SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - श्रमण वंशवृक्ष मंत्री—महामात्य, दंडनायक, सेनाधिपति वगेरे पदवीओने प्राप्त करी, शोभावीने जैनोए गुजरातना इतिहासने उज्जवळ बनावेल छे. वनराजनो महामात्य नीनु : तेनो पुत्र महामात्य लहर : तेनो पुत्र महामात्य वीर : तेना पुत्रो नेढ अने विमल : भीमदेवना वखतना प्रखर व्ययकरण पदामात्य [नाणा शास्त्री ] जाहिल्ल : जैनो अहिंसक छे छतां न'मर्द नथी तेनी साक्षी पूरता, तैलंगण, मालवा, सिन्ध अने उत्तरमा सिन्धु नदी सुधी गुजरातनी सत्ता स्थापनार सान्तू महेता : ए सत्ताने पोताना अनोखा व्यक्तित्वथी टकावी राखनार मुंजाल अने उदयन, आहड, वाग्भट, आनंद ने पृथ्वीपाल : अने छेवटे चमकी जनार वस्तुपाल तेजपालनी जोडी ए पाटणना इतिहासमा एक सळंग सांकळ रूप छे. तेमना वगर पाटणनो इतिहास लुख्खा लागे. आ बधा जैनो हता ते साची वात पण तेमणे उपर्युक्त पदवीओ प्राप्त करी एकली पदवीनी पूजा नथी करी, एकला राजानी पूजा नथी करी, परन्तु गुजरातनी संस्कृतिमां, गुजरातना थता नवविधानमा तेमणे अगत्यनो फाळो आप्यो छे. गुजरातनी कळाने तेमणे अनोखं स्वरूप आप्यु छे ने गुजराती साहित्यने विकसाववामां तेमणे तन, मन अने धनथी सहाय करेल छे. __ जेवी रोते वनराजना समयथी जैनोनो संबंध राज्य साथे हतो तेम जैन आचार्योनो पण हतो. तेओनी राजा पर सीधी असर हती. आथी जेम राजा विक्रमना दरबारमा साहित्यनी चर्चाओ थती; राजा भोजना समयमां तेना दरबारमा साहित्यकारो हता, तेम पाटणना राजाओना आश्रय नीचे पण जैन साहित्यकारो [अने जैनेतर साहित्यकारो] पोषायेला छे. शिलांकाचार्य : महान् रूपक ग्रंथ उपमितिभव प्रपंच कथाना रचनार सिद्धर्षिसूरि : दार्शनिक विषयना असाधारण विद्वान अभयदेवसूरि : सोळ वर्षनी नानी उमरमांज आचार्य पद मेळवनार नवांगवृत्तिकार श्री अभयदेवसूर : कवि बिल्हण : ‘कवि चक्रवर्ती' महाकवि श्रीपाळ : साहित्य सम्राट हेमचन्द्राचार्य : श्री मलयगिरि : रामचन्द्र वगैरेए जैन साहित्यनी सेवा करवामां कचाश नथी राखी, जैनेतर साहित्यनो अभ्यास करी तेनुं तुलनात्मक दृष्टिए विवेचन करवामां खामी नथी दर्शावी. आथी एम कही शकाय के गुर्जरराष्ट्रना उत्थानथी ते मुसलमानोना आगमन सुधीमां जैनोए ऊंच पदवीओ शोभावीने, अने तेमनी देखरेख नीचे साधुओए संस्कृत अने प्राकृत वाङमयने विकसाववामां तेम ज़ अत्यारनी गुजरातीने जन्म आपवामां भारेमा भारे फाळो आपेलो छे. आम पहेलेथी ज खेडाती आवती जमीनने क्रमशः एक पछी एक आचार्य के मुनिए वधारे खेडीने साहित्यनो सुंदर पाक उत्पन्न करेलो छे, जेमा तपगच्छना आचार्योनो पण जेवो तेवो हिस्सो नथी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy