्षक वीर तेमणे दरेक मंदिर अने उपाश्रयमां स्थापन कर्या. अने तपगच्छ शासनना रक्षक बनाया. सूरिजीए माळवा, मेवाड, मरुधर, गुर्जर, खंभात, सोरठ, कन्हम, दमण, मेदपाट वगैरे देशमा विहार करी सद्धर्मनी प्ररूपणा करी, अनेक कुतीर्थीओने हरात्र्या अने ६४ कुमती ओनो पराजय करी ६४ जिनप्रासादो उघडाव्यां तेमज वि. सं. १५८७ मां शत्रुंजय गिरि पर पधारतां, तेनी जीर्ण अवस्था निहाळा ते वखते यात्रा करवा आवेल चितोडगढना रहेवासी ओसवाल कुलना वारुणा कुटुम्बना दोशी कर्माशाने उपदेश आप्यो, ने तेमनी पासे छेल्लो उद्धार करायो. ओश्रीए जीवनमां खूब उम्र तपश्रर्या कर्या करी हती. तेओनी आज्ञा नीचे १८०० साधुओ विचरता हता, अने तेओए ५०० साधुओने दीक्षित कर्या हता. आ पछी विहार करता श्री अमदावाद' आया. तेमने लाग्युं के मारो अन्तिम समय नजीक छे, एटले अनशन धारण क. आ प्रमाणे नवमे उपवासे अमदावादमां आवेल निजामपुरामां वि. सं. १५९६ ना चैत्र सुदी ७ ना प्रभात समये तेओ स्वर्गधाम सीधाव्या. २४ तेमनो नश्वर देह चाल्यो गयो, पण तेमनी अक्षय कीर्ति दशे दिशाने अजवाळी रही छे. आजे ए प्रकाशमां अनेक भवीओ पोतानुं कल्याण साधी रह्या छे. चिरंजीव ए यशोमूर्तिने प्रत्येक युगनी वंदना हजो श्री झवेरसागरजी उक्त महाराजश्रीनो फोटो आपेल छे, जेनो नं. २४ छे. ते ओश्रीनो जीवन परिचय मेळवावा माटे घणी महेनत करी पण नहीं मळवाथी ते आपी शकायो नथी, ते माटे वाचक दरगुजर करशे. --संपादक फ्र Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [विवेचन विभाग तपगच्छना आचार्योः तेमनुं साहित्य [एक नोंध] धीरजलाल धनजीभाई शाह [१] भाई जयंतिलाले मने सूचना करी के मारे 'जैन साधु-संस्थानी चडती पडती' पर एक निबंध लखी आपबो. मने लाग्युं के ए विषय उपर पूरो अभ्यास कर्या वगर जे लखाय ते, कदाच साधु-संस्थाने अन्याय करनाएं पण थई पडे. आथी में ना कही. त्यारे तेमणे बीजो विषय मारी आगळ धर्यो --- 'तपगच्छना आचार्यो : तेमनुं साहित्य.' आ विषय पण एटलो गहन छे के तेना संबंधी पूरतो अभ्यास कर्या वगर तेने पूरतो न्याय आपी शकाय नहि. में तेमने रा० मोहनलाल दलीचंद देसाई- नाम सूचव्युं पण तेमणे आग्रह चाल ज राख्यो के 'मारे ज ते विषय पर लखq.' में हा पाडी, पण मारी सामे ढूंका दिवसोनो हिसाब खडो हतो. एक महिनानी अंदर आ निबंध तैयार करवानो हतो. आथी मारा केटलाक मित्रोने मळ्यो. तेमनी पासेथी ढूंकी नेांधी लीधी. अने खरा मित्र तरीकेनी तो बे ज पुस्तके मारी गरज सारी छे. ने ते मुनिश्री दर्शनविजयजी द्वारा संपादित थयेल ‘पट्टावली समुच्चय' अने रा० मोहनलाल दलीचंद देसाईनो 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास.' रा० मोहनलालभाईए आ विषय पर कदाच लख्यु होत तो आ विषय वधारे सुंदर थात छतां में आ विषयने पूरतो न्याय आपवा माटे ढूंक मुदतमां शक्य यत्न कर्यो छे. छतां साथे ए पण मने खबर छे के तेमां केटलेक स्थळे स्खलना रही गयेल छे. भाई जयंतिलाले ए चूक निभावी लीधी छे. वाचक पासेथीय एटली आशा राखं.' १आ सिवाय बीजा पुस्तको जेनी मुख्यत्वे मदद लीधी हती : १. जैन गूर्जर कविओ. बन्ने भाग. २. वीरशासन पर्युषणा अंक. ३. जैनयुगनी फाईलो. ४. पुरातत्त्व. ५. धर्मसागर पट्टावली ६. सोम सोभाग्य. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ श्री जगच्चंद्रसूरिथी ते आजसुधीमा तपगच्छनी पाट पर आवेला लगभग साडत्रीस आचार्योए जैन साहित्य, कळा, संस्कृति वगेरेनी प्रत्यक्ष या परोक्ष रीते खोलपणी करी छे अने तेमना शिष्यो तो गुरुथी पण सवाया थयेल छे. ते सिवाय श्री बुद्धिसागरजी, श्री यशोविजयजी, श्री आनंदधन, पंडित श्री वीरविजयजी वगेरेना नामना पण उल्लेख करवानी जरुर रहे छे, छतां मारा निबंधनी हद 'तपगच्छना आचार्यो अने तेमनुं साहित्य' पूरती होवाथी तेने स्पर्श करतां करतां आगळ वधीश. स्पर्श शब्द एटला माटे ज छे के वखतना अभावे हुँ पूरतुं साहित्य नथी जोई शक्यो तेम ज केटलाक आचार्यो संबंधी नेांध सरखी पण नथी मेळवी शक्यो. जो के साथै एय कबूल करी लेवू जोईए के जेमनो उल्लेख में नथी को तेमना संबंधी पूरी विगत पण मळती नथी: मळे छे फक्त नामनो उल्लेख. वळी 'एक नेांध' शब्द एटला माटे छे के आ निबन्धमा तपगच्छना आचार्योए रचेला ग्रन्थोनो ज नांध छे, कारण के तेमणे रचेला साहित्य पर पंडितश्री सुखलालजी जेवा कोई वीरल विद्वान ज तलस्पर्शी चर्चा करी शके; नांध लखी शके. अने ते वस्तु मारी शक्ति बहारनी छे. [२] __'जैन पंडितोए तो सरस्वतीनी अपूर्व सेवा बजावी छे १२ एनी साथे एटलु उमेरवं जोईए के 'जैन आचार्योए रचेलं साहित्य बाद करीए तो गुजरात, साहित्य अत्यंत क्षुद्र देखाय. कारणके जैन आचार्योए, गुजरातना पाटनगर तरीके पाटणनी स्थापना थया पछी दसमी सदीथी तेरमी सदी सुधीमा घणा अगत्यना ग्रंथो रच्या छे. तेमणे एकला जैन साहित्यनो ज नहि पण वैदिक साहित्य, बौद्ध साहित्य वगैरेनो अभ्यास करी तेनुं तुलनात्मक दृष्टिए आलोचन करेल छे, तेम ज तत्समयनी संस्कृति, पण अमुक रासा, सज्झाय के चरित्रोमां आर्छ पातळु वर्णन करेलं छे के जेथी एक वखत साहित्यनी दृष्टि बाजुए राखीए तो पण अतिहासिक दृष्टिए तेनुं महत्व टकी रहे. साहित्यनुं एकलुं सर्जन ज जैन आचार्योए नथी कयु, पण तेनो विकास करी जाण्यो छे ने तेने साचवीये जाण्यु छे. आठथी दस दस सदी सुधी जेवो ने तेवी ज हालतमां जैन या जैनेतर ग्रंथो जैनभंडाराभांथी उपलब्ध थाय ए जैन आचार्यानी साहित्यनी रक्षा माटेनी केटली धगश हशे ते बतावे छे ने पाटण, खंभात, के अमदावादना भंडारो तेनी साक्षी पूरे छे. ज्यारथी पाटणना पायो खायो त्यारथी जैनोनो अने जैन आचार्योनो पाटणनी साथे अने पाटणना राजानी साथे निकटनो संबंध रह्यो हतो अने ते संबंध केटलाय वखत सुधी चडती पडतीनी तडकी छांयडी जोतो टकी रह्यो हतो. २. श्री मणीलाल न. द्विवेदी. ३. श्री. चीमनलाल दलाल. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रमण वंशवृक्ष मंत्री—महामात्य, दंडनायक, सेनाधिपति वगेरे पदवीओने प्राप्त करी, शोभावीने जैनोए गुजरातना इतिहासने उज्जवळ बनावेल छे. वनराजनो महामात्य नीनु : तेनो पुत्र महामात्य लहर : तेनो पुत्र महामात्य वीर : तेना पुत्रो नेढ अने विमल : भीमदेवना वखतना प्रखर व्ययकरण पदामात्य [नाणा शास्त्री ] जाहिल्ल : जैनो अहिंसक छे छतां न'मर्द नथी तेनी साक्षी पूरता, तैलंगण, मालवा, सिन्ध अने उत्तरमा सिन्धु नदी सुधी गुजरातनी सत्ता स्थापनार सान्तू महेता : ए सत्ताने पोताना अनोखा व्यक्तित्वथी टकावी राखनार मुंजाल अने उदयन, आहड, वाग्भट, आनंद ने पृथ्वीपाल : अने छेवटे चमकी जनार वस्तुपाल तेजपालनी जोडी ए पाटणना इतिहासमा एक सळंग सांकळ रूप छे. तेमना वगर पाटणनो इतिहास लुख्खा लागे. आ बधा जैनो हता ते साची वात पण तेमणे उपर्युक्त पदवीओ प्राप्त करी एकली पदवीनी पूजा नथी करी, एकला राजानी पूजा नथी करी, परन्तु गुजरातनी संस्कृतिमां, गुजरातना थता नवविधानमा तेमणे अगत्यनो फाळो आप्यो छे. गुजरातनी कळाने तेमणे अनोखं स्वरूप आप्यु छे ने गुजराती साहित्यने विकसाववामां तेमणे तन, मन अने धनथी सहाय करेल छे. __ जेवी रोते वनराजना समयथी जैनोनो संबंध राज्य साथे हतो तेम जैन आचार्योनो पण हतो. तेओनी राजा पर सीधी असर हती. आथी जेम राजा विक्रमना दरबारमा साहित्यनी चर्चाओ थती; राजा भोजना समयमां तेना दरबारमा साहित्यकारो हता, तेम पाटणना राजाओना आश्रय नीचे पण जैन साहित्यकारो [अने जैनेतर साहित्यकारो] पोषायेला छे. शिलांकाचार्य : महान् रूपक ग्रंथ उपमितिभव प्रपंच कथाना रचनार सिद्धर्षिसूरि : दार्शनिक विषयना असाधारण विद्वान अभयदेवसूरि : सोळ वर्षनी नानी उमरमांज आचार्य पद मेळवनार नवांगवृत्तिकार श्री अभयदेवसूर : कवि बिल्हण : ‘कवि चक्रवर्ती' महाकवि श्रीपाळ : साहित्य सम्राट हेमचन्द्राचार्य : श्री मलयगिरि : रामचन्द्र वगैरेए जैन साहित्यनी सेवा करवामां कचाश नथी राखी, जैनेतर साहित्यनो अभ्यास करी तेनुं तुलनात्मक दृष्टिए विवेचन करवामां खामी नथी दर्शावी. आथी एम कही शकाय के गुर्जरराष्ट्रना उत्थानथी ते मुसलमानोना आगमन सुधीमां जैनोए ऊंच पदवीओ शोभावीने, अने तेमनी देखरेख नीचे साधुओए संस्कृत अने प्राकृत वाङमयने विकसाववामां तेम ज़ अत्यारनी गुजरातीने जन्म आपवामां भारेमा भारे फाळो आपेलो छे. आम पहेलेथी ज खेडाती आवती जमीनने क्रमशः एक पछी एक आचार्य के मुनिए वधारे खेडीने साहित्यनो सुंदर पाक उत्पन्न करेलो छे, जेमा तपगच्छना आचार्योनो पण जेवो तेवो हिस्सो नथी, Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्री तपगच्छ [३] जगच्चंद्रसरि लगभग साडा बारमी सदीमां श्री जगच्चंद्रसूरिए उग्र तप आदयु. तेनाथी प्रसन्न थई मेवाडना राजा जैत्रसिंहे तेमने 'तपा'नो इल्काब आप्यो. ते वखते गुजरातनी अंदर वस्तुपाळ महामात्य पद शोभावी रह्यो हतो. तेणे सूरिनी कीर्ति सांभळी, तेमनां यशोगान सांभळ्यां अने तेमने गुजरातमां पधारवानुं निमंत्रण आप्यु. महामात्यना निमंत्रणथी श्री. जगच्चंद्रसूरि पाटण आव्या, ने वस्तुपाळना गुरु तरीके ख्यातिमां आववाथी तेमनुं मान वध्यु. त्यारथी तेमना इल्काब परथी तेमनो शिष्यसमुदाय तपागच्छने नामे ओळखायो अने ते वखते गुजरातनी अंदर तेमनुं जेटलं जोर हतुं तेटलं ज बल्के तेथी वधारे जोर अद्यापि पर्यंत छे. ___ श्री० जगचंद्रसूरिए दिगंबर आचार्यो साथे वादविवाद करेलो छे, तेम ज हीरला जगच्चंद्रसूरि तरीके तेमणे ख्याति मेळवी छे परन्तु तेमनी साहित्य संबंधीनी सेवानो उल्लेख मळतो नथी. देवेन्द्रमूरि देवेन्द्रसूरि श्री जगच्चंद्रसूरिना शिष्य थाय अने तेमनी पाटे तेओ आवेला. देवेन्द्रसूरि विद्वान हता एटलं ज नहि पण बहुश्रुत पण हता. तेमनी व्याख्यान शैली अपूर्व हती. तेमणे माळवा वगेरे स्थळे विहार करी जैन संस्कृतिनो प्रचार करवा परिश्रम सेव्यो हतो. तेमनुं ज्यारे न्यारे व्याख्यान होय त्यारे लगभग अढारसो श्रावको तो सामायिक करवा ज बेसता. तेमना लखेला पुरतकोमा श्राद्धदिन कृत्यसूत्र-वृत्ति, सिद्धपंचाशिका सूत्र-वृत्ति, धर्मरत्नवृत्ति, ऋण भाष्य, सुदर्शना चरित्र, श्रावकदिन कृत्य सूत्र, तेम ज नव्यकर्मग्रंथपंचकसूत्र-वृत्ति छे. तेमना समयसुधीना जूना पांच कर्मग्रंथ--कर्मविपाक, कर्मस्तव, बंधस्वामित्व, षडशीति ने शतकनुं तेमणे संशोधन कर्यु छे, ने तेना पर स्वापज्ञ टीका रची छे : जे टीकाओनी अंदर बीजी टीकाओनो पण उल्लेख छे. आ पांच कर्मग्रंथमां चंदर्षि महत्तरनो सप्ततिका कर्मग्रंथ उमेरबाथी कुल छ कर्मग्रंथ थाय छे अने आजसुधी तेनुं पठन पाठन विनयपूर्वक चालु छे. छठा कर्मग्रंथमा मूळ गाथा सितेर हतो ते देवेन्द्रसूरिए वधारीने नेव्याशी करेल छे. देवेन्द्रसूरिए एकली टीकाओ नथी रची के एकला उपदेश नथी आप्यो पण तेमणे ताडपत्र पर केटलाय ग्रंथो लखावीने तेने विस्मृत थता अटकावेल छे देवेन्द्रसूरि कवि पण हता ए न भूलवू जोईए. तेमणे दानादिकुलक नामर्नु तथा बीजा अनेक स्तवन रच्यां छे. षडावश्यक सूत्र पर देवेन्द्रसूरि कृत वंदारुवृत्ति पण उपलब्ध थाय छे. आ वृत्तिने श्रावकानुष्ठान विधि पण कहे छे. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष विजयचन्द्रसूरि ओ जगचन्द्रसूरिना शिष्य थाय, अने संसारावस्थामां वस्तुपालने त्यां हिसाबी मंत्री हता. परंतु दीक्षा लीधा पछी ज वस्तुपाले तेमने सूरिपद अपाववा महेनत करी हती. विजयचंद्रसूरि आचारमां शिथिल हता आयी अने देवेन्द्रसूरि तथा विजयचन्द्रसूरि खंभातमां नाना मोटा उपाश्रयमां रहेल होवाथी विजयचन्द्रसूरिनो परिवार वृद्धतपगच्छना नामे ओळखायो. आथो तेमना शिष्याए करेल साहित्यनी सेवाना उल्लेख अह नथी कर्यो. विजयचन्द्रसूरिए देवेन्द्रसूरिने सुदर्शना चरित्र लखवामां मदद करी हती तेम ज तेमनी श्रावकदिन कृत्यसवृत्ति सुधारी हती. तेमणे साहित्यनुं सर्जन करवाने बदले साहित्यने टकाव्युं छे. तेमना उपदेशथी केटलीक कथाओ, चूर्णि अने नियुक्तिओ ताडपत्र पर लखायेल छे. ५ विद्यानंदसूर ते देवेन्द्रसूरिना शिष्य हता. साहित्यनी वधु सेवा करे ते पहेलां ज तेओ काळधर्म पाम्या छे छतां तेणे ए उमर मांय ' विधानन्द' नामनुं नवु व्याकरण रच्युं छे जेनी अन्दर ' सर्वोत्तमं स्वल्पसूत्र - बहर्थ संग्रह ' छे. तेमना गुरु देवेन्द्रसूरिए नव्य कर्मग्रंथ पर स्वोपज्ञ टीकाओ रची हतो जेमां हरिभद्र कृत नंदी सूत्र टीका, मलयगिरि कृत सप्ततिका टीका, शतक चूर्णि, अने धर्मरत्न टीकानो उल्लेख आ टीका विद्यानन्दसूरि अने तेमना लघुभाई धर्मघोषसूरिए संशोधेल छे. छे. धर्मघोषमूरि विद्यानंद सूरिना अवसानथी देवेन्द्रसूरिनी पाटे धर्मघोषसूरि आल्या. विद्यानंदसूरिना ते संसारावस्थाना भाई थाय. तेमनुं मूळ नाम धर्मकीर्ति हतुं. अने दीक्षा लीधा पछी तेमणे ते नाम सार्थक करेल छे. भगवती सूत्रना वांचन वखते ज्यां ज्यां 'गोयमा' शब्द आवतो त्यां त्यां एक सोनामहोर मूकी छत्रीस हजार सोनामहोरथी आगमनी पूजा करनार पेथड मंत्रीना ते गुरु हता. आ रकमथी धर्मघोषसूरि घणां शास्त्रो लखाव्या हता, संशोधन करात्र्युं हतुं अने तेने भंडारमां एकत्रित कर्या हता. तेमणे वधु विहार करी जनताना हृदय सुधी प्रवेश कर्यो हतो. तेओ प्रबल मंत्र - शास्त्री हता. तेमणे संघाचारभाष्यवृत्ति, श्रुतधर्मस्तव, कायस्थिति-भवस्थितिस्तव, चतुर्विंशति जिनस्तव, चतुर्विंशतिः, प्रस्ताशर्मेत्यादि स्तोत्र, देवेन्द्रेरनिशं, वगेर लेश स्तोत्र, 'यूवं यूवां त्वमिति श्लेष स्तुति, जय वृषभेत्यादि स्तुति छे. आ सिवाय कालसप्तति - सावचूरि- कालस्वरुप विचार, तथा एकसो बेतालीस कारिकामां प्राकृतमां श्राद्ध जितकल्प, प्राकृतमां दुःषम काल संघ स्तोत्र वगेरे पुस्तको रच्यां छे. 9 जगचंद्रसूरि पछी तपगच्छमां धर्मघोषसूरिए जैन साहित्य, संस्कृति अने कळामां जे शिथिलता पेठी हुती तेने दूर करवा माटे यत्न करेल छे. Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ सोमप्रभसूरि धर्मघोषसूरिनी पाटे आवनार सोमप्रभसूरि हता. तेओ बहुश्रुत हता अने वादविवादमां निपुण हता. दलीलसर आगळ वधी प्रतिपक्षीने महात करीने चितोडमां तेमणे ब्राह्मणोनी सभामा विजय मेळव्या हतो. गुरुमी जेम ते पण प्रबळ मंत्रशास्त्री अने अपूर्व साहित्य शास्त्री हता. तेमांय जैन आगमोना तेओ ऊंडा अभ्यासी हता. भीमपल्लीनो भविष्यमा थनारो भंग पोताना ज्ञानबळे तेमणे आगळथी कह्यो हतो. तेमणे सविस्त यतिजितकल्पसूत्र वगेरे प्रकरण रच्या छे अने अठ्ठावीश यमक स्तुति वगेरे रची छे. वळी सुक्तिमुक्तावली [ सिन्दूर प्रकर ] रच्यानो पण उल्लेख छे.. सोमप्रभसूरिना शिष्योमा विमलप्रभसूरि, परमानन्दसूरि, पद्मतिलकसूरि अगे सोमतिलकसूरि मुख्य हता पण आगळना त्रण सूरिना अकाळ अवसानथी सोमतिलकसूरि पाटे आव्या. सोमतिलकसरि तेमणे त्रणसो सत्यासी गाथार्नु नव्य क्षेत्र समाससूत्र रच्यु छे. विचार सूत्र; सप्ततिश स्थानक अने पोताना गुरु सोमप्रभसूरि कृत अठ्यावीस यमक स्तुति पर वृति रची छे. वळी तेओ कवि हता आथी यत्राखिल० शुभभावानव० श्री मद्वीर स्तुव० कमलबन्धस्तव, शिवशिरसिम श्री नाभिसंभव० श्री शैवेय वगेरे घणां स्तवनो रच्या छे. पद्मतिलकसूरि, चंदशेखरसूरि, जयानंदसूरि अने देवसुंदरसूरि तेमना परिवारमा विद्वान शिष्यो हता. ___चंद्रशेखरमूरि तेमणे उषितभाजनकथा, यवराजर्षिकथा, श्रीमद-स्तंभनकहारबंधस्तवनानि वगेर रचेल छे. जयानंदमूरि श्री स्थुलिभद्रचरित्र, देवाःप्रभोयं वगेरे घणा स्तवन रचेल छे. चौदमी सदीमां मुसलमानोए गुजरातमा प्रवेशवं शरु करी दीधुं हतुं अने पंदरमी सदीनी शरुआतमां तो तेमणे पोतानी सत्ता जमावी दीधी हती. मुसलमानो आव्या ने तेमनु झनून साथे आव्यु. हिंदु राज पायमाल थयु. मंदिरो अने दहेरासरो भंगावा लाग्या. मूर्तिओ भोयरामां संतावा लागी. शिल्प अने स्थापत्यकळा संताई गई. जैन मंदिरो मस्जीदमा परिणमवा लाग्या. आवी अंधाधुंधीमां लुटाराओना त्रास वध्यो. सौ कोई पोतानी मालमिल्कत, पैसो टको अने जात संभाळवा लाग्या. ब्राह्मणो तो गभराई ज गया. सरस्वती देवी अप्रसन्न थई तेमनी पासेथी नासो गई. जैन मुनिओ पर पण आ अंधाधुंधीनी असर थई. परन्तु स्व० रणजीतरामे कयुं छे तेम आ अंधाधुंधीमां नासभाग करता Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रमण वंशवृक्ष ब्राह्मणोए शारदा सेवन त्यजी दीधुं, पण मंदिरो प्रतिमा आदिनी आशातना थवा छतां जैन साधुओ पोताना अभ्यासमा आसक्त रह्या ने शारदा देवीने अपूज न थवा दीधी. जो के आनी असर आ थई : प्राकृत अने संस्कृत भाषानुं महत्त्व जतुं रघु. वळी एवी भाषाने आश्रय आपनार हिंदु राजाओ तथा अमलदारोनो आश्रय जतो रह्यो. आथी तेना अभ्यासीओ पण ओछा थवा लाग्या. आथी प्राचीन भाषामा पठन पाठन बंध थयु. छतां देश भाषामां अने एम कहीए तो चाली शके के मूळ-गुजरातीमां धार्मिक कथानको, ज्योतिष, कर्मकांड वगेरे वस्तु लखावा लागी. मुसलमानो नाश करशे एवी बीके साधुओए ताडपत्रो अने ताम्रपत्रोने भंडारोनी अंदर पुरावी दीधा. आथी नवो सर्जननी शरुआत थई. साधुओए संस्कृत अने प्राकृतने छाडी दई गुजराती भाषामां गद्यमां अने पद्यमां रास, आख्यान अने कथा लखवां शरु करी दीघां. अंधाधुंधीना समयमां बीजी कोई पण सदी करतां वधारेमा वधारे भाषा साहित्य- सर्जन थयुं छे अने ए आश्चर्यनी वात छे. वळी एनी पण साथे नेांध लेवी जोईए के प्रबन्ध लखवानी रीति श्री हेमचन्द्राचार्ये दाखल करेली तेने आ युगमां वधु जोम मळ्युं अने तेथी विशेष प्रबन्ध लखावा शरु थया. देवेन्द्रसूरि अने विजयचंद्रसूरिना उपदेशथी अनेक ग्रन्थो ताडपत्र पर लखाया हता. तेमना पछी लगभग सो वर्षे श्री देवसुन्दरसूरिए तेमनाथी जुदी ज जातनुं पण सुन्दर कार्य कर्यु. देवसुन्दरमरि सोमतिलकसूरिना चार मुख्य शिष्योमांथी देवसुन्दरसूरि पाटे आव्या. तेओ महाप्रभाविक आचार्य हता. तेमणे साहित्यना पुनरुद्धार माटे करेली महेनत आश्चयकारक छे. अत्यार सुधी जे जे प्रन्थो ताडपत्रो पर हता तेने कागळ पर लखावी तेनो उद्धार कराव्यो. साहित्यना रक्षणनी तेमनी आ सेवा कांई जेवी तेवी नथी. तेमनी बीजी सेवा ते तेमणे उत्पन्न करेल तेमना विद्वान शिष्य समुदायनी छे. ज्ञानसागरसूरि तेमना ग्रन्थो आवश्यक पर अवचूर्णि, उत्तराध्ययन पर अवचूर्णि, ओधनियुकित पर अवचूरि, मुनिसुव्रतस्तव, घनौघ नवखंड पार्श्वनाथस्तव छे. ३ कुमारपाळना समयमा कागळनो प्रवेश थयो. सं. १३५६-५७मां कागळ पर लखायेल पुस्तक मळे छे. Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- श्री तपगच्छ कुलमंडनमूरि विचारामृतसंग्रह, प्रवचन पाक्षिकादि पचीस अधिकारवाळा आलापक नामे सिद्धान्तालापकोद्धार, प्रज्ञापनासूत्र तथा प्रतिक्रमण सूत्र पर अवचूर्णि, प्राकृतमां काव्यस्थितिस्तोत्र पर अवचूरि, तथा नाना स्तवनो जेवां के विश्वश्रोधरेत्याद्याष्टादशारचक्रबंध स्तव, गरीयो०हार बन्ध स्तव वगेरे रचेल छे. वळी मुग्धावबोध औक्तिक पण रचेल छे जेना परथी तत्कालीन-मध्यकालनी गुजराती भाषा पर घणो प्रकाश पडे छे. गुणरत्नमूरि ए प्रखर विद्वानश्रमण हता अने दर्शन तथा तर्कना प्रदेशमा स्वैरविहार करनार अमुक गण्यागांठ्या विद्वानोमा तेओनी गणत्री करी शकाय तेम छे. तेमणे कल्पान्तरवाच्य, सप्ततिका पर देवेन्द्रगणीनी टीकानो आघार राखी अवचूर्णि, देवेन्द्रसूरि कृत कर्मग्रन्थो पर अवचूरिओ, आतुरप्रत्याख्यान, चतुःशरण, संस्तारक अने भक्तपरिज्ञा ए चार पयन्ना-प्रकीर्णको पर अवचूरिओ, सोमतिलकसूरिना क्षेत्रसमास पर अवचूरि, नवतत्त्व पर अवचूरि, वासेांतिकादि प्रकरण-अंचलमत निराकरण, वगेरे ग्रन्थ रच्या छे. वळी ओघनियुक्तिनो तेमणे उद्धार करेल छे. परन्तु तेमनी वधारेमा वधारे साहित्यनी सेवा तेमना बे ग्रन्थ द्वारा ज छे. ते बे महान ग्रन्थो एक व्याकरण पर अने बीजो दर्शन पर छे. तेना नाम क्रियारत्न समुच्चय अने हरिभद्र कृत षड्दर्शन समुच्चय पर तर्क रहस्य दीपिका नामनी टीका छे. सिद्धहेम व्याकरणमाथी बहु उपयोगी धातुओ लई तेना दश गणना गणवार रूपो सन्देह न रहे तेवी रीते, तेमना गुरुना निर्देशथी क्रिया रत्न समुच्चयमा रचेल छे, अने षड्दर्शन समुच्चय परनी टीकामां बौद्ध तार्किको नामे सौदोदनि, धर्मोत्तराचार्य, धर्मकीर्ति, प्रज्ञाकर, दिङ्नाग आदि तथा पुष्कळ ब्राह्मण ग्रन्थकारो जेबा के अक्षपाद, वात्सायन, उद्योतकर, वाचस्पति, उदयन, श्रीकंट, अभय तिलकोपाध्याय, जयनी आदिनो उल्लेख करेल छे. अने ए बे ग्रन्थ द्वारा तेमणे दर्शन अने तर्कना क्षेत्रमा पातानुं नाम अमर करेल छे. साधुरत्नसूरि यतिजितकल्प पर वृत्ति अने नवतत्व पर अवचूरि रचेल छे. सोमसुंदरसूरि तेमना गुरुनु नाम जयानन्दसूरि अने तेओ देवसुन्दरसूरिनी पछी पाटे आव्या. सात वर्षनी वये मातपितानी संमतिपूर्वक दीक्षा लई सतत ने जब्बर अभ्यास करी धुरन्धर विद्वान थया. देवसुन्दरसूरि साथे ज पाटण अने खंभातना भंडारोना ग्रन्थोनुं ताडपत्र परथी कागळ पर संस्करण ४ आ प्रन्थ श्री हरिलाल हर्षदराय ध्रुवे प्रकट करावेल छे. Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष कराव्यु. एमां सोमसुन्दरसूरिना शिष्योनाय फाळो मोटो हतो. कहेवाय छे के नहि नहि तोय पंदरमी सदीना मध्यथी अन्तसुधीमां लाख प्रत लखाई हशे. एक श्रावके ज आ सूरिना उपदेशथी अगियार मुख्य अंगोनुं संस्करण कराव्युं हतुं. मुसलमानोनुं जोर वधतु जतुं हतुं, छतां जैनाए दिल्हीथी आवता सुबाओ साये मैत्री साधी लीधी हती अने क्वचित क्वचित ज आथी जैन समाजने शोषवू पडतुं. तेमना रचेला ग्रन्थोमां चउशरण पयन्ना पर संस्कृतमां अवचूरि, कल्याणादि विविधस्तव, भाष्यत्रयचूर्णि, रत्नकोष, नवस्तवी वगेरे; संस्कृत सर्वनाम 'युष्मत् अस्मत्' अने जुदा जुदा रुपो बीजा शब्दो साथे बहुव्रीही सभास करे छे ते अढार स्तोत्रमां अष्टादश स्तवी, सप्तति पर अने आतुरप्रत्याख्यान पर भुवनतुंगसूरिनी वृत्ति-चूर्णि परथी अवचूर्णि, ते मुख्य छे. आ सिवाय गुजराती भाषामां जैनग्रन्थो पर बाळावबोध गद्यानुवाद लख्या, जेमां उपदेशमाळा पर, योगशास्त्र पर, षडावश्यक पर, आराधनापताका पर, नवतत्व पर, नेमीचंद भण्डारी कृत षष्टीशतक पर बालावबोध रच्या छे. वळी तेओ कवि पण हता. तेमना का योमा आराधनारास, नेमिनाथ नवरसराग अने स्थुलिभद्रफाग मुख्य छे. सोमसुन्दरसूरिनो शिष्य-परिवार मोटा हतो अने विद्वान हता. तेमना शिष्या प्रखर लेखक, उपदेशक, वादी अने ग्रन्थकार थयेल छे. सोमसुन्दरसूरिना समयमां अने पछी, कथा साहित्य पहेला करतां पण वधारे विकास पामेल छे. __ढूंकमां जैनधर्मना मन्दिरनिर्माणथी आचार्यपद अने वाचकपदना करावेला उत्सवाथी, पुस्तकोना उद्धारथी, अने लोकभाषामां गयग्रन्था रचवाथी- एम अनेक प्रकारे तेमणे जनसमूहनी सेवा करेल छे. तेमणे प्रतिष्टाओ करी छे, शिल्प-कलामा विशेष ध्यान आप्यु छे अने भण्डारोमा पुरायेला साहित्यने फरी ग्रन्थस्थ करी तेम ज पाठळ विद्वान शिष्यनो समुदाय मुकी साहित्य नी अपूर्व सेवा करी छे. तेमना शिष्यपरिवारमा मुनिसुन्दरसूरि, जयसुन्दरसूरि, भुवनसुन्दरसूरि अने जिनसुन्दरसूरि मुख्य छे. जयसुंदरमूरि पोतानी विद्वताथी तेमणे कृष्णसरस्वती-कृष्णवाग्देवता एयु बिरुद प्राप्त कर्यु हतुं. तेओ काव्यप्रकाश अने सन्मतितर्कना खास अभ्यासी हता. प्रत्याख्यान स्थानविवरण, सम्यक्त्वकौमुदि, प्रतिक्रमणविधि वगेरे प्रकरण तेमना रचेला ग्रंथ छे. ५. जैन साहित्यना संक्षिप्त इतिहासमां तेमने जिनकीर्तिसूरि जणावेल छे. Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० भुवनसुंदरसूरि परब्रह्मोत्थापन स्थलनो वादग्रंथ रच्यो छे. वळी कुलार्क नामना एक योगाचार्ये शब्दनुं अशाश्वत बताववा सोळ अनुमानोपर महाविद्या नामनी एक दसश्लोकी ग्रंथनी रचना करेल. तेना पर चिरंतन नामना एक टीकाकारे वृत्ति रची हती. भुवन सुंदरसूरिए तेना पर विवृत्ति रची तेम ज टिप्पण अने विवरण रच्यां आ सिवाय लघुमहाविद्या विडंबन अने व्याख्यानदीपिका वगैरे तेमना चेला ग्रंथ छे. श्री तपगच्छ जिनसुंदरसूरि तेमना ग्रंथोमां मुख्य - नमस्कारस्तवपर स्वोपज्ञ वृत्ति, उत्तमकुमारचरित्र, शीलपर श्रीपाल गोपाल कथा, चंपक श्रेष्ठी कथा, पंचजिन स्तव, धन्यकुमारचरित्र - दानकल्पद्रुम, श्राद्वगुण संग्रह अने दीपालिका कल्प छे. तेओ बहुश्रुत हता. मुनिसुंदरसूरि सोमसुंदरसूरिनी पछी पाटे आवनार मुनिसुंदरसूरि हता. तेओ सिद्धसारस्वत कवि हता अने सहस्त्रावधान हता. तेओमां सूरिमंत्रनी स्मरण करवानी शक्ति प्रबळ हती अने पोतानी शक्तिद्वारा ते हरकोईपर प्रभाव पाडी शकता. शांतिकर स्तवन तेमनुं रचेलुं छे. बारेक वर्षनी नानी उमरे तेमणे न्याय, व्याकरण, अने काव्य ए त्रणे विषयनो परिचय आपतो त्रैविद्यगोष्टी नामनो ग्रंथ रच्यो. ए तेमनी अगाध ज्ञानशक्तिनो सबळ अने सचोट पुरावो छे. अध्यात्मकल्पद्रुम - शांतरसभावना, उपदेशरत्नाकर स्वोपज्ञवृत्ति सहित, अनेक प्रस्तावोमां जिनस्तोत्र रत्नकोष, जयानंद चरित्र, शांतिकर स्तोत्र, मित्रचतुष्ककथा, सीमंधरस्तुति, प्राकृतमां पाक्षिक सत्तर, अंगुलसत्तरी रचेल छे. वळी योगशास्त्र - चतुर्थप्रकाशनो बालावबोध तेमणे रचेल छे. ओ वादमां पण एटला प्रभावशाळी हता. खंभातना मुसलमान सुबाए तेमनाथी प्रसन्न थई तेमने 'वादि - गोकुल संकट' एवो इल्काब आप्यो हतो. तेमनुं सुंदरमां सुंदर कार्य त्रिदशतरंगिणी नामना तेमनाथी लखायेल विज्ञप्तिपत्रनुं छे. आ विज्ञप्तिपत्र तेमणे तेमना गुरु देवसुंदर पर मोकल्यो हतो, परंतु जगतभरना विज्ञप्तिपत्रना साहित्य अने इतिहासमां ते अजोड छे. ते लगभग एकसो आठ हाथ लांबो हतो. तेमां एक एकथी चडे एवा अनेक चित्र हता अने सेंकडो काव्य लखवामां आव्या हता. तेमां त्रण स्तोत्र अने एकसठ तरंग हता. ते हालमां पूरो मळतो नथी. जे भाग मळे छे तेमां त्रीजा स्तोत्रनो गुर्वावली नामनो पांचसो पद्यनो एक विभाग मळे छे. जेमां प्रासादादि चित्रबंध केलांक स्तोत्रो छे अने तेमां श्री महावीरथी तेमना समयसुधीना तपगच्छना आचार्येनुं संक्षिप्त वर्णन छे, विभाग ज्यारे आटलो लांबो मळे छे त्यारे त्रण स्तोत्र साथैनो विज्ञप्तिपत्र त्रीजा स्तोत्रनो एक ज केटलो मोटो, अर्थगंभीर Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष अने इतिहासनी अंदर प्रकाश फेंकनार हशे प्रौढ पत्र कोइए हजु सुधी लख्यो होय एवं ११ तेना परथी जाणी शकाय छे. ट्रंकमां आवो मोटो अने कोईनी जाणमां नथी. आ सिवाय शांतरास, अने वस्तिगकृत चिहुंगति तेमनी कृतिओ छे. रत्नशेखरसूरि रत्नशेखरसूरि सोमसुंदरना शिष्य थाय. तेओ मुनिसुंदर पछी पाटे आल्या. तेओ विद्वान हता एटलं ज नहि परंतु प्रखर अभ्यासी अने वादी हता. यौवन-वये पण तेमणे दक्षिणना वादीओने वाद करी नमात्र्या हता. वळी खंभातना बांबी नामना विद्वान द्वारा तेमने 'बालसरस्वती 'नो इल्कात्र मळ्यो हतो. अर्थदीपिका नामनी श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र पर वृत्ति, श्राद्धविधिसूत्रवृत्ति - विधि कौमुदी नामनी वृत्ति, षढावश्यकवृत्ति, अने चार हजार पांसर श्लोक प्रमाणनो आचार प्रदीप ग्रंथ तेमणे रचेल छे. बळी एवो पण उल्लेख मळे छे के प्रबोधचंद्रोदय वृत्ति तेम ज हैमव्याकरण पर अवचूरि तेमणे रचेल छे. लक्ष्मीसागरसूर छ वर्षनी नानी उमरे तेमणे दीक्षा लीघी हती अने एवा एक चित्ते अभ्यास कर्यो हतो के सिद्धांतचर्चानी अंदर तेमणे वादीओने चकित कर्या हता. तेमणे गच्छभेद दूर करवा महेनत करी हती. तेमना उपदेशाथी अमदावादना एक गृहस्थे ज्ञानकोश लखाग्यो हतो, जेमांनी पत्रवणासूत्रनी एक प्रत हजु हयात छे. वळी तेमणे वस्तुपाळ रास रच्यानो उल्लेख मळे छे. श्री लक्ष्मीसागरसूरिनो पाटे सुमतिसुन्दर आव्या. तेमनी पाटे श्री हेमविमलसूरि आव्या. विमलसूरि सूयगडांगसूत्र पर तेमनी दीपिका होवानो उल्लेख मळे छे. तेम ज तेओ कवि पण हता अने मृगापत्र उपर सज्झाय रचेली छे. आनन्दविमळवरि मिळसूरनी पाटे आनंदविमळसूरि आया. आ समये अन्धाधूंनी भारे हती. मुसलमानो अन्धाधूंधीनो लाभ लई हिन्दुओने हेरान करता हता. वळी धर्म धर्म बच्चे झगडा चालता हता. आचार-विचारमां शिथिलता आवी गई हती. तेणे धर्मशिथिलता दूर करवा यत्न कर्यो. जनसमुदाय पर तेमनी ऊग्र तपश्चर्या तथा विद्वत्तपणाने लई सारी छाप हती. तेमणे साधुओने माटे पात्रीस बोलना नियमनो लेख लखी बहार पाड्यो हतो, जेनी अन्दर साधुए पाळवाना आचार विचार संबंधी नांघ छे. Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ विजयदानसूरि मोगलो आ समये स्थित थये जता हता अने अन्धाधी ओछी थवा लागी हती. ते समये विजयदानसूरि आनन्दविमलसूरिनी पाटे आव्या. तेमनी भारेमा भारे सेवा ए छे के तेमणे खरतरगच्छ अने तपागच्छ बच्चे जामेल वैमनस्यने टाळ्युं अने एकबीजाना तरफथी उत्पन्न थयेल तेवा साहित्यने जळशरण कराव्युं जेथी कोईना मन खाटा न थई शके. तेमणे सोत बोलनी आज्ञा पण काढेल छे. हीरविजयमूरि __ श्री विजयदानसूरिनी पाटे श्री हीरविजयसूरि आव्या. तेमणे नानी वये ज दीक्षा लई गुरुनी आज्ञा लई दक्षिणना देवगिरिमां नैयायिक ब्राह्मण पासेथी विविध प्रमाणशास्त्रो-तर्कपरिभाषा, मित्तभाषिणी शराधर, मणिकंठ, वरददाजी, प्रशस्तपदभाष्य, वर्धमान, वर्धमानेन्दु, किरणावली वगेरेनुं अध्ययन कर्यु. वळी तेमणे सामुद्रिक, ज्योतिष अने रघुवंशादि काव्यमां निपुणता प्राप्त करी हती. __ तेओ एक सारा कवि हता. शांतिनाथरास, द्वादश जनविचार, मृगावती, प्रभातियुं, अंतरीक्ष पार्श्वनाथ स्तव वगेरे तेमनी कृतिओ छे पण तेमणे कोई ग्रंथ रच्या होवानो उल्लेख नथी. एक ज उल्लेख मळे छे के तेमणे संस्कृतमा जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति पर टीका रचेल छे. तेओए ग्रंथो नथी रच्या ए साची वात, ग्रंथो रचीने साहित्यनी सेवा मथी करी ए साची वात, पण तेमनी परोक्ष रीते साहित्य पर भारे असर छे. पाटणना राजानी साथे जेवो जैनो अने जैन मुनिओनो संबंध हतो तेवो ज गाढ संबंध हीरविजयसूरिए अकबर साथे को. अकबरनी विद्वान मंडळीमांना तेओ एक हता. हीरविजयसूरिनो शिष्य समुदाय बहोळो हतो अने तेओए हीरविजयसूरि पासेथी अनुभव अने ज्ञान मेळवी जे साहित्य रन्युं छे ते हीरविजयसूरिना नामने ज वधु प्रदीप्त करे तेम छे. तेमना युगमां एक शतक सुधी यधारेमां वधारे असर तेमनो रही हती. हीरविजयसूरिए दिल्ही सुधी विहार करवामां अने जैन समाजना बीजा हितकारक कार्यो करवामां पोतानी शक्ति वापरेली छे, उतां तेमना उपदेशथी अने सूचनाथी तेमना शिष्योए संस्कृतमां काल्यो रच्या छे पण साथे साथे गुजरातीमांय काव्यो रेच्या छे. जैन धर्माचार्यों अने जैन समाजनुं व्यरे वजन घटवा लाग्युं त्यारे हीरविजयसूरिए जन्म लई फरी तेनी जाहोजलाली प्रज्वलित करी छे विजयसेनमूरि तेओ हीरविजयसूरिनी पाटे आव्या. तेओ हीरविजयसूरिनी हाथ नीचे ज पलोटायेला हता, एटले प्रखर अभ्यासी हता. तेमणे सूरतमां चिंतामणी मित्र वगेर पंडित समक्ष भूषण नामना दिगंबराचार्य साथे शास्त्रार्थ करी तेमने निरुत्तर कर्या हता. Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रमण वंशवृक्ष तेमणे योगशास्त्रना प्रथम श्लोकना ज पांचसो अर्थ कर्या छे. आ सिवाय सुमित्ररास नामनी एक कृति तेमणे रचेल छे. विजयसेनसूरि पछी विजयतिलक ने विजयसेनसूरिनी पाटे विजयदेवसूरि थया. विजयतिलकसूरिथी आनन्दसूरिनी नवी शाखा फूटी विजयदेवमूरि तेमना संबंधी पुरातत्त्वना पुस्तक बीजामां श्री जिनविजयजीए नांध लखेली छे. तेना परथी एटलं जणाय छे के तेओ प्रखर शास्त्रार्थ करनारा अने मंत्रशास्त्री हता. पण तेमनी एके कृति होवानो उल्लेख मळतो नथी. तेमनी केटलीक सज्झायो होवानो उल्लेख मळे छे. तेमनी पाटे श्री विजयसिंहसूरि आव्या. तेमना लघुगुरुभाई विजयप्रभसूरि हता. विजयसिंहसूरिनी पाट उपर ने ते पछी छेक श्री विजयानन्दसूरिना समय सुधीमां पाट उपर आवेल मुनिओमां मुख्यत्वे गणि, पंन्यास, वगेरे छे; परन्तु कोई सूरि नथी. एटले के विजयसिंहसूरि पछी लगभग एक सैका सुधी पाट उपर कोई आचार्य आव्युं नथी. छतां तेटला अंतरमा महान विभूतिओ थई गयेली छे. तेमणे साहित्य सर्जनमां अद्भुत फाळो आपेल छे. तेमनी नेांध लेवा जतां आगळना आचार्योना महान शिष्योने अन्याय थाय तेम छे छतां ते सही लईने पण एक सैकाना अन्तरमा साहित्य- सर्जन शी रीते टकी रह्यु हतुं तेनी उपर टपके नेांध न लईए तो ते सैकाने अन्याय थाय तेम छे. आ समयना केटलाकविद्वान त्यागीओने सूरिपदनो इल्काब नहोतो मळ्यो, पण तेमनी ते मेळववानी इच्छाय न हती; तेओ स्वयं सूार ज हता. आजना कहेवाता सूरि करतां तेओ महान हता. तेमां विजयसिंहसूरि पछी तरत श्री यशोविजयजी उपाध्याय नजरे पडे छे. तेमणे रचेल साहित्यनी वाडी विशाळ छे ने तेमां तरह तरहना सुगन्धीदार अमर-फूलो छे. तेमना रचेला ग्रन्थोमां साडत्रीस ग्रन्थो अत्यारे उपलब्ध छे, पांचेक ग्रन्थो उपलब्ध छतां अप्रकट छे, ज्यारे बाकीना दसेक ग्रन्थो अनुपलब्ध ज छे. ___'आ युगना फलायमान न्यायविषयक उच्च साहित्य तरफ नजर करीए तो जणाशे के ते अनेक व्यक्तिओने हाथे लखायु नथी. तेना लेखक फक्त एक ज छे अने ते सत्तरमा अढारमा सैकामां थयेला सो [ साठ ? ] शरदो सुधी शास्त्रयोग सिद्ध करनार, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, अने मारवाडी चारे भाषामां विविध विषयोनी चर्चा करनार उपाध्याय श्री यशोविजयजी छे. उपध्यायजीना जैन तत्त्वज्ञान, आचार, अलंकार छन्द वगेरे अन्य विषयोनां ग्रन्थोने बाद करी मात्र जैन न्यायविषयक ग्रन्थ पर नजर नाखीए तो एम कहेवू पडे छे के सिद्धसेन ने समंतभद्रथी वादिदेवसूरि ने हेमचन्द्र Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ श्री तपगच्छ सुधीमां जैन न्यायनो आटला जेटलो विकसित थयो हतो ते पुरेपूरो उपाध्यायजीना तर्क ग्रन्थोमां मृर्तिमान थाय छे, अने वधारामां ते उपर एक कुशळ चित्रकारनी पेठे तेओए एवा सूक्ष्मताना, स्पष्टताना अने समन्वयना रंगो पूर्या छे, जेनाथी मुदितम थई आपोआप एम कहेवाय जोय छे के पहेला त्रण युगर्नु बन्ने संप्रदायर्नु जैन न्याय विषयक साहित्य कदाच न होय अने मात्र उपाध्यायजीनुं जैन न्यायविषयक सपूर्ण साहित्य उपलब्ध होय तोये जेन वाङमय कृत कृत्य छे.' अति-प्रखर नैयायिक-तार्किक शिरोमणि, समयज्ञ सुधारक, अजोड विद्वान, योगवेत्ता, सुक्ष्मदृष्टा ने बुद्धिनिधान यशोविजयजी उपाध्याये हेमचंद्राचार्य के हरिभद्रसूरिनी गरज सारी छे ने जैन वाङमयने विकसावबामा तेमणे पूरेपुरो फाळो आपेल छे. अध्यात्मसार, देवधर्मपरीक्षा, अध्यात्मोपनिषद्, आध्यात्मिकमतखंडन सटीक, यतिलक्षण समुच्चय, नयरहस्य, नयप्रदीप, नयोपदेश, जैनतर्कपरिभाषा, ज्ञानबिंदु, ज्ञानसार, द्वात्रिंशत्द्वात्रिंशिकासटीक, कर्मप्रकृति पर टीका, ज्ञानसार, पातंजल योगसूत्रना चतुर्थ पाद पर वृत्ति, अस्पृशद्दगतिवाद सटीक, गुरुतत्त्वविनिश्चय ने ते पर स्वोपज्ञ टीका, सामाचारी प्रकरण टीका साथे, आराधक विराधक चतुभंगी प्रकरण, प्रतिमाशतक, योगविंशिका पर विवरण, न्यायामृततरंगिणा नामनी स्वोपज्ञ टीका, अध्यात्ममतपरीक्षा सवृत्ति, हरिभद्रसूरिकृत-शास्त्रवार्ता समुच्चय पर स्याद्वादकल्पलता नामनी टीका, हरिभद्रसूरिकृत षोडशक पर योगदीपिका नामनी वृत्ति, उपदेशरहस्यसवृत्ति, न्यायालोक, महावीर स्तवन सटीक [ न्यायखंडनखाद्य प्रकरण ], भाषारहस्य सटीक, तत्त्वार्थवृत्ति, वैराग्यकल्पलता, धर्मपरीक्षा सवृत्ति, चतुर्विंशति जिन-अंद्र स्तुतयः, परगज्योतिः पंचविंशतिका, परमात्म ज्योतिः पंचविंशतिका, प्रतिमास्थापन न्याय, प्रतिमा शतक पर स्वोपज्ञवृत्ति, मार्गपरिशुद्धि बगेरे तेमना ग्रंथो मुद्रित थयेला मळे छ; अनेकांतमत व्यवस्था, अष्टसहस्त्री विवरण, [समंतभद्रकृत आप्त परीक्षा उपर दि० अकलंक देवना आसो श्लोकना भाष्य पर दि० विद्यानंद स्वामीनी आठ हजार श्लोकनी टीका ] स्याद्वादमंजूषा, स्तोत्राणी--स्तोत्रावलि, स्तवपरिज्ञा पद्धति वगेरे ग्रंथो अप्रकट छे; ज्यार आकर, मंगलवाद, विधिवाद, वादमाला, त्रिसूत्र्यालोक, दृव्यालोक, प्रभारहस्य, स्याद्वादरहस्य, ज्ञानावर्णव, कूपदृष्टांत विशदीकरण, अलंकारचूडामणी टीका, आत्मख्याति अध्यात्मबिंदु, काव्यप्रकाशटीका, छंदःचूडामणि टीका, तत्वालोक विवरण, वेदान्तनिर्णय, वैराग्यरति, शठप्रकरण, सिद्धान्त तर्क परिष्कार, सिद्धांतमंजरी टीका वगैरे तेमनी अनुपलब्ध कृतिओ छे. साथेसाथे तेमना ज समकालीन अनुभव योगी मुनिश्री आनंदधननेय याद करवा ज जोईए. तेओए हिंदी-गुजराती भिश्र भाषामां रचेल चोवीस तीर्थंकरोना चोवीस स्तवनो अपूर्व छे अने ६. पंडित श्री सुखलालजीनो 'जैन न्यायनो क्रमिक विकास' नामनो सातमी गुजराती साहित्य परिषदनो निबन्ध. Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष १५ आनंदघन चोवीसीने नामे ते जाणीता छे. आवा सुंदर स्तवनो आपणा नजर समक्ष भाग्ये ज नजरे चडे छे. आ सिवाय तेमणे बीजा पदो लखेल छे ने तेनो संग्रह आनंदधन बहोतरीमां थयेल छे. आ सिवाय आ युगमां थयेल श्री विनयविजय उपाध्याय, पंडितश्री वीरविजयजी, अने सत्यविजय पंन्यासने याद करी लेवा जोईए. विजयानंदमूरि No man has so peculiarly identified himself with the interests of the Jain Community as Muni Atmaramji-मुनिश्री आत्मारामजीए पोतानो जातने जेटली जैन समाजने अर्पण करी छे तेटली बीजा कोईए नहि करी होय.' आ शब्दो विजयानंदसूरि माटे अमेरिकामां भरायेल सर्वधर्मपरिषदमां तेमनी छबी नीचे लखवामां आव्या हता. तेओ विजयसिंहसूरिनी पाटे एक आचार्य तरीके लगभग एक शतक पछी आव्या छे. यशोविजयजी महाराज पछी श्रुताभ्यास बंध पड्यो हतो ते विजयानंदसूरिए शरू कों ने तेओए बहुश्रुतपणानुं स्थान संभाळी जैन समाजपर दोढसो बर्षनो अंधकार फरी वन्यो हतो तेने उलेचवा एकले हाथे यत्न कर्या. ते वखते अत्यारना जेटली पुस्तकोनी छूट नहती तोय तेमणे जैनेतर दर्शनना अनेक पुस्तको वांची काढ्या हता. तेमनी स्मरणशक्ति पण अजब हती. वादविवादमा तेओ कुशळ हता. तेमनामां बुद्धिनुं तेज हतुं, तत्वपरीक्षक बुद्धि हती, विशाळ वांचन हतुं एटले तेमणे शक्य साधनो, शिलालेखो, ताम्रपत्रो, भूगोळ भूस्तर-द्वारा जैनोनी प्राचीनतानी महत्ता स्थापवाने यत्न करेल छे. तेमना रचेला ग्रंथोमां-जैन तत्त्वादर्श, अज्ञानतिमिरभास्कर, सत्तरभेदी पूजा, वीसस्थानकपूजा, एक स्थानकवासी साधुना सम्यक्पसारमा करेला आक्षेपोना प्रतिकार रुपे सम्यक्त्व शल्योद्धार नामर्नु खंडनात्मक पुस्तक, जैनमतवृक्ष नामे औतिहासिक ग्रंथ, अष्टप्रकारी पूजा, नवपदपूजा, चतुर्थस्तुति निर्णय, तत्त्वनिर्णयप्रासाद, चिकागो प्रश्नोत्तर वगेर मुख्य छे. विजयधर्मसूरि वृद्धिचंद्रजी महाराजनी पाटपर श्री विजयधर्मसूरि थया. तेमणे परदेशनी अंदर जैन साहित्यना विद्वानो पेदा करवा माटे भारेमा भारे श्रम उठाव्यो छे. तेओ जातमहेनते शास्त्रविशारद थया हता. तेमणे 'जैन शासन' नामर्नु एक पाक्षिक पत्र शरू करेलुं. ने तेमां लखेला तेमना निबंधो ‘धर्मदेशना'मां संग्रहाया छे. धर्माभ्युदय नामर्नु मासिक पण तेमणे काढेलं. हेमचंद्राचार्यनुं योगशास्त्र तेमणे संपादन करेलुं छे. जैन तत्त्वदिग्दर्शन, अहिंसादिग्दर्शन, जैनशिक्षादिग्दर्शन, पुरुषार्थदिग्दर्शन, Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ इन्द्रियपराजय दिग्दर्शन, आत्मोन्नतिदिग्दर्शन, जैनतत्त्वज्ञानम्, देवद्रव्यसंबंधी मारा विचारों, प्रमाणपरिभाषा, अतिहासिक तीर्थमाळा संग्रह, अतिहासिक रास संग्रह -त्रणभाग ने देवकुलपाटक-निबंध, [ देलवाडानो इतिहास ] ए तेभना मुख्य पुस्तको छे. १६ इटली, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लांड ने अमेरिकामां जैन साहित्यना अभ्यासीओ उत्पन्न कराव्यानी तेमनी सेवा मोटामां मोटी छे, महावीरनुं तप एटले ज्ञाननी ऊंडी शोध, ए ज्ञाननी ऊंडी शोध माटे चोवासे तीर्थंकरोए महा तप कर्तुं हतुं ने महावीरे वधुमां वधु कष्ट भोगवी तेनी शोध करी हती. तेमणे जे ज्ञान गणधरो समक्ष मूक्युं, अने उपदेश आप्यो ते सुधर्मा स्वामी, वगेरेए जाळवी राख्यो ने ते साहित्य 'श्रुतसाहित्य' ने नामे ओळखायुं. परन्तु धीमे धीमे ते वीसराई जवा लग्युं, आथी पाटली पुत्र परिषद, माथुरी वांचना, वगेरे द्वारा ते याद हतुं तेटलं संकलित थयुं. श्री भद्रबाहु स्वामीए आगमो रच्या, ने क्रमशः श्रुतसाहित्य, आगम साहित्य वगैरे पर नियुक्तिओ वगेरे रचात्रा लाग्यं श्रुत साहित्य के आगम साहित्यनी प्राकृतमां ज रचना थयेली हती परन्तु धीमे धीमे संस्कृत साहित्यनो जैन साहित्यमां विकास थयो. उमास्वामिवाचक, पादलिप्तसूरि, अने न्यायशास्त्राना प्रस्थापक दार्शनिक तर्कप्रधान प्रतिभावान सिद्धसेनसूरिए श्रुत अने आगम साहित्यने विकसावामां मोटो फाळो आप्यो छे. श्री सिद्धसेनसूरिए तो आगळ वधी न्यायावतार तर्कप्रकरणनी संस्कृतमां रचना करीने जैन प्रमाणनो पायो नाखी न्याय युग शुरू कर्यो. तेमना पछी फरी स्मरणशक्तिमा शिथिलता आववा लागी ने श्रुत्त साहित्य प्रमाणां विसरावा लाग्यं आथी पांचमी शताब्दीमां देवर्द्धिगणीए वलभीपुर परिषद बोलावी श्रुत साहित्यने एकत्रित करी पुस्तकारूढ करें युगप्रधान हरिभद्रसूरि ने कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्रे साहित्यने पुष्पित करवामां कचाश नथी राखी तेमना समयमा प्राकृत तथा संस्कृत भाषानो पण विकास थयो छे. त्यार पछी तपगच्छना आचार्योए तेमां उमेरो करवा अथाग परिश्रम सेव्यो छे. देवेन्द्रसूरि, श्री देवसुन्दरसूरि, श्री सोमसुन्दरसूरि, हीरविजयसूरि अने तेमना विद्वान शिष्य समुदाये एक या बीजी रीते जैन वाङमयने काव राखवामां, विकसाववामां अने नवा सर्जनमां ओछो फाळो आप्यो नथी. केटलीक वखत तो तेमना करतां तेमना शिष्यो पण चढी जाय तेम छे. जैन मुनिओनुं विहार ए प्रचार माटेनुं प्रबल साधन छे. विहार करता करतां तेमनी उपदेशोनी हार वखते तेमना मुखमांथी केटलीक वखत सरस्वती ज वहे छे. ने जनता उपर तेमनी एटली असर थाय छे के तेओ मुनिराज पासे सर्वस्व बहोरावचा पण तैयार थाय छे. आधी Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष आचार्योनी ज्यां ज्यां नजर पडी छे ते ते विषयमां ऊंडा उतरवानी दरेक तक तेमणे लीधी छे अने साहित्यना कोई पण विषय पर हाथ अजमाववो तेमणे बाकी नथी राख्यो. वळी तेओ निःस्पृही होवाथी श्रावक समुदाय पासेथी समयने अनुसरी काम लोधेलुं छे. तेमना उपदेशथी लखायेल हजारो ताडपत्रो ने पुस्तको अत्यारे जेवी ने तेवी स्थितिमां भंडारोमां मोजूद छे. आ वस्तु पाठळ जैन समाजे फक्त पैसो ज नथी खरच्यो पण तेमणे जाते ताडपत्रो ने पुस्तको लखेल छे. ताडपत्र परथी पुस्तकने कागल उपर उतारवामां पण एटली जहेमत उठावेल छे. तपगच्छना आचार्योए प्रबन्ध लखवानी कळाने अने लोककथा साहित्यने वधु विकसावेल छे, अने ए द्वारा गुजराती भाषानुं सर्जन पण करेल छे. तेओनी-साधुओनी एक विशिष्टता ए पण छे के तेओ जीवता जागता भंडारो समा छे. तेमनी पीठ पर ज ज्ञान-भंडारनुं वहन थाय छे; आथी ने विहारथी अन्य कोई धर्मना साधुए जे कार्य नथी कर्यु ते जैन धर्मना साधुओए करी बताव्युं छे, बल्के तेमांय तपगच्छना आचार्योनो मोटो फाळो छे. तेमणे तपगच्छना स्थापक जगचन्द्रसूरिथी आज सुधी एटले के लगभग सातसो वर्ष सुधी--शिल्प, स्थापत्य तथा बीजी कलाओ साथे साहित्य सर्जन अने रक्षणमा जराये कचाश आववा नथी दीधी, बल्के तेमां ऊमेरण कयुं छे. अने ते द्वारा जैन संस्कृतिने टकावी राखी छे, जैन इतिहासने जाळवी राख्यो छे, जैनोनी महत्ताने तेमणे चिर यशस्वी बनावी छे. ते माटे खरेखर तेओ वंदनीय छे, स्मरणीय छ, ने पूजनीय छे. ___भाई जयंतीलाले आ निबन्ध लखवा माटेनी मने तक आपी ते बदल तेमनो आभार मार्नु छं ने निबन्धमा जे क्षति रही गई होय ते बदल वा चकनी क्षमा मागी आ निबन्ध पूर्ण करुं छं. C/o गूर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय गांधीरोड : अमदावाद भीमअगियारस : १९९२ 卐 Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ जैनोना इतिहास पर एक दृष्टिपात —योगनिष्ठ आचार्य बुद्धिसागरसरि जैनधर्म आ जगतमां अनादि काळथी छे. जैनो जगतने अनादि काळनुं माने छे. परमेश्वर परमात्माआने अनादि काळथी माने छे. एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, अने पंचेन्द्रिय जीवोने कर्म सहित संसारी जीवो माने छे. अनादि काळथी जीवो छे अने तेओनी साथे अष्ट कर्म लाग्यां छ एम माने छे. जीवोने पुण्ययोगे सुख थाय छे अने पापयोगे दुःख थाय छे. पुण्य ए शुभ कर्म छे अने पाप ए अशुभ कर्म छे. अत्यंत अशुभ कर्मथी नरकमां जवाय छे अने अत्यंत शुभ कर्मथी स्वर्गनी प्राप्ति थाय छे. पुण्य सहित अल्प पापथी मनुष्यनी गति प्राप्त थाय छे. कपट वगेरथी तिथंचनी गति प्राप्त थाय छे. मनुष्यनी गतिमां आत्मानी पूर्ण शुद्धि थवाथी मोक्ष मळे छे, एम जैनो माने छे. गृहस्थजैनो, देश अर्थात् अंशथकी बार व्रतोने अंगीकार करे छे. जेओ त्यागीना पंच महाव्रत ग्रहीने कंचन कामिनी वगेरेनो त्याग करे छे तेओने त्यागी मुनिओ-साधुओ कहेवामां आवे छे. तेओ सर्वविरति मुनि कहेवाय छे. मुनिओना उपरीने आचार्य कहे छे. त्यागीधर्म ग्रहण करनारी स्त्रीने साध्वी, श्रमणी-आर्या कहेवामां आवे छे अने तेनी उपरी साध्वीने प्रवर्तिनी कहेवामां आवे छे. जे साधुओने अने साध्वीओने आगमो वगेरे भणावे छे ते उपाध्याय कहेवाय छे. पंडित साधुओने पंन्यास कहे छे. जैनधर्म माननारा गृहस्थ स्त्रीवर्गने श्राविका-संघ तरीके कहेवामां आवे छे. जैन गृहस्थो श्रावक-संघ तरीके कहेवाय छे, साधुओने साधु-संघ अने साध्वीओने साध्वी-संघ एम चतुर्विध संघ कहेवाय छे. चतुर्विध संघने तीर्थ कहे छे अने एवा तीर्थनो उच्छेद थवानो समय आवतां जे केवळज्ञानी अर्हतो, संघरूप तीर्थने स्थापे छे ते तीर्थंकरो कहेवाय छे. चोवीश तीर्थंकरोना कालमां बार चक्रवतिओ थया, अगियार रुद्र, नव नारद, नव वासुदेव, नव प्रतिवासुदेव, अने नव बळदेव थया. (चोवीश तीर्थकर, बार चक्रवर्ति, नव वासुदेव, नव बळदेव, नव प्रतिवासुदेव ए त्रेसठ शलाका पुरुषो कहेवाय छे.) आजसुधी अनेक तीर्थंकरो थइ गया. Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष वीश तीर्थकरो बिहार - काशी वगेरेमां थया. बावीशमा श्री नेमिनाथ सौराष्ट्रदेश द्वारकापुरीमां थया. शौरीपुरमा ( मथुरामां) जन्म्या हता. ते यदुवंशी हता. तेमणे भारतदेशमां जैनधर्म प्रसराव्यो. चोवीशमा तीर्थंकर श्री क्षत्रियकुंड नगरमां थया, ( बिहार मगधदेशमां वैशाली नगरी पासे क्षत्रियकुंड नगर आवे छे ) तेमना पिता सिद्धार्थ राजा हता, अने तेमनी माता त्रिशला राणी हतो. जन्मथकी ते मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अने अवधिज्ञान ए त्रण ज्ञानवाळा हता. युवावस्थामा सिन्धुसौवीर देशनी समरवीर राजानी पुत्री यशोदा साथे लग्न कर्तुं हतुं सांवत्सरिक दान देइने तेमणे त्रीशमा वर्षे दीक्षा अंगीकार करी. कार्तिक वदी दशमे दीक्षा लीवा पछी तेमणे बार वरस पर्यंत ध्यान धर्यु अने मनुष्यो वगैरे तरफथी थता उपसर्ग परिसहोने समभावे सहन कर्या. बेंतालीशमा वर्षे ऋजुवालिका नदीना तीरे श्यामाक कुटुंबीना क्षेत्रमां सालवृक्ष नीचे वे उपवास करो शुक्ल ध्यान धर्यु तेथी तेमना शुद्रात्मामां केवलज्ञान प्रगट्युं तेथी ते लोकालोक, सर्वरूपी तथा अरूपी पदार्थो - तत्त्वोने साक्षात् देखवा लाग्या. प्रभु केवलज्ञान पाम्या के तुर्त समवसरणनी रचना थई. तेमना समवसरणमां, आर्यावर्तमां दादिक विद्यामा पारंगत, महावादी गौतम ( इन्द्रभूति ), अग्निभूति, वायुभूति वगेरे अगियार आचार्य ब्राह्मणो आव्या. तेओ संपूर्ण भारतमां प्रसिद्ध हता. तेओनी शंकाओने भगवान् श्री महावीर देवे वेदोनी श्रुतियो सापेक्षपणे समजावी दुर करी, अने अगिआरे ए श्री महावीरदेव पासे दीक्षा अंगीकार करी. महावीरप्रभु गौतमादि अगियार ब्राह्मणोने गणधर स्थाप्या. न्यायशास्त्राना रचनार गौतमऋषि तथा अन्य गौतमऋषिथी प्रभुना गणधर गौतमऋषि जुदा हता. परमात्मा महावीरदेवे जैनधर्मनो प्रकाश कर्यो अने चतुर्विध संघने स्थापी दुनियामां तीर्थ प्रवर्तायुं. तेमणे चौद हजार साधुओ कर्या, छत्रीश हजार साध्वीओ करी, एक लाख ने ओगणसाठ हजार बारव्रतधारी श्रावको बनाव्या, अने अविरती सम्यग्दृष्टि जैनो करोडोनी संख्यामां बनगव्या. तेमणे त्रण लाख अढार हजार बारव्रतधारी श्राविकाओ बनावी . अगियार गणधरोए तथा ते गणधरोना साधुओए करोडोनी संख्यामां श्रावको अने श्राविकाओ बनावी. प्रभु महावीरदेवनो बोध आखा हिन्दुस्तानना श्रेणिक, उदयन, उदायी, चंडप्रयोत, चेटक वगेरे राजाओए स्वीकार्यो अने महावीरदेवना भक्त बन्या. प्रभुए ज्ञान, दर्शन, चारित्रनुं स्वरूप समजायुं. आत्मज्ञाननो विश्वमां प्रकाश कर्यो. प्रभु महावीरदेव आषाढ सुदि छ मातानी कुमां आव्या अने चैत्र शुद्ध तेरसनी मध्यरात्रीए जन्म्या. प्रभु महावीर भगवाने केवळज्ञान पामीने त्रीश वर्ष सुधी भारतदेशमां सर्व लोकोने धर्मनो उपदेश दीघो. शूद्र- चंडाल जातिने पण त्यागदशानो अधिकार जणावीने त्यागी बनाव्या. भारतदेशमां दया, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अध्यात्मज्ञान, योगज्ञान प्रगट कर्यु अने भारतना लोकोनां हृदयोने दयाथी भरी दीघां. त्यागी महात्माओने बनावी हिंदुस्तानथी बाह्यना देशोमां जैनधर्मनो प्रचार कर्यो, १९ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्री तपगच्छ भगवानना शिष्योए दश पयन्नानी रचना करी, गणधरोए दृष्टिवादनी रचना करी. पश्चात् स्थविर आचार्योए उपांगो वगेरेनी रचना करी. चोराशी आगम तथा पिस्तालोश आगमो तथा अन्य स्थविर आचार्यो वगेरे कृत जे शास्त्रो छे ते सर्वमा प्रभु महावीरदेवनुं ज्ञान भर्यु छे. हाल पिस्तालीश आगम विद्यमान छे. तथा हजारो धर्मग्रन्थ-शास्त्रो विद्यमान छे. प्रभु महावीरदेवे सत्य श्रुतज्ञान्नो प्रकाश करी चतुर्विध संघरूप तीर्थनी स्थापना करी. तेमणे छेवटनु थोडं आयुष्य बाकी जाणीने छेक्टे त्रण दिवस सुधी ( पावापुरीमा अढार देशना राजाओनो गण मल्यो हतो तेमनी आगळ) अखंड प्रवाहे उपदेश दीधो; तेमांना नव राजा लेच्छवी जातिना हता ने नव मल्लकी जातिना क्षत्रिय राजा हता. छेवटनी सभामां लाखो मनुष्यो भगवानना शरीरनी अन्तावस्था जाणीने भेगा थया हता. भगवाने पापर्नु अने पुण्यन स्वरूप जणाव्युं अने आत्मानी मुक्तिना उपायो जणाच्या. आसो वदि अमावास्यानी एक प्रहर रात्रि अवशेष रही त्यारे प्रभुए शरीरनो त्याग कयों अने ते सिद्ध स्थानमा सिद्ध बुद्ध परमात्मा तरीके सादि अनन्तमां भागे विराजमान थया. श्वेतांबर फोमनी अने दिगंबर कोम वगैरेनी वसति अत्यारे सर्व मळीने बार लाख पांत्रीस हजारना आशरे छे. श्री महावीरदेव अने अशोक, खारवेल, संप्रति राजाना समयमां जैनोनी संख्या वीश करोड लगभगनी हती. हिन्दुस्तान तथा अफगानीस्थान, अबस्थान, आसाम वगेर अन्य देशोमां पण जैनधर्म फेलावाथी जैनोनी संख्या वधी हती. अशोक पहेलो बौद्ध हतो पण पाछळथी ते जैन थ्यो हतो. चन्द्रगुप्त राजा जैन हतो. शंकराचार्यनी पूर्व ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शूद्र ए चार वर्णोमां जैनधर्म प्रवर्ततो हतो तेथी विक्रम संवत् पांचमा, छट्ठा, सातमा सैका सुधी दश करोड लगभग जैनोनी संख्या हती, गुजरातनी गादी स्थापनार वनराज चावडो श्री शीलगुणसूरिनो शिष्य हतो. ते जैनधर्म मानतो हतो अने शैवधर्मने मान आपतो हतो. ते वखतमां ग्वालीयर तरफना देशमा आमराजा जैनधर्मी हतो. तेना वखतमां जैनोनी संख्या पांच-सात करोड सुधीनी हती. कुमारपाळ राजा जैनधर्मी राजा थयो, तेना गुरु श्री हेमचन्द्राचार्य हता. तेमना वखतमां जैनोनी संख्या पांच करोड आशरे हती. ते वखते पण थोडा घणा प्रमाणमां चारे वर्णों जैनधर्म पाळती हती. कुमारपाळ राजाए जैन ब्राह्मणोने भोजक तरीके व्यवस्थापित कर्या. कुपारपाळ पछी वस्तुपाळ अने तेजपाळ गुजरातना प्रधानो थया. तेमना वखतमां जैनोनी संख्या चार करोडनी हती. ते वखते पण श्वेताम्बर अने दिगम्बर जैनोनुं जोर पुष्कळ हतुं. जैनो क्षत्रिय धर्म प्रमाणे युद्धादिक प्रवृति करता. वस्तुपाल अने तेजपाळ पछीना काळमां तथा रामानुजाचार्य तथा वल्लभाचार्य पछी तेओना उपदेशथी अने बैष्णव राजाओना जोरथी जैनोनी संख्या घटवा लागी, अने जैन वणिकोने रामानुजे तथा वल्लभाचार्य वैष्णव बनाववा मांड्या. श्री हीरविजयसूरिना वखतमां श्री अकबर बादशा Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष हना समयमां जैनोनी संख्या बे करोडना आशरे गगाती हती. पश्चात् त्रणसे वर्षमां घटतां घटतां वि. सं. १९०५ लगभगमां जैनोनी संख्या वीश लाख गणावा लागी. पश्चात् पंदर लाख, पश्चात् तेर लाख अने वि. सं. १९८० सुधीमां जैनोनी संख्या बार लाख पांत्रीस हजार गणाय छे. जैनोनी संख्या घटवानां अनेक कारणो छे. प्रथम तो तेओए स्वधर्ममां घाखरा वैदिक पौराणिक हिन्दुओना रिवाज दाखल कर्या तथा साधुओनी संख्या घटवा लागी हती, तेमज हिन्दु संन्यासीओ, धर्माचार्यानी पेठे जैन साधुओने धर्म प्रचारार्थे फरवानी सगवड बंध थई. जैनोनी संख्या वधवानां कारणोना उपयोग थतो बंध थयो. जैन वणिक कौम सिवायनी अन्य कोमोने जैन बनाववानी व्यवस्था घटी गई. मुसलमानो जेम गमे तेने मुसलमान करी शके छे अने पोतानी कोमनी संख्या वधारे छे, तेवो जैनोनो पूर्वे मार्ग हतो, ते जैनोए बन्ध कर्यो, तथा जैन कोम व्यापारी होवाथी बीकण, नामर्द बनवा लागी अने पोतार्नु धर्मझनुन भूलवा लागी, ते अन्य कोमोना आक्रमणथी पोतानी जात उपर उभी रही जीवी शके एवी स्थितिना ज्ञानथी अज्ञान बनवा लागी. हिंदुओए मुसलमानी राज्यमा पोतानी घणीखरी वसति खोई छे. भूलेचूके कोई मुसलमान जो हिंदुना मुखमा थुके तो पछी ते हिंदु प्रायश्चित्त करे तो पण तेने पाछा हिंदुधर्ममा लेता न हता. हवे हिंदुओए पोतानी ते भूल जोई छे अने वटलाई गएला तथा अन्य धर्ममां गएला हिंदुओने पाछा प्रायश्चित्त करावी हिंदुधर्ममा दाखल करवा मांड्या छे. मदनमोहन मालविया, स्वामी श्रद्धानंद तथा शंकराचार्यो तथा वैष्णवाचार्यो जाग्या छे. तेओना जेटला पण जैनहिंदओ वणिक होवाथी जागी शक्या नथी. हिंदुओ जे ब्राह्मण वणिको वगेर छे तेओनं जैनो अनुकरण करे छे, अने जैन मुनिओ तो आ बाबतमा बीलकुल अज्ञ जेवा छे. तेओ तो धर्मनी क्रिया करे छे पण क्रियामतभेदे परस्पर मतभेदवाळा साधुओनी साथे ऐक्य प्रेमथी वात करवामां पण समकितने ठेकाणे मिथ्यात्व आवी जाय एम माने छे. पण हवे केटलाक मुनिओ, आचार्यो तथा जैन गृहस्थो वर्तमान परिस्थितिने जाणी गया छे. जैन शास्त्रोने जैन कोममा प्रत्येक व्यक्ति जाणशे त्यारे जैनोनुं बळ वधशे. जैनो वर्तमानमा आपत्कालीन स्थितिमा छे पण तेओ फक्त खावं, पीवं, जीव, अने कुळाचारे धर्मनी केटलीक प्रवृत्ति करवी एटलं ज समजी शके छे, तेथी तेओमां धर्मझनुन अने धर्मप्रगतिनी चळवळ घणी ज ओछी रहे छे. जैनोमां तो जे रात्रे न खाय अने कंदमूळ त्याग करे ते ज जैन बनी शके तथा खेती वगेरे बीजा धंधा छोडी दे तो ज जैन बनी शके एवी हालना जैन वणिकोना बहोळा भागनी मान्यता छे ! पण जैन शास्त्रोमां चारे वर्णो पोताना गुण कर्म प्रमाणे वर्तती जैन बनी शके एवी विशाळ दृष्टि छे. तेने जैन कोम भूलवा लागी छे, कट्टा आर्यसमाजी लाला लजपतराय के जे स्वरचित --- " भारतका Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ इतिहास ”मां जगावे छे के “ जैन साधुओ जेटला दुनियामां अन्य धर्मना साधुओ पवित्र नथी, अने जैनधर्मनी विश्वमा घणी जरुर छे." २२ लोकमान्य तिलके वडोदरानी जैन कोन्फरन्समा भाषण आपती वखते जणान्युं हतुं के " वेद धर्म जेटलो जैनधर्म प्राचीन छे अने जैनधर्मना बळथी वैदिक हिंसानो नाश थयो छे " वि. सं. १९६३ मां सुरतमां महासभानी बेठकमां जवा लाला लजपतराय नीकळेला, रस्तामां अमदावाद उतरेला. ते वखते महूम शेठ श्री लल्लुभाइ रायजीनी साथे लालाजी चारसो माणस लइने मने मळवाने पधारेला मनुष्योनुं कल्याण करवानो उपदेश आप्यो हतो. लालाजीए ते वखते जैनोनी उदारता अने अहिंसाना वखाण कयी हता अने कयुं हतुं के " आपना जेवा जैन साधुओ थी हिन्दनो उद्धार थवानो छे." जैन शास्त्रमां मनुष्योनी दया करवानुं जगात्र्युं छे. पशु पंखी करतां मनुष्योना दया करवामां अनंतगणुं विशेष फळ छे एम जैन शास्त्रो पोकार करीने कहे छे. जैनमां त्यागी साधुओ धर्मगुरु तरीके पोतानी त्याग दशामां मशगुल रह्या. तेओए जैनोनी संख्या घटे छे, ते तरफ ब्राह्मणोनी पेठे कशु लक्ष आप्युं नहीं तथा कोमना सर्व त्यागीओए संघ मेळवी जैनोनी संख्या घटे छे तेनी वृद्धि करवा कशा उपायो लोधा नहीं. गृहस्थ जैनोए पण संघ भगो करी ते संबधी कई उपायो योज्या नहीं; कारण जैन गृहस्थो मोटा भागे जैन शास्त्रोना ज्ञाताओ बनता नथी तथा जैनो व्यापारी खानदान- - वैभवभोगी होवाथी आ बाबतथी बीलकुल अजाण रह्या तथा तेओ कुलाचारे गाडरी आप्रवाहे जैनधर्मने पाळवा लाग्या, तथा तेओने जैनसंख्यावृद्धिनो उपदेश पण यथायोग्य मळ्यो नहीं. साधुओ तथा आचार्यो त्याग अने क्रियाकांड करवामां ज पोतानु ध्येय मानवा लाग्या. तथा तेओए जाहेर उपदेश देवाना मार्गो तरफ दुर्लक्ष कर्यु. वैदिक पौराणिक हिंदुओने राजाओ तरफथी सारी मदद मळी. आर्य सनातन जैन हिंदुओने राज्याश्रय मळतो बंध थयो. मुसलमानो एक हिन्दुने मुसलमान बनाववामां स्वर्गना राज्यनी प्राप्ति माने छे. जैनोए जोर, जुल्म, अन्याय अने शास्त्रोना बळथी आजसुधी एक पण अन्यधर्मी मनुष्यने जैन बनाववा प्रयत्न कर्यो हो एवं ऐतिहासिक दृष्टिए जणातुं नथी. जेनोए आजसुधी जैन-मंदिरो बंधाववामां विशेष लक्ष दधुं छे. हिन्दमां जैनोना लगभग आशरे छत्रीस हजार मंदिरो छे. ज्यां जैनो वसे छे त्यां परबडी पांजरापोळो करे छे. उपाश्रय तथा देरासर बन्धावे छे. घणाखरा जैनो जैन ऐतिहासिक बाबतोथी अज्ञात रहे छे. मुसलमानोनुं आकीन वखणाय छे, वैष्णवोनी भक्ति वखणाय छे, अने जैनोनी दया वखणाय छे. जैनोमां श्री भद्रबाहु स्वामी, हरिभद्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य, मल्लवादी, सिद्धसेन दिवाकर, उपाध्यायजी - समंतभद्रसूरि, अकलंक, निकलंक, कुंदकुंदाचार्य, वगैरे अनेक आचार्यो थई Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष गया छे. तेओए सर्व विषयोना अनेक ग्रंथो लख्या छे. जैनोनां तीर्थो सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, आबु, राणकपुर, सम्मेतशिखर, पावापुरी, श्रवणबेल्गुल, राजगृही वगैरे अनेक छे. हिमालयमां पण जैन तीर्थ छे. काबुलमां जैनो वसे छे. हिंदनी चारे दिशाए जैन तीर्थो छे. जैनो व्यापारी, धनाढ्य, श्रीमंतो, चतुर, कलादक्ष, गणाय छे. हालमां सर्व धर्मवाळाओनी चळवळ देखीने जैनो पण जागृत थया छे. जैन कोन्फरन्सो, सोसायटीओ, परिषदो वगेरे भराय छे, पण तेमां जैनोनी संख्यावृद्धि माटे तथा श्वेतांबर दिगंबर कोमना तीर्थ कजीआ-माहोमांहे पताववा ते बाबत कशुं खास जाणवा लायक लक्ष अपातुं नथी तेथी तीर्थोना झगडामां जैनोना लाखो रुपीआ बरबाद थाय छे. जैन धार्मिक ज्ञाननी वृद्धिमा दिगंबरो जेटलं धर्माभिमान श्वेतांबरो लक्ष पूर्वक राखता नथी. दरेक जैने एक वरसमां बे त्रण वखत तीर्थोनी यात्रा करवी तथा दररोज एक जैनपुस्तकनो केटलोक भाग वांची जबो, तथा दररोज गुरुनो बोध सांभळवो, दररोज गुरुदर्शन तथा व्याख्याननो लाभ न मळे तो वर्षमा चार पांच वखत ज्यां आचार्यो, साधुओ, होय त्यां गुरुदर्शनार्थे जवं, अने जैनधर्मनुं व्याख्यान वगेरथी स्वरूप समजवू, जैन धर्मनी श्रद्धा धारण करवी, अने अन्य धर्मीओना धर्मनी नोंदा न करवी. अन्य हिंदुओ वगेरे धर्मनी चढती करवामां जे जे उपायो ग्रहण करे ते प्रमाणे पोते जैनोए पण धर्मवृद्धिना उपायो ग्रहण करवा. जो ए प्रमाणे जैनो समय विचारी कर्मयोगी थई वर्तशे तो दुनियामां जैनोनुं अस्तित्व संरक्षा शकशे अने अन्य धर्मीओना आक्रमण-हुमला वगेरेथी बची शकशे. शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य वगेरे आचार्योए परस्परनी तत्त्व संबंधीनी मान्यता भिन्नभिन्न होवा छतां तेओए पोतानी मान्यता अनुकूल श्रुतियोना अर्थ करीने पोतानी करी दीधी छे. प्रभु सर्वज्ञ महावीरदेवे जेम गौतमादिक गणधरोने श्रुतियोनो सम्यग् अर्थ जणाव्यो, तेम जैनाचार्यो वेदोनी श्रुतियोनो जैनतत्त्वानुकूल अर्थ करी वेदादिकने जैन तत्त्वज्ञानना पोषक-प्ररूपक माने अने एवो अर्थ करी प्रवर्ते तो तेओने ते स्याद्वाददृष्टिनी अपेक्षाए जैनोनी वृद्धिमा उपयोगी थई पडे तेम छे. इशावास्योपनिषद्पर अमोए स्याद्वाददृष्टिए टीका करी छे, ते स्याद्वाददृष्टिथी गीतार्थ जैनो अने सुज्ञ ब्राह्मणो वांचशे तो तेओ जैन हिंदु धर्म अने वैदिक हिंदु धर्मना पुल जेवी छे एम स्याद्वाददृष्टिनो अनुभव करी शकशे. वैदिक पौराणिक हिंदुओना धर्मग्रन्थोथी जैनधर्मना ग्रन्थो-शास्त्रो विशेष छे. बौद्धधर्मथी बीजा नंबरे आखी दुनियामां जैनधर्मना ग्रन्थो छे. जैन शास्त्रामा सर्व दर्शनोना तत्त्वज्ञाननो मुकाबलो करवामां आव्यो छे. बुद्धिवादमां जैनतत्त्वज्ञाननां शास्त्रो प्रबळ, गंभीर, अकाट्य, अखंडय छे. दिगंबरनां अने श्वेतांबरनां तत्त्वज्ञाननां तथा न्यायनां शास्त्रो खास वांचवां जोईए अने पश्चात् जैन तत्त्वज्ञान संबंधी अभिप्राय जाहेर करवो जोईए. Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ जैनशास्त्र जगावे छे के रागद्वेपादि मोहनीय कर्म, ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय, ए चार घातीकर्मनो ज्ञानध्यानसमाधीथी क्षय थतां सर्व विश्वनुं संपूर्ण प्रकाशक एवं केवलज्ञान प्रगटे छे, तेथी केवलज्ञानी तीर्थंकर महावीर आदि सर्वज्ञो आ विश्वमां प्रगटे छे. तेओ बीतराग होवाथी तथा सर्वज्ञ होवाथी सर्वथा सत्यधर्मनो प्रकाश करे छे अने ते ज जैनधर्म छे. सर्वज्ञ केवलीओनो उपदेश ते सत्य ज्ञानमयवेद छे, ज्यारे ज्यारे दुनियामांथी सत्य धर्मशास्त्रमां असत्यनुं मिश्रण थाय छे त्यारे एवा सर्वज्ञ तीर्थंकरो प्रगटे छे ते पुनः सत्यधर्मनो प्रकाश करे छे. तेओनां वचन ते प्रत्यक्ष ज्ञानथी भरेलां होवाथी ते आगम-सिद्धांत तरीके होवाथी जैनोने ते वेदोरूप थाय छे अने तेथी तेना पूर्व समयनी भाषालिपि ग्रन्थो वगेरेनी पण उपयोगिता रहेती नथी. वर्तमानमां जे भाषा होय छे अने जेथी पंडितो बालो वगेरे समजी शके छे ते भाषामा सर्वज्ञ तीर्थंकर उपदेश आपे छे. सर्वज्ञ वीतराग श्री महावीरप्रभुए केवलज्ञान प्रगटाव्युं, अने तेथी सर्वे जाण्युं अने सर्व देख्युं ते प्रमाणे उपदेश दीघो. तेथ तेओनां वचनो ते वेदो - आगमो सिद्धांत रूप थयां छे. ज्यारे तेओनी वाणीरूप श्रुताज्ञान टळी जो एटले ते पछी उत्सर्पिगीना त्रीजा आराना छेडे पहेला पद्मनाभ ( के जे श्रेणिक बिंबीसारराजा हता ते) तोर्थंकर तरीके थशे. जैमिनी आदि वैदिक ऋषियो कहे छे के सर्वथा रागद्वेष नहीं टळवाथी मनुष्य सर्वज्ञ थई शकतो नथी. माटे वेदो प्रमाणे वर्ततुं जोइए. भरत, अंगिरा, वायु वगेरेना हृदयमां परमेश्वरे सत्यज्ञान प्रकारयुं अने तेमणे वेदो रच्या. जैनो कहे छे के ज्यारे भरत, वायु, अंगिरानां हृदय शुद्ध त्यारे सत्य वेदो अर्थात् सत्यज्ञाननो प्रकाश थयो, तो ऋषभादिक चोवीश तीर्थंकरोए ज्ञानध्यान समाधियोग आदर्यो, सर्व रागद्वेषादिक दोषोनो नाश कर्यो तेथी तेमना शुद्ध आत्मामां विश्वनुं ज्ञान अर्थात् संपूर्ण केवलज्ञान प्रगटयुं, अने तेओनां वचनो ते वेदश्रुतियोरूपे अर्थात् आगमोरूपे थयां ते जैनशास्त्रो छे, एम मानवामां युक्ति अनुभवनी समानता छे. सर्वज्ञ वीतराग - वचनो ते ज आप्तवाक्यो छे एम जैनो स्वीकारे छे. २४ -" विजापुरवृत्तांतमांथी ' Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्रमण वंशवृक्ष तपगच्छनी उत्पत्ति लेखक-मुनिराज श्री दर्शनविजयजी ( दिल्हीवाला ) निर्ग्रन्थाः श्रमणाः प्रेष्ठा वीरतत्त्वोपदेशिनः । ज्ञानपुजास्तपोगच्छा जयन्तु श्री मुनीश्वराः ॥ १ ॥ तपगच्छ एटले भगवान् महावीर स्वामीथी प्रारंभीने आज सुधीनो श्रमणप्रवाह. अने तेनी उत्पत्ति एटले श्रमणोनो, तपोगुणनी विशिष्टता आलेखतो, इतिहास. श्रमण-संघ वि. सं. पूर्वे ५०० वर्षे वैशाख शुदि ११ नी प्रभाते श्रमण भगवान् महावीरे समवसरणमा बेसी साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविका एम चार वर्गने अविभक्तपणे संयोजी " श्रमण-संघ" नी स्थापना करी. ते समये भगवान् महावीर अपूर्व त्यागने लीधे " निम्रन्थ ज्ञातपुत्र" एवा लाक्षणिक नामथी प्रसिद्ध हता. तेम ज तेमनो परिवार पण “ निर्ग्रन्थ " विशेषणथी ज विशेष प्रसिद्ध हतो. १. “ निग्रन्थ--ज्ञातपुत्र" माटे बौद्ध ग्रंथोमां नीचे प्रमाणे उल्लेखो छ : A. अन्नतरो पि खो राजामचो राजानं मागधं अजातसत्तुं विदेहीपुत्तं एतदवोच-"अयं देव ! निगंठो नातपुत्तो संघी चेव गणी च गणाचारियो च आतो यसस्सी तित्थकरो साधु सम्मतो" -दीघनिकाय । B. तेन खलु समयेन राजगृहे नगरे षट् पूर्णाद्याः शास्तारोऽसर्वज्ञाः सर्वज्ञमानिनः प्रतिवसंति स्म । तद्यथा-पूरणः काश्यपः, मश्करीगोशालिपुत्रः, संजयीवैरट्टीपुत्रः, अजितःकेशकम्बलः, ककुदः कात्यायनः, निम्रन्थो ज्ञातपुत्रः। -दिव्यादान १२-१४३, १४४. । C. पूरण-ज्ञातिपुत्राधाः । ---अवदानकल्पलता, पल्लव-१३, श्लोक-४११ । D. एक समयं भगवा सकेसु विहरति सामगामे । तेन खो पन समयेन निग्गंथो नातपुत्तो पावायं अधुना कालकतो होति । -मज्झिमनिकाय । E. भगवान् गौतमबुद्धना विरोधी ६ धर्माचार्या हता. १. पूरणकाश्यप, २. मंखलीगोशाळ, ३. संजयीवरट्टीपुत्र, ४. अजीतकेशकम्बल, ५. ककुदकात्यायन, ६. निर्ग्रन्थज्ञातपुत्र. -मज्झिमनिकाय, १-३-१०।२-३-६ । २-३-७ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ आ उपरांत ते समये जैन साधुओ श्रमण (निम्रन्थ ), अचेलकर अनगार, भिक्षु, त्यागी, २. अचेलक शब्दने स्पष्ट करवा माटे "अ" ना बे अर्थों पर ध्यान आप पडे छे. १. अनिषेध, जेमके अ-जीव-जीवथी भिन्न, जीवरहित. अवृष्टि-वृष्टिनो अभाव. २. अ=अल्पत्व, जेमके अनूदरीकन्या-जाना पेटवाळी कन्या, अज्ञान मनुष्य अल्पज्ञ मनुष्य.अवृष्टि-अल्पवृष्टि. ए ज रीते अचेलक शब्द वस्त्ररहित अने अल्प (सफेद, अल्पकिंमती, जीर्णशीर्ण तथा कम संख्यावाळा ) वस्त्रबाला साघुओनो द्योतक छे. भगवान् महावीर स्वामीना श्रमण संघमां बने प्रकारना साधुओ हता. आजीविकमतना साधुओ एकांत नग्नताना ज पक्षमा हता. वि०सं० १३९ पछी दिगम्बर जैन साधुओए आ पक्षने वधारे मक्कम को छे प्राचीन जैनेतर ग्रन्थकारोए जैनश्रमणोने " निर्ग्रन्थ " " दीर्घतपस्वी" इत्यादि अन्वर्थ शब्दोथी संबोध्या छे, ज्यारे वि. सं० १३९ पछीना जैनेतरशास्त्र-उपनिषद्-ग्रन्थ तथा टीकाग्रन्थना कर्ता भए जैननिर्ग्रन्थोने दिगम्बर, नागा, अहीक (निर्लज्ज ) इत्यादि उपहास सूचक शब्दोथी ओळल्या छे. नग्नताना पक्षकार आधुनिक दिगम्बर विद्वानो पण पूरण, आजीविक, संजयी, कूटिच अवधूत (अघोरी) वगेरेनुं बाह्याचारथी अनुकरण करवामां अभिमान ल्ये छे, परन्तु प्राचीन साहित्य जैनश्रमणोनी अनानतानुं साक्षी छे. A. जेमके-दिगम्बरो सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं व्रतमां सर्वथा वस्नपात्र-उपकरण (ोधो, मुहपत्ति पीछ, कमंडलु) ना त्यागनो समावेश करे छे, ज्यारे दि० भाचार्य श्रीमद् करकजीए "मूलाचार"मां दशकल्पना वर्णनमां श्वेताम्बरोनी जेम "आचेलक्य"ने भिन्न मान्युं छे. आथी पांचमा महाव्रतमा अचेलकतानो समावेश करवो ए दिगम्बराचार्यानी दृष्टिए पण अनूचित मनायुं छे. B. चातुर्याम धर्मवाला जैनश्रमणोनु वर्णन बौद्भशास्त्रोमा उल्लिखित छे के जेओ वस्त्र अने पात्र वगेरे उपकरणो सहित हता. C. बौद्भशास्त्रानुसार गोशाल सम्मत छ अभिजातिओमां जैन अचेलकोने त्रीजी अभिजातिमां दाखल कर्या छे. गाशाळो सम्पूर्ण नग्नताने सर्वश्रेष्ठ मानी छठी अभिजातिमा स्थापे छे ए हिसाबे जैनश्रमणो अल्प वस्त्रधारी होवाथी ज त्रिजी कक्षामां आवे छे. त्यां स्पष्ट कयु छे के:लोहिताभिजातिनाम निग्गत्था-एकसाटिका तिवदन्ति । -दिगम्बर बाबू कामताप्रसादनुं महावीर अने बौद्ध । D. दीघनिकाय पासादिक सुतंतमा उल्लेख छ के-निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्रना मृत्युथी तेना संघमां भेद पडयो छे. गृहस्थ श्रावको तथा श्वेताम्बर निग्रन्था..... E. जैन साधुओ बाधीश परिषहोमां क्षुधा, पिपासा अने अचेलकताने परिषह माने छे. आहार अने पाणी न लेवां ते तपस्या छे, पण जरुर छे छतां निषि आहार-पाणी मळतां नथी एटले चलावी लेबु ते परिषहसहन छे, आ ज रीते वस्त्र न राखवां ते नग्नता छ किन्तु आवश्यक्ता होवा छतां कल्प्य वस्त्र न मळे अने चलावी लेबु ते अचेल-परिषह छे दिगम्बर ग्रंथकारो पण क्षुधा, पिपासा तथा अचेलकताने बराबर परिषह रूपे ज माने छ संभव छे के गोशाळा-अनुयायीओ आवी मल्या पछी जैन निर्ग्रन्थोन आ नाम पडयं होय. Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ऋषि, महर्षि, माहण, मुनि, यति, तपस्वी, चातुर्यामिक, पंचयामिक अने क्षपणक' इत्यादि नामोथी पण लक्षित होय एवां अनेक प्रमाणो मळे छे. त्रण श्रमण संस्थाओ भगवान् महावीरना युगमां आपणने त्रण साधु-संस्थाओना इतिहास मळे छे. आजना त्रणे फिरकाना साधुओ ए त्रणे साधु संस्थामांथी उतरो आवेल छे, ते आ प्रमाणे: ३. भगवान् महावीर स्वामी पहेलांना जन श्रमणो चातुर्यामिक धर्मवाला मनाय छे. ते थो सर्वथा हिंसा-मृषा-स्तेय-बहि द्रादानना त्यागरूप चार यम-महावतो, पालन करता हता. भगवान महावीर स्वामीना शिष्य श्रमणो पांच यमवाला-महाव्रतवाळा छे जेओ सर्वथा हिंसा-मृषा-स्तेय-मैथुन-परिग्रह( मूर्छा)ना त्यागरूप पांच महाव्रतोने पाळे छे. चार महाव्रतवाला श्रमणो विविधरंगी वस्त्रोनो परिभोग करे छे, दश कल्पोमांथी चार कल्पोने सेवे छे. पांच महाव्रतवाला जन श्रमणो सफेद अल्पमूल्यवाला अने चारित्रने पोषण आपे एटलां ज वस्त्रो पहेरे छे, दशे कल्पोर्नु सेवन करे छे. A. भगवान् महावीर स्वामीना समये भगवान् पार्श्वनाथना चातुर्याम धर्मवाला केशीस्वामी वगेरे श्रमणो विद्यमान हता, जेनुं तत्थ्य वर्णन श्री उत्तराध्ययन सूत्र, अ. २३मा संवादित छे. B. गौतमबुद्धना समये चातुर्याम जैन श्रमणो विद्यमान हता एम बौद्र ग्रन्थो साक्षी पूरे छ -डो० हर्मन जेकोबीनी प्रस्तावना C. अथर्ववेद, अध्याय १५ मां वेदने नहीं माननारा “ महात्रात्यो" नुं वर्णन छे, आ महाव्रात्यो चातुर्याम धर्मवाला जैन श्रमणो छ, जेभी वेदबाह्य संप्रदायना जैन साधु मनाय छे. (अथर्ववेद संहिता, पृ. २९३) --दि० कामताप्रसाद-सम्पादित भगवान् पाश्वनाथ ४. क्षपणक, क्षपण, क्षमण, खवण ए दरेक तपस्वी जैन श्रमणोनां पर्यायवाचक नामो छ आवश्यक्तनियुक्ति, गाथा ७१९ नी हारिभद्रीय टीकामां क्षपणकनो अर्थ तपस्वी को छे. आ रीते कालगखवणा, सागरखवणा, सिंहगुहाखवण ( उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति ), रक्खियखमणा (आवश्यकनियुक्ति, गाथा ७७६ ), मुंडपादक्षमग तथा घोषनन्दी क्षमण ( तत्त्वार्थभाष्यकारिका ) वगेरे श्वेताम्बर क्षपणको प्रसिद्ध छे. विक्रमनी सभाना रत्न क्षपणक श्री सिद्धसेन दिवाकर पण प्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य छे. आटली वस्तु स्पष्ट होवा छतां विक्रमनी बीजी सदीना विद्वानोए क्षपणकनो अर्थ दिगम्बर-साधु को छे. ते तेओनी अर्थ विषयक या इतिहास सम्बन्धी अज्ञानता छे. आजना आग्रहचक्षु दिगम्बर विद्वानो आ मध्यकालीन प्रमाणोना आधारे नग्न साधुओने क्षपणक ठराववा मथे छे अर्वाचीन संस्कृतकोषकारो क्षपणकनो प्रयोग मागध तथा बन्दी वगेरे अर्थमां करे छे. शुं दि० विद्वानो तेओने पण दिगम्बर माने छे ? आ सिवाय प्रसिद्ध जनश्रुति छ के--" नमक्षपगके देशे रजकः किं करिष्यति ?" यदि क्षपणक शब्दनो अर्थ नग्न थतो होय तो आ श्लोकाधमां क्षपणकनी पहेलां नम शब्द शा माटे मुकवामां आवे ? सारांश ए छे के-क्षपणक ए तपःप्रधान जैन श्वेताम्बर साधुनु ज नामांतर छे Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ श्री तपगच्छ १. ते समये भगवान् पार्श्वनाथनी परंपराना श्रमण-संधमा प्रधान आचार्य "श्री केशी स्वामी" हता. तेमणे श्री इन्द्रभूति-गौतम गणधर साथे विचारविनिमय करी भगवान महावीरना शासनमा प्रवेश को. तेमनी शिष्य परंपरा आज " पार्श्वनाथसंतानीय" " उपकेशगच्छ” अने "कवलागच्छ"ना नामे मशहूर छे. आ श्वेतांबरीय परंपरा छे. २. श्रमण भगवान् महावीरने अगिआर शिष्यो गणधर हता. भगवान्ना मोक्ष पछी ते दरेकना साधुओ पांचमा गणधर श्री सुधर्मस्वामीनी आज्ञामां आवी रह्या. ते श्री सुधर्मगणधरनी परंपरा पण अत्यारे श्वेताम्बर साधुस्वरूपे विद्यमान छे. जेना ८४ गच्छो थया हता. तपगच्छ ए आ ज परंपरानुं अंग छे. ढुंढकमत पण तेनो ज फणगो छे. ३. भगवान् महावीरना छमस्थपणाना शिष्य अने पछी प्रतिपक्षी मंखलीपुत्र गोशाळे " आजीविकमत "नी स्थापना करी. आ संस्थामा नागा रहेवा माटे एकांत आग्रह हतो. आंतर जीवन गमे तेवू होय, बाह्य जीवनमा दिगंबरपणाने महत्त्व अपातुं हतुं.' ते आजीविक साधुसंघ पण गोशाळाना मृत्यु पछी भगवान् महावीरना शासनमां आवी मळी गयो. छतांय तेने दिगम्बरपणानो आग्रह दृढ हतो. ते आगत संप्रदायमांथी वि० सं० १३९मां " दिगम्बर " संघनो प्रादुर्भाव थयो. आ संघना आज मूळसंध, द्रविडसंघ (वि० सं० ५२६ ), यापनीयसंघ (सं० ७०५ ) काष्ठा ५. बौद्ध ग्रंथो जणावे छे के-मंखलीपुत्र गोशाले वस्त्रधारी अने दिगम्बरोनुं मध्य अंतर काढी सर्व धर्मवादीओना छ वर्ग पाड्या छे; जेमा बोजा वर्गमां बौद्ध भिक्षु, त्रीजामां (अल्पवस्त्र होवाने लीधे ) निर्ग्रन्थो अने पांचमा वर्गमां आजीविक श्रमणोने जाहेर कर्या छे. महानग्ग १-७०-३ तथा ८-२८-१मां नागा “ तिथियो"नो उल्लेख छे. आ तिथिओ आजीविक मत के पूरणकाश्यप वगेरेना साधुओ छे. ----इंडियन एन्टिक्वेरी, बोम्बे, ओगस्ट, सन् १९३० एक बौद्ध विद्वाने तामील भाषाना प्राचीन मणिमेले काव्यमां साफ साफ लख्यं छे के--जैन श्रमणो निम्रन्थ अने आजीविक एम बे विभागमा विभक्त छे जे पैकीना निम्रन्थो अरिहंतना अनुयायी छे. जेमां निग्रन्थिनीओना पण समावेश थाय छे. निर्ग्रन्थिनीओना प्रभाव तामिल महिला समाजपर विशेष हतो. ज्यारे आजीविका-दिगम्बरो तेनाथी भिन्न छे. __ -बुद्धिस्ट स्टडीझ, बाय डो० बी० सी० लव, कलकत्ता, १९३१ पृष्ठ-१५ आ प्रमाण आजीविक मत अने दिगम्बर संप्रदायनी कडीने अविसंवादपणे व्यवस्थित करे छे. दिगम्बर मान्य बाबू कामताप्रसाद “मणिमेखले " ना आधारे हवे कबुल करे छे के-आजीविक भ० महावीरके समयमें एक स्वतंत्र सम्प्रदाय था, किन्तु उपरान्त कालमें वह दिगम्बर सम्प्रदायमें समाविष्ट हो गया था । आ शब्दाथी पण आजीविक अने दिगम्बरोनी अभेदता स्पष्ट थाय छे. Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष संघ (सं० ७०५) माथुरसंघ (सं० ९०० लगभग) तारनपंथ (सं० १५७२ ) तेरहपंथ (सं० १६८०) अने गुमानपंथ (वि० सं० १८१८ ) वगैरे अनेक भेदो--पेटा भेदो छे. ----एन्साइक्लोपीडिया ऑफ रीलीजीयन एन्ड एथिक्स, वो० १, पृ० २५९) निन्दवभेद गणधरवंश तथा वाचकवंश (अथवा युगप्रधान परंपरा ), एम महावीर-श्रमणसंघना बे प्रवाहो छे. आ प्रवाहो वास्तवमा संघव्यवस्थाए अभिन्न छे, मात्र चारित्र अने श्रुतनी व्यवस्थाने अंगे भिन्न भिन्न छे. तेमां क्रिया, आचार, व्यवहार अने सिद्धांत एक ज प्रकारना हता, एटले कोई साधुनो क्रिया आदि विषयमा मतभेद पडे तो ते जुदो पडी अभीष्ट नियमो बनावी नवीन मत स्थापित करतो हतो. आ रीते वीरनिर्वाणथी ६०९ वर्ष सुधीमा सात (आठ) मतो निकळी चूक्या हता. तेनां नामो आ प्रमाणे छे. १. वी० नि० पूर्वे १४ वर्षे जमालिए " बहुरत" मत चलायो. २. वी० मि० पूर्वे १६ वर्षे तिष्यगुप्ते “जीवप्रदेश" मत चलायो. ३. वी० नि० सं० २१४मा आषाढाचार्यना शिष्योथी “ अव्यक्त" मत चाल्यो. ४. वी० सं० २२०मा आ. महागिरिना पांचमा शिष्य कौडिन्यना शिष्य अश्वमित्रे "सामुन्छेदिक" मत (शून्यवाद ) चलाव्यो. ५. वी० सं० २२८मां आ० महागिरिना शिष्य धनगुप्तना शिष्य गंगदत्ते " द्विक्रिय" मत स्थाप्यो. ६. वी० सं० ५४४मां रोहगुप्ते “ त्रिराशिक" मत स्थाप्यो. ७. वी० सं० ५८४मां गोष्टामाहिले " अबद्धिक" मत चलाव्यो. ८. वी० नि० सं ६०९ ( वि० सं० १३९ )मां शिवभूतिए. “बोटिक' (दिगम्बर) मत चलायो. --(आवश्यक नियुक्ति, गाथा ७७८ थी ७८८, भाग्य गाथा १२५ थी १४८) आमांथी द्विक्रिय सुधीना निन्हवभेदो नाश पाम्या, अने बाकी रहेला व्रण निन्हबभेदा बोटिक (दिगम्बर) मां मळी गया, एटले बी० नि० सं० ६०९ मा प्रधानतया एक ज निन्हवभेद रह्यो होय एम लागे छे. ___ आ साते मतो भगवान् महावीरना शासनथी सिद्धांतभेद तथा क्रियाभेद करी निकल्या छे. तेना स्थापकोए भगवान्ना सत्यने निहत्यु (गोप-यु) छे माटे तेओ “निन्हव" मनाय छे. आ साते प्राचीन जैनसंघनी विरोधी शाखाओ छे. Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ गच्छभेद आ ज रीते भगवान् महावीरना संघमां बीजा अनेक अ--विरोधी भेदो छे, जे "गच्छभेद" तरीके संलक्षित छे. बीजी रीते कहीए तो आ पण एक जैनधर्मना प्रचार माटेनी व्यवस्था-नीति छे. जैन इतिहासने नहीं जाणनारा "गच्छ" शब्दथी प्राचीन जैनसंघमां पण विरोधी विभागोनी कल्पना करी ल्ये छे किन्तु वास्तविक रोते ए कल्पनाओ मात्र कल्पनाओ ज छे. आजनी गवर्नमेंट हिन्दनी व्यवस्था माटे वायसराय, गवर्नर, कमीश्नर, कलेक्टर, मामलतदार वगेरे अमलदारोनी ते ते विभागनी जवाबदारी साथे नीमणुक करे छे. आ ज व्यवस्था-शक्ति प्राचीन काळना श्रमण संघमा सक्रिय दशामा हती. एटले श्रमणोए धर्मप्रचारनी सुविधा माटे देश, गाम, विशिष्ट शक्तिधर आचार्य के अन्य ख्यातिसूचक निमित्तने अनुलक्षी जैनसंघमां गण, गच्छ, कुल तथा शाखाओना विभाग पाड्या हता. सौराष्ट्रिका, उच्चानागरी (तक्षशिलानी शाखा), ताम्रलिप्तिका, पौड्वर्धनिका, कौशाम्बिका, चंद्रनागरी, पुण्यपत्रिका, वजूनागरी, चंपा, भद्रिका, काकंदिका, श्रावस्तिका, अंतरिजिका, राजपालिका, कोटिकगण, वज्री, वनवासी गच्छ, चंद्रकुळ, तपस्वीगच्छ, जयन्तीशाखा, आ नामो उपर्युक्त कथनने विशदभावे स्पष्ट करे छे. आ गच्छोमां न हतो सिद्धांतभेद के न हतो क्रियाभेद. दरेक पोतपोतानी कक्षामां रही जैनसंघने ज पुष्ट करता हता. श्री कालिकाचार्ये वीरनि० सं० ४५७मां पांचमनी चोथ करी तो दरेके चोथ मानी. आ० दिनसूरिए श्रमणोनी अंतिम विधि बदलाववा फरमाव्यु, जेनो सर्वानुमते स्वीकार थयो. (पं० खुशालविजयजी रचित तपगच्छनी भाषा पट्टावाली ) एटले संघना हित माटे लेवातो मार्ग दरेकने मान्य ज रहेतो. तेमां मतभेदने अवकाश ज न हतो. ___ कदाच एक आचार्यनो अभिप्राय जूदो पडे तो "अमुक आचार्य- आम कहेवं छे” “अन्य आचार्य आम कहे छे' एम तेमनो अभिप्राय पण सर्वमान्य रीतिए स्वीकारातो हतो.. विक्रमनी ११मी सदी सुधीना ग्रंथोमां गच्छोना मतभेदो उपलब्ध नथी के जेवा अत्यारे अधिकमास, तिथि, कल्याणक, सामायिक, मुहपत्ति, स्तुति वगेरेमा जोवाय छे. ___ विक्रमनी ११मी सदी पछीना गच्छो उपरना दर्शावेल गच्छाथी भिन्न छे, जे पैकीना केटलाक अल्पांशे पण सिद्धांतभेद के क्रियाभेदने अंगे जुदा पड्या छे. एटले आ गच्छोने प्राचीन गच्छोनी कोटिमां मूकी न शकाय. प्राचीन ८४ गच्छोमां तपगच्छ, अंचळगच्छ, खरतरगच्छ, पायचंदगच्छ, लेांकागच्छ वगेरेना उल्लेखो नथी. Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष आ उपरांत अत्यारे पण जे ८४ गच्छोनी नामवाळी मळे छे ते विक्रमनी बीजी सहस्त्राब्दीनी, एटले अर्वाचीन छे. जेमा घणा असली गच्छोनां नामो लखायां नथी. तेने स्थाने नवा गच्छोनां नामो दाखल करी देवामां आश्यां छे. (८४ गच्छ माटे जुओ “पट्टावली समुच्चय" भाग १, परिशिष्ट-५ ) परन्तु एक वात निर्विवाद छे के---निन्हवभेद ए वास्तविक भेद ज छे. अने गछ भेद ए कारणिक अथवा एक ज गच्छना नामांतररूप भेद छे. हवे आपणे मूळ विषय उपर आवीए : निर्ग्रन्थ गच्छ (१) भगवान् महावीर " निर्मन्थ ज्ञातपुत्र" तरीके सम्बोधित थता हता, एटले तेमनो भिक्षुसंघ पण " निम्रन्थ " तरीके ज प्रसिद्ध हतो. (वीरनि० पूर्वे ३० वर्ष ) आ रह्यां तेनां प्रमाणो--- १. जिनागमोमां स्थाने स्थाने निर्ग्रन्थ शब्द उल्लिखित छे. जेमके-न कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीणं । जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरन्ति (स्थविरावली), निग्गन्थाणं महेसिणं (दशवैकालिक सूत्र ) वगेरे. २. तस्स कालकिरियाय भिन्न निग्गंथ द्वेषिक जाता (मज्झिमनिकाय, सामगामसूत्त ). गोशालानी तेजोलेश्याना प्रसंगने अनुलक्षीने आ वर्णन करेल छे. आ वर्णनमां अवदात वसननुं पण सूचन छे. ३. कौशलनो गजा प्रसेनजित निम्रन्थो (श्वे० जैन साधुओ ) ने नमस्कार करतो हतो. ( दीघनिकाय. इन्डियन हीस्टोरिकल क्वार्टरली, वो० १, पृ० १५३) ४. गोशाळाना मत प्रमाणे निर्ग्रन्थो वस्त्रयुक्त (श्वेतांबर साधु ) होवाथी लोहोभिजातिमा समाविष्ट छे. (बाबू कामताप्रसाद कृत महावीर ) ५. निर्ग्रन्थ शब्द दूसरे संप्रदायों को भी लगता था, ओर वस्त्रधारी भी " निम्रन्थ " कहलाते थे । (पं० दरबारीलालजी न्यायतीर्थ, "जैन जगत्" ता० १६-११-१९३२ का अंक) जैन साधु माटे रूढपणे वपरातो “ निर्ग्रन्थ " शब्द श्वेताम्बर साधुने उद्देशीने लखायो छे. अने श्वे० दि० आचार्यो निम्रन्थोने पांच श्रेणिमा स्थापी ए ज अर्थने स्पष्ट करे छे. श्वेताम्बगचार्य दशपूर्वधर श्रीदिन्नसूरिना शिष्य आ० शांतिश्रेणिकनी उच्चानागरी (तक्षशिला वाळी) शाखाना वाचक पूर्वविद् श्री उमास्वाति महाराज फरमावे छे के: Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ " पुलाक-चकुश--कुशील-निर्ग्रन्थ-स्नातका निम्रन्थाः "। -(तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, अ० ९, सूत्र ४८ ) १. पुलाक निर्ग्रन्थ-सामान्यतया आगमानुसारी साधु. २. बकुश निर्ग्रन्थ-शिथिलाचारी छतां अखंडित व्रतधर साधु. ३. कुशील निर्ग्रन्थ-शुद्ध साधुतागां आगळ वधनार, कारणे उत्तरगुणनो विराधक, सञ्चलनादि कषायोदयवाळो भिक्षु. ६. दिगम्बराचार्या पण आ सूत्रने प्रमाण माने छे. तेओ स्वीकारे छे के दिगंबर साधु पांच प्रकारना छे. पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ, तथा स्नातक, ( तत्त्वार्थसूत्र, अ० ९, सूत्र ४६) तेओ आ पांच भेदोना विवरणमां जणावे छे केसंनिरस्तकर्माणोंऽतर्मुहूर्तकेवलज्ञानदर्शनप्रापिणो निर्ग्रन्थाः। बाह्य अने आंतर ग्रन्थीथी रहित (शुक्ललेश्यायुक्त ) होय ते निर्ग्रन्थ, आवे। शब्दार्थ त्यारे ज करी शकाय के ज्यारे ते अंतर्मुहर्तमां केवलज्ञान पामवानी स्थीतिए हाय. आ कथनथी नागा एटले निर्मन्थ एवो जे अर्थ करवामां आवे छे तेनी पोकळता व्यक्त थाय छे. प्रकृष्टाप्रकृष्टमध्यानां निर्ग्रन्थाभावः+न वा+ पांच प्रकारना निर्ग्रन्थोमा तरतमता छे एटले तेने निर्ग्रन्थ न कहेवा जाइए आ मत ठीक नथी. तरतमताना सद्भावे जेम ब्राह्मणत्व निषेधातुं नथी तेम निन्थपणा माटे पण समजबु. संग्रव्यवहारापेक्षत्वात् संग्रहनय अने व्यवहारनयनी अपेक्षाए ते भेदो उचित छे. _अविविक्तपरिग्रहाः....प्रतिसेवनाकुशीला: अत्यक्त परिग्रह ( वस्त्र, पात्र, उपकरण बगेरे युक्त तो होय किन्तु मृ युक्त होय तो पण ते) त्रीजी कोटीनो निर्ग्रन्थ छे प्रतिसेवनाकुशीला: द्वयोः संयमयोः । दशपूर्वधराः ॥ जे सामायिक छेदोपस्थापनीय चारित्रवाळा होय छे, दशपूर्वधर होय छे. उपकरणाभिषक्तचित्तो विविधविचित्रपरिग्रहयुक्तः बहुविशेषयुक्तापकरणकांक्षी ते निर्धन्य वस्त्र, पात्र वगेरे उपकरणोमां दिलवाळो होय छे, विविध अने विचित्र वस्त्रादि सहित होय छे अने अधिक उपकरणोनी आकांक्षावाळो होय छे. लिंगं द्विविधं-द्रव्यलिंग भावलिंगं च । भावलिंग प्रतीत्य सर्व निम्रन्थाः लिंगिनो भवन्ति । द्रव्यलिंगं प्रतीत्य भाज्याः। साधलिंग बे प्रकारच् छे : द्रव्यलिंग-साधुवेष अने भावलिंग- चारित्र. चारित्रनी अपेक्षाए पांचे नियो लिंगी छे. द्रव्यलिंगनी अपेक्षाए तेमना अनेक भेद छे. यदि नग्नता" ए ज द्रव्यलिंग होय तो तेना पण एक ज भेद थात. किन्तु अनेक भेदे| होवानं सूचित कर्यु ते जैन साधुना वेशनी भिन्नताने लीधे छे. -तत्त्वार्थराजवार्तिक, ९-४६,४७. पृष्ठ ३५८, ३५९ उपरना पाठामा उपकरणानुं स्पष्ट विधान होवा छतां दिगम्बरो शा माटे नम्रताना आग्रह करता हशे? यदि तेओने ए आग्रह इष्ट होय तो तेमणे निर्ग्रन्थिनी (संघना बीजाअंगरूप) पद मानवू नका, छे. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ४. निम्रन्थ निग्रन्थ-बीचरता वीतराग छद्मस्थ. ५. स्नातक निर्ग्रन्थ-केवली भगवान् । निम्रन्थ शब्दनो सामान्यतया "सर्वविरतिधर साधु" आवो रूढ अर्थ करीए यारे ज पांच भेदो थाय छे. परन्तु “ बाह्य अभ्यंतर ग्रंथीथी रहित वीतराग छमस्थ-अंतर्मुहूर्तमां केवळी थाय तेला श्रमण" आवो यौगिक अर्थ करीए. तो तेनो एक ज भेद रहे छे. निर्ग्रन्थिनीना पग उपर्यंत पांच भेदो होय छे. एटले भगवान् महावीर स्वामीना श्रमणो निर्ग्रन्थ तरीके प्रसिद्ध छे. त्यार पछीना समयमां पण तेओने माटे ए ज शब्द कायम रह्यो छे. प्राचीन शिलालेखो अने ग्रन्थो ते वातनी साक्षी पूरे छे. जुओ१. आयागपटो प्रतिष्ठापितो, निगन्थानम् अर्हता.... --(मथुराना शिलालेखो) २. बोगराजिल्ला (बंगाळ ) ना स्टेशन जमालगंज (E. B. R.) पासे पहाडपुर (ौड्वर्धन शहेर ) ना जैन टीलामांथी मळेल ताम्रपत्रमा जणायुं छे के—गुप्त सं० १५९मां वटगोहली गाममा एक ब्राह्मण दंपतीए निम्रन्थ--विहारनी पूजा माटे भूमि-दान कयु. – ( मोडर्न रीव्यु, ओगस्ट, सन् १९३१, पृष्ट १५०) ३. निम्रन्थोने वस्त्रदान कर्यु. ----( खारवेलनो शिलालेख ) ४. जैन श्रमणो बे प्रकारना छे १. निर्ग्रन्थ (श्वेताम्बर ), २. आजीविक ( दिगंबर ). -(बुद्धरचित मणिमेखला-तामिल काव्य.) ५. जे इमे अजत्ताए समणा निग्गंत्था विहरन्ति । ---- ( कप्पसुअ) निम्रन्थो रजोहरण, मुहपत्ति, वस्त्र, पात्र वगेरे उपकरणयुक्त होय छे. छतां तेमां निर्मम होय छे. आ निम्रन्थोनो समूह एटले निग्रन्थगण (निर्ग्रन्थगच्छ) ए जैन श्रमणोनो सौथो प्रथम गच्छ छे. कोटिकगच्छ (२) वीरनिर्वाणनी बीजी सदीना उत्तरार्धेमां बार वर्षनी दुकाळ पड्यो. एटले निर्ग्रन्थोनी संख्यामां घटाडो थयो अने श्रुतज्ञानने पण धक्को लाग्यो. आ स्थितिमां श्रुतनुं संरक्षण करवू अगत्यर्नु हतुं. त्यार बाद सो वर्ष पछी सम्राट् संप्रतिए जैनोनी संख्यामां मोटो वधारो को. आ नवा जैनोनुं संरक्षण पण एटलं ज आवश्यक हतुं. आ बन्ने परिस्थितिने पहेांची वळवा माटे निर्ग्रन्थोए भिन्न भिन्न गच्छ, कुळ अने शाखाओनी व्यवस्था करी. एटले श्री भद्रबाहु स्वामीना शिष्य गोदासथी गोदासगण, आर्य महागिरिना शिष्य उत्तर अने बलिस्सहथी बलिस्सहगण, आर्य सुहस्तिसूरिना शिष्योथी उद्देह, चारण, वेसवाडिय, मानव, अने कोटिकगण (कोटिकगच्छ) नी स्थापना थई. आ दरेक गणोनां भिन्न भिन्न कुळ अने शाखाओ पण व्यवस्थित करवामां आव्यां, जे दरेक, निम्रन्थ गच्छनां नामांतरो छे. Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ ___ भगान् महावीर स्वामीनी आठमी पाटना आचार्य श्री सुहस्तिसूरिने १२ प्रधान शिष्यो हता. जे पैकीना पांचमा अने छट्ठा शिष्य आ० सुस्थित तथा आ० सुप्रतिबद्धे उदयगिरिनी पहाडी पर कोडलार सूरिमंत्रनो जाप को. आथी जनताए तेओने “कोटिक' तरीके जाहेर कर्या, अने तेमनो शिष्य-संघ पण वी. नि० सं० ३०० लगभगमां " कोटिक-गच्छ” ना नामथी प्रसिद्ध थयो. कोटिक-गच्छनी उच्चानागरी, विद्याधरी, वज्री अने मध्यमिका एम चार शाखाओ छे. श्रेणिका, तापसी, कुबेरी, ऋषिपालिता, ब्रह्माद्वीपिका, नागीली (नाईल ), पद्मा, जयन्ती तथा तापसी उपशाखाओ छे. अने ब्रह्मलिज्ज, वस्त्रलिज, वाणिज तथा प्रश्नवाह्न एम चार कुल छे. आ कोटिकगच्छ निम्रन्थगच्छर्नु ज बीजुं नाम छे. - (स्थानांगसूत्र, कल्पसूत्र, गुर्वावली, तपगच्छपट्टावली. ) चन्द्रगच्छ (३) निम्रन्थगच्छनी तेरमी पाटे आ० वज्रस्वामी थया. तेओ अंतिम दशपूर्वधर होवाथी दिगम्बर इतिहास तेओने द्वितीय भद्रबाहु तरीके ओळखावे छे. आ आर्यथी "वत्री" शाखानो प्रादुर्भाव थयो छे. विक्रमनी बीजी रादीना पूर्वार्धमा पुनः बार वर्षना भोषण दुकाळ पड्यो. श्री वज्रस्वामीए ५०० साधु साथे दक्षिणमा एक पहाड़ी पर अनशन कर्यु अने तेमना एक क्षुल्लक शिष्ये पासेनी पहाडी पर अनशन कयु. ते श्रमणसंधमांथी श्री वज्रसेनसूरिजी, गुरुनी आज्ञा प्रमाणे श्रमण-परम्पराने कायम राखवा माटे, जीवन्त रह्या. पछी तेओए सोपारक (सोपारा-मुंबई )मां जई दुकाळनी शान्तिनुं भविष्य देखी, शेठ जिनदत्त, शेठाणी ईश्वरी, पुत्रो नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति अने विद्याधरने मृत्युना मुखमांथी बचावी जिनदीक्षा आपी आचार्य बनान्या. आ चारे आचार्योए वी० नि० सं० ६३० पछी नागेन्द्रगच्छ, चन्द्रगच्छ, निवृत्तिगच्छ अने विद्याधरेग छनी स्थापना करी छे. आ चारे गच्छमांथी नामान्तरथी अने पेटाभेदे ८४ गच्छ थया छे. ७. नागेन्द्रगच्छमां वनराज-प्रतिबोधक श्री शीलगुणसूरि, वस्तुपालना गुरु श्री विजयसेनसूरि, स्याद्वादमंजरीकार मल्लिषेणसूरि, चंद्रकुलमां नवांगीवृत्तिकार श्री अभयदेवसूरि, निर्वृत्तिकुलमां द्रोणाचार्य, नवखंडापार्श्वप्रतिष्ठापक महेन्द्रसूरि तथा विद्याधरगच्छमां श्री नागहस्तिसूरि, वृद्धवादिसूरि, सिद्धसेनदिवाकर, पादलिप्तसूरि वगेरे प्रसिद्ध आचार्या थया छे. ८. दिगम्बर ग्रन्थकारो पण द्वितीय भद्रबाहुस्वामीना शिष्य श्री चंद्रगुप्तसूरिने दिगम्बर श्रमण-परंपराना आदि पुरुष तरीके संबोधे छे. तदीयवंशाकरतः प्रसिद्धादभूददोषा यतिरत्नमाला --(विन्ध्यगिरि शिलालेख नं. १०८, श्लो० १०.) दि० ग्रन्थोमां अन्यत्र इंद्र, चंद्र तथा नागेन्द्र गच्छीय श्रमणो (ताम्बरो) ने मिथ्यात्वी बताव्या छे. -पं० आशाधर कृत सागारधर्मामृत, पृष्ठ-५. षड़प्राभृत टीका, पृष्ट-११८, २३९, २८३, ३२३. Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ३५ आ चन्द्रगच्छ ते निम्रन्थगच्छर्नु त्रीजुं नाम छे. ----(आवश्यकनियुक्ति-वृत्ति, गुर्वा वली.) वनवासीगच्छ (४) आ० चन्द्रसूरिनी पाटे ओ० समन्तभद्रसूरि थया. आ समये श्वेताम्बर-दिगम्बरना विभागो पड़ी चूक्या हता. छतां बन्ने विभागो आ पूर्वविद् आचार्यने सरखी रीते मानता हता. आज पण तेमना ग्रन्थो नि:शंक भावे "आप्तवचन" तरीके मनाय छे. __ तेओए १. आप्तमीमांसा काव्य--१४४ (देवागमस्तोत्र ), २. युक्तयनुशासन पद्य-६४, ३. स्वयंभूस्तोत्र पद्य-१४३ (समन्तभदस्तोत्र-चैत्यवंदनसंग्रह ), ४. जिनस्तुतिशतक पथ-१६६ (स्तुतिविद्या-जिनशतक-जिनशतकाल कार ) वगेरे प्रौढ सर्जनो आप्यां छे, जे हाल उपलब्ध छे. जे पैकीनु देवागमस्तोत्र तेमणे पोताना शिष्य " वृद्धदेवसूरि "ने (प्रतिबोधवा) माटे बनायुं होय ए । स्वाभाविक छे. तेओ दिगम्बर होय एवं एक पण प्रमाण प्रस्तुत ग्रन्थमां मळतुं नथी, परन्तु उत्कट त्याग अने वन-निवास करवाना कारणे ज दिगम्बर संप्रदाये तेमने अपनाच्या छे. तेओ पूर्वविद् हता, घोर तपस्वी हता, आगमानुमारी क्रियाधारक हता अने अधिकांशे देवकुल, शून्यस्थान तथा वनमां स्थिति करता हता. आथी लोको तेमने तथा तेमना शिष्य संप्रदायने वीरनिक ७०० लगभगमां " वनवासी" ना संकेतथी ओळखबा लाग्या. आ रीते निम्रन्थगच्छनुं चो, नाम वनवासीगच्छ पड्यु. --- ( गुर्वावली, स्वामी समन्तभद्र.) वडगच्छ (५) भगवान् महावीरनी पांत्रीशमी पाटे श्री उद्योतनसूरि थया. तेओश्रीए मथुरा तीर्थनी अनेकवार अने सम्मेतशिखर तीर्थनी पांचवार यात्रा करी छे. ते एकवार ए पुनीत तीर्थोनी यात्रा करी आतुनी यात्राए पधार्या. अहीं आबुनी तोटीमा रहेल टेली गामने सीमाडे ( पादरमा) एक विशाळ वड नीचे बेटा हता. ए वखते आकाशमा सुन्दर " ग्रहयोग " थयो हतो. आचार्यजीए अत्यारे शुभ अने बळवान् ९. दिगम्बर ग्रन्थकारो कहे छे के श्री समन्तभद्रसूरिए जीवसिद्धि, तत्त्वानुशासन, प्राकृतव्याकरण, प्रमाणपदार्थ, कर्मप्राभृत टीका, अने गंधहस्तिभाष्य ग्रंथो बनाव्या हता जे हाल मळी शकता नथी. दिगम्बर विद्वानो समन्तभद्र-श्रावकाचार ( रत्नकरंडक उपासकाध्ययन ) ने पण तेओनी कृति माने छे, पण जेम कुंदकुंदश्रावकाचार, उमास्वामीश्रावकाचार वगेरे नकली ग्रंथो ते आचार्यानां नाम पर चडावी देवामा आव्या छे तेम आ श्रावकाचार माटे पण बन्युं होय ए स्वाभाविक छ, अथवा आ ग्रन्थना विधाता लघु-समन्तभद्र होय ए पण संभवित छे. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ ३६ मुहूर्त छे एम जाणीवी० नि० सं० १४६४ वि० सं० ९९४मां सर्वदेव प्रमुख आठ शिष्योने एक साथै आचार्यपद आयुं. “ तमारी शिष्यसंतति वडलानी जेम फेलाशे " एम आशीर्वाद आयो, अने पछी सपरिवार अजारी तरफ विहार कर्यो. आ रीते वडनी नीचे सूरिपद प्राप्त थवाथी आ० सर्वदेवपूरिने शिष्य परिवार " वडगच्छ " रूपे प्रसिद्धि पायो. खरे खर! आ० सर्वदेवसूरिनो परिवार वडनी जेम शाखा प्रशाखाथी फूल्यो फाल्यो छे. अत्यार सुधीमां नागेन्द्र वगेर गच्छोए अनेक पेटा गच्छोनो जन्म आप्यो हतो. आ रीते परस्परमा सहयोगी कुल ८४ गच्छो बनी चूक्या हता. जे दरेकमां वडगच्छनी प्रधानता हती. ए वस्तु मानी शकाय छे के चंद्रकुल, पूर्णतलगच्छ, नाणकपुरायगच्छ ( शंखेश्वरगच्छ ), कालिकाचार्य गच्छ— भावडागच्छ, हुंबडगच्छ, मलधारीगच्छ, थिरापत्रीयगच्छ, चैत्रवालगन्छ, ब्राह्मण गच्छ ( शाखागच्छो) वगेरेनो वडगच्छ साथै घनीष्ठ संबंध हतो. पार्श्वनाथसंतानीय उपकेश ( ओसवाल - कवला ) गच्छ पण वडगच्छनो सहकारी गच्छ हतो. जे वात तपगच्छ, वडगच्छ अने कवलागच्छना घनिष्ट संबंधी प्रत्यक्ष छे. तपगच्छ अने कवलागच्छनी अभिन्नता ए पण श्री गौतमस्वामी अने श्री Shiवामीना सिद्धांतो आज पर्यंत अविकृत दशामां सुरक्षित होवानुं परिणाम छे. " ૧૦ अत्यार पहेलां चैत्यवास चालू थयो हतो. दुर्भाग्ये तेणे हवे अमर्यादित रूप धारण कर्तुं हतुं, जेने रोकवा माटे आ० वर्धमानसूर, परमसैद्धान्तिक - सौवीरपायी आ० मुनिचंद्रसूरि, आ० आर्यरक्षितसूरि are एकधारी प्रयत्न चालू कर्यो. तेमना संगीन प्रयत्नथी चैत्यवास तूट्यो अने पोषाळो वधवा लागी. आ तरफ ८४ गच्छोनो पण घसारो थतो चाल्यो, परिणामे मुस्लीमयुग सुधीमां घणा गच्छो निर्वंश थई गया. जेना श्रमणोपासको अधिकांश तपगच्छमां आवी मळ्या छे. अंते गण्यागांठ्या गच्छो विद्यमान रह्या हता. वडगच्छना शासनकाळमां समाचारीभेदे पुनमिया ( वि० सं० १९५९), चामुंडिक (पि० सं० १२०१), [ जैनयुग वर्ष - ३ पृ० २३५] खरतर ( १२०४ ), अंचळ छे, जेना पत्र ५. चंद्रगच्छ, १०. एक बाळबोधपट्टावलीमां विजयजिनेन्द्रसूरि (वि० सं० १८५१ ) सुधीनी परंपरा ९ छे तेमां लख्युं छे के तपगच्छना तेर बेसणा (पाटीया - गादी ) छे. ते आ प्रमाणे:--- 69. तपगच्छ, २. सांडेरगच्छ, ३. चउदसीयागच्छ, ४. कमलकलसागच्छ, ६. कोटीवग छ, ७. कतकपुरागच्छ, ८. कोरंटगच्छ, ९. चित्रोडागच्छ, १०. कज्जपुरा, ११. वडगच्छ, १२. ओसवालगच्छ, १६. मलधारी गच्छ. ए तपगच्छना तेर बेसणानी समाचारी एक छे." आा उपरांत भरुअच्छा, थंभणा, गंधारा, पालनपुरा, भीनमाल, नागोरी, बारेजा, घोधारा वगेरे गामप्रतिबद्ध तपगच्छनी ज शाखाओ हती. जेनी वंश परंपरा आजे विद्यमान नथी. ११. विचारश्रेणीपरिशिष्टमां वि० सं० ११४४मां खरतरमतनी उत्पत्ति मानी छे. छ कल्याणवनी प्ररूपणा आदिनी अपेक्षाए आ साल संभवे छे. खरतरगच्छना श्रावक बनारसीदासे वि० सं० १६८०मां दिगम्बरीय तेरापंथ काढेल छे. 1 في Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष (१२१३), सार्धपुनमिया (१२३६), आगमिक (१२५० ) वगेरे गच्छो-मतो निकळ्या छे. नागोरीतपगच्छमांथो पायचंद (वि. सं० १५७२) तथा ब्रह्ममत निकळ्या छे. जे पैकीना केटलाएक आज विद्यमान छे. नागोरी तपगच्छमां वडगच्छनी समाचारी हती. आ रीते वडगच्छ ए निर्ग्रन्थगच्छनुं पांचमुं नाम छे. -(गुर्वावली, तपगच्छपट्टावली, भाषापट्टावली.) भगवान् श्री महावीर स्वामीनी ४४मी पाटे आ० श्री जगच्चंद्रसूरि थया. तेओ आ० श्री सोमप्रभसूरिना लघु गुरुभ्राता आ० मणिरत्नसूरिना शिष्य हता, परमसंवेगधारी हता. तेमने योग्य जाणी गुरुजीए आचार्यपद प्रदान कर्यु. तेओना समयमा प्रमादने लोधे बडगच्छमा क्रियाशैथिल्य अवी गयु हतुं. एटले आ० जगच्चंद्रसूरि क्रियोद्वार करवाने उत्सुक हता. अत्यार पहेला आ० धनेश्वरसूरिए चैत्रपुरमा भ० महावीर स्वामीनी प्रतिष्ठा करी, त्यारथी तेनो शिष्य-परिवार "चैत्रवाल" गच्छ तरीके ख्याति पाम्यो हतो. विक्रमनी तेरमी सदीना चोथा चरणमा आ० भुवनचंद्रसूरि तथा उ० देवभद्र गणी चैत्रवालगच्छना शासक हता. उपाध्यायजी संवेगी, शुद्ध चारित्रवान्, गुणवान् , आगमवेदी तथा शुद्ध समाचारीना गवेषक हता. आ० जगत्चंद्रसूरिने तेमनो योग मळ्यो. सूरिजोना सात्त्विक चारित्र तेमनी पर उंडी असर करी. तेमणे आ आदर्श त्यागीने अधिक उत्साहित कर्या, अने बनेए सहयोगीपणे क्रियोद्धार करवानो निर्णय को. आ० जगत्चंद्रसूरिए वि० सं० १२७३मां वडगच्छमां उ. देवभद्र गणी तथा स्वशिष्य दवेन्द्रनी सहायथी क्रियोद्धार कर्यो, अने यावज्जीव सुधी आयबिल तप करवानो अभिग्रह लीधो. संभव छे के-गुरुदेवे तेमने आ ज प्रसंगे आचार्यपद प्रदान कर्यु हशे. त्यारपछी आ० सोमप्रभसूरिए भिन्नमालमा अने आ० मणिरत्नसूरिए बे मास पछी थगदमां स्वर्गगमन कयु. ___ पं० खुशालविजयजीना कथन प्रमाणे “ आ० जगत्चंद्रसूरिए क्रियोदार को एटले नाणावाल, कोरंटक, पीपलिक, वड, राज, चंद्रगच्छ इत्यादि अनेक शालाधारी आचार्योए तेमने शुद्ध संवेगी ओळखी तेओना हाथे ज क्रियोदार करो तेमनी आज्ञानो स्विकार कर्यो हतो." आ युगमा महामात्य वस्तुपाळ अने तेजपाळ जैनसमाजना तेजस्वी पुष्पदन्तो हता. तेगना शत्रुजयनी यात्राना संघोमां नागेन्द्रगच्छीय आ. विजयसेनसूरि, चैत्रवालगच्छीय आ० भुवनचंद्रसूरि, वडगच्छीय आ० सोमप्रभसूरि, आ० मणिरत्नसूरि, आ. जगत्चन्द्रसूरि वगेरे ११ श्वेताम्बर आचार्यो साथे हता, एवो उल्लेख मळे छे. Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ अर्थात् आ० जगत्चन्द्रसूरि मन्त्री वस्तुपाळ - तेजपाले काढेल शत्रुंजयना संघमा साथै हता एटलं ज नहीं किन्तु तेमणे करावेल गिरनार - आबुनी प्रतिष्ठामां पण तेओ हाजर हता. आ० जगत्चन्द्रसूरि विहारानुक्रमे सं० १२८५ मां मेवाडमां आघाटनगरमा पवार्या. मेवाडपति राणो जैत्रसिंह सूरिजीना दर्शन माटे आग्यो.' ૧૨ बार बार वर्षोना आंबेलना तपथी तेजस्वी, शुद्ध चारित्रनी प्रभा पाडतो देदीप्यमान कांतिपिंड जोतां ज रागानुं शिर सूरिजीना चरणमां झुकी गयुं. ते सहसा बोल्यो के--- ३८ "अहो साक्षात् तपामूर्ति छे" एम कही चित्तोडाधिश राणा जैत्रसिंहे वीरनिर्वाग संवत् १७५५ विक्रम संवत् १२८५ मां आचार्य श्री जगत्चन्द्रसूरिने " तपा" नी पदवीथी अलंकृत कर्या, त्यारथी ओनो शिष्य परिवार " तपगग" नामश्री प्रसिद्धि पाम्यो. ए सीसोदिया राजवंशे पण तपगच्छने पोतानो मान्यो छे पछीना मेवाडना राजाओनी विज्ञप्तिओ, नगरशेठना कुटुम्बनो सबंध अने तपगच्छीय आचार्यो - श्री जोनुं आज सुधी थतु सन्मान आ वातनी साक्षी पूरे छे. आ. जगत्चन्द्रसूरि जेवा त्यागी हता, तपस्वी हता तेवा ज विद्यानिष्णात हता. तेमने अजारीनी सरस्वती प्रत्यक्ष हती. तेओए आघाटमां वादप्रसंगे ३२ दिगम्बर आचार्योने जीत्या हता आथी राणा सिंह सूरिजी हीरानी जेम अभेद्य मानी " 'हीरला " नुं बीरुद आपी हीरला श्री जगत्चन्द्रसूरि ए नामी संबोधित कर्या. तेओनुं नाम आज पग गौरवन्तु छे. आचार्यश्री वि० सं० १२८७मां मेवाडना "वीरशाली " गाममां स्वर्गे पधार्या. उ० देवभद्रजी आ० भुवनचंद्रसूरिना शिष्य होवा छतां आ० जगत् चन्द्रसूरिने गुरु समान मानता हता, आथी तेमना शिष्यो पण चैत्रवालगच्छीय कहेवडावा छतां आ० जगत्चन्द्रना शिष्य तरीके ओळखाववानुं अभिमान लेता होय तो ते पण बनवा जोग छे. १२. उदैपुरथी लगभग १ माईल दूर आहड " छे, जे इतिहास - प्रसिद्ध जुनी नगरी छे. अहीं चार जिनालयो मौजूद छे. अहींना बावन जिनालय मन्दिरो खुदबखुद बतावी आपे छे के ते मन्दिरो घणा प्राचीन छे. महाराणा उदयसिंहजीए वि० सं० १६२४ लगभगमां उदयपुर वसावी त्यां राजधानीनी स्थापना करी. त्यार पछी आहडनी जाहोजलाली ओसरी होय एम लागे छे. -- ( मु०म० श्री विद्याविजयजीलिखित “ उदयपुरनां मन्दिरो " श्री जैन सत्य प्रकाश" पु० १, अं० १०, पृ० ३१८ - ३१९. ) वि० सं० १२८५मां मेवाडनो अधिपति राणो जैत्रसिंह हतो जेना प्राचीन शिलालेखोमां जयतल, जयसल, जयसिंह अने जयतसिंह नाम पण मळे छे. बापा रावलना वंशमां राजा रणसिंहना वखतथी "राणा" शाखानो प्रादुर्भाव थयो छे. ते शाखामां अनुक्रमे क्षेमसिंह, सामंतसिंह, कुमार सिंह, मन्थनसिंह, पद्मसिंह अने जैत्रसिंह राणाओ थया. राजा जैत्रसिंहना वि० सं० १२७०थी १३०९ सुधीना शिलालेखो मळे छे. आ राजा महापराक्रमी, वीर हतो. तेमणे छ लड़ाईमां जय प्राप्त कर्यो हतो. - ( सुखसंपतराय भंडारीकृत " भारतीय राज्यों का इतिहास. " ) "" Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष आ० जगत्चन्द्रसूरिने बे प्रधान शिष्यो हता. १. आ० श्री देवेन्द्रसूरि--तेओ लघु वयमा दिक्षीत, परम त्यागी, समर्थ ग्रन्थकार अने लाना वरघोडे चडेला नवीरा युवानने पण लग्नना दिवसे ज दीक्षित बनावी शके एवी अमोघ शक्तिमाळा हता. तेओ आ० जगत्चंद्रसूरिजीने क्रियोद्धारना कार्यमां अनन्य सहायक हता. आ सूरिजीनुं वि० सं० १३२७मां मालवामा स्वर्ग गमन थयु. आ० विद्यानन्दसूरि तथा आ० धर्मघोषसूरि (उ० धर्मकीर्तिजी) वगेर तेओना शिष्य हता. तेमनाथी "लघुपोशाळ" शाखा निकळी छे. २. आ० विजयचन्द्रसूरि----उ० देवभद्रगणिनी कृपाथी तेओने दीक्षा, ज्ञान तथा सूरिपद (वि०सं० १२८८मां ) प्राप्त थयेल छे. तेमने विजयसेनसूरि, पद्मचंदसूरि, क्षेमकीर्तिसूरि (सं० १३३२मां कल्पभाष्य टीकाकार) वगेर शिष्यो हता. तेमनाथी “वडीपोषाळ'' शाखानो आरम्भ थयो छे.१३ विक्रमनी तेरमी शताब्दीथी आ० जगत्चन्द्रसूरिना शिष्यो ते तपगच्छ, अने तेमना गुरुभाईना शिष्यो ते वडगच्छ, आ रीते नामांतर भेद थयो. बाकी आ बन्ने गच्छोमा सिद्धांतनी एकता, समाचारीनी समानता, क्रियानी अभेदता तथा हरएक प्रकारना सबंधो पूर्ववत् धनीष्ठ ज रह्यां छे. तपगच्छना मुनिओनो “ दिग्बंध" आ प्रमाणे छे ----- " कोटिकगण, चांद्रकुल, वज्रीशाखा, तपगच्छ." वगेरे वगेरे. आ रीते निर्ग्रन्थगच्छर्नु मुटुं नाम तपगच्छ छे. जेमां आज ६६४ साधुओ विद्यमान छे.१४ ------( आ० श्री मुनिसुंदरसूरिकृत गुर्वा ली, उ० श्री धर्मसागरकृत तपगच्छ-पट्टावली, पट्टापली समुच्चय भाग-१, पं० खुशालविजयगणीकृत हस्तलिखित पृ० ४१नी भाषापावली वगेरे.) भविष्यवाणी उपर दर्शावल इतिहासना परिशीलनयी ए नही थाय छे के पार्श्वनाथसंतानीयोमा कंवलागच्छ, श्वेताम्बरोमा तागच्छ अने आजीविक-दिगम्बोमा मूळसंघ ए परंपरागत प्रधान शाखाओ छे. तपगच्छना अभ्युदय सूचक भिन्न भिन्न देवी-वचनो प्राप्त थाय छे. १३. वडीपोषाळ शाखाना आचार्य ज्ञानचन्द्रसूरि (अथवा ज्ञानसागरसूरि )ना लहिया “लांका" पनमियाथी वि० सं० १५०८मां कामत निकल्यो. ते ज परंपरामांथी वि. सं. १७०९मा टुंढकमत (बावीश टोला) अने वि. स. १८१८मां तेरापंथीमत निकाल्या छे. १४. हाल जैन साधुओनी संख्या एकन्दरे नीचे प्रमाणे छे :--- तपगच्छ साधु-६६४, (साध्वी १२००), खरतरगच्छ-साधु ४०, अंचळगच्छ-साधु २५ थी ३०. पायचन्दतपगच्छ-साधु १० थी १२, त्रिस्तुतिकतपगच्छ-साधु १५, स्थानकमार्गी-साधु ७५०, (साध्वी १४०.) तेरापंथी-साधु ११५, दिगम्बरी साधु-२० थी २३, (आर्यिका-२). आ संख्या अनुमाने लखेल छे. Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ 66 17 विक्रमनी चौदमी सदीना प्रारम्भमां शासनदेवीए संग्राम सोनीने जणान्युं के- 'हे संग्राम ! भारतमा उत्तमोत्तम गुरु आ० श्री देवेन्द्रसूरि छे, तेनो मुनिवंश विस्तार पामशे अने युगपर्यंत चालशे. तुं ए गुरुनी सेवा कर. - ( गुर्वावली, श्लोक - १३८) विक्रमनी चौदभी सदीना उत्तरार्धमा खरतरगच्छीय आचार्यवर्य श्री जिनप्रभसूरने पद्मावती देवीए प्रत्यक्ष थई जणान्युं के ४० " तपगच्छनो दिन प्रतिदिन अभ्युदय थशे माटे तमो तमारां स्तोत्रो तपगच्छना वर्तमान- विद्यमान आचार्य श्री सोमतिलकसूरिने समर्पित करो. " -- (आ० जिनप्रभसूरिशिष्य आदिगुप्तरचित सिद्धांतस्तवावचूरि ) माणिभद्रवीरे आ० श्री विजयदानसूरिने स्वप्नमां कह्यं के" तमारा गच्छनुं कुशलपणुं करीश. तमारी पाटपर विजय शाखा स्थापजो. --- (पं खुशालविजयकृत भाषा - पट्टावली, सं० १८८९ जे० व० १३ शुक्रवार, सिरोही ) वास्तविक रीते जोई शकाय छे के आ जैनशासनसंरक्षक अने हितवादी देवदेवीओनी भविष्यवाणी अत्यार सुधी निरपवाद साची पडी छे. आपणे पण प्रस्तुत निबन्ध समाप्त करतां पुनः पुनः ए देवीवचनोनी निरन्तर सफळता इच्छी विरमीए. जैनं जयति शासनम् वीर नि० संवत् २४६२, कार्तिक पुनम, डावला, अमदावाद. Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ४१ जैनाचार्योनो औपदेशिक प्रभाव लेखक-मुनिराज श्री न्यायविजयजी ( दील्हीवाला ) जैन-संस्कृतिनी अहिंसा अने त्याग-वैराग्यनी भावना आजे जगप्रसिद्ध छे. एनी पाछळ एक प्रबल अने स्वतंत्र संस्कार, बळ अने भावना छुपायां छे. एज भावनाना बळे जैनधर्म अने जैनसंस्कृति अविचल-शुद्रस्थान पामी शकेल छे. अने एनुं मूळ जैनतीर्थ करो अने तेमनो शिष्यसमुह, आचार्य बन्द अने साधुगण छे. श्री तीर्थंकर, गणधर महाराजोए स्थापित जैन-संस्कृतिना प्रचार माटे तेमनी पछीना साबुसमूहे उघाडे माथे अने खुल्ले पगे भारतमा विचरी घगो उपकार को छे. जेम एक वृक्षमांथी अनेक डाळीओ अने शाखाओ फूटे तेम जैनधर्म भारतना खुणे खुगामा फेलायो; छतांये जैनधर्मनी संस्कृतिने क्यांय आंच आवया दीधो न होय के क्याय उणप थवा न दीधी होय तो ए जैनाचार्योने ज आभारी छे. ज्यां ज्यां ए त्याग अने तपनी मूर्तिसमा, शांतिना अवतार जैन मुनिओ पहेांच्या त्यां त्यां तेमणे अमी ज वर्षाच्या. परम शान्तिथी उपदेशधारा वर्षावी संसारना त्रिविध तापथी पीडाता मानवसमूहमे परम शान्ति अर्पवानुं काम एमणे कर्यु छे. ___ आ सिवाय शुं साहित्यक्षेत्रे के धर्मक्षेत्रे, शुं शिल्पक्षेत्रे के कलाक्षेत्रे जैनसंस्कृतिने ए सूरिपुंगवोए अपूर्ण नथी रहेवा दीधी. आ बधुं करवा साथे जैनधर्मना उपासको वधारवा माटे पण तेमणे पुरेपुरु लक्ष्य आप्यु छे. राजामहाराजाओथी लइने गरीबोनां झुपडां सुधी पहोंची जई श्रमण-संस्कृतिनो प्रवाह तेमणे वहेवडाव्यो छे. मोटा मोटा कुबेर भंडारीओ, चक्रवर्ति सगा राजाओ, महामुत्सदो मंत्रीश्वरो अने आम जनताने तेमणे श्रमण-संस्कृतिना दिव्यामृतनुं पान करावी अहिंसा, संयम, अने शांतिनो डिडिमनाद वगाड्यो छे. आजे एमनां ए बयां कार्यानो परिचय आपवानो समय नथी अने एटलं स्थान पण नथी. एटले आ तपगच्छ-श्रमण-वंशवृक्षमा मुख्य मुख्य जैनाचार्योना औपदेशिक प्रभावनो परिचय आपवा धारुं छु, Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ __ भगवान् महावीरे जे वृक्षनुं बीजारोपण कयु हतुं तेने सिंचवानुं तेनुं रक्षण करवानुं कार्य सावुओना ज हाथमां ह. भगवान् महावीर देवे तत्कालीन भारतना घणा राजाओ उपर जैनसंस्कृतिनी प्रबल छाप पाडी हती. तेमां मुख्य-मगध सम्राट् श्रेणिक, तेनो राजवंश, तेना उत्तराधिकारी अजातशत्रु-कोणिक छे. त्यारपछी वैशालीना गणसत्ताक राज्यना प्रमुख महाराजा चेडा अने तेनो समस्त राजवंश भगवान् महावीरना परम उपासक हता एटलुंज नहिं किन्तु जैनसंस्कृतिना पोषक अने संरक्षक पण हता. आवी ज रीते उज्जयिनीपति चंडप्रद्योत, उदायन, काशी अने कोशलना लिच्छवीओ वगेर अनेक राजामहाराजाओ प्रभुवीरनी अमृतवाणीनुं पान करी श्रमण-संस्कृतिना अनुरागी बन्या हता. __ भगवान् महावीरनी शिष्य-परंपराए पण ए ज प्रथा वालु राखी धर्मना प्रभाव अने प्रचार माटे राजामहाराजाओने उपदेश आपयानो चालु राख्यो हतो. जेना अनेक पुरावा, प्रबल ऐतिहासिक प्रमाणो, शिलालेखो, ऐतिहासिक ग्रंथो अने प्रशस्तिओ द्वारा उपलब्ध थाय छे. (२) जंबूस्वामी भगवान् महावीरना द्वितीय पट्टधर अने अन्तिम केवलीए, बिन्याचल पर्वतनी तळेटीमा रहेला जयपुरना कात्यायन गोत्रीय राजा जयसेनना पुत्र प्रभवाजी के जेओ पोताना ४९९ साथीदारो सहित चोरी अने धाड पाडवानो धंधो करता तेमने, पोताने ज घेर चोरी करवा आवतां प्रतिबोध आपी पोतानी साथे ज भागवती दीक्षा अपावी. (३) प्रभवस्वामी तेमणे पोतानी पछी जैन-शासननो भार सेांपवा तत्कालीन जैन संघमां योग्य व्यक्ति न जोबाथी पोताना शिष्योने मोकली यज्ञकर्ता प्रसिद्ध ब्राह्मण पंडित शय्यंभवने प्रतिबोध पमाड्यो अने यज्ञस्थंभ नीचे रहेल श्री शान्तिनाथजीना बिंधनां दर्शन करावी सत्यधर्मनु भान कराव्यु. अने तेमणे त्यांथी प्रभवस्वामी पासे आवी दीक्षा लोधी. तेमणे दशवकालिक सूत्र बनाव्यु. प्रभवस्वामी वीरनिर्वाण संवत् ७५ मां स्वर्गे गया. रत्नप्रभसूरि ओसवाल ज्ञातिनी उत्पत्तिना मूलभूत महापुरुष आ आचार्य महाराज छे. विक्रम संवत् चारसो वर्ष पूर्वे भिनमाल नगरीमां भीमसेन नामे प्रतापी राजा राज्य करतो हतो. तेने श्रीपुंज अने उपलदेव नामे बे पुत्रो हता. कारणवशात् बन्नेमा मतभेद पडवाथी नानो पुत्र उपलदेव राज्य छोडी चाली नीकळ्यो अने दिल्हीना राजानी रजा लइ तेणे मंडोवरनी पासे ज उपकेश अथवा ओसिया नगरी वसावी. ओसीया नगरी घणी लांबीचोडी हती अने तेमां वस्ती पण पुष्कळ हती. एकवार Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ४३ राजाए पार्श्वनाथ प्रभुना सातमा पधर आचार्य श्रीरत्नप्रभरि पांच सो शिष्यो सहित पधार्या, अनेत्यां नजीकनी लुणादिनी नानी पहाडीमां जइ तपस्या अने स्वाध्याय करवा साथे ध्यानमग्न रहेवा लाग्या. नगरजनो ने राजाने आ परम त्यागमूर्तिनी उपदेशधाराए शुद्ध धर्मना अनुरागी बनाव्या. एकवार राजपुत्रने सर्प करड्यो लाभनुं कारण जाणी आचार्य महाराजे एनुं विष दूर कर्यु. त्यार पछी आचार्य महाराजना उपदेशथी ओसिया नगरीनी समस्त जनताए जैनधर्म स्वीकार्यो. अने तेना समस्त कुटुम्बोवर्गे पण बहु ज श्रद्धापूर्वक जैनधर्म स्वीकार्यो. राजपुतोनी कुलदेवी चामुंडाने पाडा ने बकरानो बलि चढतो ए पण आचार्य महाराजना उपदेशथी बंत्र थयो. राजमंत्री उद्दडे ओसिया नगरीमां प्रभु श्री वीरतुं मंदिर बंधात्र्युं अने आचार्य महाराजे तेनी प्रतिष्ठा करो. आज समये कोरंटामां पण वीर प्रभुना मंदिरनी प्रतिष्ठा आचार्य महाराजे करेली छे. आने माटे नीचे प्रमाणे प्रमाण मळे छे : 46 सप्तत्या (७०) वत्सराणां चरमजिनपतेर्मुक्तजातस्य वर्षे, पंचम्यां शुक्लपक्षे सुहगुरुदिवसे ब्रह्मणः सन्मुहूर्ते । रत्नाचार्यैः सकलगुणयुतैः सर्वसंघानुज्ञातैः, श्रीमद्वीरस्य fare भवशतमथने निर्मितेयं प्रतिष्ठाः ॥ १ ॥ उपकेशे च कोरंटे तुल्यं श्रीवीरबिम्बयोः । प्रतिष्ठा निर्मिता शक्त्या श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ॥ २ ॥ ओसीयानगरीना राजपुतोए ज जैनधर्म स्वीकार्ये एटलं ज नहि किन्तु ओसीया निवासी समस्त जातिए जैनधर्म स्वीकार्यो. भगवान् महावीर पछी जैनधर्मना प्रचारनुं मीशन स्थापनार आ आचार्य महाराज छे. वर्तमान औसवाल समाजमांथी बहुधा ओसवालो आ आचार्य महाराजना उपदेशथी ज जैनधर्म पामेला छे. रत्नप्रभसूर क्यारे थया आ विषयमा वर्तमान इतिहासकारोमां मतभेद छे. परन्तु एटलं तो निर्विवाद सिद्ध छे के भगवान् महावीर पछी लाखोनी संख्यामां जैनो बनावनार आ प्रथम ज आचार्य थया छे. मूळ रत्नप्रभसूरिजी नामना अनेक आचार्यो थया एटले संवत्नो निर्णय थवो मुस्केल छे. जैन ग्रन्थोमां तो वीरनिर्वाण संवत् ७० नो उल्लेख मले छे एटले में पण एज समय स्वीकार्यो छे. १. आ श्लोकना त्रीजा पादमां छंदोमंग छे अने केटलीक अशुद्धि पण छे, छतां " जैन साहित्य संशोधक" ना प्रथम भागमां जे प्रमाणे आपेल छे ते ज प्रमाणे अक्षरशः अहीं आपेल छे. Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - श्री तपगच्छ (६) श्री भद्रबाहु स्वामी तेओश्री यशोभद्रमूरिना शिष्य हता अने वीरनिर्वाण संवत् १७०मां स्वर्ग पाम्या हता. तेओ अन्तिम श्रुत केवली होवा साथे अनेफ नियुक्तिओना अने उबसग्गहर स्तोत्रना कर्ता हता. तेमना लघु बन्धु वराहमिहीरे उपद्रव को त्यारे तेमणे संघरक्षा करी हती. तेमणे दक्षिणना राजाने प्रतिबोध्यो हतो अने नंदवंशना राजाओने पण उपदेश आप्यो हतो. (७) श्री स्थूलभद्रजी __तेओ श्री संभूतिसूरिजीना शिष्य, नंद वंशना मंत्रीश्वर शकटालना पुत्र, कोशावेश्याना प्रतिबोधक अने एक समर्थ चारित्रधारी हता. नंदवंशना अन्तिम राजाओने प्रतिबोध करनार अने मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तने प्रतिबोध पमाडी जैनधर्मनो उपासक बनावनार अने तेमना द्वारा जैनधर्मनो खूब खूब प्रचार करावनार तेओ हता. वीरनिर्वाण संवत् २१५मा तेमनो स्वर्गवास थयो. (८) आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्तियरि स्थूलभद्रजीनी पाटे आ बन्ने आचार्यो थया छे. आर्य महागिरिजी जिनकल्पनी तुलना करता हता. तेओ परम त्यागी अने महायोगीश्वर हता. आर्य सुहस्तिसूरिजीना उपदेशथी अवन्तिना भद्रा शेठाणीना पुत्र अवन्तिसुकुमाले दीक्षा लीथी अने स्मशानमां का उस्सग्गध्याने ज स्वर्ग गया. ते स्थाने आचार्यश्रीना उपदेशथी तेना पुत्रे अवन्ति पार्श्वनाथनुं भव्य मंदिर स्थाप्यु जे तीर्थरूपे पूजायु. अने आर्य सुहस्तिसूरिजीए मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्तना पौत्र अशोकना पौत्र सम्पतिने प्रतिबोध पमाडी परम आहेतोपासकजैन बनायो हतो. सम्प्रति राजाए जैनधर्म स्वीकार्या पछी उज्जयिनीमा साधुओनी एक मोटी सभा एकत्र करावी अने आचार्य महाराज द्वारा प्रांतवार साधुओना विभाग करी आर्य देशमा सर्वत्र साधुओनो विहार कराव्यो. आ उपरांत अनार्य देशमां पग साधुओनो विहार करावी जैनधर्मनो प्रचार कराव्यो.' जैनधर्म स्वीकार्या पछी आचार्य महाराजना उपदेशथी सम्राट् सम्प्रतिए सवा लाख नवीन जिन-मंदिर बनायां, छत्रीस हजार मन्दिरोना जीर्णोद्वार कराव्या, सात सो दानशाळाओ बनावी, सवा करोड जिनबिंब कराव्यां अने पंचागु हजार धातुप्रतिमाओ करावी. ए राजाने प्रतिज्ञा हती के निरन्तर एक जिनमंदिर बन्यानी वधामणी आव्या पछी दंनयावन क..२ सम्राट् सम्प्रतिए मरु देशमां धांधणी नगरमां श्रीरामप्रमस्वामीन मंदिर बंधाव्यु. पावागढमां श्री संभवजिननु, हमीरगढमां श्री पार्श्वजिननु, इलोरगिारमा नेमिनाथनु, पूर्व दिशामां रोहीशनगरमां श्री सुपार्श्वनाथनु पश्चिममां देवपत्तन (प्रभासपाटण) मां........जिननु, १. हिमवंतर्थरावली. २. तपगच्छ पट्टावली, श्री. जै. को. हेरल्ड. ३. पट्टावलीकार लखे छे के आ स्थान दक्षिणमा छे आ स्थान बीजं कोई नहिं किन्तु प्रसिद्ध इलारानी गुफा ज छे. पुरातत्त्व शोधकोए इलोरानी गुफानुं जैन-मंदिर शोधी काढवू जोईए. Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ईडरगढमां शांतिनाथनु; एम आ बघां स्थाने जिनमंदिर बंगव्यां. राजाए सिद्धगिरि, सीवंतगिरि (समेतशिखर हशे ?), श्रीशंखेश्वरजी, नंदीय (नांदिया), ब्राह्मणवाटक (बामणवाडा, प्रसिद्ध महावीर स्वामीन मंदिर ) आदि स्थानोना संघ काढी संघपति थया अने रथयात्रा पण कगवी हती. सम्राट् सम्प्रतिना धर्मगुरु आर्य सुहस्तिसूरि सो वषर्नु आयुष्य पाळी वीरनिर्वाण संवत् २९१मां स्वर्ग पधार्या. अने राजा २९३मा स्वर्गे गयो. सम्प्रतिए जैनधर्मनो खूब प्रचार को छे. टॅॉडराजस्थानना कर्ता कर्नल टॉड लखे छे के कमलमेरपर्वतर्नु शिखर, के जे समुद्र तलथी ३३५३ फूट उंचुं छे तेनी उपर एक प्राचीन सुंदर जिनमंदिर जोयु. आ मंदिर ए वखतनुं छे के ज्यारे मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्तनो वंशज सम्प्रति मरुदेशनो राजा हतो. तेणे आ मंदिर बंधाव्यु छे. मंदिरनी बांधणी अति प्राचीन अने बीजां अनेक जैन मंदिरोथी तदन विभिन्न छे. आ मंदिर पर्वत उपर बन्यु होवाथी हजी सुरक्षित छे. -(टॅॉडराजस्थान, हिन्दी, भा० १, खं० २, अ० २६, पृ० ७२१ थी ७२३). पाटलिपुत्रमा (पटणामां) अशोकनो पुत्र दशरथ (पुण्यरथ) राजा बन्यो. तेनी पछी वृद्धरथ (पुराणोमां एने बृहद्रथ कह्यो छे, ) गादीए बेठो. आ बने राजाओ बौद्ध धर्मी हता. वृद्धरथने तेना सेनाधिपति पुष्यमित्रे मारी गादी पोताना ताबे करी अने वीरनिर्वाण संवत् ३०४मां ए पाटलीपुत्रनो राजा बन्यो. ९ सुस्थित सुप्रतिबद्ध आर्यसुहरितमूरिजीनी पाटे आ बने आचार्यो थया छे. तेमणे उदयगिरि उपर क्रोडवारे सूरिमंत्रनो जाप को हतो तेथी निर्ग्रन्थगन्छनुं नाम कौटीकगच्छ पड्यु. आ आचार्यना समयमां प्रसिद्ध महामेघवाहन खारवेल थयेलो छे. विशालाना गणसत्ताक रायना मुख्य प्रधान–प्रेसीडेन्ट महाराजा चेटक, अजातशत्र-कोणिक साथेना युद्धमां, मराया पछी तेनो पुत्र शोभनराय पोताना श्वसुर कलिंगाधिपति सुलोचन पासे जाय छे. अने पछी त्यांनो ज राजा बने छे. शोभनराय पोताना पितानी माफक परम जैनधर्मी हतो. एणे कलींग देशमां आवेला कुमारी पर्वत उपर जई यात्रा करी आत्मकल्याण साध्यु हतुं. तेनी पांचमी पेढीए चंडराय कलिंगाधिपति थयो, जे वीरनिर्वाग संवत् १४९ मां कलिानी गादीए बेठो. चंडरायना समयमा पाटलीपुत्रमा आठमो नंद गादी उपर हतो. ए महालोभी अने अधर्मी हतो. तेणे कलिंग उपर चढाई करा कलिंगाने नभ्रष्ट कर्यु अने कुमारगिरि पर्वत उपर मगध सम्राट श्रेणिके बधावेल जिनमंदिर तोडी तेमांनी आदिनाथ भगवान्नी सुवर्ण प्रतिमाने पाटलीपुत्र उतावी गयो. १. तपगच्छ पट्टावली, श्री. जै. को. हेरल्ड. Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ चंडराय पछी तेनी त्रीजी पेढीए क्षेमराज कलिंगनो राजा बन्यो. वीरनिर्वाण संवत् २२७ मां एनो राज्याभिषेक श्रो. एना समयमा प्रसिद्ध मौर्य सम्राट् अशोके कलिंग उपर चढाई करी कलिंगने मनुं आज्ञाधारी बनायुं. ४६ क्षेमराज पछी तो पुत्र डुराज कलिंगाधिपति थयो. ते परम जैनधर्मी हतो. तेणे कुमारगिरि ने कुमारी गिरी पर्वत उपर श्रमणोने रहेवा माटे ११ गुफाओ बनावी. वीरनिर्वाण संवत् ३०० मां तेनी पछी तेनो पुत्र भिक्खुराज कलिंगनी गादीए बेो. ते परम वीतरागोपासक अने निर्बन्धनो भक्त हतो. भिक्खुराजनां त्रण नामो हतां : भिक्षुराज, महामेघवाहन अने खारवेल. भिक्षुराज अतिशय पराक्रमी अने वीर पुरुष हतो. तेणे पोतानी प्रबल सेनाथी विजययात्रा आरंभी. मगध नरेश पुष्यमित्र युद्धमां हरावी तेने पोतानी आज्ञा मनावी अने नंदराज जे आदिनाथ प्रभुनी प्रतिमा, कलिंग देशमांथी अडी लाव्यो हतो ए सुवर्ण प्रतिमा पाछी कलिंगमां लाव्यो, अने कुमारगिरिपर्वत उपर नवीन मंदिर बंधावी प्रसिद्ध श्वेतांबराचार्य सुप्रतिवद्धसूरिजी पासे तेनी प्रतिष्ठा करावी. आर्य महागिरि अने आर्य सुहस्तिसूरिजीना समयमां बारावर्षीय भयंकर दुष्काळ पड्यो हतो. ते वखते घणा त्यागी साधु-महात्माओ त्यां अनशन करी स्वर्गे सिवाच्या हता. ए दुष्काळना प्रभावथी आगमज्ञान क्षीण थतुं जतुं जोइ कलिंगाधिपति खारवेले प्रसिद्ध प्रसिद्ध जैनस्थविरोने कुमारीपर्वत उपर एकत्र कर्या, जेमां आर्य महागिरजीनी परंपराना आर्यवलिस्सह, बोधिलींग, देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य वगैरे बसो साधुओ, तेमज आर्य सुस्थित अने सुप्रतिबद्ध तथा 'उमास्वाति, श्यामाचार्य वगैरे ऋण सो स्थविरकल्पी साधुओ एकत्र थया हता. आर्या पोइणी प्रमुख त्रणसो साध्वीओ आवी हती. कलिंगराज, भिक्षुराज, सीवंद, चूर्णक, सेलक वगेरे सातसो श्रमणोपासको अने कलिंग महाराणी पूर्णमित्रा आदि सातसो श्रमणोपासका -श्राविकाओ एकत्र थइ हती. कलिंगराजन विनतिथी अनेक साधुओ अने साम्नीओ मगध, मथुरा, बंग आदि देशोमां धर्मप्रचार माटे नोकळ्या, अने आगमवित् पूर्वधरोए आगमनो संग्रह कर्यो. राजानी विनतिथी शेष बचेल दृष्टिवादनो पण संग्रह कर्यो. आत्री रीते आ राजा द्वादशांगीनो संरक्षक बन्यो. १. तत्त्वार्थसूत्र सभाष्यना कर्ता. वीर निवाणनी चोथी शताब्दिमां स्वर्ग. प्रशमरति, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि पांचसो प्रकरणग्रंथोना रचयिता. २. पन्नवणासूत्रना कर्ता. वीरनिर्वाण संवत् ३६७मां स्वर्ग. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष आ महाप्रतापी, परम जैनधर्मी राजा खारवेल वीरनिर्वाण संवत् ३३० पछी स्वर्गे गयो. भिक्षुराज पछी तेनो पुत्र वक्रराय कलिंगनो राजा थयो. ते पण परम जैनधर्मी ज हतो. ते वीरनिर्वाण संवत् ३६२मां स्वर्गे गयो. तेनी पछी तेनो पुत्र विदुहराय कलिंगराज बन्यो. ते पण परम जैनधर्मी हतो अने जैन साधुओनो परम भक्त हतो. ते वीरनिर्वाण संवत् ३९५मा स्वर्गे गयो. कालिकाचार्य आ नामना चार आचार्यो थया छे. तेमांधी अहीं तो गर्दभिल्लोच्छेदक अने संवत्सरी पांचमनी हती ते चोथनी करनार कालिकाचार्यनो संबंध जणा, छं. विशेष माटे इतिहासप्रेमी मुनिराज श्री कल्याणविजयजी लिखित "आर्यकालक'' जूओ. कालिकाचार्य धारावास नगरना राजा वीरसिंहना पुत्र अने भरुचना राजा बलमित्र भानुमित्रना मामा थता हता. कालिकाचार्ये जैनाचार्य गुणाकरमूरिजीना उपदेशथी जैनी दीक्षा लीधी हती. तेमनी साये एमनी बहेन सरस्वतीए पण दीक्षा लीधी हती. दीक्षा लीधा पछी टुंक समयमां ज कालक कालिकाचार्य बने छे, अने विहार करता उज्जयिनी आवे छे. त्यां तेमनां बहेन सरस्वती पण साध्वीपणामां छे. तेमनु रूप अने लावण्य जोई ए ब्रह्मचारिणी साध्वीनु उज्जयिनीना गर्दभिल्लराजा बलात्कारे हरण करे छे. कालिकाचार्य तेने छोडाववा बधा प्रयत्न करे छे पण दुष्ट राजा नथी मानतो. अन्ते ए दुर्बुद्धि राजानी सान ठेकाणे लाववा कालिकाचार्य इरान देशमा ९६ खंडिया राजाओने एकत्र करी हिन्द उपर चढी आवे छे. अन्ते भीषण युद्ध थाय छे, गर्दभिल्ल मृत्यु पामे छे अने कालिकाचार्य पवित्र साध्वीने छोडावे छे. शक लोको टुंक मुदत उज्जयिनीनु राज्य भोगवे छे अने पछी बलमित्र-भानुमित्र त्यांना राजा बने छे. बलमित्र-भानुमित्र आचार्य महाराजना उपदेशथी जैनधर्म स्वीकारे छे. राजाना आग्रहथी आचार्य महाराज भरुचमां (उज्जयिनी पण कहे छे) चतुर्मास रह्या छे, परन्तु मंत्रीनी खटपटथी त्यांथी विहार करी दक्षिणमा प्रतिष्ठानपुरमा रहे छे. त्यांनो राजा आचार्यता उपदेशथी आकर्षाई तेमनो भक्त बने छे अने भादरवा शुदि पांचमनुं वार्षिक पर्व राजानो अति आग्रहथी चतुर्थीला दिवसे करवानुं नक्की थाय छे. जे प्रथा अद्यावधि चाले छे. पंजाबमां भावडागच्छना स्थापक आ ज आचार्यवर्य छे. कालिकाचार्य जब्बर युग-प्रवर्तक पुरुष थया छे. तेमणे राज्यक्रांति करवा साथे धर्मक्रांति पण करी बलमित्र-भानुमित्रने अने प्रतिष्ठानपुरना सातवाहनने तेम ज ईरानना शाखिओने प्रतिबोधी जैनधर्मनो उपदेश आयो हतो. तेओ वीरनिर्वाण संवत् ४६० लगभगमा स्वर्गे गया.२ १. हिमवंत थेरावलीना आधारे, लेखक मुनिराज श्री कल्याण विजयजीना लेखना आधारे. २. विशेष माटे प्रभावकचरित्र जुओ. Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ ___ आर्य खपटाचार्य आर्य खपटाचार्यजी कालिकाचार्यना भाणेज बलमित्र अने भानुमित्रना समयमा भरुचमा थया हता. तेमणे बौद्वोने वादमां जीती त्यांन प्रसिद्ध अश्वावबोध तीर्थ जैनसंधने ताबे कराव्युं हतुं. तेमणे गुडशरखपुरमा यक्षनो उपद्रव निवार्यो हतो अने त्यांना बौद्रवादि वृद्धकरने जीतीने त्यांना राजाने प्रतिबोध करी जैनधर्मी बनाव्यो. ए ज समयमां पाटलीपुत्रमा शुंगवंशनो राजा दाहड-देवभूति हतो. तेणे ब्राह्मणोना कहेवाथी एवो हुकम को हतो के जैन साधुओ राजाने प्रणाम करे अने दरेक दर्शनवाळा स्वसिद्धांत छोडी दे. जे आq नहि करे-राजाज्ञा नहि माने-तेमने प्राणदंडनी सजा थशे. आथी जैन-श्रमणो खळभळ्या अने महाविद्यासिद्ध खपटाचार्यने भरुचथी बोलाव्या. आचार्य राजाने अने ब्राह्मणोने सजा करी सत्यधर्मनुं भान कराव्यु अने अन्ते त्यांना ब्राह्म गोने जैनी दीक्षा आपी, राजाने प्रतिबोधी जैन बनाव्यो.' प्रभावकचरित्रमा आर्य खपटनी साथे तेमना शिष्य उपाध्याय महेन्द्रनुं नाम पण मळे छे. आर्य खपटनी पासे परम प्रभाविक पादलिप्तसूरिए अभ्यास को हतो. वीरनिर्वाग संवत् ४८०मां आचार्यश्रीनो स्वर्गवास थयो हतो. पादलिप्तसरि आ महान् विद्यासिद्ध अने प्रभावक आचार्य थया छे. तेमणे पाटलीपुत्रना राजा मुरुंडने प्रतिबोधी जैनधर्मी बनायो. तेम ज मानखेटना राजकृष्णराजने उपदेश आपी जैनधर्मी बनावेल छे. कृष्णराना अने तेनी सभा आचार्य महाराज उपर अतिशय अनुराग धरावती. आचार्य श्री घणो वखत त्यां रह्या छे. भरुचमां ब्राह्मणोए उठावेल उपद्रव तेमणे टाळ्यो. प्रतिष्ठानपुरना सातवाहनने पण उपदेश आपी जैनधर्मगां वधु दृढ बनायो. तेमना गृहस्थ-शिष्य महायोगी नागार्जुने आचार्यश्रीना नामथो शत्रुजयनी तलाटीमां पादलितपुर वसाव्यु जे अत्यारे पालीताणा कहेवाय छे. त्यां शत्रुजय उपर तेमणे वीरचैत्य बनायुं अने पादलिप्तसूरिजीनी प्रतिमा पण बनावरावी. आचार्य महाराजे तरंगलोला, निर्वाणकलिका, प्रश्नप्रकाश आदि ग्रंथो बनाव्या छे. कालिकाचार्य, आर्य खपटाचार्य अने पादलिप्तसूरि लगभग समकालीन छे. तेओ वीरनिर्वाणनी पांचमी शताब्दिमां थया छे. तेओ शत्रुजयपर अनशन करी स्वर्ग सिधाव्या. तेमणे शकुनिका विहारनो जीर्णोद्धार कराव्यो हतो. सिद्धसेन दिवाकर आवृद्धवादिसूरिना शिष्य अने महाप्रतापी राजा विक्रमना प्रतिबोधक-धर्मगुरु हता. एमणे बंगालना कुर्मारपुरना राजा देवपालने प्रतिबाधी जैन बनायो हतो. आचार्यश्रीए अवन्ति पार्श्वनाथनी प्रतिमा जे ब्राह्मणोए दबावी हती तेने बहार काढी हती. प्रथम वीरद्वात्रिंशिका रची अने पछी कल्याण १. प्रभावकचरित्र अने चतुर्विंशतिप्रबन्ध, Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Re mi - RE धमण वंशवृक्ष मंदिर स्तोत्र रच्यु जेना पंदरमा श्लोके महदेवजीनें लींग फाट्युं अने पार्श्वजिननी प्रतिमा प्रगट थई. तेमनुं संस्कृत अने प्राकृतज्ञान बहु विशाल हतुं. तेमणे समस्त आगमोने संस्कृतमां करवानो संकल्प करीने " नमोऽर्हत्सिद्वाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः” प्रथम बनायुं. आना प्रायश्चित्तरूपे वीरविक्रमने प्रतिबोधी जैन बनायो. राजा वीरविक्रमे जैनधर्म स्वीकारी सिद्धाचलजीनो संघ काढयो, भरुचना अश्वावबोध तीर्थनो जोणीद्धार को अने ओंकारनगरमा विशाल जिनमंदिर बंधावी जैनशासननी खूब प्रभागना करी. तेओ विक्रमनी प्रथम शताब्दिना महान् आचार्य हता. तेओ जैन न्यायना आद्य सृष्टा छे. तेमणे सन्मतितर्क, न्यायावतार, द्वात्रिंशिकाओ, कल्याणमंदिरस्तोत्र आदि ग्रंथो बनाया छे. तेओ श्री दक्षिणमा स्वर्गे पधार्या. निशीथचूर्णिमा उल्लेख प्रमाणे तो सिद्धसेन दिवाकरे जैनागमो उपर पण टीकाभाष्य रच्या हशे. सिद्धसेन दिवाकरनी सर्वज्ञपुत्र तरीकेनी जबरी ख्याति छे. (१३) श्री वनस्वामी भगवान् वज्रस्वामीनो जन्म आजथी १९६७ वर्ष पूर्व मालब देशमां तुम्बवन गाममां थयो हतो. तेमनी मातानुं नाम सुनंदा अने पितानुं नाम धनगिरि हतुं, सुनन्दा गर्भिणी हती त्यारे धनगिरिए सिंहगिरिसूरि नामना प्रसिद्ध जैनाचार्यना उपदेशथी भागवती दीक्षा लीधी. पुत्र जन्म पछी माता पुत्रने धनगिरिने व्होरावी दे छे. वज्र टुंक समयमां जैनागमनो ज्ञाता बने छे अने बहु नानी उम्मरे भागवती दीक्षा ल्ये छे. शुद्ध अने उञ्चल चारित्रना धारक बनीने अनेक लब्धिओ मेळवे छे. तेमना समयमां बारावर्षी भयंकर दुकाळ पडे छे. ते वखते उत्तरापथना संघने दक्षिणमां लई जई संध-सेवा बजावे छे, अने त्यांना (पुरीना) राजाने पण प्रतिवोधी जैनधर्मी बनावे छे. पुरीनो राजा परम बौद्धधर्मी हतो. पर्युषणना दिवसोमां शुद्ध पुष्प जिनवरेन्द्र उपर चढावया नथी मलता. वज्रत्वामी ते विघ्न दूर करे छे. आवी ज रीते शत्रुजय तीर्थनो उद्धार पण तेओश्रीना हाथे ज थाय छे. पांचमा आरामा सौथी प्रथम जीर्णोद्धार आ आचार्य महाराजे करायो छे. तीर्थरक्षक देवनो उपद्रव टाळी महामहेनत अने प्रबल पुरुषार्थ दाखवी जावडशाह द्वारा जीर्णोद्धार कराव्यो छे. तेओ विक्रम संवत् ११४मां स्वर्गवास पाम्या. (१४) वज्रसेनरि तेमनी पाटे वज्रसेनमूरि थया छे. तेमणे सोपारकना जिनदत्त श्रेष्ठीना कुटुम्बने मृत्युना मुखमाथी बचाव्यु अने तेना चार पुत्रो नागेन्द्र, चन्द्र, निवृत्ति अने विद्याधरादिने कुटुम्ब सहित दीक्षा आपी. आ चारे महान् आचार्य थया छे अने तेमना नामथी चार गच्छो प्रसिद्ध थया छे. तेओ विक्रमनी बोजी शताब्दि-बीरनिर्वाग संवत् ६२० मां स्वर्ग पाग्या. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ मल्लवादी आ नामना त्रण आचार्यो थया छे : (१) प्रसिद्ध बौद्धवादि विजेता अने द्वादशारनयचक्रना रचयिता, (२) लघुधर्मोत्तरना न्यायबिन्दु उपर टिप्पण कर्ता अने (३) जेमनी काव्यशक्तिनी प्रशंसा महामात्य वस्तुपाले करी छे ते. अहीं आपणे प्रथम मल्लवादी ज लेवा छे. तेओ वल्लभीना शिलादित्यना भाणेज अने भरुचना राजपुत्र हता. एमणे बहु नानो उम्मरे मातानी साये दीक्षा लीधी, अने टुंक समयमां शास्त्रनो सारो अभ्यास को. पछी तेमने जैनसंघनी अल्पता साली. एकवार माताने जैनसंवनी अल्पता- कारण पुज्यु, माताए कयुं तारा मामानी सभामा श्वेताम्बराचार्यनो पराभव थवाथी बधे बौद्धोनुं जोर छे. मल्ल कहे छे के हं त्यां जई जीती आवीश. शाशनदेवीनी कृपाथी सज थई वीर तेजस्वी मल्लवादी मामानी सभामां जई राजाने वादन आह्वाहन करे छे, बौद्धाचार्य वाद करवा आवे छे पण अन्ते हारे छे. आ वादमा एवी प्रतिज्ञा हती के जे हारे ते देश छोडे. अन्ते बौद्धो देश छोडी चाल्या जाय छे. शत्रुजयतीर्थ जे बौद्धोना ताबामां गयुं हतुं ते पाळु मेळ युं अने राजा शिलादित्यने जैन बनायो. तेमणे बार हजार श्लोक प्रमाणनो नयचक्र ग्रन्थ बनाव्यो, जेने माटे हरिभद्रसूरिजी पोताना ग्रन्थोमां तेमनो बहु मानपूर्वक उल्लेख करे छे. तेभ ज २४००० श्लोक प्रमाणनो जैन रामायणनो ग्रन्थ-“पदा चरित्र" बनाव्युं. तेम ज सिद्धसेन दिवाकरजीना सन्मतितर्क उपर सुंदर न्यायवाळी टीका रची हती. जे उपलब्ध नथी. नयचक्र उपरनी तेमनी टीका आजे जैन भंडारोमां क्यांक क्यांक मळे छे. मूळ ग्रन्थ दुर्लभ छे. विक्रमनी छट्ठी शताब्दीना आ महान् आचार्य छे. श्री हरिगुप्तमरि श्वेतहणतोरमाण जे विक्रमनी छठी शताब्दीमां थयेल छे ए राजाने हरिगुप्तसूरिजीए प्रतिबोध करी जैनधर्मी बनाव्या हतो. जेना फलस्वरूप राजाए भिन्नमालमां श्री ऋषभदेवजी मोटुं मंदिर बनाव्यु. विक्रमनी छट्ठी शताब्दीमा आ आचार्य महाराज थया छे. (२०) मानतुंगमरि आ आचार्य भक्तामरस्तोत्रना कर्ता अने धारानगरीना वृद्ध भोजदेवना धर्मोपदेशक हता. वृद्ध भोजदेवनी सभाना पंडितो हर्ष, मयूर अने बाण बहु विद्वान हता. तेओ महाकवि अने पंडित हता. तेमनी सामे भक्तामरस्तोत्र बनावी तेमणे राजाने बहु चमत्कार पमाड्यो हतो अने जैनधर्मनो खूब प्रभाव फेलाव्यो हतो. विक्रमना सातमा सैकाना आ महान् आचार्य थया. (विशेष माटे प्रभावकचरित्र जुवो.) Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ५१ बप्पभट्टीसरि आ पंचाल देशना प्रतापी क्षत्रियराज श्री सुरपालना पुत्र हता अने तेमणे बहुज नानी उम्मरे मोढगच्छना प्रतापी आचार्य श्री सिद्धसेन पासे ८०७मां दीक्षा लीधी अने ८११मां आचार्यपद पाम्या. तेओ निरंतर १००० हजार श्लोक कंठस्थ करता. तेमणे गोपगिरिना प्रसिद्ध आमराजाने उपदेशीने जैनधर्मी बनाव्यो हतो. राजाए सूरिजीना उपदेशथी श्रावकनां अगीयार व्रत लीधां, अने गोपगिरिमा १०१ गजप्रमाण जिनमंदिर बनाव्यु, तेमां १८ भारप्रमाण सुवर्णनी श्री वीरबिंबनी प्रतिष्ठा करी. आचार्यश्रीए लक्षणावतीना धर्मराजने प्रतिबोधी जैन बनायो अने बौद्धवादि वर्धनकुंजरने हरायो. तेथी राजाए तेमने 'वादिकुंजरकेसरी"र्नु बिरुद आप्युं. वाक्पतिराज के जे धर्मराजनी सभानो विद्वान् पंडित हतो तेणे गौडवध अने महामहविजय काव्य रचि बप्पभट्टीसूरिने अने आमराजने अमर बनाया छे. लक्षणावतिना सेनापतिने प्रतिबोधी आचार्य:महाराजे तेने भागवती दीक्षा आपो हती. बापट्टी पूरिजीए मथुरा, मेंढेरा, अणहिल्लपुर, गोपगिरि, सतारकक्षापुर आदिमा प्रतिष्ठाओ करी छे. आचार्य महाराजना उपदेशथी आमराजाए सिद्धाचलजी अने गिरनारजीनो संघ काढयो. गिरनार तीर्थ उपर दिगंबरो झगडो करता हता ते एपनो हक तदन रद करी ए तीर्थ स्वतंत्र श्वेतांबरी बनाव्यु. संघसहित प्रभासमां चंद्रप्रभुने वंदन करवा पण राजा गयो हतो. वाक्पतिराजने अन्तिम समये जैनधर्मी बनान्यो हतो. वि.सं. ८००मां भादरवा शुदि बीजे आचार्यश्रोनो जन्म अने ८९५मां आचार्यश्रीनो स्वर्गवास थयो. आमराजा ८९०मां स्वर्गे गया. ____ आमराज पछी तेनो पौत्र भोजदेव गादीए बेठो. ते पण जैनधर्मी हतो. बप्पभट्टीसूरिजीना गुरुभाई श्रीनन्नमरिए तेने उपदेश आपी श्रावकनां ब्रतो उच्चराव्यां हता. तेणे मथुरा, शत्रुजय वगैरे तीर्थोनी यात्रा करी हती. शीलगुणसूरि __ गूर्जरेश्वर वनराजना रक्षक अने धर्मगुरु शीलगुणसूरिजीना उपदेशथी पाटण वि. सं. ८०२मां वस्या पछी तेणे पंचासरा पार्श्वनाथन सुंदर जिनमंदिर बंगाव्यु, तेनो मंत्री चांपो पण जैन हतो. राजाने जैनधर्म उपर प्रेम हतो. चंद्रमूरि गूजरातनो राजा चामुंडदेव तेमनो परम भक्त हतो. आचार्य महाराज महान् विद्वान अने अनेक विद्याना धारक हता. तेओ वि. सं. ९९१मां थया. १. आमराजाने एक वैश्य पत्नी हती, जेना वंशजो-पुत्रो जैनधर्म पाळता अने जेनी वंशपरंपरामां कर्माशाह थया. तेमणे शत्रंजय तीर्थनो उद्धार कराव्यो, विशेष परिचय माटे जुभो "कर्माशाह." Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wa ५२ श्री तपगच्छ सूराचर्य तेओ गूजगतना राजा भीम बाणावलीना मामा अने प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री द्रोणाचार्यजीना शिष्य थाय छे. सूराचार्य भीमदेवना सेनाधिपति संग्रामसिंहना पुत्र थता हता. बाल्यावस्थामां द्रोणाचार्य पासे दीक्षा लइ ढूंक समयमां ज तेओ प्रखर पंडित थया. अनुक्रमे पोताना पांडित्यनो प्रभाव गूर्जराधिश भीमदेव उपर पण पाड्यो. मालवाना प्रसिद्ध भोजराजे गूजरातनी समानुं एकवार अपमान कर्यु हतुं एनो सुंदर जवाब सूगचार्य ज आपो शक्या हता. तेमनी विद्वताथी आकर्षाई भोजे तेमने धारानगरीमा बोलाव्या. त्यां पण तेमणे जैनधर्मनेा प्रभाव पाड्यो. महामंत्री विमले आबुनां जिगप्रसिद्ध जैनमंदिरो बंधाव्यां. ते वखते महेद्रमूरिजीए धागनगरीना सर्वदेवना पुत्र शोभनने दीक्षा आपो तेथी मालवामां जैनसाधुओनो विहार धनपाले भोजराजद्वारा बंध करायो हतो ते सूराचर्ये खोलान्यो. तेमना वखतमा शोभनाचार्य अने महाकवि धनपाल वगेरे प्रसिद्ध विद्वानो थया छे. विक्रमनी अगीयारमी शताब्दिना आ महान् आचार्य हता. (२५) नरसिंहमूर्ति आ जैनशास्त्रना पारगामी अने महाविद्वान् हता. तेमणे नरसिंहपुरमां यक्षने उपदेश आपी मांसाहार छोडाव्यो, खोमाणा राजकुलने प्रतिबोध करी जैनधर्मी बनाव्यु अने ते बंशमांथी समुद्रकुमारने प्रतिबोधी दाक्षा आपी. पाछळथी ते समुद्रसूरि थया. तेमणे दिगंबराने वादमां हराबी नागहृदतीर्थ श्वेतांबरोना कबजामा कराव्यु. तेओ विक्रमनी दरामी शताब्दिना महान् आचार्य हता. जिनेश्वरसूरे ___ आ राजगच्छीय श्रीअभयदेवसूरि-शिष्य अजितसे नसूरिना शिष्य हता. धारानो मुंजराज तेम्नो परम भक्त हतो. तेओ १०५०मां विद्यमान हता. जिनवल्लभसूरि धारानो राजा नरवर तेमने बहुमाननी दृष्टिथी जोतो. (३२) प्रद्युम्नसूरि मेवाडना राजा ढाल्ल (आलुराज)ना प्रतिबोधक आ आचार्य राजानी सभागां दिगम्बरी वादीने जीत्यो हतो. तेओ सपादलक्ष, त्रिभुवनगिरि आदि राजाओना प्रतिबोधक हता. आ नामना बीजा पण आचार्य थया छे. मेवाडराज-प्रतिबोधक आ ज आचार्य छे के बीजा एनो हजी हुँ निर्णय करी शक्यो नथी. Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष (३८) देवरि आम हालारना राजा कर्णसिंहने प्रतिबोध कर्यो हतो अने ते राजाए तेमने “ रूपश्री " नुं बिरुद आप हतु. १००४मां माळवामां पोरुगृहस्थोने प्रतिबोधी तेमणे पोरवाड जैन बनाया हता. वादिताल शान्तिसूरि ५३ चंद्रकुलना थारापद्रीयगच्छना श्रीविजयसिंहसरिना शिष्य आ आचार्ये प्रसिद्ध जैन कवि धनपालनी प्रेरणाथी धाराना प्रसिद्ध राजा भोजनी सभामां जईने सुंदर प्रभाव पाड्यो हतो, अने वादिओने जीत्या हता. भीमदेव बाणावली पण ते आचार्यश्रीने घणुं मान आपतो. उत्तराध्ययन सूत्र उपर न्याययुक्त गंभीर बृहत्टीका तेमणे रची छे. तेमणे ७०० श्रीमाली कुटुम्बोने जैन बनाया हता. राजा भोजे तेमनी वादशक्तिथी खुश थई “ वादिवेताल" नुं बिरुद आयु हतुं. तेओ महाविद्वान् अने प्रखर नैयायिक हता. भीमराजनी सभामां पण तेमने "कवीन्द्र" अने " वादिचक्रवर्तिनुं विरुद आपवामां आयुं हतुं गुर्जराधिप भीमदेव अने मालवाधीप भोजदेव मना तरफ बहु ज सन्मान अने भक्तिथी जोता हता. तेमणे थरादमां चौहाणोने प्रतित्रोधी जैन बनाव्या हता. विक्रमनी अगीयारमी शताब्दिना आ महान् आचार्य १०९६मां स्वर्ग पाम्या. चक्रेश्वरसूरि तेम चारसो पंदर राजकुमारोने प्रतिबोध आप्यो हतो. तेओ १९९७मां थया. मधारी अभयदेवसूरि गूजरातना राजा कर्णदेवे आचार्यश्रीनां त्याग, तप अने उज्ज्वल चारित्रथी प्रसन्न भई म "मलघारी" नुं बिरुद अर्युं हतुं. तेमणे दक्षिणमां विहार करी कुल्पाकजी तीर्थनी यात्रा करी हती. त्यांथी तेओ अमरावती तरफ पवार्या अने अमरावतीथी ४० माईल उत्तरे दूर इलचपुर- -एलचपुरना राजा एलच श्रीपालने प्रतिबोधी मुक्तागिरि तीर्थ स्थपाव्युं, अने आकोलाथी ४३ माइल दूर वेला श्रीपुर (सीरपुर) मां अंतरीक्ष पार्श्वनाथजीनी प्रतिष्ठा करावी हती. आ राजा परम जैनधर्मी थयो हतो अने तेणे त्यां जैनमंदिर पण बंधात्र्यु हतुं. आ तीर्थ आजे पण श्वेतांबरी छे. मुक्तागिरि तीर्थ अत्यारे विद्यमान छे. तेना मूलनायक शामलीया पार्श्वनाथजी छे. ए संवत् १९४० सुधी श्वेतांबरोना ताबामां हतुं. हमणां दिगम्बरोना ताबामां गयुं छे, परन्तु मूलनायकजी तो श्वेतांबरी छे. जेनां दर्शन आ लेखक पण करी आवेल छे. आ बारमी शताब्दिना महान् आचार्य हता. मलधारी श्री हेमचंद्रमूरि मधारी श्री अभयदेवसरिना शिष्य अने विशेषावश्यक उपर २८ हजार लोकनी टीकाना रचनार आ आचार्य हता. तेओ प्रखर वादी अने महान् वक्ता हता. अजमेरना राजा जयसिंह Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ ५४ तेमनुं व्याख्यान सांभळवा जता. भूवनपाल राजाए तेमना उपदेशाथी जैनमंदिरमां पूजा करनाराओना कर माफ कर्या हता. सौराष्ट्रनो राखेंगार पण तेमनो भक्त हतो. शाकंभरीना राजा पृथ्वीराजे तेमना उपदेशथी जैनधर्म स्वीकार्यो हतो अने रणथंभोरमां जैनमंदिर बनायुं हतुं, अनेना उपर सोनानुं शिखर (इंडु) बनाव्युं हतुं. तेमना स्वर्ग समये अजमेरनो राजा जयसिंहराज तेमनी स्मशान यात्रामां आव्यो हतो. अजमेरना राजा उपर तेननो जबरो प्रभाव हतो. तेओ १९६४मां विद्यमान हता. सिद्धराज जयसिंह पण तेमनुं व्याख्यान सांभळवा आवतो. तेमणे अनेक ग्रंथो बनाया छे. अमरचंद्रसूरि तेओ प्रखर वादी हता. सिद्धराज जयसिंहनी सभामां एक वादी साथे जय मेळवावाथी सिद्धराजे तेमने "सिंहशिशुक' नुं मानवंतु बिरुद आप्युं हतुं. तेमणे सिद्धांतार्णव ग्रंथ बनाव्यो छे. वादी श्री देवसूरि o आचार्य प्रखर नैयायिक अने तार्किक - शिरोमणि हता. तेमणे स्याद्वादरत्नाकर नामनो ८४ हजार श्लोकनो न्यायनो महान् ग्रंथ बनाच्यो छे तेमणे नागपुरना राजा आल्हादनने उपदेश आपी जैनधर्मनो अनुगगी बनाव्यो हतो. गुर्जरेश्वर सिद्धराज जयसिंहनी सभामां दिगम्बरो वादी कुमुदचंद्र वादमा हरावी जय मेळव्यो हतो. सिद्धराज जयसिंह तेमने बहु माननी नजरे जोतो. आवी ज रीते वीराचार्य चंद्रगच्छनी पांडिल्य शाखाना आचार्य थया छे. तेमणे सिद्धराज जयसिंहनी सभामां सांख्यतत्त्वना वादीने जीत्यो हतो, तेथी सिद्धराजे तेमने “वादिसिंह" नुं बिरुद आप्यु हतुं तेमज कमलकीर्ति नामना दिगम्बराचार्यने पण तेमणे वादमां राजसभामां जीत्यो हतो. सिद्धराज जयसिंह तेमने बहु मान आपतो. आ बारमी सदाना महान् आचार्य १९६० मां थया छे. afeteria श्री हेमचन्द्राचार्यजी जैनधर्मना इतिहासमाज नहि किन्तु भारतना पुण्यश्लोक इतिहासमां श्री हेमचन्द्राचार्यजीनुं नाम शरद पूर्णिमाना चन्द्रनी माफक प्रकाशित छे. संसारना अत्यन्त प्रतिभासंपन्न अने महान् विद्वानो, ओ ने ज्ञानिओमां श्री हेमचन्द्राचार्यनुं स्थान घणुं ज मानवंतु अने गौरव भर्युं छे. श्री हेमचद्राचार्यमा अलौकिक विद्वत्ता अने अगाध पांडित्य हतां. तेमनी सर्वतोमुखी प्रतिभा आज पण संस्कृत साहित्यकाशमां सूर्यनी माफक चमकारा मारी रही छे. तेमणे विविध विषयोना जे महान् ग्रन्थो लख्या छे तेथी संस्कृत, प्राकृत साहित्य आजे पण देदीप्यमान छे. भगवान् महावीरना शासन पर घणा घणा परिषहो अने उपसर्गो आप्या छे. अने ते ते समये जैनशासनमा अनेक प्रभाविक आचार्यो थया छे अने ते परिषहो अने उपसर्गों तेमणे दूर कर्या छे. Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष आवा जे जे प्रभावक आचार्य महाराजो थया छे तेमां श्री हेमचन्द्राचार्यजी महाराज अग्रस्थाने ले. जैनशासन-रक्षक तरीके तेओश्रीए जे अद्भुत ज्ञान-पराक्रमो कर्या छे ते अवर्णनीय छे. आ महात्माने महान शासन प्रभावक, शासन संरक्षक, धुरन्धर दर्शनशास्त्री, धूरीण साहित्यवित् , प्रकांड नैयायिक, शास्त्रपारेगामी के महान् वैयाकरणी के कोई पण प्रकारना मुख्यमां मुख्य अने समर्थमां समर्थ पंडितोमां अग्रपदे मूकी शकाय तेम छे. आ महान् प्रतिभाशाली आचार्यदेवनो जन्म वि. सं० ११४५मां कार्तिक शुदि पूर्णिमाने दिवसे धंधुकामां, पिता चाचींग अने माता पाहिनीने त्यां थयो हतो, अने तेमनु नाम चांगदेव हतुं. तेमणे पांच वर्षनी उम्भरे एटले के वि. सं. ११५०मां खंभातमां दीक्षा लीधी. कोई पुर्वजन्मनो अपूर्व संस्कार कहो के तेमनी अद्वितीय स्मरणशक्ति-----धारणाशक्ति कहो तेना प्रतापे टुंक समयमा ज जैन अने जैनेतर शास्त्रोनु गम्भीर ज्ञान तेमणे प्राप्त करी लोधुं. उत्कट आत्मसंयम, असाधारण इन्द्रिय-दमन अने महान् वैराग्यवृत्तिथी तेमणे आजीवन नैष्टिक ब्रह्मचर्यत्रतर्नु पालन कर्यु छे. दीक्षा लीधी त्यारे तेमनुं नाम सोमचन्द्र हतुं परन्तु तेमनी अद्भुत शक्ति जोई तेमनी आचार्य पदवी वखते तेमनु नाम श्री हेमचन्द्रसूरि राखवामां आयु. तेओश्री गूजरातना प्रतापी राजवी सिद्धराज जयसिंहनी सभाना तेजस्वी रत्न हता. तेमणे राजाने जैनधर्मना सिद्धांतो समजावो जैनधर्म उपर अनुरागी बनाव्यो हतो. सिद्धराजनी प्रेरणा अने प्रार्थनाथी आ उद्भट विद्वाने सिद्धहेमव्याकरण बनायुं. राजाए हाथीनी अंबाडी उपर नगरमा फेरवी ते ग्रन्धरत्नने राजभंडारमा पधराव्यो हतो. आ सिवाय त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, वगेरे अनेक अदभुत जुदा जुदा विषयोना ग्रन्थो रच्या छे. तेमणे पोतानी जिन्दगीमां साडात्रण क्रोड श्लोकनी रचना करी छे. तेमनी अपरिमित ज्ञानशक्तिना प्रतापे ज सिदशजनी सभामा तेमने "कलिकालसर्वज्ञ"र्नु बिरुद मन्यु हतुं. सिद्धराजनी पछी गादीए आवनार महाराज कुमारपालने प्रतिबोधी परम आर्हतोपासक बनावनार आ ज आचार्य महाराज हता. तेमणे कुमारपालने जैन बनावी गूजरात अने गूजरातनी बहार अमारी पटह वगडाव्यो, नाना मेाटा अनेक राजाओने जिनवाणीना रसिया बनाव्या अने अनेक ब्राह्मणोने जैन बनाया. भगवान् महावीरना शासनमां श्री हेमचंद्राचार्य अद्भुत अने असाधारण महापुरुष थया छे. सम्राट् संप्रति अने विक्रम पछी कुमारपालनुं नाम जैन राजाओमां मुख्य गणाय छे. श्री हेमचन्द्राचार्यनी अद्भुत ज्ञानशक्ति अने असाधारण प्रतिभा जोईने पाश्चात्य विद्वान डो. पीटर्सने तेमने ज्ञानला सागर (Ocean of Knowledge) कह्या छे. कूमारपाले श्री हेमचन्द्रसूरिजीना उपदेश यी १४४४ जिन-मंदिर बंधाव्यां, अनेक ज्ञानमंदिरो कराव्यां, पौषवशाळाओ कराधी अने श्रावको पण खूब वधार्या. उदायन मन्त्री, आम्रभट, बाहड आदि सूरिजीना अनन्य भक्तो हता. यदि हेम बन्दचार्यजी Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ महाराज न थया होत आजे जैनी, जैनधर्म अने जैनसंस्कृति कई परिस्थितिमां होत तो कल्पवं ज मुस्केल छे. तेमना समयमा भारतमां जैनोनी' संख्या चार करोड उपरांत हती. आनंदशंकर वाभाई ध्रुव कहे छे के “ ई. सं. १०८९थी मांडीने ११७३ सुधीनो समय कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्रसूरिजीना तेजथी देदीयमान रह्यो हतो. " आ आचार्य महाराज वि. सं. १२२९मां स्वर्गे पधार्या. (विशेष चरित्र जाणवाइन्छनारे कुमारपालप्रबंध, प्रभावकचरित्र वगेरे ग्रंथो जोवा. ) गूजरातने अहिंसाधर्मनुं उपासक बनावनार, अने तेनी छाप गूजरात बहारना प्रांतोमां पाडनार आ ज आचार्य महाराज हता. महाराजा कुमारपालने जैनधर्मी बनावी जैनधर्म उपर ज नहि परंतु समस्त भारत उपर आचार्य महाराजे महान् उपकार कर्यो छे. ५६ हेमचंद्राचार्य एक युगप्रवर्तक पुरुष हता तेथी ते युग हैमयुग कहेवाय छे. तेमना युगमां वादी देवसूरि, त्नप्रभसूरि, रामचंद्रसूरि, गुणचंद्रसूरि, महेन्द्रसूरि वर्द्धगानसूरि आदि प्रभाविक आचार्यो थया है. रामचंद्रसूरि तेणे पण गुरुनी माफक अनेक ग्रंथो बनाया छे. प्रबंधचिन्तामणिकार रामचंद्रसूरिजीने प्रबंधशतकर्ता तरीके संबोधे छे. सिद्धराजे तेमने "कविकटारमल "नुं बिरुद आप्युं हतुं तेमणे तत्वज्ञान, साहित्य, नाटक, अलंकार आदि विषय उपर सुंदर ग्रंथो बनाया छे. कक्कसूर तेओ उपकेश गच्छना देवगुप्तसूरिना शिष्य हता. सिद्धराज अने कुमारपाल तेमने माननी दृष्टिथी जोना. तेमणे कुमारपालनी सभामा चैत्यवासिओने हराच्या हता. जिनदत्तवरी तेणे हजारो राजपुत प्रतिबोधी जैन बनाया ह्ता. तेमनी १२११मां अजमेरमा स्वर्गवास थयो. अभयदेवसूर ते रुद्रपालीयगच्छना आचार्य हता. तेमणे काशीनरेशने प्रतिबोधी जैनधर्मनो अनुरागी बना यो हतो. काशीमां आ जैनाचार्यजीए एक विज्ञान वादीने जीत्यो हतो तेथी राजाए तेमने " वादिसिंह "नुं बिरुद आप्युं हतुं. जयंतविजय महाकाव्यना रचयिता आ महान् आचार्यं तेरमी शताब्दिमां थया. १. जो के चालीस करोड जैनोनी संख्या हती एम कहेवाय छे, पण हमणां एक विद्वाने जाहेर कर्यु छे के तेम एक मींड वधी गयुं छे, एटले चार करोड ठीक छे. Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष (४४) जगच्चंद्रसूरिजी महात्यागी अने परम तपस्वी आ आचार्यनी घोर तपस्या अने उत्कट व्याग जोई मेवाडनरेश जैत्रसिंहे तेमने तपानुं बिरुद आप्युं हतुं. दीक्षा लीधा पछी तेमणे आजीवन आंबिलनी तपश्चर्या करी हती. मेवाडनरेश - चित्तोडनो राजा तेमनो परम भक्त हतो अने तेमणे राजसभामा बत्रीस दिगम्बरवादिओने जीत्या हता अने तेओ हीरानी माफक अभय रह्या हता तेथी तेमने “हीरला " नुं बिरुद आप्युं हतुं. मेवाडनो राजवंश आज पण तपागच्छना आचार्यनुं बहु मान करे छे. वडगच्छनुं नाम आ आचार्यथी तपगच्छ जाहेर थयु. तेमने १२८५ मां बिरुद मळ्युं. तेरमी शताब्दिना आ महान् आचार्य थया. राणा जैत्रासिंहना १२७० - १३०९ सुधीना शिलालेखो मळे छे. मेवाडना राजवंशमां आ सूरिजीना समयथी ज जैनधर्मनो प्रवेश थयो. जे थोडेधणे अंशे अद्यावधि विद्यमान छे. ५७ (४५) देवेन्द्रसूर ૧ आ आचार्य महाराज कर्मग्रन्थ अने श्राद्धदिनकृत्यादि अनेक ग्रन्थोना रचयिता, अने मेवाड नरेश वीर केसरी समरसिंह अने तेनी माता राणी जयतल्लादेवीना प्रतिबोधक हता. तेमना उपदेशथी राणी जयतल्लाए चित्तोडना किल्लामां सामळीया पार्श्वनाथजीनुं मंदिर बनान्युं हं. गूजरातना राजा वीरधवलनी तेमना उपर घणी सारी भक्ति हती. वस्तुपाल अने तेजपाल पण तेमने परम पूज्य मानता हता. मेवाडनरेश समरसिंहे देवेन्द्रस्म्रिजी अने आचार्य अमितसिंहसूरिना उपदेशथी राज्यमां अमारी पळावी हती. तेमनो १३२७मां स्वर्गवास थयो. अनेक राजाओ उपर तेणे सुन्दर प्रभाव पाड्यो हतो. R १. राजपुतानाना इतिहासमा रा. ब. गौरीशंकर हीराचंद ओझा लखे छे " तेजसिंह की राणी जयतल्लदेवीने जो समरसिंहकी माता थी, चिंतोड पर श्यामपार्श्वनाथ का मंदिक बनवाया था. " -१० ४७३ २. देवेन्द्रसूरिजीनों मेवाडना राणाओं उपर के प्रभाव हतो ए माटे ते वखतना राणानु एक फरमान वांचवा छे छे :--- तपगच्छ का " स्वस्ति श्री एकलिंगजी परसादातु महाराजाधिराज महाराजाजी श्री कुंभाजी आदेसातु मेदपारा उमराव थावदार कामदार समस्त महाजन पंचाकस्य अप्रं आपणे अठे श्री पूज देवेन्द्रसूरिजी का पंथ का, तथा पुनम्यागच्छ का हेमाचारजजी को परमोद है । घरम ज्ञान बतायो सो अठे अणांको पंथको होवेगा जणीने मानागा, पूजागा । परथम ( प्रथम ) तो आगे ही आपणे गढकोट में नवदे जद पहीला श्ररिषभदेवजीरा देवराकी नींव देबाडे हे, पूजाकरे हे अ अजुही मानेगा। सिसोदा पगका होवेगा ने संरपान ( सुरापान ) पीबेगा नहि और धरम मुरजाद में जीवराखण यामुरजादा लोयगा जणीने महासत्रा ( महासतियों ) की आण है, और फेलकरेगा जणीने तलाक है. सं० १४७१ काती सुद ५. " ---( अयोध्याप्रसाद गोयलीय कृत “ राजपुताना के जैनवीर,” पृ० ३४० ) ११ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ विजय सेनसूरि आ नागेन्द्रगच्छना महान् आचार्य हता. तेओ गूजरातना महाराजा वीरधवलने अने तेना मंत्रीश्वर वस्तुपाल तेजपालने प्रतिबोधनार महान् धर्मगुरु हता. वस्तुपाले जे महान् धर्मकार्यो छेनुं मुख्य मान देवेन्द्रसूरिने अने विजयसेनसूरिजीने ज घटे छे. उदयप्रभसूर ओ विजयसेनसूरिजीना शिष्य हता. राजा वीरधवल तेमने बहुमानथी जोता. धर्मशर्माभ्युदय अने आरंभसिद्धिना रचयिता आ आचार्य महाराजे सुकृतकल्लोलिनी बनावीने वस्तुपालने अमर बनाव्यो हतो. वस्तुपालना संघोमां तेओ मुख्य हता. जयसिंहसूरि, नरचंद्रसूरि, शान्तिसूरि, वायडागच्छना जिनदत्तसूरि आदि आचार्यो वस्तुपालना संघमां हता. अने अवारनवार राजाने पण प्रतिबोध आपता. आ बधा तेरमी अने चौदमी सदीना महान् आचार्यो छे. श्री तपगच्छ अमरचंद्रमूरि ओ महाकवि हता. तेमनां प्रसिद्ध बालभारत अने कविकल्पलता काव्यो आजे जैनेतरोमां पण माननी दृष्टिए जोवाय छे. तेमणे गूजरातना राजा विसलदेवने प्रतिबोध माड्यो हतो. तेओ महाकवि हता. तेमणे अनेक सुंदर काव्य-ग्रंथो, अने काव्य परीक्षाना ग्रंथो बनाव्या छे. तेओ तेरमा सैकामां विद्यमान हता. (४६) धर्मघोषर मांडवगढना मंत्री पेथडकुमार अने झांझणकुमारना प्रतिबोधक आ आचार्य महाराजना उपदेशथी ८४ जिनमंदिरो अने अनेक ज्ञानभंडार थया हता. तेओ परम प्रभावी, अनेक विद्याना धारक अने शासन प्रभावक हता. तेओ चौदमी शताब्दिना आचार्य हता. धर्मघोषसूरि तेओ चंद्रकुलना श्री यशोभद्रसूरिना शिष्य हता. तेमणे शाकंभरीना राजा सपादलक्षने प्रतिबोध पमाड्यो हतो. राजाए तेमने " वादिचूडामणि "नुं बिरुद आप्युं हतुं. जिनमभसूरि o आचार्य विविधतिर्थकल्पना रचयिता अने अनेक स्तोत्रोना कर्ता तरीके बहु प्रसिद्ध छे. तेमणे चौदमी शताब्दिमां तुघलक सुलतान महमदने उपदेश आपी जबरो प्रभाव पाड्यो कहेवाय छे. तेमणे प्रभावी तपागच्छा हतो. मुसलमान सम्राटोना प्रतिबोधमां पहेल करनार आ आचार्य हता एम स्वनिर्मित ९०० स्तोत्रो शासन देवीना वचनथी ते वखतना विद्यमान अने परम चार्य श्री सोमतिलकसूरिजीने अर्पण कयीं हां. Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष (४९) देवसुन्दरसूरि महाविद्वान, अनेक ग्रंथोना रचयिता अने अनेक राजाओना प्रतिबोधक आ आचार्य महाराज वि. सं. १४६०मा स्वर्गवासी थया. वज्रसेनसरि तेओ नागपुरीय तपागच्छना आचार्य, सारंगभूपतिना प्रतिबोधक अने अल्लाउद्दीन खीलजीना उपदेशक हता. तेमणे एक हजार लोढाओने जैन बनाव्या हता. एमनो समय चौदमी शताब्दिनो छे. हेमतिलकसरि भाटी राजा दुलचीरायने जैन बनावनार आ आचार्य महाराज चौदमी सदोमां थया छे. रत्नशेखरसूरि आ नागपुरीय तपागच्छना आचार्य हता अने तेमणे फिरोजशाह तघलखने प्रतिबोध्यो हतो. (५१) मुनिसुन्दरसरि आ आचार्य अध्यात्मकल्पद्रुम आदि ग्रंथोना रचयिता, सहस्रावधानो गूजनातना सुलतान मुझफरखानने उपदेश आपनार अने खंभातना सुबा दफरखानना प्रतिबोधक हता. ए दफरखाने तेमनी अद्भुत वादशक्तिथी प्रसन्न थई तेमने “वादिगोकुलसंड"र्नु बिरुद आप्यु हतुं अने दक्षिणना पंडितोए तेमने “कालीसरस्वती"नु बिरुद आप्यु हतुं. तेमणे सिरोहीना राजा सहस्रमल्लने उपदेश आपी अमारी प्रवर्तावी हती. तेमनो १४९९मा स्वर्गवास थयो. (५२) रत्नशेखरमरि श्रादविधि प्रमुख अनेक ग्रंथोना कर्ता आ आचार्य महाराज महाविद्वान हता. तेमने खंभातना सुबा दफरखाननी सभामां बांबी प्रमुख ब्राह्मण पंडितोए "बालसरसाती"नु बिरुद आप्यु हतुं. सुबा उपर तेमणे सारो प्रभाव पाड्यो हतो. तेमनो १५०७मा स्वर्गवास थयो. (५६) आणंदविमलमूरि तेओ महातपस्वी, क्रियोदारक अने सुविहित शिरोमणि हता. तेमना तप, त्याग, चारित्र अने उपदेशथी प्रसन्न थई सौराष्ट्रना अधिपति सूरत्राणे सौराष्ट्रमां सदा साधुओ विचरे एवी मागणी सूरिजी पासे करी हती, तेथी तेमणे पोताना शिष्य पंन्यास जगर्षिप्रमुखने सौराष्ट्रमा विहार कराव्यो हतो. तेमणे पण मूरत्राण उपर सारो प्रभाव पाड्यो हतो. वि. सं. १५८७मां सूरिजीना उपदेशथी कर्माशाहे शत्रुजयनो सोलमो उद्धार कराव्यो. विक्रम संवत् १५९६मां नव उपवासनुं अनशन करी सूरिजी स्वर्गे पधार्या हता. Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ धर्मरत्नसूरि शत्रुजय तीर्थना उद्धारक आ आचार्य महाराज श्री कर्माशाहना पिता तेलाशाहना धर्मगुरु हता. एकवार तेओ संघसहित यात्राए पधारतां चितोडमां पधार्या हता. ते वखते मेवाडनरेश प्रसिद्ध राणो संग (महाराणा सांगा) हाथी घोडा आदि सैन्य सहित सामे आत्यो हतो. तेमनो उपदेश सांभळी बहु ज प्रसन्न थयो हतो अने तेणे सूरिजीना उपदेशथी शिकार आदि दुर्व्यसनोनो त्याग कर्यो हतो. धर्मरत्नसूरिना स्थाने धनरत्नमरिनु पण नाम मळे छे. तेओ सोळमी शताब्दीना महान् आचार्य थया. (५८) जगदगुरु श्री हीरविजयसरि मध्य युगना जैनाचार्योमां आ आचार्यश्रीतुं स्थान बहु ज महत्त्वनु छे. सूरिजी असाधारण प्रतिभाशाली, प्रखर प्रतापी, पुण्यशाळी, अने अपूर्व विद्वान हता. सूरिजीनी यशःपताका मात्र जैनधर्मना उपासकामां ज नहि किन्तु समस्त भारतमा फरकती हती. तेम ज तेमनी यशोगाथा तेमना शिष्यो अने भक्तोए ज गाई छे एम नहि किन्तु अबुलफजले आइनेअकबरीमां अने बदाउनी विन्सेन्ट स्मीथ जेवा पाश्चात्य विद्वानोए पण पोताना ग्रंथामा मुक्तकंठे तेमनी यशोगाथा गाई छे. सूरिजी- अलौकिक ब्रह्मतेज, अगाध पांडित्य अने शुद्ध त्याग--चारित्रनो प्रभाव मात्र जन संघ उपर ज नहि किन्तु मोगल सम्राट अकबर उपर पण घणो पड्यो हतो. १६३९ ना जेठ वदि तेरशे आ प्रखर प्रतापी आचार्य महाराजे मोगलकुल-तिलक सम्राट अकबग्ने धर्मोपदेश संभळाव्यो हता. त्यारपछी घणीवार सूरिजी अकबरने मळ्या छे, धर्मोपदेश माप्यो छे अने तेने धर्मना रंग लगाड्यो छे. सूरिजीना उपदेशथी अकबरे वर्षना लगभग छ महीना माटे मांसाहार बंध कों, शिकार खेलवान तद्दन ओछु कयु, केटलांये निर्दोष पशुपंखीओने छोड्यां, शत्रुजयनो कर माफ कों, प्रसिद्ध जजीयावेरा बध कर्यो, पर्युषणापर्वादिना दिवसेोमां समस्त भारतमां हिंसा बध करावी अने जैन साधुओनो विहार भारतमा निर्विघ्ने थाय तेम प्रबंध कराव्या. सूरिजीना परम प्रताप अने उपदेशथी आकर्षाई सम्राट अकबरे सूरिजीने जगद्गुरुर्नु गौरवभर्यु बिरुद आप्यु हतु. सम्राट अकबरना दरबारमा आवं अपूर्व महान् बिरुद बीजा कोइने नथी मळ्यु. आवी ज रीते गूजरातथी फत्तेहपुरसीक्री आवतां तेमणे अमदावादना सुबाने, सिरोहीना राजाने अने मेडताना सुबाने उपदेश आप्यो हतो. सूरिजीए चार वर्ष ते प्रदेशमा गाळ्यां ते दरम्यान तेमणे शौरीपुर, आग्रा आदिमा प्रतिष्ठाओ करी हती. गूजरातमां पाछा १ श्री हीरविजयसूरिजी सम्राट अकबरने मळ्या ते पहेला सम्राट्ने नागपुरीयतपगच्छना पद्मसुंदरगणि नामना यति मळ्या हता. तेओ विद्वान अने सारा वादी हता. तेमणे अकबरनी राजसभामां एक बादीने जीत्यो हतो. तेमणे पोतानां पुस्तको सनाट्ने आप्यां हतां, ए ज पुस्तको सम्राट अकबरे श्री हीरविजयसूरिजीनी प्रथम मुलाकाते प्रसन्न थई सूरेजोने आप्यां हता. अने सूरिजीए आयामां अकबरना नामथी पुस्तक भंडार को हतो. Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ६१ ૧ जतां तेणे नागोरां चतुर्मास कर्यं हतुं.' अने त्यांना जगमालने प्रतिबोध आप्यो हतो. त्यांथी चतुर्मास पछी विहार करी तेओ सिरोही पहांच्या हता. त्यांना राणाए बहु आग्रह करी सूरिजीनुं सिरोहीमां चतुर्मास करायुं, अनेक करो बंध कर्या, अने अहिंसा पळावी. त्यांथी पछी तेजो पाटण पधार्या. गूजरातमां आवतां सम्राट् अकबरना आग्रहथी तेमणे उपाध्याय शान्तिचंद्र, सिद्धिचंद्र, भानुचंद्र आदि विद्वान त्यागी मुनिगणने अकबरने धर्मोपदेश देवा माटे ए प्रदेशमा राख्यो हतो. (विशेष माटे "सूरिश्वर अने सम्राट् " जूओ.) सूरिजीए गूजरात अने सौराष्ट्रना अनेक राजाओ, सुबाओ अने मंत्रीओने उपदेश आप्यो हतो. तेम ज खंभात, पाटण, उना, देलवाडा, सिद्धाचलजी, अमदावाद आदि अनेक स्थान प्रतिष्ठाओ करी हती. तेमना बे हजार तो शिष्यो- साधुओ हता. धर्मना इतिहास केलांये सुवर्णपानां हीरविजयसरिजीनां शुभ कार्योथी गौरववन्तां थयां छे. भगवान् महावीरनो अहिंसानो डिंडिमनाद समस्त भारतवर्षमां सूरिजीए संभळाच्यो हतो. तेणे मोगल सम्राट अकबर ने अने भारतना तत्कालीन अनेक राजा महाराजाओ प्रतिबोध सा १. जगद्गुरु श्रीहीर विजयसूरीश्वरजी संम्राट अकबरने प्रतिबोधीने गुजरातमां गया ते वखते हिन्दुसूर्य महाराणा प्रतापे श्रीहीरविजयसूरिने मेवाडमां पधारवा अने धर्मोपदेश देवानी विनति करतो पत्र लख्यो हतो. ते पत्र जुनी मेवाडी भाषामां ज छे. ते आ प्रमाणे छे : "स्वस्त श्री मगसुदानग्र महासभस्थान सरब औपमालाअंक भटारकजि महाराजश्री हीरवजेसूरजि चरणकुमला अणे स्वस्तश्री वजेकटक चावडरा डेरा सुधाने महाराजाधिराज श्रीराणा प्रतापसिंघजी ली. पगे लागणो बचसी अठारा समाचार भला है आपरा सदा भला छाईजे आप बडा हे पूजणीक हे सदा करपा राखे जीसु ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं आपरो पत्र अणा दनाम्हे आया नहीं सो करपाकर लषावेगा । श्रीबडा हजुररी वगत पदारवो हुवो जीमें अठासुं पाछा पदारता पातसा अकब्रजीने जेनाबादम्हे प्रानरा प्रतिबोद दीदो जीरो चमत्कार मोटो बताया जीवहसा ( हिंसा) छरकली (चिडिया ) तथा नामपषेरु (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपगार किदो सो श्री जेनरा भ्रममें आप असाहीज अदोतकारी अबार कीसे (समय) देखता आपजु फेर वे नहीं आवी पूरब हीदसस्थान अत्रवेद गुजरात सुदा चारु दसा म्हे धरमरो बडो अदोतकार देखाणो, जठा पछे आपरो पदारणो हुवो नही सो कारण कही वेगा पदारसी आगे सु पटाप्रवाना कारणरा दस्तुर माफक आप्रे हे जी माफक तोल मुरजाद सामो आवो सा बतरेगा श्री बडाहजुररी वर्षांत आप्री मुरजाद सामो आवारी कसर पडी सुणी सो काम कारण लेखे भूल रही वेगा जीरो अदेसो न्ही जाणेगा, आगेसु श्री हेमाआचारजीने श्री राजम्हे मान्या हे जीरो पटो करदेवाणो जि माफक अरो पगरा भटारषगादीप्र आवेगा तो पटा माफक मान्या जावेगा. श्रीमाचारजी पेलां श्री बडगच्छरा भटारषजीने बडा कारणसुं श्रीराजम्हे मान्या जि माफक आपने आपरा पगरा गादी पाटहवी तपगच्छराने मान्या जावेगारी सुवाये देसम्हे आप्रे गच्छरो देवरो त्था उपासरो वेगा जीरो मुरजाद श्रीराजसु वा दुजा गच्छरा भटारष आवेगा सो राषेगा श्रीसमरणध्यान देव जात्रा जठे आद करावसी भूलसी नही ने वेगा पदारसी. प्रवानगी पंचोली गोरो समत १६३५ रा वर्ष आसोज सुद ५ गुरुवार - ( " राजपुताने के जैनवीर,” पृ- ३४१-४२ ) अ) पत्रमां घणुं रहस्य छे खास जैनधर्मना - श्रीहीरविजयसूरिजीना इतिहासमां नवं तेम छे. अजवाळु पाडे Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री तपगच्छ पळावी हती. सूरिजी भारतनी एक अलौकिक विभूति हता. तेमना तेज, पुण्य अने प्रभाव आगळ मोटा मोटा सम्राटो, सुलतानो, राजा महाराजाओ, धनाढ्यो अने दिग्गज पंडितो शिर झुकावता हता. जैन साधुओना त्यागी जीवननो खरो परिचय सूरिजीए जगत्ने करायो हतो. सूरिजीए जे बीज रोप्यु हतुं तेने तेमना ज शिष्यरत्नोए अने बीजा साधुओए पण पोषण आप्युं हतुं. अन्ते गूजरातना आ सुपुत्र, भारतनी महान् विभूति अने जैन-श्रमण-संस्कृतिनी आदर्श प्रतिमा समा आ सूरिवर १६५२ना भादरवा सुदि ११ उनामां स्वर्गे सिधाव्या. सूरिजी पछी उपाध्याय श्री शांतिचन्द्रजी, सिद्धिचन्द्रजी, भानुचन्द्रजी (कादम्बरीना टीकाकार) आदिए अकबर बादशाहने उपदेश आपी घणां सुकृत्यो कराव्यां छे. तेओए डाबर सरोवरनी हिंसाशिकार बंध कराव्यो, पांच जैन तीर्थो श्वेतांबर संघने सेांपावराव्यां; जैनसंघनी अनेक आपत्तिओ बंध करावी अने जहांगीर, शाहजहां आदि राजपरिवारने पग धर्मोपदेश आप्यो. इडरगढना महाराव नारायणसिंह अने बांगड देशना धोत्शील नगरना राजानी सभामा दिगंबराचार्योने उ. शांतिचन्द्रजीए हराव्या हता. सिद्धिचन्द्रजीने सम्राट अकबरे "खुशुफहेम"नुं मानवंतुं बिरुद आप्युं हतुं. हीरविजयसूरि एक समर्थ युगप्रवर्तक पुरुष हता. तेमनो युग हीरयुग कहेवाय छे. सम्राट अकबरे तो सूरिजीना मिलन पछी सूरिजीने एक समर्थ धर्म गुरु, परम हितस्वी मित्र अने धर्ममूर्ति तरीके आजीवन याद राख्या छे. जिनचंदसरि हीरविजयसूरिजीए जे मार्ग उघाड्यो हतो तेनो लाभ बीजा जैनाचार्योए पण लीधो छे. मंत्रीश्वर कर्मचंद्रजीनी सूचना अने आग्रहथी अकबरे जिनचंदसूरिजीने पोतानी पासे लाहोरमां बोलाव्या हता. जिनचंदसूरिजोए चमत्कारथी अकबरने आको हतो अने जगद्गुरु श्री हीरविजयसूरिजीनी माफक पोताने पण फरमान मळे एनी मांगणी करी हती. (जूओ श्री जिनचंदसूरिजीने मळेलु फरमानपत्र.) तेमणे सं० १६४८मां गूजरातमा खंभातथी अषाढ शुदि ८ मे विहार को अने चतुर्मासमा चालता चालतां पर्युषणा जालोर कयां अने चतुर्मास त्यां व्यतीत कर्यु. पछी अनुक्रमे फागण शुदि १२ लाहोर पहेांच्या अने सम्राट्ने धर्मोपदेश संभळाव्यो. एक वर्ष सम्राट्ने उपदेश संभळावी तेओ हापुड पधार्या हता. (५९) विजयसेनसरि आ एक महाप्रभावशाली जैनाचार्य हता. तेमणे अमदावादना सुबा खानखानानने उपदेश आप्यो हतो. सम्राट अकबरे श्री हीरविजयसूरिजीनी वृद्धावस्था होवा छतां अने सेनसूरिजोनी श्री हीरविजयसूरिजी पासे आवश्यक्ता हती छताये श्री हीरविजयसूरिजीना शिष्यो प्रत्ये अपूर्व मान होवाथो विजयसेनसूरिजीने लाहोरमां धर्मोपदेश देवा बोलाव्या, अने विजयसेनसूरिजी पासे धर्मोपदेश सांभळ्यो. Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमण वंशवृक्ष ६३ सूरिजीए चार लाख जिनबिंबोनी प्रतिष्ठा करी हती अने तारंगा, संखेश्वरजी, सिद्धाचलजी, पंचासर, राणकपुर, आरासण (कुंभारीयाजी) वीजापुर आदि स्थानोमां जीर्णोद्धार कराव्या हता. सम्राट अकबरे तेमने "कालीसरस्वती"नु बिरुद आप्युं हतुं. १६७१मां तेमनो स्वर्गवास थयो. (६०) विजयदेवसूरि तेओ विजयसेनसूरिजीना पट्टधरे हता. सम्राट् जहांगीरे तेओश्रीने मांडवगढमां बोलाव्या हता, अने एमना उपदेशथी प्रसन्न थई तेमने "जहांगिरिमहातपा"नुं बिरुद आप्यु हतुं. तेमणे उदयपुरना महाराणा जगतसिंहने धर्मोपदेश आपी अहिंसा पळावी हती. तेमणे ते माटेनुं फरमानपत्र आप्यु हतुं.' __ श्रीहीरविजयसूरीश्वरजीना विद्वान शिष्योए राजअनुकूळताना लाभ लई माळवा, मेवाड राजपुताना, दक्षिण, पूर्व देश, पंजाब, लाहार, काश्मिर आदि स्थानोए विचरी जैनधर्मनी खूब प्रभावना अने प्रचार करेल छे अने पूर्वदेशना तीर्थोना उद्धार पण कराव्या छे. पटणाना सुबाने उपदेश आपी शहेर बहार श्री हीरविजयसूरिजीना स्मारक स्थंभ स्थाप्यो अने तेना रक्षण माटे सो विघां जमीन सुबाए आपी. परन्तु पाछळथी तपागच्छीय श्रावका घटी जवाथी ते स्थान दादावाडी बनेल छे. जे आजे मौजुद छे. आवी ज रीते दक्षिण निझाम हैद्राबादमां पण त्यांना सुबाने उपदेश आपी जगद्गुरु श्रीहीरविजयसृरि, देवसूरिजी वगेरे आचार्यानी पादुका पधरावी छे. त्यां पण सुबाए रक्षण माटे पुष्कळ जमीन ०५५ १. विजयदेवसरिजीए मोगल सम्राट् उपरांस हिन्दुसूर्य मेवाड नरेशने पण केवो उपदेश आप्यो हतो अने एनी केवी असर थई हती ए माटे ते वखते लखायेल एक आज्ञापत्र मळ्यु छे जेनो हिन्दी अनुवाद नीचे मुजब छः उदयपुर के महाराणा जगतसिंहजी ने आचार्य विजयदेवसूरि के उपदेश से प्रतिवर्ष पोष सुदी १० को वरका गा (गोडवाड) ती पर होनेवाले मेले में आगन्तुक यात्रियों पर से टेक्ष लेना रोक दिया था. और सदैव के लिये इस आज्ञा को एक शिला पर खोदवा कर मन्दिर के दरवाजे के आगे लगवा दिया था, जो कि अभीतक मौजूद है। राणा जगतसिंह के प्रधान झाला कल्याणसिंह के निमंत्रण पर उक्त आचार्य ने उदयपुर में चतुर्मास किया । चतुर्मास समाप्त होने के वक्त एक रात दलबादल महल में विधाम किया. तब महाराणा जगतसिंहजी नमस्कार करने को गये और आचार्य के उपदेश से निम्न लिखित चार बातें स्वीकार करी कि (क) उदयपुर के पीछोला सरोवर और उदयसागर में मछलियों को कोई न पकडे । (ख) राज्याभिषेकवाळे दिन जीव-हिसा बन्द । (ग) जन्ममास और भाद्रपद में जीव-हिंसा बन्द । (घ) मचीददुर्ग पर राणा कुम्भा द्वारा बनवाये गये जैनवैत्यालय का पुनरुद्धार । -(अयोध्याप्रसाद गोयलीय कृत "राजपुतामे के जैनवीर,” पृ. ३४१) Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ श्री तपगच्छ आपी छे. जेना लेखा अने पट्टा पण मौजूद छे. आजे आ स्थान दादावाडी तरीके प्रख्यात थयुं छे. आवी रीते हीरयुगमां गूजरात बहार साधुओना विहार वध्यो अने जैनशासननो खूब प्रचार थयो. ___ उनामां पण श्रीहीरविजयसूरिजीना समुदायना मुख्य मुख्य बधा आचार्यो अने शिष्योनी पादुका छे. अने त्यां पण सा वीघां जमीन तेना रक्षण माटे सुबाओद्वारा मळेली छे, परन्तु श्रावकानी बेदरकारीथी घणी जमीन जुनागढ स्टेट दबावतुं जाय छे. आवां जनेक शुभ कार्यो हीरयुगना मुनिमहात्माओए राजसत्ताधिकारीओने उपदेश आपी कराव्यां छे. पं. केसरकुशल विजयसेनसूरिना प्रशिष्य श्री केसरकुशलजीए औरंगजेबना पुत्र बहादुरशाह अने दक्षिणना सुबा नवाब महमद युसुफखानने प्रतिबोधी दक्षिणना कुल्पाकजी तीर्थनो वि० सं० १७६७मां जीर्णोद्धार कराव्यो. विजयरत्नसरि तेओ श्री विजथदेवसूरिजीना प्रशिष्य थता हता. तेमणे १७६४मां नागोरना राणा अमरसिंहने प्रतिबोध्यो हतो अने १७७१मां जोधपुरनरेश अजितसिंहने प्रतिबोध्यो हतो. तेम ज मेडतानो उपाश्रय जे मसिद बन्यो हतो ते पुनः पाछो मेळवी उपाश्रय बनाव्यो. आ अढारमी सदीना महान् आचार्य थया. आवी ज रीते सत्यविजयगणि, महामहोपाध्याय श्री यशोविजयजी, उपाध्यायजी श्री विनयविजयजी आदि प्रभावक पुरुषो थया छे. वर्तमान वीसमी सदीना-आचार्यो वर्तमानमा आचार्य महाराज श्री विजयनेमिसूरीश्वरजीए लींबडीनरेश, चुडाननेश, गांडलनरेश जुनागढनरेश आदि द्वारा ते ते स्थानोए. अहिंसा पळावी छे. तेओ महाप्रभावी अने परम प्रतापी छे. श्री सागरानन्दसरीश्वरजी सैलानानरेश प्रतिबोधक तरीके प्रसिद्ध छे. तेओ आगमोद्वारकजैनागमोने शुद्धरूपे प्रकाशित करावनार-महान् आचार्य छे. विजयकमलमरिजी (बन्ने ), विजयवल्लभमरिजी, विजयदानसरिजी आदिए पण अनेक राजपुतो जाट आदिने उपदेश आपी अहिंसा पळावी छे अने वडोदरा नरेशने पण उपदेश आप्यो छे. बुद्धिसागरसूरि, विजयकेसरसूरिजी आदिए पण नाना नाना राजाओने, राजपुतोने अने अन्य जातिओने उपदेश आपी अहिंसा पळावी छे. विजयधर्मसूरिजीए अनेक भारतीय राजामहाराजाओ अने विद्वानोने उपदेश आप्पो छे. तेम ज तेमणे पाश्चात्य विद्वानो अने अधिकारीओने उपदेश आयो छे. गर्वनर, एजन्ट-टु-धी-गर्वनर Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ श्रमण वंशवृक्ष आदिने मळनार आ प्रथम ज जैनाचार्य छे. एमणे केटलायने मांसाहार छोडावेल छे. पश्चिमना देशोमां जैन साहित्यनो प्रचार ए एमनु मुख्य कार्यक्षेत्र हतुं. विजयशान्तिमूरिजी बिकानेर, लींबडी, जोधपुर आदिना राजा महागजा, रजपुतो अने अंग्रेज अधिकारीओने प्रतिबोधो मांसाहार त्याग करावे छे, शिकार, तथा व्यसनो बंध करावे छे. स्वर्गस्थ गुरुदेव श्री चारित्रविजयजी महाराज ( श्री यशोविजयजी जैनगुरुकुल-स्थापक) तेओश्रीए पालीताणाना एडमिनिस्ट्रेटर मेजर स्ट्रोंग साहेब, तथा मालोया, लाकडीया अने अंगीयाना राजासाहेबोने प्रतिबोध आपी अनेक सुकृत करावेल छे. अने केटलाये रजपुतो, अने अधिकारीओनो मांसाहार छोडाव्यो छे. उपसंहार आ लेखमां कौंस ( ) मा जे नंबरो आप्या छे ए तपगच्छ श्रमग वंशवृक्षना मूल नंबरो छे. मने जे साहित्य मळ्यु ते प्रमाणे प्रसिद्ध प्रसिद्ध जैनाचार्योए राजामहाराजाओने उपदेश आपी जे प्रतिबोध को छे; जिनशासननी जे प्रभावना अने प्रचार कर्यो छे, तेनी टुंकी नेांध आपी छे. हजारो अने लाखो रजपुतोने अने अन्य समाजोने पण प्रतिबोधी जैन बनावनार, महामंत्रीश्वरोना प्रतिबोधक, प्रकांड विद्वानो, दिग्गजपंडितो, महान् ग्रंथकारो, योगीश्वरो वगेरे अनेक जनशासनना संरक्षको, दीपकोनो आ नानकडा निबंधमां हुं उल्लेख नथी करी शकयो. एटलुं स्थान पण नथी. में आ निबधमा जे आचार्योनो परिचय आप्यो छे तेनो विशेष परिचय आपवानी जरुर हती-छे परन्तु स्थाननो अभाव मने तेम करतां रोके छे एटले बाचको आटला टुंका परिचयथी संतोष मानशे एम इच्छु छं. ___ आ लेख लखवामां पट्टावली समुच्चय भा. १, अप्रसिद्ध त्रीजो, चोथो भाग, प्रभावकचरित्र, महावीर-निर्वाणकालगणना, हिस्ट्रि ओफ ओसवाल, राजस्थानोंका इतिहास, राजपुताने के जैनवीर, हिन्दुस्तान के देशीराज्य, जैनकोन्फरन्स हेरल्ड, अने सनातनजैन वगेरे वगेरनो में उपयोग को छ एटले ए ग्रंथलेखकोनो आभार मानी आ लेख पूरो करुं छं. आ निबंधमां क्यांय पण क्षति जणाय तो ते तरफ मारुं लक्ष्य दोरवानी विद्वानोने प्रार्थना छे जेथी आगळ उपर सुधारो करी शकाय, अजमेर, लाखणकोटडी वीरसंवत २४६२ अषाढी पूनम. Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट (वंश-वृक्ष विभाग ) पृष्ठ-८ रही गएला -- ७१ पं० खान्तिविजयना शिष्य खीमाविजय ७२ पदवी - मुनि उदयविजयजी, पंन्यास; मुनि मनोहरविजय, पंन्यास नव दीक्षित - कुसुमविजय ( आ० विजयनीतिसूरिजीना समुदायमा — पं० कल्याणविजयना शिष्य ) कंचनविजय ( आ० विजयनीतिसूरिजीना शिष्य ) पृष्ठ-१० पदवी - उ० कुमुदविजय, आचार्य. काळधर्म - ७४ श्री हरखविजयजी. पदवी - उ० देवविजय, आचार्य प्र० पं० लाभविजय, आचार्य पं० प्रेमविजय, उपाध्याय पं० न्यायविजय, आचार्य पृष्ठ- ११ उ० प्रतापविजय, आचार्य मुनि सुभद्रविजय, प्रवर्तक मुनि उदयविजय, प्रवर्तक मुनि भरतविजय, प्रवर्तक पृष्ठ १२ पदवी - मुनि धर्मविजय, उपाध्याय पं० पद्मविजय, आचार्य ( विजय प्रभसूरि ) नव दीक्षित - चंद्रविजय ( पं० चतुरविजयना स० मां उ० धर्मविजयना शिष्य ) पृट-१३ पदवी - मुनि भावविजय, पंन्यास, पं० भक्तिविजय, आचार्य पृष्ठ - १४ पदवी -उ० पद्मविजय, आचार्य, उ० अमृतविजय, आचार्य; उ० लावण्यविजय, आचार्य नव दीक्षित -- रत्नप्रभविजय ( आ० विजयने मिसूरिजीना शिष्य ) लक्ष्मीप्रभविजय ( आ० विजयपद्मसूरिजीना शिष्य ) विद्याप्रभविजय (आ० विजयपद्मसूरिजीना शिष्य ) भानुविजय ( आ. विजयनेभिसूरिजीना स० मां मु० रुपविजयजीना शिष्य ) पृष्ठ- १५ पदवी - पं० क्षमाविजय, उपाध्याय पं० कस्तुरविजय, आचार्य; मुनि मेघविजय, आचार्य काळधर्म- -आ० विजयदानसूरीश्वरजी नव दीक्षित - अशोकविजय ( आत्मारामजी महराजना समुदायमां उ० क्षमाविजयना शिष्य ) पृष्ठ - १६ पदवी - मुनि धर्मविजय, आचार्य; मुनि सौभाग्यविजय, आचार्य; उ० ललितविजय, आचार्य पं० उमंगविजय आचार्य; पं० विद्याविजय, आचार्य नव दीक्षित - सोमविजय (आ० ललितसूरिजीना शिष्य ) काळधर्म - ७७ श्री० मानविजय Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ १७ पदवी - पं० गंभीरविजय, उपाध्याय पं० लक्षणविजय, उपाध्याय; मुनि मुवनविजय, प्रर्तवक पृष्ठ १८ पदवी - उ० रामविजय, आचार्य ( विजयरामचंद्रसूरिजी ) पं० जंबुविजय, उपाध्याय नव दीक्षित - अरुणविजय ( विजयरामचंद्रसूरिजीना स० मां मुनि जसविजयजीना शिष्य ) कुशलविजय ( विजयरामचंद्रसूरिजीना स० मां मुनि सौभाग्यविजयना शिष्य ) मानतुंगविजय ( विजयरामचंद्रसूरिजीना शिष्य ) पृष्ठ १९ नवदीक्षित - मनकविजय ( आ० भद्रसूरिजीना स० मां मुनि रमणिकविजयजीना शिष्य ) हसमुखविजय ( आ० भद्रसूरिजिना स० मां मुनिचरणविजयजीना शिष्य ) दुर्लभ विजय (आ सिध्विसूरिजीना स० मां मुनि कल्याणविजयजीना शिष्य ) पृष्ट २० पदवी - उ० माणिक्यसागर आचार्य, पं० मतिसागर आचार्य काळधर्म - ७३ महोदयसागर पृष्ट २२ पदवी - पं० क्षान्तिमुनि, आचार्य; मुनि सीद्धिमुनि, उपाध्याय; मुनि कीर्तिमुनि, पंन्यास नव दीक्षित - जयंतमुनि, महेन्द्रमुनि, सुंदरमुनि ( पं० हीरमुनिजीना शिष्या ) सुमतिमुनि ( पं० कीर्तिमुनिजीना शिष्य ) वर्तमान श्रमण संस्थाना आंकडाओ ४ काळधर्म पामेला, १ रही गयेला, १९ नव दीक्षित वंश-वृक्ष विभागना प्रथम पृष्ट उपर संवत १९९२ना कारतक शुद्ध संख्या ६६४ मुकी छे. त्यार पछी थएल फेरफार उपर मुजब करता सं. कुल संख्या ६८० नी छे. श्री तपगच्छना ६८०, श्री खरतरगच्छना ५३, श्री पायच नगच्छना १४, श्री अंचलगच्छना ११ (६. चंद्रशाळा ५ सागरशाळा ), कुल संख्या ७५८ छे. १५ सुधीनी विद्यमान श्रमणोनी १९९२ना असाढ शुद्ध १५ सुधीनी Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम प्रथमथी १० थी वधु कोपीना ग्राहक थनारनी यादी नकल नाम नकल २५ पंन्यास श्री रंगविमलजी १० शाह गीरधरलाल हरजीवनदास वडवाण शहेर १. आचार्य श्री विजयमोहनसूरीश्वरजी १. नवलचंदजी सुपरचंदजी पाली (मारवाड) १. उपाध्याय श्री धर्मविजयजी १० पदमचंदजी संपतलालजी फलोधी १० मुनिराज श्री माणेकविजयजी १० मुनिराज श्री ज्ञानसुंदरजी पाली ( मारवाड) १. आचार्य श्री क्षान्तिसूरिजी १५१ एक गृहस्थ सुरत १० मुनिराज श्री प्रवीणविजयजी १०१ एक व्हेन मुंबई १० मुनिराज श्री मनहरविजयजी ५१ एक साध्वीजी महाराज १. आचार्य श्री विजयलाभसूरिजी २०६ चार संस्थाओ, अमदावाद १. मुनिराज श्री वीरविजयजी १८१ परचुरण ग्राहको लीटी शुद्ध महत्त्वनी शुदिओ (वंश-वृक्ष विभाग) कानीशाखा, अशुद्ध शुद्ध मणिविजय (दादा) पद्मविजयजीनी शाखामां आवता नामो आगळना आंकडाओमां एक एक नंबर वधारी वांचवो नेमविजय चन्द्रविजय चंदनविजय (विवेचन विभाग) अशुद्ध आगमोरच्या आगमो उपर नियुक्ति रची, उमास्वामिवाचक उमास्वातिवाचक न्यायावतार तर्क प्रकरणनी न्यायावतार सन्मति प्रकरण तर्क प्रकरणनी हीरविजयसूरि अने हीरविजयसूरि, उ. धर्मसागरजी, उ. मेध विजयजी अने सदीना सहस्त्राब्दी वी० मि० वी. नि० ४५७मां ४५३भां दवेन्द्रनी देवेन्द्रनी लानना लग्नना तेरापंथी-साधु ११५, तेरापंथी साधु १४१, (साध्वी ४७५) ए संवत् ए तीर्थ संवत् गुजनातना गुजरातना विन्सेन्ट तथा विन्सेन्ट तेजो तेओ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Privale & Personal use only www.nelibrary.org