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________________ श्रमण वंशवृक्ष हना समयमां जैनोनी संख्या बे करोडना आशरे गगाती हती. पश्चात् त्रणसे वर्षमां घटतां घटतां वि. सं. १९०५ लगभगमां जैनोनी संख्या वीश लाख गणावा लागी. पश्चात् पंदर लाख, पश्चात् तेर लाख अने वि. सं. १९८० सुधीमां जैनोनी संख्या बार लाख पांत्रीस हजार गणाय छे. जैनोनी संख्या घटवानां अनेक कारणो छे. प्रथम तो तेओए स्वधर्ममां घाखरा वैदिक पौराणिक हिन्दुओना रिवाज दाखल कर्या तथा साधुओनी संख्या घटवा लागी हती, तेमज हिन्दु संन्यासीओ, धर्माचार्यानी पेठे जैन साधुओने धर्म प्रचारार्थे फरवानी सगवड बंध थई. जैनोनी संख्या वधवानां कारणोना उपयोग थतो बंध थयो. जैन वणिक कौम सिवायनी अन्य कोमोने जैन बनाववानी व्यवस्था घटी गई. मुसलमानो जेम गमे तेने मुसलमान करी शके छे अने पोतानी कोमनी संख्या वधारे छे, तेवो जैनोनो पूर्वे मार्ग हतो, ते जैनोए बन्ध कर्यो, तथा जैन कोम व्यापारी होवाथी बीकण, नामर्द बनवा लागी अने पोतार्नु धर्मझनुन भूलवा लागी, ते अन्य कोमोना आक्रमणथी पोतानी जात उपर उभी रही जीवी शके एवी स्थितिना ज्ञानथी अज्ञान बनवा लागी. हिंदुओए मुसलमानी राज्यमा पोतानी घणीखरी वसति खोई छे. भूलेचूके कोई मुसलमान जो हिंदुना मुखमा थुके तो पछी ते हिंदु प्रायश्चित्त करे तो पण तेने पाछा हिंदुधर्ममा लेता न हता. हवे हिंदुओए पोतानी ते भूल जोई छे अने वटलाई गएला तथा अन्य धर्ममां गएला हिंदुओने पाछा प्रायश्चित्त करावी हिंदुधर्ममा दाखल करवा मांड्या छे. मदनमोहन मालविया, स्वामी श्रद्धानंद तथा शंकराचार्यो तथा वैष्णवाचार्यो जाग्या छे. तेओना जेटला पण जैनहिंदओ वणिक होवाथी जागी शक्या नथी. हिंदुओ जे ब्राह्मण वणिको वगेर छे तेओनं जैनो अनुकरण करे छे, अने जैन मुनिओ तो आ बाबतमा बीलकुल अज्ञ जेवा छे. तेओ तो धर्मनी क्रिया करे छे पण क्रियामतभेदे परस्पर मतभेदवाळा साधुओनी साथे ऐक्य प्रेमथी वात करवामां पण समकितने ठेकाणे मिथ्यात्व आवी जाय एम माने छे. पण हवे केटलाक मुनिओ, आचार्यो तथा जैन गृहस्थो वर्तमान परिस्थितिने जाणी गया छे. जैन शास्त्रोने जैन कोममा प्रत्येक व्यक्ति जाणशे त्यारे जैनोनुं बळ वधशे. जैनो वर्तमानमा आपत्कालीन स्थितिमा छे पण तेओ फक्त खावं, पीवं, जीव, अने कुळाचारे धर्मनी केटलीक प्रवृत्ति करवी एटलं ज समजी शके छे, तेथी तेओमां धर्मझनुन अने धर्मप्रगतिनी चळवळ घणी ज ओछी रहे छे. जैनोमां तो जे रात्रे न खाय अने कंदमूळ त्याग करे ते ज जैन बनी शके तथा खेती वगेरे बीजा धंधा छोडी दे तो ज जैन बनी शके एवी हालना जैन वणिकोना बहोळा भागनी मान्यता छे ! पण जैन शास्त्रोमां चारे वर्णो पोताना गुण कर्म प्रमाणे वर्तती जैन बनी शके एवी विशाळ दृष्टि छे. तेने जैन कोम भूलवा लागी छे, कट्टा आर्यसमाजी लाला लजपतराय के जे स्वरचित --- " भारतका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003643
Book TitleTapagaccha Shraman Vansh Vruksh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantilal Chottalal Shah
PublisherJayantilal Chottalal Shah
Publication Year
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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