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श्री तपगच्छ
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जगच्चंद्रसरि लगभग साडा बारमी सदीमां श्री जगच्चंद्रसूरिए उग्र तप आदयु. तेनाथी प्रसन्न थई मेवाडना राजा जैत्रसिंहे तेमने 'तपा'नो इल्काब आप्यो. ते वखते गुजरातनी अंदर वस्तुपाळ महामात्य पद शोभावी रह्यो हतो. तेणे सूरिनी कीर्ति सांभळी, तेमनां यशोगान सांभळ्यां अने तेमने गुजरातमां पधारवानुं निमंत्रण आप्यु. महामात्यना निमंत्रणथी श्री. जगच्चंद्रसूरि पाटण आव्या, ने वस्तुपाळना गुरु तरीके ख्यातिमां आववाथी तेमनुं मान वध्यु. त्यारथी तेमना इल्काब परथी तेमनो शिष्यसमुदाय तपागच्छने नामे ओळखायो अने ते वखते गुजरातनी अंदर तेमनुं जेटलं जोर हतुं तेटलं ज बल्के तेथी वधारे जोर अद्यापि पर्यंत छे.
___ श्री० जगचंद्रसूरिए दिगंबर आचार्यो साथे वादविवाद करेलो छे, तेम ज हीरला जगच्चंद्रसूरि तरीके तेमणे ख्याति मेळवी छे परन्तु तेमनी साहित्य संबंधीनी सेवानो उल्लेख मळतो नथी.
देवेन्द्रमूरि देवेन्द्रसूरि श्री जगच्चंद्रसूरिना शिष्य थाय अने तेमनी पाटे तेओ आवेला. देवेन्द्रसूरि विद्वान हता एटलं ज नहि पण बहुश्रुत पण हता. तेमनी व्याख्यान शैली अपूर्व हती. तेमणे माळवा वगेरे स्थळे विहार करी जैन संस्कृतिनो प्रचार करवा परिश्रम सेव्यो हतो. तेमनुं ज्यारे न्यारे व्याख्यान होय त्यारे लगभग अढारसो श्रावको तो सामायिक करवा ज बेसता. तेमना लखेला पुरतकोमा श्राद्धदिन कृत्यसूत्र-वृत्ति, सिद्धपंचाशिका सूत्र-वृत्ति, धर्मरत्नवृत्ति, ऋण भाष्य, सुदर्शना चरित्र, श्रावकदिन कृत्य सूत्र, तेम ज नव्यकर्मग्रंथपंचकसूत्र-वृत्ति छे. तेमना समयसुधीना जूना पांच कर्मग्रंथ--कर्मविपाक, कर्मस्तव, बंधस्वामित्व, षडशीति ने शतकनुं तेमणे संशोधन कर्यु छे, ने तेना पर स्वापज्ञ टीका रची छे : जे टीकाओनी अंदर बीजी टीकाओनो पण उल्लेख छे. आ पांच कर्मग्रंथमां चंदर्षि महत्तरनो सप्ततिका कर्मग्रंथ उमेरबाथी कुल छ कर्मग्रंथ थाय छे अने आजसुधी तेनुं पठन पाठन विनयपूर्वक चालु छे. छठा कर्मग्रंथमा मूळ गाथा सितेर हतो ते देवेन्द्रसूरिए वधारीने नेव्याशी करेल छे. देवेन्द्रसूरिए एकली टीकाओ नथी रची के एकला उपदेश नथी आप्यो पण तेमणे ताडपत्र पर केटलाय ग्रंथो लखावीने तेने विस्मृत थता अटकावेल छे
देवेन्द्रसूरि कवि पण हता ए न भूलवू जोईए. तेमणे दानादिकुलक नामर्नु तथा बीजा अनेक स्तवन रच्यां छे. षडावश्यक सूत्र पर देवेन्द्रसूरि कृत वंदारुवृत्ति पण उपलब्ध थाय छे. आ वृत्तिने श्रावकानुष्ठान विधि पण कहे छे.
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