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________________ श्री तपगच्छ श्री जगच्चंद्रसूरिथी ते आजसुधीमा तपगच्छनी पाट पर आवेला लगभग साडत्रीस आचार्योए जैन साहित्य, कळा, संस्कृति वगेरेनी प्रत्यक्ष या परोक्ष रीते खोलपणी करी छे अने तेमना शिष्यो तो गुरुथी पण सवाया थयेल छे. ते सिवाय श्री बुद्धिसागरजी, श्री यशोविजयजी, श्री आनंदधन, पंडित श्री वीरविजयजी वगेरेना नामना पण उल्लेख करवानी जरुर रहे छे, छतां मारा निबंधनी हद 'तपगच्छना आचार्यो अने तेमनुं साहित्य' पूरती होवाथी तेने स्पर्श करतां करतां आगळ वधीश. स्पर्श शब्द एटला माटे ज छे के वखतना अभावे हुँ पूरतुं साहित्य नथी जोई शक्यो तेम ज केटलाक आचार्यो संबंधी नेांध सरखी पण नथी मेळवी शक्यो. जो के साथै एय कबूल करी लेवू जोईए के जेमनो उल्लेख में नथी को तेमना संबंधी पूरी विगत पण मळती नथी: मळे छे फक्त नामनो उल्लेख. वळी 'एक नेांध' शब्द एटला माटे छे के आ निबन्धमा तपगच्छना आचार्योए रचेला ग्रन्थोनो ज नांध छे, कारण के तेमणे रचेला साहित्य पर पंडितश्री सुखलालजी जेवा कोई वीरल विद्वान ज तलस्पर्शी चर्चा करी शके; नांध लखी शके. अने ते वस्तु मारी शक्ति बहारनी छे. [२] __'जैन पंडितोए तो सरस्वतीनी अपूर्व सेवा बजावी छे १२ एनी साथे एटलु उमेरवं जोईए के 'जैन आचार्योए रचेलं साहित्य बाद करीए तो गुजरात, साहित्य अत्यंत क्षुद्र देखाय. कारणके जैन आचार्योए, गुजरातना पाटनगर तरीके पाटणनी स्थापना थया पछी दसमी सदीथी तेरमी सदी सुधीमा घणा अगत्यना ग्रंथो रच्या छे. तेमणे एकला जैन साहित्यनो ज नहि पण वैदिक साहित्य, बौद्ध साहित्य वगैरेनो अभ्यास करी तेनुं तुलनात्मक दृष्टिए आलोचन करेल छे, तेम ज तत्समयनी संस्कृति, पण अमुक रासा, सज्झाय के चरित्रोमां आर्छ पातळु वर्णन करेलं छे के जेथी एक वखत साहित्यनी दृष्टि बाजुए राखीए तो पण अतिहासिक दृष्टिए तेनुं महत्व टकी रहे. साहित्यनुं एकलुं सर्जन ज जैन आचार्योए नथी कयु, पण तेनो विकास करी जाण्यो छे ने तेने साचवीये जाण्यु छे. आठथी दस दस सदी सुधी जेवो ने तेवी ज हालतमां जैन या जैनेतर ग्रंथो जैनभंडाराभांथी उपलब्ध थाय ए जैन आचार्यानी साहित्यनी रक्षा माटेनी केटली धगश हशे ते बतावे छे ने पाटण, खंभात, के अमदावादना भंडारो तेनी साक्षी पूरे छे. ज्यारथी पाटणना पायो खायो त्यारथी जैनोनो अने जैन आचार्योनो पाटणनी साथे अने पाटणना राजानी साथे निकटनो संबंध रह्यो हतो अने ते संबंध केटलाय वखत सुधी चडती पडतीनी तडकी छांयडी जोतो टकी रह्यो हतो. २. श्री मणीलाल न. द्विवेदी. ३. श्री. चीमनलाल दलाल. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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