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श्रमण वंशवृक्ष गया छे. तेओए सर्व विषयोना अनेक ग्रंथो लख्या छे. जैनोनां तीर्थो सिद्धाचल, गिरनार, तारंगा, आबु, राणकपुर, सम्मेतशिखर, पावापुरी, श्रवणबेल्गुल, राजगृही वगैरे अनेक छे. हिमालयमां पण जैन तीर्थ छे. काबुलमां जैनो वसे छे. हिंदनी चारे दिशाए जैन तीर्थो छे. जैनो व्यापारी, धनाढ्य, श्रीमंतो, चतुर, कलादक्ष, गणाय छे. हालमां सर्व धर्मवाळाओनी चळवळ देखीने जैनो पण जागृत थया छे. जैन कोन्फरन्सो, सोसायटीओ, परिषदो वगेरे भराय छे, पण तेमां जैनोनी संख्यावृद्धि माटे तथा श्वेतांबर दिगंबर कोमना तीर्थ कजीआ-माहोमांहे पताववा ते बाबत कशुं खास जाणवा लायक लक्ष अपातुं नथी तेथी तीर्थोना झगडामां जैनोना लाखो रुपीआ बरबाद थाय छे. जैन धार्मिक ज्ञाननी वृद्धिमा दिगंबरो जेटलं धर्माभिमान श्वेतांबरो लक्ष पूर्वक राखता नथी. दरेक जैने एक वरसमां बे त्रण वखत तीर्थोनी यात्रा करवी तथा दररोज एक जैनपुस्तकनो केटलोक भाग वांची जबो, तथा दररोज गुरुनो बोध सांभळवो, दररोज गुरुदर्शन तथा व्याख्याननो लाभ न मळे तो वर्षमा चार पांच वखत ज्यां आचार्यो, साधुओ, होय त्यां गुरुदर्शनार्थे जवं, अने जैनधर्मनुं व्याख्यान वगेरथी स्वरूप समजवू, जैन धर्मनी श्रद्धा धारण करवी, अने अन्य धर्मीओना धर्मनी नोंदा न करवी. अन्य हिंदुओ वगेरे धर्मनी चढती करवामां जे जे उपायो ग्रहण करे ते प्रमाणे पोते जैनोए पण धर्मवृद्धिना उपायो ग्रहण करवा. जो ए प्रमाणे जैनो समय विचारी कर्मयोगी थई वर्तशे तो दुनियामां जैनोनुं अस्तित्व संरक्षा शकशे अने अन्य धर्मीओना आक्रमण-हुमला वगेरेथी बची शकशे.
शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, वल्लभाचार्य वगेरे आचार्योए परस्परनी तत्त्व संबंधीनी मान्यता भिन्नभिन्न होवा छतां तेओए पोतानी मान्यता अनुकूल श्रुतियोना अर्थ करीने पोतानी करी दीधी छे. प्रभु सर्वज्ञ महावीरदेवे जेम गौतमादिक गणधरोने श्रुतियोनो सम्यग् अर्थ जणाव्यो, तेम जैनाचार्यो वेदोनी श्रुतियोनो जैनतत्त्वानुकूल अर्थ करी वेदादिकने जैन तत्त्वज्ञानना पोषक-प्ररूपक माने अने एवो अर्थ करी प्रवर्ते तो तेओने ते स्याद्वाददृष्टिनी अपेक्षाए जैनोनी वृद्धिमा उपयोगी थई पडे तेम छे. इशावास्योपनिषद्पर अमोए स्याद्वाददृष्टिए टीका करी छे, ते स्याद्वाददृष्टिथी गीतार्थ जैनो अने सुज्ञ ब्राह्मणो वांचशे तो तेओ जैन हिंदु धर्म अने वैदिक हिंदु धर्मना पुल जेवी छे एम स्याद्वाददृष्टिनो अनुभव करी शकशे. वैदिक पौराणिक हिंदुओना धर्मग्रन्थोथी जैनधर्मना ग्रन्थो-शास्त्रो विशेष छे. बौद्धधर्मथी बीजा नंबरे आखी दुनियामां जैनधर्मना ग्रन्थो छे. जैन शास्त्रामा सर्व दर्शनोना तत्त्वज्ञाननो मुकाबलो करवामां आव्यो छे. बुद्धिवादमां जैनतत्त्वज्ञाननां शास्त्रो प्रबळ, गंभीर, अकाट्य, अखंडय छे. दिगंबरनां अने श्वेतांबरनां तत्त्वज्ञाननां तथा न्यायनां शास्त्रो खास वांचवां जोईए अने पश्चात् जैन तत्त्वज्ञान संबंधी अभिप्राय जाहेर करवो जोईए.
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