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श्री तपगच्छ
इतिहास ”मां जगावे छे के “ जैन साधुओ जेटला दुनियामां अन्य धर्मना साधुओ पवित्र नथी, अने जैनधर्मनी विश्वमा घणी जरुर छे."
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लोकमान्य तिलके वडोदरानी जैन कोन्फरन्समा भाषण आपती वखते जणान्युं हतुं के " वेद धर्म जेटलो जैनधर्म प्राचीन छे अने जैनधर्मना बळथी वैदिक हिंसानो नाश थयो छे "
वि. सं. १९६३ मां सुरतमां महासभानी बेठकमां जवा लाला लजपतराय नीकळेला, रस्तामां अमदावाद उतरेला. ते वखते महूम शेठ श्री लल्लुभाइ रायजीनी साथे लालाजी चारसो माणस लइने मने मळवाने पधारेला मनुष्योनुं कल्याण करवानो उपदेश आप्यो हतो. लालाजीए ते वखते जैनोनी उदारता अने अहिंसाना वखाण कयी हता अने कयुं हतुं के " आपना जेवा जैन साधुओ थी हिन्दनो उद्धार थवानो छे." जैन शास्त्रमां मनुष्योनी दया करवानुं जगात्र्युं छे. पशु पंखी करतां मनुष्योना दया करवामां अनंतगणुं विशेष फळ छे एम जैन शास्त्रो पोकार करीने कहे छे.
जैनमां त्यागी साधुओ धर्मगुरु तरीके पोतानी त्याग दशामां मशगुल रह्या. तेओए जैनोनी संख्या घटे छे, ते तरफ ब्राह्मणोनी पेठे कशु लक्ष आप्युं नहीं तथा कोमना सर्व त्यागीओए संघ मेळवी जैनोनी संख्या घटे छे तेनी वृद्धि करवा कशा उपायो लोधा नहीं. गृहस्थ जैनोए पण संघ भगो करी ते संबधी कई उपायो योज्या नहीं; कारण जैन गृहस्थो मोटा भागे जैन शास्त्रोना ज्ञाताओ बनता नथी तथा जैनो व्यापारी खानदान- - वैभवभोगी होवाथी आ बाबतथी बीलकुल अजाण रह्या तथा तेओ कुलाचारे गाडरी आप्रवाहे जैनधर्मने पाळवा लाग्या, तथा तेओने जैनसंख्यावृद्धिनो उपदेश पण यथायोग्य मळ्यो नहीं. साधुओ तथा आचार्यो त्याग अने क्रियाकांड करवामां ज पोतानु ध्येय मानवा लाग्या. तथा तेओए जाहेर उपदेश देवाना मार्गो तरफ दुर्लक्ष कर्यु. वैदिक पौराणिक हिंदुओने राजाओ तरफथी सारी मदद मळी. आर्य सनातन जैन हिंदुओने राज्याश्रय मळतो बंध थयो.
मुसलमानो एक हिन्दुने मुसलमान बनाववामां स्वर्गना राज्यनी प्राप्ति माने छे. जैनोए जोर, जुल्म, अन्याय अने शास्त्रोना बळथी आजसुधी एक पण अन्यधर्मी मनुष्यने जैन बनाववा प्रयत्न कर्यो हो एवं ऐतिहासिक दृष्टिए जणातुं नथी. जेनोए आजसुधी जैन-मंदिरो बंधाववामां विशेष लक्ष दधुं छे. हिन्दमां जैनोना लगभग आशरे छत्रीस हजार मंदिरो छे. ज्यां जैनो वसे छे त्यां परबडी पांजरापोळो करे छे. उपाश्रय तथा देरासर बन्धावे छे. घणाखरा जैनो जैन ऐतिहासिक बाबतोथी अज्ञात रहे छे. मुसलमानोनुं आकीन वखणाय छे, वैष्णवोनी भक्ति वखणाय छे, अने जैनोनी दया वखणाय छे.
जैनोमां श्री भद्रबाहु स्वामी, हरिभद्रसूरि, कलिकालसर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य, मल्लवादी, सिद्धसेन दिवाकर, उपाध्यायजी - समंतभद्रसूरि, अकलंक, निकलंक, कुंदकुंदाचार्य, वगैरे अनेक आचार्यो थई
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